सावन (आलोक कौशिक)
आलोक कौशिकपिपासा तृप्त करने प्यासी धरा की
बादल प्रेम सुधा बरसाने आया है
अब तुम भी आ जाओ मेरे जीवन
प्रेमाग्नि जलाने सावन आया है
देखकर भू की मनोहर हरियाली
नभ के हिय में प्रेम उमड़ आया है
रिमझिम फुहारें पड़ीं तन पर जब
मन अनुरागी तब अति हर्षाया है
प्रेम और मिलन का महीना है सावन
प्रकृति व परमात्मा ने समझाया है
बनकर मल्हार शीतल कर दो
कजरी की धुनों ने बड़ा तड़पाया है
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