मेरे दादाजी
आलोक कौशिकवो हैं सबसे अच्छे
वो सबसे प्यारे हैं
पापा के पिताजी
दादाजी हमारे हैं
जागते हैं सवेरे
भजन सुनाते हैं
जगाकर मुझको
योग करवाते हैं
होती है शाम जब
मैदान लेकर जाते हैं
ख़ुद तो चलते हैं धीरे
मुझको दौड़ाते हैं
खेलते हैं मेरे संग
कहानियाँ सुनाते हैं
पढ़ना भी है ज़रूरी
मुझको समझाते हैं
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