पुलकित
पाण्डेय सरिता ‘राजेश्वरी’
आधार छंद: प्रगाथ समवृत्त
यति: 8, 7
गणावली: रमगग, रनल
अंकावली: 212-222-22, 212-111-1
सृजन शब्द: पुलकित
स्निग्धता की रंगीनी में, देख लो पुलकित।
साधना मंत्रों में गूँजे, नाद ये उपमित॥
सृष्टि तूफ़ानी ले दौड़े, भाग में वितरित।
शान्ति माँगे प्राणों की, आहुति अगणित॥
बाग़ में हैं फूलें सारे, रंग के सुरभित।
धारती है गोदी में ले, प्रेम से विकसित॥
चाँदनी की संगी-साथी, चूमती किलकित।
है प्रभाती उल्लासी जो, भाल पे तिलकित॥
ले बलैया नाचे-गाए, साथ में प्रवहित।
दे दुआएँ ढेरों सारी, कौन है प्रमुदित॥
घोंसले शाखाओं झूमें, जंगली सुगठित।
है फलों में धाराओं सी, स्वाद ले अमरित॥
मोहती सी मुस्काती है, देख हूँ विचलित।
पूर्णता के संबंधों में, पाठ है अपठित॥
लाख आभारी हूँ मैं तो, आप से चयनित।
धन्यवादों में हो कैसे, भाव ये प्रसरित॥
पाठ ऐसा खट्टा-मीठा, ज़िंदगी प्रचलित।
आ गया जो स्वामित्वों में, कर्म ये अनूदित॥
भाग्य-सौभाग्यों का लेखा, मानती मुखरित।
धारणाओं को रौंदेगा, लक्ष्य ले हुलसित॥
बाँध लेती डोरी आशा, हाथ में नियमित।
द्यौ ध्वजा को थामूँगी, जो श्रेष्ठ है जनहित॥