मैं बचा इश्क़ के अज़ाबों से
इरफ़ान अलाउद्दीन
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
मैं बचा इश्क़ के अज़ाबों से
प्यास बुझती नहीं शराबों से
मैंने अपनों से ज़ख्म खाए हैं
इसलिए दूर हूँ घरानों से
ढूढ़ते हैं न जाने वो भी क्या
दोस्ती उन की है किताबों से
रात मुश्क़िल से गुज़रती मेरी
ज़िंदगी झाँक ले हिजाबों से
ठहर जाएगा दर्द मेरा भी
पूछते क्या हो तुम हकीमों से
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