चार पैसे जेब में हैं ख़्वाब मेरे ग़ैब में है

01-02-2023

चार पैसे जेब में हैं ख़्वाब मेरे ग़ैब में है

इरफ़ान अलाउद्दीन (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

बहरे रमल मुसम्मन सालिम 
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
 
2122   2122   2122   2122 
 
चार पैसे जेब में हैं ख़्वाब मेरे ग़ैब में है 
बेच दो सारा जहाँ तुम जान मेरी रैब में है 
 
इश्क़ मेरे लिए नहीं है और ना मैं इश्क़ का हूँ
ये अक़ीदा है मिरा जाँ प्यार मेरा बैब में है
 
आँसुओं से कुछ नहीं होगा यहाँ पर असर समझो
क्यों परेशाँ फिर रही हो चाँद मेरा ऐब में है
 
चाहता हूँ मैं कमाना और भी पैसे अभी जाँ
छोड़ दो मुझ को यहीं पर अक़्ल मेरी ग़ैब में है
 
जो कमाया वो उड़ाया शान से मैंने यहीं पर
इक खिलौना मैं बना हूँ ज़ख्म मेरे शैब में है 
 
ग़ैब=अदृश्य, अनुपस्थित, दिखाई न देने वाली चीज़, परोक्ष; रैब=संदेह, आशंका, शक, शुबहा, दुर्घटना, हादिसा; अक़ीदा=विश्वास, यक़ीन, धार्मिक विश्वास; बैब=दूरी पर, बहुत दूर; ऐब=पाप, गुनाह, त्रुटि, भूल, अशुद्धि, ग़लती, खोट, दोष, बुराई; शैब=बुढ़ापा, वृद्धावस्था, बालों की सफेदी

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