हैं नहीं मगर वो समझते हैं
इरफ़ान अलाउद्दीन
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
हैं नहीं मगर वो समझते हैं
लोग ख़ुद को ख़ुदा समझते हैं
मैंने देखा हैं आँखों से अपनी
लोग ख़ुद को अदा समझते हैं
फ़िक्र ख़ुद की ज़रा नहीं उन्हें
लोग ख़ुद को सदा समझते हैं
बातें करते बड़ी बड़ी हँस के
और ख़ुद को दुआ समझते हैं
क्या कहूँ मैं मुझे बताओ अब
लोग ख़ुद को जज़ा समझते हैं
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