स्वप्निल द्वीप

04-02-2019

स्वप्निल द्वीप

शैलेन्द्र चौहान

अच्छा होता
विस्मृत हो जातीं
सारी परिकथाएँ, 
चमचम मनोहर वे
स्वप्निल द्वीप !
 
        यथार्थ चीर देता
        तलवार की धार से
        विगत और वर्तमान को
        दो भागों में
 
            ठहर जाती हवा
            छुप जाता चाँद
            हँसते रहते हम
 

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