छवि खो गई जो 

20-02-2019

छवि खो गई जो 

शैलेन्द्र चौहान

हो गई रात
स्याह काली
नीरव हो गया
वितान
 
खग, मृग सब
निचेष्ट 
दृग ढूँढ़ते वह
छवि खो गई जो
 
बढ़ रहा 
अवसाद तम सा
साथ रजनी के
छोड़ तुमने दिया साथ
कुछ दूर चल के
 
रह गया खग
फड़फड़ाता पंख
नील अंबर में
भटकता चहुँ ओर
 
वह
लौटेगा धरा पर
होकर थकन से चूर
अनमना बैठा रहेगा
निर्जन भूखण्ड पर
अप्रभावित, अलक्ष
जग के व्यापार से
 

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