स्त्री और प्रेम 

15-03-2021

स्त्री और प्रेम 

अंजना वर्मा (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

प्यार की नदी

जिसमें दोनों साथ ही समाये

दोनों भीगते रहे

पानी उछालते रहे

खेल करते रहे

पानी में डुबकियाँ लगाते रहे

 

उसके बाद

पुरुष निकलकर जाने लगा

बिल्कल सूखा

जैसे कभी भीगा ही न हो

स्त्री ने उसे निकलकर जाते हुए देखा

विश्वास नहीं हुआ

यह पीठ अचानक

अजनबी की पीठ में कैसे बदल गयी?

फिर भी उसने बुलाया

रोकना चाहा

पर पुरुष रुका नहीं

 

तब स्त्री ने उसके पीछे-पीछे

चलना चाहा

लेकिन नदी ने

उसके पैर बाँध लिये थे

नदी के जल से वह

बाहर से भीतर तक भीगी हुई थी

वह नदी में थी

नदी उसके भीतर थी

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