वह गूँध रही ख़ुशियाँ और सपने
काट रही बाधाएँ
झाड़ रही मन के मैल
बुहार रही घर के क्लेश
और अब
धुल रही बासी सोच
चमका रही मेधा।
उसने सहेजी हैं संवेदनाएँ
ठीक कीं सिलवटें विचारों की
समेट दिए अविश्वास
धुल दिए मन-प्राण सबके
और अब
लिख रही लेखा-जोखा
वर्तमान और भविष्य का।
वह हटा रही अपनी आरज़ू
सजा रही गौरव बच्चों का
उम्मीदों और सपनों को भी
और अब
उखाड़कर खर-पतवार
बना दी है समतल राह।
वह
आधुनिक युग की कामकाजी माँ!