इन पहाड़ों मेँ आकर

01-04-2015

इन पहाड़ों मेँ आकर

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

इन पहाड़ों में आकर
तुम्हें बहुत याद कर रहा हूँ
ये फूल, ये झरने और ये सारी वादियाँ
तुम्हारी ही याद दिला रही हैं

 

यहाँ हर तरफ सुंदरता है
पवित्रता, निर्मलता और शीतलता है
फिर तुम्हें तो यहीं होना चाहिए था
सब कुछ तुम-सा ही तो है

 

तुम्हें यहीं होना चाहिए था
मेरे साथ–साथ यहाँ सभी को शिकायत है
तुम्हारे यहाँ न होने की शिकायत

 

अजीब सा सूनापन है
तुम्हारे बिना मेरे अंदर
एक अधूरापन है

 

जिसे कोई पूरा नहीं कर सकता
सिवाय तुम्हारे।

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