वक़्त तू तेज़ चल, कहाँ था इस दिन का इंतज़ार

15-02-2025

वक़्त तू तेज़ चल, कहाँ था इस दिन का इंतज़ार

अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’ (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

क्या हुए वो वादे, कुछ तेरे थे, कुछ मेरे थे
क्या हुए वो इरादे, कुछ तेरे थे, कुछ मेरे थे
क्या हुए वो ख़्वाब, कुछ तेरे थे, कुछ मेरे थे
रह गया सब पीछे और भूल गए हम दोनों
वक़्त और हालात के कुछ ऐसे थपेड़े थे
न उसको है और न ही मुझको है अब इंतज़ार
वक़्त तू तेज़ चल, कहाँ था इस दिन का इंतज़ार
 
जहाँ भर के ग़मों को मेरे ज़ेहन में भर दिया
दामन को मेरे उसने बेचैनियों से भर दिया
और सारी जिंदगी को एक कमी से भर दिया
ता वक़्त तड़पूँगा और सुलगता रहूँगा मैं
इक ऐसी अग्न से उसने जीवन मेरा भर दिया
न उसको है और न ही मुझको है अब इंतज़ार
वक़्त तू तेज़ चल, कहाँ था इस दिन का इंतज़ार
 
रात और दिन हम सवालों के घेरों में थे
कुछ कहे थे हमने और कुछ अनकहे थे
वो ज़िद थी हमारी या अना के दौरे थे
उलफ़त, वफ़ा, ख़ुलूस न जाने कहाँ खो गया
हमारे पास एक दूसरे के लिए बस मशवरे थे
न उसको है और न ही मुझको है अब इंतज़ार
वक़्त तू तेज़ चल, कहाँ था इस दिन का इंतज़ार

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