मैं उलूरू चट्टान हूँ
अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’
वर्षों के कटाव से बनी मैं बलुआ चट्टान हूँ
रेगिस्तान के सपाट से मैं उभरी चट्टान हूँ
आदि से खड़ी निर्जीव मैं उलूरू चट्टान हूँ
अपने झरने, मैं अपना मौसम रखती हूँ
मेरा अपना एक वानस्पतिक शास्त्र है
और अनूठा इकोलॉजी तंत्र रखती हूँ
सुबह से शाम तक सूरज की किरणों में
सारा दिन मैं, एक रंग बदलती चट्टान हूँ
आदि से खड़ी निर्जीव मैं उलूरू चट्टान हूँ
इक सौ इकत्तीस° पूर्व पच्चीस° दक्षिण में
आकाश गंगा, पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में
हर रात को एक अनोखी छटा बिखेरती है
चाँद तारे सब मेरे चारों सू चक्कर लगाते हैं
ऐबरिजनी इतिहास की पवित्र चट्टान हूँ
आदि से खड़ी निर्जीव मैं उलूरू चट्टान हूँ
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