आतिश-ए-इश्क़ जलाये बैठे हैं

15-04-2025

आतिश-ए-इश्क़ जलाये बैठे हैं

अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’ (अंक: 275, अप्रैल द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

आतिश-ए-इश्क़ जलाये बैठे हैं
अपना सब्रो करार लुटाये बैठे हैं
 
बाद तेरे अब कोई नहीं आयेगा
यह अहदो'अज़्म उठाये बैठे हैं
 
देखते हैं ज़माना क्या करता है
एक नई अफ़्वाह उड़ाये बैठे है
 
और क्या देती जुस्तुजू-ए-वफ़ा 
बे-वफ़ा से उम्मीद लगाये बैठे हैं
 
न तपिश कोई न लपट ‘क़फ़स’
हम पानी पे आग जलाये बैठे हैं

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