मेरा साया
अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’शब-ओ-सहर कहाँ खोया हूँ मैं रहता
हर मुलाक़ात पे यही पूछता है मेरा साया
तेरे वजूद में खो गया हूँ मैं इस क़दर
के दर-ब-दर मुझे ढूँढ़ता फिरता है मेरा साया
राह-ए-मोहब्बत में इतना गहन था अँधेरा
कि मेरा साथ देने से डरता है मेरा साया
हम गुम हो गए हैं एक दूसरे में इस तरह
कि पहचान ही नहीं पाता हूँ मैं, मेरा साया
शब-ए-विसाल को इतनी ग़ज़ब हुई चाँदनी
कि आँखें मीच के रह गया मेरा साया
मुद्दतों बाद भी हमें साथ-साथ देखकर
आज भी शर्मा के रह जाता है मेरा साया
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