बनारस

01-03-2025

बनारस

अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’ (अंक: 272, मार्च प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बनारस को बनारस बनाता है बनारस
अब मेरे सपनों में भी आता है बनारस
 
सुबह गंगा आरती शाम चाट का ठेला
रूप बदल बदल के बुलाता है बनारस
 
कई ख़्वाहिश कई ख़्वाब बावस्ता इससे
हर रोज़ मेरे घर पर आता है बनारस
 
काशी आनंदवन अविमुक्त सब प्रायः मेरे
लेकिन मुझे हर कोई बुलाता है बनारस
 
जीवन की एक कड़वी सच्चाई है पर
हर शरीर को पंचभूत बनाता है बनारस

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