इश्क़ को इश्क़ अब कहो कैसे

01-06-2025

इश्क़ को इश्क़ अब कहो कैसे

अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’ (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू
अरकान: फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़्तीअ: 2122    1212    22
 
इश्क़ को इश्क़ अब कहो कैसे
जिस्म की कोई भूख हो जैसे
 
चलते चलते रुका अचानक मैं
आ गया मेरे आगे वो जैसे
 
रात भर था मुझे ये अंदेशा
मिलने मुझसे तू आया हो जैसे
 
हक़ दरख़्तों का भी है धरती पर
आदमी चाहे तुम रहो जैसे
 
काट ली थी कलाई फिर उसने
दर्द-ओ-ग़म भी वबाल हो जैसे
 
लगता है क्यूँ के अब ‘क़फ़स’ तू भी
झूठ को सच बनाता हो जैसे

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
नज़्म
कहानी
कविता
रुबाई
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में