इब्तिदाई उल्फ़त हो तुम
अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’
बहर: सरे_मुसद्दस मसकन मक़तो मनहोर
अरकान: फ़ाएलातुन मफ़ऊलुन फ़े
तक़्तीअ: 2122 222 2
इब्तिदाई उल्फ़त हो तुम
आख़िरी यक चाहत हो तुम
मेरी लंबी फ़ुर्क़त की जाँ
पुर सुकूं सी राहत हो तुम
जल हवा साँसे ओ धड़कन
ज़िंदगी की हाजत हो तुम
जो समा जाए ह्रदय मन में
गीता की वो आयत हो तुम
इस मोहब्बत के रस्तों की
मोड़ मंज़िल साहत हो तुम
हुस्न के तेरे क्या कहने
चलती फिरती आफ़त हो तुम
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