अक्सर इस इश्क़ में ऐसा क्यों होता है
अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’
बहर: बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
तक़्तीअ : 22 22 22 22 22 2
अक्सर इस इश्क़ में ऐसा क्यों होता है
जिसे चाहो वो ओर किसी का क्यों होता है
उसे चाहा उसे पाया और मिरा हाल ए दिल
कभी ऐसा तो कभी वैसा क्यों होता है
वापस आएगा वो शाम से पहले लेकिन
मिरे सीने में यह दर्द जैसा क्यों होता है
ग़र हो जाए इश्क़ तो सनम नहीं मिलता
दुनिया में हर बार ऐसा क्यों होता है
हँसता है वो और कतरा के निकल जाता है
तेरे साथ में ‘क़फ़स’ ऐसा क्यों होता है
1 टिप्पणियाँ
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इसी जमीन पर- सच के साथ है जो वह अकेला क्यों होता है, रोशनी में भी देखो एक अँधेरा क्यों होता है।- हेमन्त। क़फ़स जी आपकी अच्छी रचना है।----हेमन्त
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