तुम हो कहाँ, कहाँ हो तुम
अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’
बहर: रज्ज़ मुरब्बा मतवी मख़बोन
अरकान: मुफ़तइलुन मुफ़ाइलुन
तक़्तीअ: 2112 1212
तुम हो कहाँ, कहाँ हो तुम
ख़ुश रहो तुम जहाँ हो तुम
ऐसे ज़हन पे छाये तुम
देखूँ जहाँ, वहाँ हो तुम
हो निहाँ दिल में तुम मिरे
हाँ यहाँ, बस यहाँ हो तुम
याद लहू में घुल मिरे
अब रगों में रवाँ हो तुम
मौसम ए दौर ए उम्र में
कोई रुकी ख़िज़ाँ हो तुम
याद तुम्हें दिला दूँ मैं
अब भी मिरा जहां हो तुम
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- ग़ज़ल
-
- अक्सर इस इश्क़ में ऐसा क्यों होता है
- आँसू बहाकर अच्छा लगा
- इब्तिदाई उल्फ़त हो तुम
- इश्क़ को इश्क़ अब कहो कैसे
- जान पहचाना ख़्वाब आया है
- जो ख़ुद नहीं जाना वो जताये नासेह
- तुम मैं और तन्हा दिसंबर
- तुम हो कहाँ, कहाँ हो तुम
- मुझको मोहब्बत अब भी है शायद
- यादों की फिर महक छाई है
- रहमतों का वक़्त आया, मेरे मौला
- वो बहुत सख़्त रवाँ गुज़री है
- सुन यह कहानी तेरी है
- नज़्म
- कहानी
- कविता
- रुबाई
- विडियो
-
- ऑडियो
-