इंसान हूँ, हार कभी नहीं मानूँगा मैं
अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’दूर सुरमई क्षितिज के पृष्ठभूमि में,
घोंसलों को लौटती परिंदों की क़तारें,
और धीरे-धीरे डूबता सूरज,
याद दिलाता है जीवन का,
एक और दिन हो गया समाप्त।
ठोकर खाऊँगा, गिरूँगा, उठूँगा मैं,
इंसान हूँ, हार कभी नहीं मानूँगा मैं,
और करूँगा एक और कोशिश,
फिर खिलाऊँगा गुलशन नया।
सूरज की पहली किरण के साथ,
अपने घोंसलों से निकल कर,
आसमान को चीरती हुई,
नाद करती, परिंदों की क़तारें,
याद दिलाती हैं, नए दिन की शुरुआत।