तेरी याद

01-12-2025

तेरी याद

संजय श्रीवास्तव (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

चाँदनी जब भी तेरी ज़ुल्फ़ों से बिखर कर जाती है, 
स्याह रात की रूह तक रौशनी में नहा जाती है। 
 
तेरी पलकों की छाँव में मिलता है सुकून दिल को, 
जैसे तपती हुई धरती पर बारिश उतर जाती है। 
 
तू जो देखे तो हर दर्द भी मुस्कुराता है मेरा, 
तेरी निगाहों में जैसे ज़माने की दवा समा जाती है। 
 
तेरे लबों की हँसी से महकता है गुलशन सारा, 
तेरी बातों में जैसे बहारें भी ठहर जाती हैं। 
 
तेरे क़दमों की आहट से जागे हैं ख़्वाब मेरे, 
आँखें नींद से पहले तेरी यादें से भर भर जाती है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म
सांस्कृतिक आलेख
सजल
कविता
गीत-नवगीत
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में