श्रावण मास और महादेव

15-07-2024

श्रावण मास और महादेव

संजय श्रीवास्तव (अंक: 257, जुलाई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

ॐ मृत्युंजयाय रुद्राय नीलकण्ठाय शम्भवे। 
अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नम:॥

भारतीय वैदिक ज्योतिष अपने आप में एक परिपूर्ण शास्त्र है। ज्योतिष की गणनाएँ ब्रह्मांड में ग्रह, नक्षत्र और तारों की आपसी स्थिति को दृष्टिगत रख कर की जाती हैं। प्राचीन भारतीय ऋषि मुनि ब्रह्मांड में स्थित नक्षत्र व तारों की आपसी गति और उसका हमारी पृथ्वी और मानव सभ्यता पर पड़ने वाले विभिन्न प्रकार के प्रभावों को भली-भाँति जानते थे। ज्योतिष की भारतीय वैदिक परंपरा में चंद्रमा का एक महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। नक्षत्रों की कुल संख्या 27 होती है। संपूर्ण ब्रह्मांड का विस्तार 360 अंश का माना गया है जिसमें 12 राशियाँ स्थापित की गई हैं। इस प्रकार प्रत्येक राशि 30 अंश के बराबर होती हैं। अर्थात्‌ एक राशि का मान 30 अंश के बराबर होता है। और एक नक्षत्र का मान 13 डिग्री 20 मिनट अर्थात्‌ 800 मिनट के बराबर होता है। अर्थात्‌ कृषि के अंतर्गत सवा दो नक्षत्र आते हैं। साथ ही एक राशि में सवा दो नक्षत्र आते हैं। भारतीय काल गणना चंद्रमा के इन्हीं विभिन्न नक्षत्र में गमन को लेकर बनाई गई है। भारतीय मास अर्थात्‌ माह के नाम इन्हीं नक्षत्र के नाम पर आधारित है। इस प्रकार श्रावण मास का प्रारंभ पूर्णिमा में चंद्रमा के श्रवण नक्षत्र में प्रवेश से माना गया है। इस माह में धार्मिक ग्रंथों का श्रवण करने का विशेष महत्त्व बताया गया है। हिंदू धर्म में सावन के महीने को एक त्योहार की तरह मनाया जाता है। सावन के इस पूरे महीने में भगवान शिव के भक्त उनकी भक्ति में रम जाते हैं। पंचांग के अनुसार, देखा जाए तो साल के पाँचवें महीने को श्रावण माह कहा जाता है। हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-उपासना करने से वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी परेशानियों को दूर करते हैं। सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार का अपना एक विशेष महत्त्व होता है और इस बार श्रावण मास का प्रारंभ सोमवार से ही होने जा रहा है। इस प्रकार इस वर्ष श्रवण मार्च में कुल 5 सोमवार पड़ रहे हैं। श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है। यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं। शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है। श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्त्व रखता है। श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा सम्बन्ध है। इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है। धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई पड़ता है। इस मास की प्रत्येक तिथि का सम्बन्ध किसी न किसी व्रत और पूजा पाठ के साथ होता है जिसका बेहद धार्मिक महत्त्व है। 

सावन मास को सभी मासों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यहाँ कुछ पौराणिक तथ्य आप सभी से साझा करना चाहता हूँ जिससे यह तथ्य उभरकर सामने आता है कि क्यों सावन मास सर्वोत्तम माना गया है। 

  1. मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे। 

  2. शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है। 

  3. इस सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा, तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया जिसके बाद से ही महादेव के लिए यह माह विशेष हो गया। 

  4. शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। आगे आने वाले चार माह तक भगवान योग निद्रा में ही रहते हैं। इसलिए इन चार माह श्रवण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक को चातुर्मास के नाम से भी जाना जाता है। यह समय शिव भक्तों और साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। श्रवण नक्षत्र को भगवान विष्णु का जन्म नक्षत्र बताया गया है जिससे इस मास का नाम श्रावण मास पड़ा। सावन के प्रारंभ होते हैं सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इस दौरान सृष्टि का पुनर्निर्माण दृष्टिगोचर होता है। ब्रह्मांड में शिव तत्त्व की प्रचुरता और प्रबलता पाई जाती हैं जो मानव मात्र के मस्तिष्क, इंद्रियों, शरीर और आत्मा के शुद्धिकरण का कार्य करती है। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि जीवन का चक्र पूर्णता को प्राप्त होता है, एक और जहाँ भगवान विष्णु सृष्टि की रचना करते हैं और उसके पालनहार हैं तो वहीं दूसरी ओर विनाश, संहार और पुनर्निर्माण के माध्यम से भगवान शिव सृष्टि को नया रूप प्रदान करते हैं। यही वास्तव में सृष्टि का नियम भी है जब पुराना जाता है तभी नए का आगमन हो पता है।

  5. शिव का श्रावण में जलाभिषेक के संदर्भ में एक अन्य पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है। जिसके अनुसार श्रावण मास में है अमृत की खोज की जा रही थी। जिस समय अमृत की खोज की जा रही थी, देवों और राक्षसों द्वारा अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया गया। उस मंथन के समय समुद्र में से 14 विभिन्न रत्नों के मिलने का उल्लेख मिलता है। उन उपलब्ध रत्नों में अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष या हालाहल भी निकला। उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्माण्ड जलने लगा। इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुँचे और उनके समक्ष प्रार्थना करने लगे। सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु उस विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में अवरुद्ध कर लिया। इसके फलस्वरूप उनका कंठ नीला हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने और समुद्र मंथन से प्राप्त उस हलाहल के तपन को शांत करने हेतु सभी देवी-देवताओं और राक्षसों ने भगवान शिव को गंगाजल और दूध पिलाया। इस प्रकार गंगाजल से भगवान शिव का पूजन व जलाभिषेक आरंभ हुआ। तभी से यह प्रथा आज भी चली आ रही है। प्रभु का जलाभिषेक करके समस्त भक्त उनकी कृपा को पाते हैं और उन्हीं के रस में विभोर होकर जीवन के अमृत को अपने भीतर प्रवाहित करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार श्रावण मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाने का अपना एक विशेष ही महत्त्व है। 

  6. शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे। वहाँ उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। 

  7. धर्म शास्त्रों में वर्णित एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव की इसी माह नियमित पूजन के अंतर्गत कांवड़ में गंगाजल भरकर उसे शिवलिंग पर अर्पित किया था। इस प्रकार रावण के माध्यम से जल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करने की परंपरा उसी समय से चली आ रही है। कांवड़ परंपरा चलाने वाले भगवान परशुराम की पूजा भी श्रावण मास में की जाती है। शिव को श्रावण का सोमवार विशेष रूप से प्रिय है। श्रावण में भगवान आशुतोष का गंगाजल व पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है। कहते हैं कि भगवान परशुराम के कारण ही श्रावण मास में शिवजी का व्रत और पूजन प्रारंभ हुआ। हम सभी जानते हैं आज भी कांवड़ यात्रा का अपना एक विशेष महत्त्व है। इस दौरान कांवरिया नदियों से अपने-अपने कांवड़ में जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करते हैं। सावन माह में भगवान शिव के जल अभिषेक का अत्यधिक महत्त्व है।

हिंदु पंचांग के अनुसार सभी मासों को किसी न किसी देवता के साथ संबंधित देखा जा सकता है। उसी प्रकार श्रावण मास को भगवान शिव जी के साथ देखा जाता है। इस समय शिव आराधना का विशेष महत्त्व होता है। यह माह आशाओं की पूर्ति का समय होता है। जिस प्रकार प्रकृति ग्रीष्म के थपेड़ों को सहती हुई सावन की बौछारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति एवं आनंद को पाती है उसी प्रकार प्राणियों की इच्छाओं को सूनेपन को दूर करने हेतु यह माह भक्ति और पूर्ति का अनूठा संगम दिखाता है ओर सभी की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने की कोशिश करता है। 

भगवान शिव इसी माह में अपनी अनेक लीलाएँ रचते हैं। इस महीने में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र इत्यादि शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है। पूर्णिमा तिथि का श्रवण नक्षत्र के साथ योग होने पर श्रावण माह का स्वरूप प्रकाशित होता है। श्रावण माह के समय भक्त शिवालय में स्थापित, प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल व दुग्ध से रुद्राभिषेक कराते हैं। शिवलिंग का रुद्राभिषेक भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इन दिनों शिवलिंग पर गंगा जल द्वारा अभिषेक करने से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं। ऐसी मान्यता है कि रुद्राभिषेक करने से हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है हमारे द्वारा पूर्ण किए गए ग़लत कार्यों का पश्चाताप होता है जिससे हमारी आत्मा एक प्रकार से आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर होती है। 

शिवलिंग का अभिषेक महा फलदायक माना गया है। इन दिनों अनेक प्रकार से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है जो भिन्न-भिन्न फलों को प्रदान करने वाला होता है। जैसे कि जल से वर्षा और शीतलता की प्राप्ति होती है। घी और दूर से अभिषेक करने पर संतान की प्राप्ति होती है। ईख के रस से धन संपदा की प्राप्ति होती है। कुशोदक से समस्त व्याधि शांत होती है। दधि से पशु धन की प्राप्ति होती है। और शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 

मानवीय मूल्यों की तलाश के लिए परम आवश्यक है कि हम शिव तत्त्व को जाने और अपने भीतर खोजें। मूल्यों की तलाश के लिए जीवन में शिव तत्त्व की खोज ज़रूरी है। शिव हमेशा तपस्या, ध्यान और चिंतन के पथ पर चलते हैं। इससे उनको शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होती है। इस शक्ति के कारण ही वह अभय होते हैं और ऊर्जा के कारण प्रभुत्व की कामना नहीं रहती है। शायद यही वजह है कि हमारे शास्त्रों में उन्हें पालनकर्ता और संहारक दोनों ही स्वरूपों में देखा गया है। ऊर्जा का विस्तार ही शिव को असीम और अनंत बनाता है। अपने भीतर ऊर्जा के विस्तार के कारण शिव नृत्य करते हैं और ख़ुद के अंदर प्रकृति के विभिन्न शक्ति रूपों को देखकर प्रसन्न होते हैं। यह नृत्य शिव तांडव के नाम से जाना जाता है। 

भगवान शिव को सावन बहुत प्रिय है क्योंकि प्रकृति अपने संपूर्ण रस और रंगों के साथ अठखेलियाँ करती है। यह माँ हमें आध्यात्मिक स्वतंत्रता का संदेश भी देता है। सावन एक अवसर देता है कि हम अपने अंदर काम कर रही प्रकृति की शक्तियों को जान लें। हम खाते हैं, पढ़ते हैं और विकसित होते हैं। हम प्राकृतिक शक्तियों के अधीन हैं। वह हमें बाध्य करती है, लेकिन जब हम आध्यात्मिक रूप से जाग जाते हैं, तो शिव से मुलाक़ात होती है। पर इसके लिए नियंत्रण और ऊर्जा की ज़रूरत होगी। जिसकी प्राप्ति तप, ध्यान और चिंतन से ही होती है। श्रावण मास इन सब के लिए सर्वथा अनुकूल मानस माना गया है। माता पार्वती ने तप और ध्यान से भगवन शिव को पाया, इसलिए मनुष्य भी दिव्य प्रकृति और उसके परम सत्य को जानने का अधिकारी है। सावन हमें उस परम सत्य को जानने के लिए आध्यात्मिक स्वतंत्रता का संदेश देता है। 

श्रावण रस और आनंद का मास माना गया है। रसीले फलों के साथ बारिश की फुहार तन-मन को संतुष्ट करती है। यह अगर दिल तक नहीं पहुँच पा रही है, तो इसका तात्पर्य है कि हम शिव तत्त्व से दूर हैं। ऐसे में इस महीने को यूँ ही नहीं जाने देना चाहिए। इसके साथ ख़ुद बदलें। बदलाव प्रकृति की विशेषता है। बदलाव ही शिव है। सावन कहता है शिव को देखो, जो आशा और जीवन के प्रतीक है। सावन अगर भीतर आया, हरियाली को जब हम स्पर्श करेंगे, तो जीवन में रस आएगा। प्रकृति सावन में रस का भरपूर बौछार कर रही है। हमें उस रस का स्वाद लेना है। 

निर्माण और सृजन में श्रावण मास की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हम सभी जानते हैं कि बिना प्रेम, पवित्रता और समर्पण के भाव के किसी भी प्रकार का सृजन सम्भव नहीं है। सावन का हर दिन व्रत और पर्व को समर्पित है। चूँकि शक्ति से ही शक्तिमान हैं। इस कारण शंकर की पूजा सावन के हर सोमवार और हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत का अनुष्ठान होता है। मंगलवार को होने के कारण इसे गौरी मंगला व्रत कहा जाता है। शक्ति के साथ शिव कल्याणकारी हों, इसलिए सावन पूरी तरह से शिव-शक्ति को समर्पित महीना है। 

इस पावन मास में श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हैं। श्रावण मास में ज़्यादातर श्रद्धालु सोमवार के दिन व्रत रखते हैं और भगवान शिव की शुद्ध मन से पूजा करते हैं। अविवाहित लड़कियाँ श्रावण के हर मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत रखती हैं। कुछ महिलाएँ मनचाहा पति पाने के लिए सोमवार व्रत करती हैं और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। श्रावण के दौरान कांवड़ यात्रा भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें श्रद्धालु पवित्र गंगा के पास विभिन्न धार्मिक स्थानों पर जाते हैं और वहाँ से गंगाजल लाकर शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को चढ़ाते हैं। भगवान शिव की आराधना और पूजा में मुख्य रूप से तीन मंत्रों का जाप का उल्लेख शास्त्रों द्वारा किया गया है। 

1. ॐ नमः शिवाय!! 
2. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥
3. कर्पूर गौरं करुणावतारं संसार सारं, भुजगेंद्र हारम। 
सदा वसंतं हृदये, अरविंदे भवं भवानी सहितं नमामि॥

इस वर्ष सावन बहुत विशेष है, क्योंकि इसकी शुरूआत ही भगवान शिव के दिन सोमवार से हो रही है। 29 जुलाई को एक प्रबल योग गजकेसरी का निर्माण हो रहा है। जिस दिन चंद्रमा, गुरु के साथ एकादश भाव में युक्ति में आ रहा है। इस योग के करण वृषभ, सिंह और मकर राशि के जातकों के लिए बेहद लाभकारी माना जा रहा है। वृषभ राशि के जातक के लंबे समय से रुके कार्य पूर्ण होंगे नौकरी की तलाश कर रहे जातकों को नौकरी की प्राप्ति, नौकरी कर रहे जातकों को पदोन्नति एवं अधिकारी वर्ग से उनके अच्छे सम्बन्ध बताए जाते हैं। आय के नए स्रोत खुलते हैं। सिंह राशि जातक जो कारोबार में व्यस्त हैं उनके कारोबार के बढ़ने की सम्भावना है धन की प्राप्ति होगी और आर्थिक संपन्नता बढ़ेगी। मकर राशि के जातकों के लिए गजकेसरी योग स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत उत्तम रहेगा। ऐसे जातक नौकरी और व्यापार दोनों में समान रूप से सफल होंगे। परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत होगा। वरिष्ठ लोगों और सहकर्मियों का भरपूर सहयोग और समर्थन भी प्राप्त होगा। प्रथम सोमवार को प्रीति आयुष्मान योग के साथ स्वार्थ सिद्धि योग और रवि पुष्य योग भी बन रहा। इसको लेकर ऐसी मान्यता है कि जो भी इस योग में पूजा करता है उसको भगवान शिव से कई गुणा फल की प्राप्ति होती है। हरियाली तीज, नाग पंचमी और रक्षाबंधन इस माह के अन्य प्रमुख त्योहार हैं। इस साल का श्रावण मास कृष्ण पक्ष प्रतिपदा 22 जुलाई 2024 से प्रारंभ होगा। लगभग एक मास पश्चात दो तिथियाँ का क्षय के साथ श्रावण मास 19 अगस्त 2024 को समाप्त हो रहा है। 

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