एक नया उद्घोष
संजय श्रीवास्तव
मैं गर्वित हूँ मेरा जन्म
इस पुण्य धरा भारतवर्ष में हुआ है
सभ्यता, संस्कृति और कला का जहाँ
पहले पहल उद्भव हुआ है
धर्म और विज्ञान की संस्कृति
तुझको बारंबार मेरा नमन है
देवों, ऋषियों और तपस्वियों की भूमि का
चरण छूकर अभिनंदन है
सभ्यता और संस्कृति के जिन
मानदंडों को तुमने ऊँचा रखा है
उस पावस और पावन भूमि को
मेरा सादर सादर नमन है
दुनिया के समस्त विषयों का
प्रादुर्भाव तेरे ही गर्भ से हुआ है
क्या ज्योतिष क्या गणित, चिकित्सा
सबका अंकुर तुझसे ही फूटा है
पाराशर और जैमिनी का ज्योतिष
जो समाज के लिए वरदान है
वराहमिहिर और आर्यभट्ट ने उसे
जन-जन को सुलभ कराया है
चिकित्सा जगत की महारथ भी
आज किसी से छुपी नहीं है
चरक सुश्रुत और वांगभट्ट के कार्यों
से दुनिया अभिभूत हुई है
ध्यान और योग की गंगा जब से
विश्व में हमने बहाई है
पतंजलि के आदर्शो पर चलकर
आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ पाई हैं
आज चाँद पर पहुँचकर हमने
विश्व को एकता का संदेश दिया है
मानवता के लिए काम करने का
एक नया उद्घोष दिया है
एक नया उद्घोष दिया है।