पुण्य भूमि . . . भारत वर्ष
संजय श्रीवास्तव
जीवन प्रेम है क्यों आपस में लड़ते और झगड़ते हो,
इंद्रधनुषी ज़िन्दगी है क्यों इसको बदरंग करते हो।
वो स्नेह वो प्रेम वो चैन ओ अमन कैसे भूल गए,
आपस के भाईचारे को क्यों बदनाम करते हो।
एकता अटूट शक्ति है अलख फिर से जगाओ तुम,
उलझ कर निजी स्वार्थों में क्यों इसे खंड खंड करते हो।
जहाँ विश्वास होता है वहीं तो सब कुछ ख़ास होता है,
वैमनस्यता के बीज बोकर क्यों इसे चकनाचूर करते हो।
थाम लो हाथ एक दूजे का वही संबल है हम सबका,
यही तो ताक़त है तुम्हारी क्यों इसे कमज़ोर करते हो।
आक्रांता कई आए मिटाने सभ्यता संस्कृति अपनी,
जड़ें बड़ी गहरी थीं क्यों नहीं इसे स्वीकार करते हो।
सियासत आज भी पटी सारी जयचंदों और मानसिंहों से
दिखाकर वोट की ताक़त इन्हें क्यों नहीं दरकिनार करते हो।
खा रहे हैं घुन की मानिंद दशकों से जो तुम्हारे देश को,
क्यों उनका साथ देते हो और क्यों समर्थन उनका करते हो।
कई सदियों के बाद आज ये हसीन लम्हात आए हैं,
पालकर रंजिशें गहरी क्यों इन्हें बेनूर करते हो।
ख़ुश क़िस्मत हो जो इस पुण्य भूमि पर तुमने जन्म लिया,
वसुधैव कुटुंबकम् की पावन धरा को क्यों कलंकित करते हो।
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