लौह पुरुष
संजय श्रीवास्तव
खंड खंड में बँटा राष्ट्र था मेरा
एकीकरण एक अबूझ पहेली थी
एक ओर था बँटवारा राष्ट्र का तो
दूजी ओर उथल पुथल अंदरूनी थी
किसी राज्य ने विलय नहीं चाहा
तो कोई जा बैठा था दूजे ख़ेमे में
निरीह जनता बनी मूक दर्शक थी
चहुँ ओर हा हा कार के मेले में
ऐसे में आगे आकर हे महामानव
नई दिशा देश को दिखलाई थी
अपने अडिग आत्मविश्वास से तुमने
एकता की मज़बूत गाँठ लगाई थी
पाँच सौ बासठ का उद्धार कर
राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया था
तभी तो आगे चलकर वह महापुरुष
लौह पुरुष राष्ट्र का कहलाया था
आज जयंती पर सरदार तुम्हारी
कोटि कोटि नमन राष्ट्र करता है
तुम्हारे ही आदर्शों और मूल्यों पर
प्रतिज्ञा आगे बढ़ने की करता है
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