दीपावली का आध्यात्मिक और ज्योतिषीय पक्ष

15-11-2023

दीपावली का आध्यात्मिक और ज्योतिषीय पक्ष

संजय श्रीवास्तव (अंक: 241, नवम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

“असतो मा सद्गमय। 
तमसो मा ज्योतिर्गमय। 
मृत्योर्मा अमृतं गमय। 
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥”

अर्थात्‌

“असत्य से सत्य की ओर। 
अंधकार से प्रकाश की ओर। 
मृत्यु से अमरता की ओर। (हमें ले जाओ) 
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति॥”

(बृहदारण्यक उपनिषद की ये प्रार्थना जिसमें प्रकाश उत्सव चित्रित है) 

भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी पर्वों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात्‌ (हे भगवान! ) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। उड़ीसा और बंगाल के क्षेत्र में इसे देवी काली की पूजा के रूप में मनाया जाता है। जैन संप्रदाय के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। 

सनातनी परंपरा में हर त्योहार का अपना ही ज्योतिष महत्त्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्योहार पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समाज के लिए और मानव समुदाय के लिए शुभ फलदाई होते हैं। हिंदू समाज में दीपावली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की ख़रीदी के लिए बेहद ही शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्त्व है। दरअसल दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति अत्यंत ही शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है यह राशि न्याय और पक्ष पाठ का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द भाईचारे आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद और शुभ संयोग माना जाता है। विशेष महत्त्व पर हिंदू दर्शन में दीपावली का विशेष आध्यात्मिक महत्त्व है। दीपावली अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव कहा गया है। 

 हिन्दुओं के योग, वेदान्त, और सांख्य दर्शन में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहाँ कुछ है जो शुद्ध, अनन्त, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीपावली, आध्यात्मिक अन्धकार पर आन्तरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है। 

हम सभी जानते हैं कि दीपावली न केवल भारतवर्ष में अपितु संपूर्ण विश्व में हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार माना जाता है। अपने 14 वर्ष के दीर्घकालिक वनवास के पश्चात भगवान श्री राम का माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ अयोध्या नगरी वापस आने की ख़ुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है। दीपावली एक संस्कृत शब्द हैं जिसका शाब्दिक अर्थ होता है दीपों की माला या शृंखला। मुख्य रूप से दीपावली पाँच अलग-अलग त्योहारों की शृंखला का एकीकृत रूप है। इसकी शुरूआत दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस से होती है। धनतेरस के पश्चात नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। उसके पश्चात दीपावली का मुख्य त्योहार आता है। दीपावली का अगला दिन गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। और पाँचवाँ दिन भाई दूज का होता है। इस प्रकार पाँच अलग-अलग दिवसों में पाँच अलग-अलग त्योहारों के सम्मिलित रूप को दीपावली के नाम से जाना जाता है। दीपावली का प्रथम दिवस धनतेरस कहलाता है इस दिन माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद दिया जाता है। कुबेर देवता को धन का स्वामी माना गया है। माता लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजन अर्चन से धन धान्य, बुद्धि और समृद्धि की प्राप्ति होती है। भारतीय रीति रिवाज़ों और त्योहारों की एक विशेषता देखने में आती है कि यह सभी का किसी ने किसी रूप में ज्योतिष विज्ञान से सम्बन्ध होते हैं। और उनका प्रकृति और प्राकृतिक वातावरण से अनूठा समागम होता है। दीपावली भी ऐसा ही एक त्योहार है। जिसमें सूर्य और चंद्रमा साथ साथ होते हैं इस वजह से यह कालखंड अति उत्तम माना जाता है। और इन दोनों की युति स्वाति नक्षत्र में तुला राशि में होती है। भारतीय ज्योतिष में तुला को एक सामंजस्य स्थापित करने वाली राशि माना गया है यही कारण है कि दीपावली का पर्व प्रेम स्नेह धन ख़ुशी अच्छा स्वास्थ्य आदि आदि समस्त जनमानस को समान रूप से प्रदान करता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार इस दिन चंद्र वर्ष की शुरूआत होती है और फ़सल के आने की ख़ुशी में मनाया जाता है। दीपावली का त्योहार स्वाति नक्षत्र में पड़ता है। तारामंडल में स्वाति नक्षत्र स्त्री वाचक माना गया है और भारतीय दर्शन के अनुसार माता सरस्वती हमें ज्ञान, संगीत, बुद्धि, कला इत्यादि प्रदान करती है। 

प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व माता सीता और उनके भ्राता लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं। अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ भी माना जाता है। दीपावली का पाँच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह कालखंड है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं। कुछ जगहों पर दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं। स्पष्ट है कि यह पर्व आदि काल से ही मनाया जाता रहा है। और हर कालखंड फिर वह चाहे सतयुग, चाहे त्रेता, चाहे द्वापर या चाहे कल युग दीपावली, बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म की अधर्म पर जीत का प्रतीक रहा है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सांस्कृतिक आलेख
कविता
गीत-नवगीत
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में