मैं कविता हूँ

01-04-2022

मैं कविता हूँ

संजय श्रीवास्तव (अंक: 202, अप्रैल प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मैं कविता हूँ मेरे अंदर
सुख दुख का अद्‌भुत संगम है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
हर्ष विषाद का दुर्लभ विलयन है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
वाल्मीकि की रामायण है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर 
सूरदास की सारावली भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
तुलसीदास की मानस है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
कल्हण की राजतरंगिणी भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
कबीरदास का बीजक है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
जयशंकर की कामायनी भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
मैथिलीशरण का साकेत है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर 
बिहारी की सतसई भी है 
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
निराला की अनामिका है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
दुष्यंत की साये में धूप भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर 
महादेवी कृत यामा है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
पंत की चिदंबरा भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
दिनकर का कुरुक्षेत्र है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
माखन की हिमतरंगिनी भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
सुभद्रा की झांसी की रानी है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर 
सोहन लाल की भैरवी भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
मीरा की राग गोविंद है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
बच्चन की मधुशाला भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
नीरज का कारवां गुज़र गया है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
बालकृष्ण की उर्मिला भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर 
कवि प्रदीप का ओज है 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
बंकिम का आनंद मठ भी है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
जहाँ प्रेम, शृंगार फलता है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर 
विरह, ओज भी मिलता है
 
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
पर्वत सी पीर पिघलती है
मैं कविता हूँ मेरे अंदर
ए मेरे वतन पर आँखें नम भी होती हैं
 
आँखें नम भी होती हैं . . . 

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