युवा

आलोक कौशिक (अंक: 162, अगस्त द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

जल रही हो जिसमें 
लौ आत्मज्ञान की 
समझ हो जिसको  
स्वाभिमान की 


हृदय में हो जिसके 
करुणा व प्रेम भरा 
बाधाओं व संघर्षों से 
जो नहीं कभी डरा 


अपनी संस्कृति की 
हो जिसको पहचान 
भेदभाव से विमुख 
करे सबका सम्मान 


स्वदेश से करे जो 
प्रेम अपरम्पार 
जानता हो चलाना 
क़लम व तलवार 


राष्ट्र निर्माण में जो 
सदैव बने अगुवा 
वास्तविक अर्थों में 
वही होता है युवा 
 

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