प्रत्येक दिन किसी न किसी व्यक्ति की मौत हो रही थी। पिछले दस दिनों में पंद्रह लोगों की जानें जा चुकी थीं। पूरे गाँव में दहशत का माहौल था।
"कोई नहीं बचेगा इस गाँव में। अगले महीने तक सब मर जाएँगे। इस गाँव को उस फ़क़ीर की बद्दुआ लग गई है, जिसके साथ दीपक ने गाली-गलौज और हाथापाई की थी। अगर उस दिन दीपक उस फ़क़ीर के माँगने पर बिना हुज्जत किए उसे पाँच सौ रुपये दे देता तो आज दीपक हमारे बीच ज़िंदा होता। ख़ुद तो मरा ही, पूरे गाँव के सर्वनाश का आग़ाज़ भी कर गया। मैं तो कहता हूँ उस फ़क़ीर को ढूँढ़ो और सारे गाँव वाले मिलकर उससे माफ़ी माँग लो। वह फ़क़ीर ही हमें इस क़हर से बचा सकता है," बबलू ने अपना डर प्रकट करते हुए गाँव वालों से कहा।
"पागल मत बनो बबलू! गाँव वालों की मौत किसी फ़क़ीर की बद्दुआ के कारण नहीं बल्कि विषाणु जनित वैश्विक महामारी कोरोना के कारण हो रही है। मैंने पहले भी समझाया था, एक बार फिर समझा रहा हूँ अगर ज़िंदा रहना है तो अपने-अपने घरों में रहो। जब तक बहुत ज़रूरी ना हो तब तक घर से मत निकलो। हमेशा मास्क लगा कर रखो। सैनिटाइज़र का प्रयोग करो। साफ़-सफ़ाई पर विशेष ध्यान दो। सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग के निर्देशों का पालन करो। फिर देखना किसी को कुछ नहीं होगा," मास्टर दीनानाथ ने बबलू को समझाते हुए गाँव वालों से कहा।
बबलू और उसके कुछ दोस्तों को छोड़कर बाक़ी गाँव वाले मास्टर दीनानाथ की बातों से सहमत थे। बबलू और उसके दोस्त पहले की भाँति इधर-उधर घूमते रहे, जबकि बाक़ी गाँव वालों ने मास्टर दीनानाथ की बातों पर अमल करते हुए बबलू और उसके दोस्तों से दूरी बना ली।
तीन महीने पश्चात, बबलू और उसके दोस्तों को छोड़कर बाक़ी सभी गाँव वाले जीवित और स्वस्थ थे।