मेरी माँ गंगे

15-05-2024

मेरी माँ गंगे

आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

दुनिया में जब व्यभिचार है तो मैं भला जाऊँ कहाँ
जो तन व मन के कष्ट हैं तेरे सिवा बतलाऊँ कहाँ
 
तू मातु गंगे पूर्ण है जड़ चेतनों को तारती
हम पापी जन संसार को हर कष्ट से है उबारती
 
जिस दिन हरि भगवान के पाँव से उद्गम हुआ
उस दिन से ही संसार का धर्मार्थ सब उत्तम हुआ
 
सुर असुर मानव नाग मुनि सब हैं तेरे आभारी माँ
तेरे जल का जो सेवन करे वो है परम पद अधिकारी माँ
 
तू है अलौकिक शक्ति की परमेश्वरी भुवनेश्वरी
तू है अखिल ब्रह्मांड की ममतामयी मातेश्वरी
 
जग सृजन करती पाप हारती जगत से उद्धार करती
हम अकिंचन मूढ़ जन को भी हे माँ तू दुलार करती
 
आनंद का उपहार पाकर और कुछ माँगे नहीं
इतनी दया के बाद माँ कुछ और हम चाहें नहीं॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता-मुक्तक
कविता
किशोर हास्य व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता - क्षणिका
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में