आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 013
आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’
1.
दिलों के ज़ख़्म को हरदम तरो ताज़ा रखना
जी लगे न लगे मोहब्बत का तक़ाज़ा रखना
प्यार जीना है मारना है खोना पाना न जाने क्या-क्या
इश्क़ का व्यापार अगर हो जवानी में
कुछ भी हो जाए मगर मोल कुछ ज़्यादा रखना॥
2.
होंठ गुलाबी नयन कँटीले फूलों से तेरे गाल प्रिये
चंचल मन पर दख़ल दे रहे ये घुँघराले बाल तेरे
प्रेम पथिक में लुटे हुए हम आशिक़ पागल जान प्रिये
मुझको भी अब अपना लो न सच कहता हूँ बात प्रिये॥
3.
कृष्ण छवि रख हृदय में पूर्ण आश विश्वास
हरि कीर्तन में ही कटे गिन-गिन कर एक श्वासll
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता-मुक्तक
-
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 001
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 002
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 003
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 004
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 005
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 006
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 007
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 008
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 009
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 010
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 011
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 012
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– मुक्तक 013
- आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– विवेकानन्द
- कविता
- किशोर हास्य व्यंग्य कविता
- किशोर साहित्य कविता
- कविता - क्षणिका
- विडियो
-
- ऑडियो
-