आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’– विवेकानन्द
आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’
1.
इस धारा पर हे प्रभु आनंद हो जाए
चलें सत्मार्ग पर हर एक प्रेमानंद हो जाए
सब योग विद्या बल का दामन थाम लें यदि तो
सच कहता हूँ एक दिन सब विवेकानंद हो जाएँ॥
2.
रुचिर दिव्य सुगंध है जो सरोज में
एक नये अंदाज़, ऊर्जा, ओज में
जो शिकागो प्रांत को मोहित किया
सत्यता निज धर्मता की खोज में॥
3.
युवाओं का अधिनायक था
जन पीड़ा का वो गायक था
संन्यासी लिख गीत अमर हुआ
धर्म सनातन का नायक था॥
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