दिल दरिया भी

01-06-2024

दिल दरिया भी

आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

इश्क़ की ख़वाहिश में कितने ही न आशिक़
दिल को दरिया भी बना लेते हैं एक दिन
सहन करते कष्ट हरदम हँस के ज़िंदादिली से
यूँ क़लम से आलमी दुनिया बना लेते हैं एक दिन॥
 
या मिले महबूब अपनी घेरे घटा बिजली कोई 
या मिले उपवन बग़ीचे या मिले तितली कोई
रोक ले चाहे कभी पथ ये कहीं उन्मत्त धारा
या पड़ा हो राह में जलता ये शोला या अंगारा
 
ये सहज में ही कहीं मंज़र बना लेते हैं एक दिन
यूँ क़लम से आलमी दुनिया बना लेते हैं एक दिन॥
 
प्यार में ठोकर मिली है इसका भी अब दुख नहीं है
इस मोहब्बत के सफ़र में अब कोई भी सुख नहीं है
ये दिवाने हैं अजब अंदाज़ भी इनका निराला
मुश्किलों को हैं दबोचे चेहरे पर इनके उजाला
है इन्हें संतोष अपनी ज़िन्दगी निज कर्म से
ये निरंतर चल रहें हैं अपने स्वयं के धर्म से
 
शत्रु को भी मित्र अपना जन बना लेते हैं एक दिन
यूँ क़लम से आलमी दुनिया बना लेते हैं एक दिन॥

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