आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’ – मुक्तक 005
आनंद त्रिपाठी ‘आतुर’
बुरे व्यवहार गंदे आचरण का अंत करते हैं
सदा सुख शान्ति का आशीष दे गुणवंत करते हैं
तुम्हें धर्मार्थ हित कुछ ज्ञान निश्चय मिल ही जायेगा
अलौकिक पुण्य भारत के ये मेरे संत करते हैं॥
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