जिम्मी

15-08-2022

जिम्मी

प्रदीप श्रीवास्तव (अंक: 211, अगस्त द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

हस्बेंड की बातों, कामों से जिम्मी इतना परेशान हो गई, कुछ ही महीनों में इस हद तक ऊब गई उनसे कि उन्हें छोड़कर अपनी माँ के पास कोझीकोड जाने की सोचने लगी। उसके दोनों बच्चे दो साल पहले से ही वहीं रह रहे थे। मगर जब उसके दिमाग़ में यह बात आती कि बच्चों की पढ़ाई, ख़ुद उसका अपना जीवन कैसे चलेगा, तो रुक जाती। क्योंकि वह अच्छी तरह समझती है कि उसकी ख़ुद की सैलरी से न तो बच्चों की पढ़ाई हो सकती है, और न ही वह उस लाइफ़-स्टाइल को जी पाएगी जो अब तक जीती आ रही है। 

क्योंकि जब हस्बेंड को ऐसे छोड़ कर जाएगी, तो वह एक पैसा भी देंगे, यह सोचना भी बेवक़ूफ़ी है। इस लिए हस्बेंड का साथ तो चाहिए ही चाहिए। मगर उनके साथ जो प्रॉब्लम हो रही है, उसका क्या करे? किस तरह उसको सॉल्व करे। जिस तरह की उनकी एक्टिविटीज़ हैं, वह किसी साइकिक पेशेंट की ही हो सकती हैं। 

लम्बे समय तक काफ़ी सोच-विचार करने के बाद जिम्मी ने शहर के एक बड़े मनोचिकित्सक के बारे में नेट के ज़रिए पता किया। उसने सोचा कि पहले वह डॉक्टर से मिलकर प्रॉब्लम को डिस्कस करेगी। जब वह हस्बेंड को साथ लाने के लिए ज़्यादा प्रेशर डालेंगे, तब उन्हें किसी तरह ले जाएगी। 

उसने अपॉइंटमेंट के लिए डॉक्टर की सेक्रेटरी को फ़ोन किया, तो उसने अपॉइंटमेंट देने के साथ-साथ अन्य जो बातें बताईं, उससे जिम्मी मन ही मन ख़ुश हुई कि यह तो और भी अच्छा है कि पेशेंट को बहुत ज़रूरी होने पर ही क्लीनिक ले जाना है। उसे भी डॉक्टर से ऑनलाइन ही डिस्कस करना है। इससे तो उसका काम बहुत आसान हो जाएगा। चलो इस कोविड-१९ के चलते एक यह फ़ायदा तो हुआ। सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने की अनिवार्यता नहीं होती तो ये क्लिनिक पर ही बुलाते। 

सेक्रेटरी द्वारा अपॉइंटमेंट देने से पहले ऑन-लाइन फ़ीस एडवांस जमा करने के लिए कहना, उसे थोड़ा अखर गया था। फ़ीस भी उसे बहुत ज़्यादा लगी थी। लेकिन यह सोच कर बिना किसी हिचकिचाहट के तुरंत ही जमा करके अपॉइंटमेंट ले लिया कि ‘जो प्रॉब्लम फ़ेस कर रही हूँ, उससे तो कम से कम मुक्ति मिलेगी।’

उसे दो दिन बाद, दिन के ग्यारह बजे का समय मिला था। लेकिन इसके लिए उसे अपने ऑफ़िस से छुट्टी लेने की ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि कोविड-१९ के कारण उसे ऑफ़िस एक दिन छोड़कर जाना होता था। और संयोग से अपॉइंटमेंट वाले दिन उसका ऑफ़ था, और हस्बैंड को भी घर पर ही रहना था। क्योंकि वह भी कोविड-१९ के चलते वर्क फ़्रॉम होम सिस्टम के कारण, घर से ही ऑफ़िस का काम कर रहे थे। और सारा दिन बिज़ी रहते थे। इसलिए उनका रहना, न रहना बराबर ही था। इससे उसके काम में किसी तरह की कोई बाधा आने वाली नहीं थी और वह आराम से दूसरे कमरे में बैठकर डॉक्टर से बात कर लेगी और हस्बेंड को पता भी नहीं चलेगा। 

यह दो दिन की प्रतीक्षा भी जिम्मी को बहुत ज़्यादा लगी थी। दो दिन बाद जब वह ऑन-लाइन डॉक्टर के सामने उपस्थित हुई, तो वह ऐसा महसूस कर रही थी, जैसे किसी बहुत ही मुश्किल काम को सक्सेसफ़ुली पूरा कर लिया है। डॉक्टर को जब उसने परिचय दिया, तो उन्होंने पेशेंट को भी सामने लाने के लिए कहा। इस पर जिम्मी ने सफ़ेद झूठ बोला कि “डॉक्टर साहब वह अभी नहीं हैं। मैं यह चाहती हूँ कि उनकी प्रॉब्लम जिसे वह प्रॉब्लम समझते ही नहीं, जो मेरे, मेरे बच्चों के लिए बहुत बड़ी प्रॉब्लम बन चुकी है, इतनी कि बच्चे अपनी मैटरनल ग्रैंड मदर के साथ रहते हैं। मैं कैसे कहीं और मूव करूँ यह समझ नहीं पा रही हूँ। इसलिए मैं प्रॉब्लम की एक-एक डिटेल आपको बताती हूँ। आप उसी के अकॉर्डिंग मेडिसिन बता दीजिए। उन्हें कुछ रिलीफ़ मिलने पर साथ लाने की कोशिश करूँगी।”

जिम्मी की बातों को सुनने के बाद डॉक्टर ने कुछ सोचते हुए कहा, “ओके मिसेज टिवार्सन, आप प्रॉब्लम बताइए।”

“थैंक्यू डॉक्टर साहब, एक्चुअली प्रॉब्लम यह है कि मेरे हस्बेंड पिछले क़रीब तीन वर्षों से बहुत ही परेशान करने वाली हरकतें करते आ रहे हैं। जिससे बच्चे छोड़ कर चले गए। मैं किसी तरह फ़ेस करती आ रही हूँ। लेकिन बीते पाँच महीनों से तो वह बहुत ही अजीब-अजीब हरकतें करने लगे हैं। कल रात ही उन्होंने बड़ी ही अजीब हरकत की। मैं रात भर परेशान रही। एक सेकेण्ड को भी सो नहीं सकी।”

“ओके, यदि बहुत पर्सनल बात नहीं है, आप बता सकती हैं तो बताइए। आप सारी बातें जितनी स्पष्ट बताएँगी, मुझे केस को समझने में उतनी ही ज़्यादा आसानी होगी, मैं उतना ही अच्छा ट्रीटमेंट कर सकूँगा।”

“जी ज़रूर। मैं आपको सारी बातें बहुत ही क्लियरली बताऊँगी। रात के एक बज रहे थे। मैं सो रही थी। यह भी बग़ल में ही सो रहे थे। मैं करवट लिए हुई थी, मेरा चेहरा इनसे अपोज़िट साइड में था। अचानक ही उन्होंने मुझे, मेरी बाँह से पकड़ कर अपनी साइड करने के लिए बहुत ही ज़ोर से खींचा। 

"इतनी ताक़त से खींचा कि मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी। मेरे दिमाग़ में यही आया कि रूम में कोई डकैत घुस आया है क्या? लेकिन देखा कि यह बैठे हुए बहुत ही मासूमियत के साथ मुझे देख रहे हैं। बेड-रूम की सारी लाइट्स ऑन कर रखीं थीं। मुझे बहुत तेज़ ग़ुस्सा आया। मन किया कि इन्हें बेड से नीचे फेंक दूँ। 

"मैंने ग़ुस्सा होते हुए पछा कि ‘यह क्या बदतमीज़ी है?’ तो यह बहुत ही आराम से ऐसे बोले जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं। दरवाज़े की तरफ़ संकेत करते हुए कहा, ‘किसी कमरे में कोई बाहरी कुत्ता घुसा हुआ है। वह बहुत गंदा है, इसलिए बहुत बैड स्मेल आ रही है। ऐसे में कैसे सो सकते हैं। वह सोते में हम पर अटैक भी कर सकता है।’

“मैंने सोचा कि घर हर तरफ़ से बंद है। मॉस्कीटो भी अंदर नहीं आ सकते। जालियाँ लगी हुई हैं। और अगर मान लें कि शाम को ही किसी समय घर में घुसकर छिप गया होगा, तो शाम से लेकर रात तक इनको बैड स्मेल क्यों नहीं आई, यह स्वयं भी तो उठकर जा सकते थे, मुझे क्यों डिस्टर्ब किया। 

“मेरी नींद ख़राब हुई थी। इनकी मूर्खता-भरी बात से मेरा ग़ुस्सा बहुत बढ़ गया। मैं बहुत तेज़ आवाज़ में बोली, ‘आप बिलकुल पागल हो गए हैं क्या? घर हर तरफ़ से बंद है। मॉस्कीटो भी नहीं घुस सकते, कुत्ता कहाँ से आ जाएगा। आपको डाऊट है तो ख़ुद जाकर क्यों नहीं देखते। मुझे क्यों डिस्टर्ब किया?’ तो मूर्खों की तरह बोले, ‘आई थिंक तुम ठीक से देख सकती हो। तुम तो जानती हो कि मैं कोई काम ठीक से कर नहीं पाता, ऑफ़िस के अलावा।’

“इतना कहकर यह दूसरी तरफ़ मुँह करके लेट गए। मैं बैठी रही। इन्होंने सिचुएशन बहुत डाऊटफ़ुल बना दी थी। मैं कुत्ते, बिल्लियों से बहुत डरती हूँ। मन में आया कि कहीं इनकी बात सच ही न हो। कोई पागल कुत्ता हुआ तब तो बहुत ही भयानक होगा। मैं उसकी बैड स्मेल को फ़ील करने की कोशिश करने लगी। मगर कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। 

“मैं बहुत ज़्यादा डरने लगी। सोचा इनको उठाऊँ और साथ लेकर पूरा घर चेक कर लूँ। लेकिन यह उठने को तैयार ही नहीं हुए। आख़िर मैं बहुत डरती हुई, एक लोहे की रॉड लेकर पूरा घर चेक कर आई। कहीं कुछ नहीं था। इन्हें आराम से सोता देख कर मुझे बहुत ही ज़्यादा ग़ुस्सा आया। मैंने इन्हें उठाकर बिगड़ते हुए कहा, ‘ऐसी बदतमीज़ी फिर कभी नहीं करना। मैं बिलकुल बर्दाश्त नहीं करूँगी, यह अच्छी तरह समझ लीजिये।’

“मेरे यह कहने पर यह उठ कर चले गए। मैंने सोचा कि वॉश-रूम गए होंगे, या दूसरे कमरे में सोने। मैं लेट गई। लेकिन दो मिनट बाद ही यह एक छोटी सी टॉवल पानी में डिप करके ले आए। मुझे उठने के लिए कहा। अब नया तमाशा क्या है, यह सोचते हुए मैं उठ बैठी तो इन्होंने टॉवल मेरी तरफ़ करते हुए कहा, ‘इसे सिर पर रख लो। कुत्ता ढूंढ-ढूंढ कर गरम हो गया होगा। इससे ठंडा कर लोगी तो नींद जल्दी आ जाएगी।’

“मैं पहले से ही परेशान, ग़ुस्से में थी। उनकी इस बेवक़ूफ़ी भरी बात को सुनकर मैं इतना ज़्यादा खीझ उठी कि मैंने टॉवल वापस इन्हीं पर फेंकते हुए कहा, ‘पागल हो गए हैं क्या?’ तो इन्होंने तुरंत ही दूसरी मूर्खता-भरी बात बोली। कहा, ‘तुम समझी नहीं। आय एम फ़ुली कॉन्फ़िडेंट कि वह स्ट्रीट डॉग ही था। तुम्हें देख कर चुपचाप सीढ़ियों से ऊपर चला गया होगा और छत पर से नीचे कूद गया होगा। उसके गंदे पैरों के स्पॉट ऊपर छत तक बने होंगे। तुम चाहो तो ऊपर तक जा कर, उसके सारे स्पॉट इसी समय काउंट कर सकती हो।’ उनकी इस नई बकवास से मैं ख़ुद पर कंट्रोल नहीं कर पाई और चीख पड़ी, ‘शट..अ..अ..अ..प . . . ओ जीसस प्लीज़ हेल्प मी।’ मैंने कुछ और बातें भी कहीं और ग़ुस्सा करती हुई दूसरे कमरे में आ गई। उनको बेड-रूम में ही बंद कर दिया। 

“सुबह जब मैंने दरवाज़ा खोला तो वह आराम से सोते मिले। अपने टाइम से ख़ुद ही उठे और तैयार होकर अपने काम में लग गए। उन्हें देखकर यह लग ही नहीं रहा था कि यह वही व्यक्ति है जो कुछ घंटे पहले तक घर में गंदे स्ट्रीट डॉग के होने की बात कर रहा था। गीले टॉवल से मुझे ठंडा कर रहा था।”
जिम्मी की बातें सुनकर डॉक्टर कोहली बोले, “मिसेज टिवार्सन, आपकी बातों में से कोई टिपिकल बात तो निकल कर सामने नहीं आ रही। मैं अब आपसे कुछ और पर्सनल बातें जानना चाहूँगा। आप जितना क्लियर और फ़ेयर बताएँगी, मुझे ट्रीटमेंट करने में उतनी ही ज़्यादा आसानी होगी। प्रॉब्लम उतनी ही जल्दी सॉल्व होगी। आप तैयार हैं?” 

“यस डॉक्टर, मैं तैयार हूँ, आप पूछिए,” जिम्मी ने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ कहा, तो डॉक्टर कोहली ने पहला प्रश्न दाग दिया, “आपकी मैरिज को कितना टाइम हो गया है?” 

“जी ट्वेंटी इयर्स।”

“आपका दांपत्य जीवन अच्छा है या ख़राब।”

“जी . . जी ठीक है।”

डॉक्टर कोहली ने महसूस किया कि जिम्मी ने अच्छा या ख़राब में से कोई एक शब्द चुनने के बजाय कहा, ‘ठीक है।’ तो उन्होंने हल्के से, “हूँ।” करने के साथ ही आगे पूछा, “फिजिकल रिलेशनशिप कैसे हैं?” यह प्रश्न करते समय उन्होंने अपनी दृष्टि जिम्मी के चेहरे पर जमाए रखी। 

जिम्मी ने फिर कहा, “जी . . ठीक हैं।”

डॉक्टर कोहली बीच-बीच में अपने सामने रखे राइटिंग पैड पर कुछ नोट भी करते जा रहे थे, और हर प्रश्न के बाद उत्तर देती जिम्मी को बड़े ग़ौर से देखते हुए, उनके चेहरे के मनोभावों को पढ़ने का निरंतर प्रयास कर रहे थे। उनका अगला प्रश्न और भी ज़्यादा पर्सनल था। उन्होंने पूछा, “मैरिज के शुरूआती वर्षों में आप लोग महीने में कितनी बार मिलते थे और अब।”

जिम्मी ने जो उत्तर दिया, उससे डॉक्टर कोहली फिर असंतुष्ट नज़र आए। उन्होंने कहा कि “मतलब कि शुरूआती वर्षों में आप लोगों के फिजिकल रिलेशन बेहद अच्छे थे। उसकी तुलना में आज देखें तो . . .। एनीवे जैसा कि आपने बताया कि आप अपने हस्बेंड में प्रॉब्लम पिछले पाँच महीनों से महसूस कर रही हैं, इन पाँच महीनों में आपके रिलेशन कितनी बार बने? क्या सब कुछ नॉर्मल था? पहल किसने की?” 

जिम्मी के उत्तर ने डॉक्टर कोहली को फिर परेशान किया। लेकिन उन्होंने अपने चेहरे के भावों में बिना परिवर्तन किए ही कहा, “मिसेज टिवार्सन, सही ट्रीटमेंट के लिए हमें पेशेंट, उसके फ़ैमिली मेंबर्स, सिचुएशन को बहुत ही माइन्यूट्ली एग्ज़ामिन करना होता है। उससे जो रिज़ल्ट हमारे सामने होता है, उसी के आधार पर ट्रीटमेंट किया जाता है, और उसकी सक्सेस डिपेंड करती है। इसलिए हमें बहुत ही इज़ली बातों को सही-सही डिस्कस करना है।”

इसी के साथ डॉक्टर ने प्रश्न रिपीट कर दिया। इससे जिम्मी को अहसास हो गया कि डॉक्टर समझ गए हैं कि वह कितना सच बोल रही है, कितना को-ऑपरेट कर रही है। इसलिए इस बार सच बोलती हुई बताया कि प्रॉब्लम शुरू होने के बाद दोनों कितनी बार मिले, पहल किसने की। जिम्मी के उत्तर पर थैंक्यू कहते हुए डॉक्टर ने बात आगे बढ़ाई। 

हालाँकि उन्होंने थैंक्यू क्यों कहा, यह वो ठीक से समझ नहीं पा रही थी, काफ़ी कंफ्यूज़ हो रही थी। उसके मन के किसी कोने में यह प्रश्न उठ रहा था कि कहीं वह ग़लत स्टेप तो नहीं उठा बैठी है। डॉक्टर के अगले प्रश्नों के उत्तर देने के लिए वह बहुत सतर्क हो गई। 

डॉक्टर ने आगे पूछा कि “आपके दोनों बच्चे अपनी नानी के पास कब गए? उन्हें वहाँ भेजने का निर्णय आपका था, या आप दोनों का?” 

जिम्मी ने सोचा कि बच्चे कब गए वहाँ, यह तो इन्हें पहले ही बता चुकी हूँ। आख़िर इस तरह से यह जानना क्या चाहते हैं। उसने बड़े सशंकित मन से कहा, “जी दो साल पहले। उन्हें वहाँ भेजने का डिसीज़न मेरा ही था।”

यह सुनते ही डॉक्टर ने तुरंत प्रति-प्रश्न किया कि “आपने बताया था कि प्रॉब्लम पाँच महीने पहले शुरू हुई, तो आपने बच्चों को दो साल पहले ही घर से इतनी दूर क्यों भेज दिया। देखिए मैं फिर कहना चाहूँगा कि आपके उत्तर बहुत ही इंपॉर्टेंट हैं। हो सकता है कि आपके हस्बेंड की प्रॉब्लम का मुख्य कारण बच्चों का दो साल से उनसे दूर नानी के यहाँ रहना हो। देखिए आप पूरी तरह से रिलैक्स रहें, कोई जल्दबाज़ी नहीं करनी है। आप आराम से पूरी डिटेल्स बताइए।”

डॉक्टर कोहली ने यह बात बहुत ही फ़्रेंडली होते हुए कही। जिससे जिम्मी ने ख़ुद पर से काफ़ी प्रेशर हटता हुआ महसूस किया। उसने बच्चों के बारे में थोड़ी सहजता से बताते हुए कहा, “डॉक्टर साहब एक्चुअली ऑफ़िस से आने के कुछ घंटों बाद तक घर में सभी से इनका विहेवियर बहुत ही गंदा होता था। मुझ पर, बच्चों पर बेवजह ही बिगड़ जाते थे। रोज़ ही ऐसा करना इनकी आदत हो गई थी। 

“बच्चे भी सत्रह-अठारह के हो रहे थे। इनके इस गंदे व्यवहार से सभी नाराज़ रहने लगे। मुझे भी बहुत ग़ुस्सा आता। जल्दी ही बच्चे इनके आने के टाइम पर अपने कमरों में बंद हो जाते। ये जब-तक घर में रहते, तब-तक बच्चे इनसे छिपते ही रहते। 

“बड़े ही नाटकीय ढंग से ये देर रात तक अच्छे मूड आ जाते थे। उस समय मैंने इनसे कई बार पूछा कि क्या प्रॉब्लम है। आप ऐसा क्यों करते हैं? मगर यह काफ़ी समय तक टालते रहे। एक संडे को हम लोग बहुत दिन बाद चर्च गए थे। हम-सब ने एक साथ प्रेयर की। उसी समय मेरे दिमाग़ में आया कि यहीं पूछती हूँ। चर्च में तो सच बोल ही देंगे। मगर पूछते ही इनका मूड एकदम से ख़राब हो गया। 

“लेकिन देर रात में फिर नॉर्मल हो गए। कुछ जॉली मूड में भी दिखे तो मैंने फिर पूछ लिया। पूछते ही यह फिर थोड़ा सीरियस हो गए। कुछ देर चुप रहने के बाद बोले, ‘घर के एटमॉस्फ़ियर से मैं बहुत परेशान हो जाता हूँ। मैं यहाँ पर कोई फ़्रीडम फ़ील ही नहीं कर पाता।’

“उनकी इस बात से मैं शॉक्ड रह गई। मैं इन्हें देखती रह गई। मैंने सोचा यहाँ इनकी फ़्रीडम को कौन रोक रहा है, कौन डिस्टर्ब कर रहा है। दोनों बच्चों, मेरे अलावा और कौन है यहाँ। बात को क्लियर करने के लिए मैंने और बातें कीं, तब यह क्लियर हुआ कि यह जो फ़्रीडम चाहते हैं, उसमें बच्चे डिस्टर्बिंग एलिमेंट हैं। तभी मैंने महसूस किया कि ऐसा ही अक़्सर मैं भी महसूस करती आ रही हूँ। 

“एक्चुअली मेरे बच्चे बहुत ही ज़्यादा शरारती हैं। और इन्हें बच्चों की शरारत बिलकुल पसंद नहीं है। बच्चे तो ख़ैर पहले से ही इनसे नाराज़ रहते थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि इनकी फ़्रीडम और बच्चों की नाराज़गी का क्या करूँ? 

“बहुत परेशान होकर एक दिन मैंने अपनी मदर से इस प्रॉब्लम को शेयर किया तो मदर ने कहा, ‘बच्चों को मेरे पास भेज दो। उन्हें यहीं पढ़ने दो।’ मदर क्योंकि अकेली ही रहती थीं, उन्हें इस बात की आवश्यकता भी थी कि कोई और भी साथ रहे . . .” 

डॉक्टर ने जिम्मी को इसी समय रोकते हुए पूछा कि “आपके फ़ादर . . .” 

“एक्चुअली मेरे पेरेंट्स के बीच दस वर्ष पहले ही डायवोर्स हो गया था। मदर ने दूसरी मैरिज की, लेकिन यह मैरिज भी दो साल ही चली। दूसरे हस्बेंड जब-तक साथ रहे, तब-तक उन्होंने मदर को अपने पहले हस्बेंड के बच्चों यानी हम भाई-बहनों से कभी मिलने क्या, बात तक नहीं करने दी। मदर इससे बहुत दुखी रहती थीं। 

“वह उनकी सारी बातों को मानती थीं, लेकिन फिर भी उनके बीच झगड़े होते ही रहते थे। आख़िर बहुत परेशान हो जाने पर उन्होंने दूसरे हस्बेंड से भी डायवोर्स ले लिया। मदर तब सरकारी जॉब में थीं, इसलिए उन्हें डायवोर्स लेने के लिए ज़्यादा सोचना नहीं पड़ा। उसी साल वो रिटायर भी हुईं, लेकिन एक महीने बाद ही प्राइवेट जॉब करने लगीं। दूसरे डायवोर्स के बाद से ही मदर अकेली ही रह रही थीं। बच्चों के वहाँ जाने से उनके अकेलेपन की प्रॉब्लम सॉल्व हो गई। बच्चे भी उनके साथ बहुत ख़ुश हैं। 

“बच्चों को भेजने के बाद मैंने सोचा कि चलो इनकी वह फ़्रीडम इन्हें मिल गई, जो यह चाहते थे। अब घर में कोई प्रॉब्लम नहीं होगी, लेकिन कुछ दिनों बाद ही मैंने महसूस किया कि मैं ग़लत सोच रही हूँ। इनके विहेवियर में बस थोड़ा बहुत ही फ़र्क़ आया है। बच्चों के जाने के बाद एक बार पंद्रह दिन के लिए लंबी छुट्टी लेकर घूमने निकले, लेकिन घूमने के दौरान और ना ही लौटने के बाद मैंने इनमें कोई चेंज पाया। 

“मैंने कई बार फ़ील किया कि जब यह मेरे पास होते हैं, बिल्कुल पर्सनल टाइम में भी जैसे इनका दिमाग़ कहीं और रहता है, यह कुछ और सोचते रहते हैं। कई बार मैंने ठीक उसी समय पूछ भी लिया कि क्या सोच रहे हैं? तो हर बार तुरंत ही डिनाई कर दिया कि नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। 

“घूम कर लौटने के कुछ ही महीने बाद कोविड-१९ के कारण लॉक-डाउन हो गया। उस पीरियड में मैंने प्रॉब्लम को एक दम से बढ़ा हुआ पाया। लॉक-डाउन के मुश्किल से तीन हफ़्ते ही बीते होंगे, एक दिन यह कहते हुए बिगड़ पड़े कि ‘बेड पर बेड-शीट को उसकी डिज़ाइन के हिसाब से क्यों नहीं बिछाया। एक तरफ़ ज़्यादा खिंचा हुआ है, जिससे डिज़ाइन का जो हिस्सा जहाँ पर होना चाहिए, वहाँ पर नहीं है।’

“मैं यह सुनकर शॉक्ड रह गई। मैंने कहा, ‘यह क्या मूर्खतापूर्ण बात है, ऐसा कहते हुए कभी किसी को सुना है क्या?’ मेरे इतना कहते ही यह बिल्कुल फ़ायर हो गए। हमारे बीच काफ़ी देर तक झगड़ा हुआ। उतना बड़ा झगड़ा हमारे बीच पहले कभी नहीं हुआ था। एक ही घर में चौबीसों घंटे बंद रहते हुए भी हम कई हफ़्तों तक एक दूसरे के सामने नहीं पडे़। अपना-अपना खाना-पीना, चाय-नाश्ता, अलग-अलग बनाते रहे। जब यह किचन में होते, तो मैं अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती। ऐसे ही यह भी।”

“ऐसा कितने दिनों तक रहा? बातचीत किसने शुरू की?” 

“एक्ज़ैक्ट दिन तो याद नहीं आ रहा है, लेकिन हल्की-फुल्की शुरूआत उस दिन हुई, जिस दिन प्रधानमन्त्री के आह्वान पर देश में सभी लोगों ने कोरोना वॉरियर्स को मॉरल सपोर्ट देने के लिए, अपने-अपने घरों के गेट, बॉलकनी, छतों पर खड़े हो कर पाँच मिनट तक शंख, थाली, गिलास, ताली आदि बजाई थी, जिससे लगातार ड्यूटी कर रहे डॉक्टर्स, मेडिकल स्टॉफ़, पुलिस, स्वीपर निराश नहीं हों। 

मैं भी छत पर खड़ी, हर तरफ़ लोगों को यह सब करते देखती हुई, ताली बजा रही थी। तभी यह भी आए और मुझसे सट कर खड़े हो कर ताली बजाने लगे। उसी समय पंद्रह-बीस मिनट गवर्नमेंट, कोरोना वॉरियर्स आदि के सम्बन्ध में कुछ बातें हुईं थीं। 

नॉर्मल बातचीत इसके तीन-चार दिन बाद शुरू हुई। एक्चुअली हुआ यह कि कई दिनों बाद शाम को बच्चों का हाल-चाल लेने के लिए मदर को फ़ोन किया, तो मालूम हुआ कि उसी दिन दोनों बच्चे लॉक-डाउन की परवाह किए बिना, दोपहर को अपनी नानी से छुपकर घर से बाहर निकल गए। उन्हें संदिग्ध हालत में देखकर पुलिस ने पकड़ लिया। 

“मदर ने बड़ी रिक्वेस्ट की, फ़ाइन दिया तब उन्हें घर ले आईं। मदर उस समय बहुत ग़ुस्से में थीं। उन्होंने दोनों की बदतमीज़ियों से परेशान होकर एक-एक कर मुझे तमाम बातें बताईं। उनकी बातों से मुझे लगा कि वह उन दोनों से बहुत ऊब गई हैं। मैं डर गई कि कहीं लॉक-डाउन ख़त्म होते ही बच्चों को मेरे पास न भेज दें। 

“यहाँ तो पहले से ही इतनी टेंशन है। यह दोनों भी आ गए तो और न जाने क्या होगा। इन्हीं सब टेंशन के कारण मैं रात-भर सो नहीं पाई। सुबह हो गई। मैं उठकर चाय बनाने जाने ही वाली थी कि तभी इनकी आहट सुनी तो फिर लेट गई। मुझे नींद आ गई। 

“क़रीब बारह बजे दरवाज़े पर नॉक होने पर मेरी आँखें खुल गईं। मैं जानती थी कि इनके अलावा और कोई नहीं हो सकता, फिर भी पूछा, ‘कौन है?’ तो इनकी आवाज़ आई, ‘क्या बात है? अभी तक सो रही हो, तबीयत तो ठीक है ना।’

इन्होंने इतनी पोलाइटली पूछा था कि मैंने बहुत रिलैक्स फ़ील किया। बस यहीं से नॉर्मल बात-चीत फिर शुरू हो गई।”

“ओके यह बताइए कि कुत्ता, बेड-शीट, गीले टॉवल के अलावा मिस्टर टिवार्सन की और ऐसी कौन सी ऐक्टिविटीज़ थीं, जिससे आपको लगा कि उन्हें साइकियाट्रिस्ट के पास ले चलना चाहिए।”

जिम्मी ने फिर अपने शुरूआती शब्द एक्चुअली से प्रारंभ किया। डॉक्टर भी उसके द्वारा क़रीब-क़रीब हर दो तीन वाक्य के बाद, इस शब्द को बोले जाने से बोरियत महसूस कर रहे थे। उसने कहा, “एक्चुअली डॉक्टर साहब ऐसे बहुत से काम हैं। कुछ इतने पर्सनल हैं कि डिसकस नहीं कर सकती। 

“एक्चुअली वह आए दिन मुझसे कहते हैं कि आज मैंने ऐसा सपना देखा, आज सपने में यह देखा। और वह जो भी बताते हैं, वह बहुत ही परेशान और कंफ्यूज़ कर देने वाला होता है। ऐसा लगता है कि जैसे वह कोई ऐसी बात है, जो मुझसे कहना चाह रहे हैं, लेकिन साफ़-साफ़ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं, और मनगढ़ंत बातों के ज़रिये इनडायरेक्टली मुझे समझाना चाह रहे हैं। 

“हर सपने के बारे में यह ज़रूर कहते हैं कि ‘अर्ली मॉर्निंग में देखा गया सपना ग़लत नहीं हो सकता।’ इसके अलावा हर सपने में एक बात ज़रूर होती है कि उसमें वह स्वयं अपने किसी फ़्रेंड की मिसेज के साथ होते हैं, कहीं मूवी देख रहे होते हैं, घूम रहे होते हैं या किसी होटल के कमरे में बंद होते हैं, तभी उसका हस्बेंड आ गया, दोनों में ख़ूब झगड़ा होने लगा, ये उसकी मिसेज़ को उसके हस्बेंड से पिटने से बचाने के लिए आगे बढ़े, तो उसने इनके चेहरे पर इतनी तेज़ घूँसा मारा कि ये ज़मीन पर गिर पड़े, गिरते ही इनकी नींद खुल जाती है। 

“कई बार मैंने उनसे पूछा कि ‘आप हर सपने में अपने फ़्रेंड की मिसेज़ के साथ ही क्यों होते हैं, किसी और लेडी या मेरे साथ क्यों नहीं?’ तो हर बार यही कहते हैं कि ‘मैं सपने देखता हूँ, बस इतना ही कर सकता हूँ। सपना कैसा होगा, उसमें कौन होगा, मैं तो क्या, कोई भी उसमें कुछ नहीं कर सकता।’

“मैंने कहा कि ‘सपने में वही बातें होती हैं, जिन्हें हम हर समय सोचते हैं, या सोचते हुए सोते हैं।’ यह सुनते ही ग़ुस्सा होते हुए बोले, ‘क्या तुम यह कहना चाह रही हो कि मैं अपने फ़्रेंड्स की वाइव्ज़ के बारे में सोचते हुए सोता हूँ। इसीलिए मुझे ऐसे सपने आते हैं। तुम मुझे इतना गिरा हुआ इंसान समझती हो, मैं यह कभी सोच भी नहीं पाया।’

“तो मैंने उन्हें शांत करते हुए कहा, ‘देखिए मैं ऐसी कोई बात नहीं कह रही हूँ, न ही ऐसा कभी सोचती हूँ। लोग कहते हैं कि सोते समय जो सोचते हैं, वो या फिर हमने पहले कभी जो पढ़ा-लिखा, देखा-सुना या फिर किया होता है, टाइम के साथ उसे भूल जाते हैं। ऐसी कोई भी बात दिमाग़ से निकलती नहीं है। उस व्यक्ति के अचेतन में कहीं पड़ी रहती है। वही कभी-कभार सपने में आ जाती है।’

“यह सुनते ही वह और भी ज़्यादा ग़ुस्सा हो गए। मुझ पर हावी होते हुए बोले, ‘तुम यह साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहती कि मैंने यह सब किया है। और तुम यही मानती हो। तुमको इतना कॉमनसेंस नहीं है कि यदि मैं यह सब करता होता, तो तुम्हारे सामने डिस्क्लोज़ क्यों करता।’ इसी बात पर आए दिन अब भी मुझ पर टॉन्ट करते हैं, मुझे ड्रीम एक्सपर्ट कहकर मेरी खिल्ली उड़ाते हैं। आप ही बताइए, आप तो डॉक्टर हैं, साइकियाट्रिस्ट हैं, क्या सपनों के बारे में यही सारी बातें नहीं कही जाती हैं।”

जिम्मी का इस तरह प्रश्न करना डॉक्टर को अच्छा नहीं लगा, फिर भी उन्होंने कहा, “जब सपनों के बारे में आपके यहाँ इतनी बातें होती हैं, तो आप दोनों को बुक्स लाकर स्टडी करनी चाहिए, मार्किट में इस विषय पर बहुत सी बुक्स एवलेबल हैं। हज़ारों वर्षों से इस सब्जेक्ट पर बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है। बहुत सारे सिद्धांत, बातें हैं, कोई कुछ कहता है, कोई कुछ कहता है। 

“भारत में आदिकाल यानी स्टार्टिंग एरा में वेद, पुराण, रामायण, महाभारत में सपनों के बारे में बहुत सी बातें हैं। ग्रीस, मिस्र में सपनों पर बहुत कुछ कहा गया है। वहाँ एक बुक ‘एपिक ऑफ़ गिलगमेश' सपनों के बारे में बहुत डिटेल में जाती है। हियेरोग्लफि़क्स ने बहुत कुछ कहा है। 

“ऐसे ही आर्टेमिडोरस ने एक बड़ी किताब ‘ओनिरोक्रिटिका' लिखी है। उनके हिसाब से सपने एक तरह से भविष्यवाणी होते हैं। इनके अलावा एक और इंपॉर्टेंट बुक है, ‘आन द कॉज ऑफ़ ड्रीम्स'। आप यदि सपनों के बारे में जानने के लिए ज़्यादा इंट्रेस्टेड हैं, तो आप सिगमंड फ्रायड की ‘द इंटरप्रिटेशन ऑफ़ ड्रीम्स', चेन शियुआन की संकलित बुक ‘लॉफ़्टी प्रिंसिपल्स ऑफ़ ड्रीम इंटरप्रिटेशन' पढ़ लें। बहुत सी इंफ़ॉर्मेशंस आपको मिल जाएँगीं। शियुआन की थियरी माने तो मिस्टर टिवार्सन की बात उलट भी सकती है।”

यह सुनते ही जिम्मी आश्चर्य में पड़ गई। अब-तक वह डॉक्टर से कुछ ज़्यादा ही फ़्रेंडली हो चुकी थी। उसने तुरंत ही पूछ लिया, “डॉक्टर साहब बात उलट भी सकती है, से आपका क्या मतलब है। मैं कुछ समझ नहीं पाई। प्लीज़ एक्सप्लेन कर दीजिए।”

डॉक्टर कोहली एक फीकी सी हँसी हँसकर बोले, “ओके। आप इस बात को इस तरह से समझ लीजिए कि शियुआन थियरी के हिसाब से यह भी हो सकता है कि मिस्टर टिवार्सन जो बातें आपसे कह रहे हैं, हो सकता है कि वास्तव में ऐसा हो ही न। मिस्टर टिवार्सन के फ़्रेंड की मिसेज सपना देख रही हैं कि आपके हस्बैंड आपसे ऐसी बातें कर रहे हैं। वह सपने में जो देख रही हैं, वैसा ही हो रहा है। यानी कि आप टाइम ज़ोन में हैं। वह जो सपना वहाँ देख रही हैं, उसी तरह की आभासी क्रिया आपके यहाँ हो रही है। अब इस बात को आप प्राचीन भारतीय सिद्धांत के हिसाब से भी समझ लीजिये। 

“एक भारतीय सिद्धांत कहता है कि भविष्य में जो कुछ होने वाला है, उसका आभास व्यक्ति को सपनों के माध्यम से होने लगता है। अर्थात्‌ सपने एक तरह से भविष्यवक्ता हैं। यह भविष्यवाणी होती है। 

“यह भी कहा जाता है कि जीवन में वही सब कुछ होता है, जो क़िस्मत में पहले से लिखा जा चुका है। सपने उसी हिसाब से संकेत देते हुए आते हैं। एनीवे आप सपनों की टेक्निलटी में मत जाइए। 

“इसे लेकर कोई एक सर्वमान्य सिद्धांत अभी तक दुनिया में नहीं बन पाया है। ना ही साइंटिस्ट अभी तक कोई क्लियर बात कह सके हैं। इसलिए हमें इसमें नहीं उलझना है कि सपने क्या हैं? हमें केवल मिस्टर टिवार्सन पर ध्यान केंद्रित करना है, ओके मिसेज़ टिवार्सन।”

“यस डॉक्टर।”

“ओके। मुझे आज जो भी इंफ़ॉर्मेशंस चाहिए थीं, वह सब काफ़ी हद तक मिल गई हैं। एक हफ़्ते बाद मीटिंग में आप दोनों एक साथ होंगे। इस एक हफ़्ते में आपको क्या-क्या करना है, मैं वह सब आपको बता देता हूँ। 
नंबर एक, आप इस दौरान लाइफ़ ठीक वैसे ही जिएँ, एन्जॉय करें, जैसे जीवन के शुरूआती वर्षों में करती थीं। हस्बेंड के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताइए। मोबाइल जितना भी यूज़ करना है, कीजिए, लेकिन उनके सामने ही। 

“जब भी वह किसी सपने के बारे में या अन्य कोई बात आपसे शेयर करें, तो आप उसे ख़ूब इंट्रेस्ट लेकर सुनें। बच्चों से ऑन-लाइन बातें करिए। उनसे कहिए कि वह अपने फ़ादर से ख़ूब बातें करें। हँसे, एंजॉय करें। आपकी मदर भी उनसे जॉली मूड में बात करेंगीं तो और भी अच्छा होगा। 

“मेरी अभी तक की जो फ़ाइंडिंग्स है, उसके अनुसार मैं यह मानता हूँ कि अगली मीटिंग में जब आप मिस्टर टिवार्सन के साथ होगी तो एक्चुअल प्रॉब्लम क्या है? उसकी पूरी पिक्चर क्लियर हो जाएगी, और जब पिक्चर क्लियर होगी तो प्रॉब्लम आसानी से सॉल्व हो जाएगी।”

यह सुनकर जिम्मी के चेहरे पर आशंकाओं की कुछ रेखाएँ उभर कर ग़ुम हो गईं। उसने तुरंत पूछा, “डॉक्टर साहब एप्रॉक्समेटली कितना टाइम लग सकता है? कोई मेडिसिन भी देनी है क्या?” 

“देखिए मैं तो यह समझ रहा हूँ कि ऐसी कोई बात है ही नहीं कि कोई मेडिसिन दी जाए। बात कुछ और है, जो नेक्स्ट मीटिंग में क्लियर होगी, और सब-कुछ ठीक हो जाएगा। जहाँ तक बात टाइम की है, तो यह सायकिक पेशेंट की कंडीशन, साथ ही फ़ैमिली के लोग कितना, किस तरह को-ऑपरेट कर रहे हैं, इस पर डिपेंड करता है। दो चार महीने से लेकर चार-छह साल भी लग जाते हैं। लेकिन आपको ऐसा कुछ सोचने की आवश्यकता नहीं है। मैं यही मानकर चल रहा हूँ कि अगली मीटिंग तक, सब-कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन ये तब हो पाएगा, जब आप वह सब करेंगी, जो मैंने आपको बताया है। ओके, थैंक यू।”

इतना कहकर डॉक्टर मुस्कुराए और ऑफ़-लाइन हो गए। जिम्मी उनके थैंक्यू का जवाब भी नहीं दे सकी थी। वह जब उठी तो उसके दिमाग़ में कई प्रश्न घूम रहे थे, कि क्या डॉक्टर वह बहुत कुछ भी जान समझ गए हैं, जो वह नहीं चाहती कि कोई और जाने। 

मैंने कोई ऐसी मूर्खता तो नहीं कर दी है कि अगली मीटिंग में जब इनके साथ बैठूँ, तो मेरे लिए कोई नई प्रॉब्लम खड़ी हो जाए। सबसे बड़ी प्रॉब्लम तो फ़िलहाल यह है कि एक हफ़्ते तक जो मुझे करना है, वह कैसे करूँ। 

हर काम के पीछे एक मूड काम करता है। बिना मूड के यह सब कैसे कर सकती हूँ। डॉक्टर ने तो इतनी ईज़ली कह दिया कि उस तरह से रहूँ, विहेव करूँ, जिस तरह से शुरू में रहा करते थे। उन्हें कैसे बताऊँ कि अब यह मेरे लिए कितना टफ़ जॉब है। 

ऐसी कोई फ़ीलिंग्स ही नहीं रह गई है, तो कैसे कुछ हो पाएगा। ओह गॉड मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। मैं लाइफ़ अपने हिसाब से एंजॉय करना चाहती हूँ, मुझे इस झमेले से बाहर निकालिए। मैं अब और फ़ेस नहीं कर सकती यह सब। अगले हफ़्ते देखती हूँ क्या होता है। डॉक्टर मेडिसिन से कोई सोल्यूशन दे सकते हैं तो ठीक है। नहीं तो भाड़ में गई फ़ैमिली। समझ लूँगी कि यह मैरिज चैप्टर यहीं तक था, अब क्लोज़। ऐसी ज़बरदस्ती की लाइफ़ जी कर अपने को किल नहीं करूँगी। 
जिम्मी ने वाक़ई पूरे हफ़्ते वैसा कुछ नहीं किया, जैसा करने के लिए डॉक्टर कोहली ने कहा था। कुछ किया तो बस इतना कि हस्बेंड से कहा, “मैंने तुम्हारी प्रॉब्लम को लेकर एक डॉक्टर से कंसल्ट किया है। अगले हफ़्ते अपॉइंटमेंट है। आपको मेरे साथ वीडियो कॉन्फ़्रेसिंग में रहना है।” जिम्मी ने बड़ी चालाकी से यह बात छिपा ली कि एक मनोचिकित्सक से कंसल्ट किया है। 

जिम्मी की बात पर जब हस्बेंड ने उसकी ओर देखे बिना ही धीरे से “ओके।” कह कर चुप्पी साध ली, तो जिम्मी ने मन ही मन कहा भाड़ में जाओ तुम। अब दोबारा नहीं कहूँगी। अटेंड करोगे तो ठीक है, नहीं तो अपॉइंटमेंट कैंसिल कर दूँगी। प्रॉब्लम डॉक्टर नहीं, फ़ैमिली कोर्ट में सॉल्व करवाऊँगी, तो सब-कुछ अपने आप ही सॉल्व हो जाएगा। 

इसके बाद जिम्मी अपॉइंटमेंट की डेट तक रोज़ यही कैलकुलेशन करती रही कि डायवोर्स की सिचुएशन में वह क्लेम क्या करेगी, गुज़ारा भत्ता के लिए हस्बेंड की आधी सैलरी और प्रॉपर्टी भी कैसे लेगी, जिससे उसे पैसों की कमी न हो। वह तमाम जानकारियाँ इकट्ठा करती रही। 

वह यह सोच-सोच कर बहुत रिलैक्स महसूस करती कि साइकियाट्रिस्ट से ट्रीटमेंट करवाना प्लस प्वाइंट साबित होगा। बल्कि सबसे स्ट्रॉन्ग प्वाइंट होगा। यह बेवक़ूफ़ मीटिंग अटेंड कर लेगा तो और भी अच्छा होगा। 
जिम्मी को यह एहसास नहीं था कि वह जो कुछ सोच रही है, जिस प्लान पर आगे बढ़ रही है, हस्बेंड उससे कहीं आगे सोच चुका है। उसी हिसाब से आगे भी बढ़ रहा है। वह मीटिंग अटेंड करेंगे या नहीं, तुम्हारे मन में यह संशय बना हुआ है, लेकिन वह बहुत व्यग्रता के साथ मीटिंग का इंतज़ार कर रहे हैं। उन्होंने तो वह भी प्लान कर लिया है, जो तुम्हारी कल्पना में भी नहीं है। 

वह अपने प्लान के चलते ही पूरे हफ़्ते ऐसी हरकतें भी करते रहे, जो जिम्मी का यह संशय पुख़्ता करते रहे कि वह कम्प्लीटली साइकिक हैं। इन हरकतों को जानकर डॉक्टर को जो थोड़ा बहुत डाऊट है, वह भी क्लियर हो जाएगा। 

जिम्मी को उस समय बहुत आश्चर्य हुआ कि पूरे हफ़्ते डॉक्टर का नाम भी नहीं लेने वाले हस्बेंड मीटिंग वाले दिन उससे पहले ही अपना लैपटॉप खोलकर, अपने कमरे में बैठ गए और उसको आवाज़ दी, “जिम्मी . . .। टाइम हो गया है, जल्दी आओ।” उनकी यह हरकत भी जिम्मी को हस्बेंड के मेंटल होने का पुख़्ता प्रमाण लगी। 

डॉक्टर भी टाइम के बहुत पंक्चुअल दिखे, राइट टाइम पर उनकी सेक्रेटरी का फ़ोन आ गया। जिम्मी के ऑन-लाइन होते ही उसने डॉक्टर को भी कनेक्ट कर दिया। बेहद मज़ाकिया मूड में डॉक्टर ने दोनों को हेलो कहने के बाद सीधे पॉइंट पर बात शुरू कर दी। 

कुछ बातें होते ही हस्बेंड ने डॉक्टर से कहा, “डॉक्टर साहब मैं पहले अकेले ही बात करना चाहता हूँ। उसके बाद आप ज़रूरी समझियेगा तो हम साथ में भी बात कर लेंगे।”

यह सुनते ही डॉक्टर ने जिम्मी की तरफ़ देखा, जिम्मी उन्हें पहले से ही देख रही थी, डॉक्टर का संकेत मिलते ही वह बहुत ही ऑफ़ मूड के साथ बाहर चली गई। उसके बाहर जाते ही हस्बेंड ने दरवाज़े को लॉक कर दिया। डॉक्टर उनके इस सारे क्रिया-कलाप को बहुत सूक्ष्मता से देखते रहे। 

हस्बेंड ने बैठते ही कहा, “सॉरी डॉक्टर साहब, यह बहुत ज़रूरी था। आपका शेड्यूल बहुत टाइट रहता है, इसलिए सीधे टॉपिक पर आता हूँ। मिसेज़ ने आपको पिछली मीटिंग में जो कुछ बताया था, वह सब पूरी तरह से ग़लत है। आपको पहले यह बता दूँ कि आपने उससे जो कुछ कहा था, उसने मुझे कोई बात नहीं बताई। 

“मैंने अपने तरीक़े से पिछली मीटिंग की पूरी बात-चीत सुनी थी। आप बार-बार यही कहते रहे कि मेरे साइकिक होने जैसी कोई बात है, ऐसा मुश्किल ही लग रहा है। डॉक्टर साहब आप एब्सील्युटली करेक्ट हैं। 

“मिसेज़ के मन में क्या है, इसके साथ ही मैं उसके उस अफ़ेयर को पूरा जानना चाहता था, उसे एहसास कराना चाहता था कि जिस रिश्तेदार के बेटे के साथ तुम अफ़ेयर में हो, वह सब-कुछ मैं जान चुका हूँ। रही बात कुत्ता, गीला टॉवल, आदि की, तो वह सब मेरा प्री-प्लैन्ड ड्रामा था।”

यह सुनकर डॉक्टर के चेहरे पर संशय की रेखाएँ उभरने लगीं। वह कुछ पूछने के बजाए चुपचाप उन्हें पूरा बोल लेने तक सुनते रहना चाहते थे। और मिस्टर टिवार्सन जैसे सब-कुछ सुनाए बिना एक सेकेण्ड को भी चुप नहीं होना चाहते थे। तो वह बिना रुके आगे बोले, “डॉक्टर साहब आप ऐसा सोच सकते हैं कि अफ़ेयर वाले पॉइंट पर मैं मिसेज़ से सीधे बात कर सकता हूँ। कोई भी ड्रॉमा करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है, कोई मतलब ही नहीं है। लेकिन मुझे ड्रॉमा वाला तरीक़ा ही अच्छा लगा। 

“क्योंकि मैं उसे बहुत चाहता हूँ। मुझे लगा कि सीधे-सीधे बात करने पर वह बहुत हर्ट फ़ील करेगी। साथ ही मैं इस तरीक़े से यह भी जानना चाहता था कि आख़िर इसकी ऐसी कौन सी डिमांड है, ऐसी कौन सी इमोशनल ज़रूरत है, जो मैं पूरी नहीं कर रहा हूँ, या नहीं कर पाता, जिसकी वजह से इसका इमोशनल अटैचमेंट मुझसे टूट कर, मेरे एक रिश्तेदार के बेटे से जुड़ गया है। जबकि वह एज में इससे बीस साल छोटा है। केवल सताइस-अठाइस का ही है।”

डॉक्टर साहब उन्हें ध्यान से सुनते रहे। बात वही निकल कर सामने आ रही थी, जिसका उन्हें डाऊट था। लेकिन अभी वह कई और गाँठों को खुलते हुए देखना चाहते थे, तो मिस्टर टिवार्सन को बोलते रहने के लिए और प्रेरित किया। इससे उत्साहित मिस्टर टिवार्सन आगे बोले, “मैंने सोचा कि यह शुरू से ही बेहद रोमांटिक, बोल्ड लाइफ़-स्टाइल को पसंद करती रही है। मैं शायद ऑफ़िस से लौटने पर बेहद नटखट बच्चों के कारण इसे टाइम नहीं दे पाता हूँ। इससे यह अपनी लाइफ़-स्टाइल में डिस्टरबेंस महसूस कर रही है। चलो इसी के मन का करते हैं। लेकिन बच्चों को कहीं फेंक तो नहीं सकते। इसलिए कुछ सोच कर मैंने फ़्रीडम की बात की, तो इसने तुरंत कैच कर लिया। 

“जैसे कि वह यही चाहती थी। मैं जब-तक कुछ समझूँ, इसने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। मैंने सोचा, चलो अगर यह ऐसे ही उस लड़के से सम्बन्ध ख़त्म कर सकती है, तो यही सही। कुछ दिनों में ही जब बच्चों की याद आएगी, तो उन्हें ख़ुद ही बुला लेगी। लेकिन मेरी सॉरी कैलकुलेशन उल्टी निकली। 

“इस फ़्रीडम का फ़ायदा उस लड़के और इसने उठाना शुरू कर दिया। ख़ूब उठाते रहे। मेरा घर इन दोनों के लिए अपने अवैध रिश्ते को एन्जॉय करने का गोल्डन प्लेस बन गया। लेकिन पहले लॉक-डाउन, फिर मेरे वर्क फ़्रॉम होम के चलते घर पर ही रहने के कारण, इन दोनों की आज़ादी ख़त्म हो गई। एन्जॉय करने का गोल्डन प्लेस छिन गया, तो मुझे पागल घोषित करवा कर, उसी के आधार पर डायवोर्स लेकर या मुझे पागल-खाने मैं डलवा कर एकदम निश्चिंत होना चाहती है।”

मिस्टर टिवार्सन को ध्यान से सुन रहे डॉक्टर कोहली को लगा कि कोई भी सायकिक व्यक्ति ऐसे खुलकर नहीं बोल सकता। लेकिन यह भी एक रहस्य ही है कि पत्नी के अपने रिश्तेदार के बेटे से ही विवाहेत्तर सम्बन्ध हैं, यह सब-कुछ जानते हुए भी, खुलकर स्पष्ट बात मिसेज़ से क्यों नहीं करते? कोई भी हस्बेंड अपनी मिसेज़ के ऐसे बेमेल, अवैध रिश्ते को जानने देखने के बाद ऐसे बिलकुल भी चुप नहीं रह सकता। मिडिल क्लास सोसाइटी का व्यक्ति तो बिलकुल भी नहीं। और यह व्यक्ति अजीब ऊल-जलूल हरकतें करता आ रहा है। 

डॉक्टर ने मिस्टर टिवार्सन से पूछा कि “बच्चों के जाने के बाद आप दोनों के बीच रिलेशन में कोई चेंज आया कि नहीं, या कि दूरियाँ पहले से ज़्यादा बढ़ीं।” तो टिवार्सन ने कहा, “डॉक्टर साहब मेरे हर प्रयासों के रिज़ल्ट नेगेटिव आ रहे हैं। जैसे बच्चों के जाने के बाद मैंने सोचा कि यह हमेशा घूमने-फिरने, सैर सपाटे की शौक़ीन रही है। चलो यह भी ट्राई करते हैं, देखते हैं क्या चेंजेज आते हैं। 

“मैंने ऑफ़िस से पंद्रह दिन की एलटीसी छुट्टी ले ली। उसे बताया कि ‘जहाँ चलना है, बताओ चलते हैं। आराम से ख़ूब घूमेंगे एंजॉय करेंगे।’ मगर वह आनाकानी करती रही। बहुत कहने पर बोली, ‘पहले सह्याद्रि की पहाड़ियों में बसे फ़र्स्ट प्लैंड हिल सिटी ऐम्बी वैली, फिर वहाँ से गोवा चलेंगे।’

“यह सुनकर मैंने सोचा कि एक मिडिल क्लास पर्सन के लिए एक-साथ ऐम्बी वैली, गोवा घूमना बहुत ही ज़्यादा ख़र्चीला है। इतना ही नहीं ज़िद यह भी थी कि इन जगहों पर बाई प्लेन ही चलना है। यह सब मेरी कैपेसिटी से बाहर था, फिर भी इसकी ख़ुशी, उस रिश्ते से इसे बाहर निकालने के लिए, मैं यह सब भी करने को तैयार हो गया, पैसे भी अरेंज कर लिए। 

“उस समय इसकी बातों से यह लग ही नहीं रहा था कि यह मेरी वाईफ़ बोल रही है। कोई भी वाईफ़ ऐसे मौक़ों पर बार-बार बजट, पैसे की बात ज़रूर करती है। लेकिन इसकी एक्टिविटीज़ से ऐसा लग रहा था, जैसे कि यह ज़्यादा से ज़्यादा पैसे ख़र्च करवाने पर तुली हुई है। लेकिन मैं अनजान बना ख़ुश होने का दिखावा करता रहा। 

“जब घूमने गए तो वहाँ भी इसने सारी हरकतें परेशान करने वाली ही कीं। ऐम्बी वैली, सह्याद्रि पहाड़ी पर एक बहुत पुराना क़िला ‘कोरीगढ' है। वहाँ दो दिन घूमने गई। इसकी बदतमीज़ियों के कारण वहाँ अन्य टूरिट्स के सामने काफ़ी इंसल्ट फ़ेस करनी पड़ी। 

“लेकिन गोवा में इसने जो कुछ किया, मुझे जो कुछ करने के लिए विवश किया, वह सब मैंने वहाँ पंद्रह दिन अपने चेस्ट पर, इस पूरी अर्थ के बराबर वेट रखकर बर्दाश्त किया यह सोचते हुए कि यदि ऐसे ही बात बन जाए तो भी ठीक है।”

डॉक्टर ने यह सोच कर कि इस दौरान इनकी मिसेज थ्रू मोबाइल उस लड़के से कनेक्ट रहीं या नहीं, उन्होंने मिस्टर टिवार्सन से पूछा, “क्या वहाँ भी मिसेज़ टिवार्सन उस लड़के से बात-चीत करती रहीं?”

टिवार्सन ने बहुत उदास मन से कहा, “यस डॉक्टर, हम कुल बीस दिन टूर पर रहे, उसने इन सभी दिनों उससे बातें कीं, उसको फोटो, वीडियो भी भेजती रही। लेकिन यह उसके सामने कुछ नहीं है, जो गोवा में एक और काम किया, और यदि मैं स्ट्रॉन्ग अपोज़ नहीं करता तो उससे भी ज़्यादा वर्स दूसरा काम भी करती।”

यह सुन कर डॉक्टर बड़े संशय में पड़ गए कि हस्बेंड के साथ टूर पर होते हुए भी उस लड़के से बातें करने, उसे फोटो, वीडियो भेजते रहने से भी ज़्यादा वर्स क्या हो सकता है? कहीं ये वहाँ होटल, रिसॉर्ट आदि में टूरिस्ट को एक्सट्रा सर्विस या एन्जॉयमेंट देने के नाम पर इम्मोरल एक्ट्स की बात तो नहीं कहना चाहते। अपना संदेह दूर करने के लिए उन्होंने पूछा, “ऐसे और क्या काम किए उन्होंने, जो आपके साथ होते हुए भी उस लड़के से सम्पर्क बनाए रखने से भी ज़्यादा वर्स थे।”

मिस्टर टिवार्सन ने बहुत ही मायूस उदासी भरी आवाज़ में कहा, “डॉक्टर साहब, इस बात को आप से ज़्यादा कौन समझ सकता है कि कोई भी व्यक्ति जिस क्लास को बिलॉन्ग करता है, उसके काम, उसकी सोच, उसका मेंटल लेवल भी उसी क्लास का होता है। 

“हम मिडिल क्लास फ़ैमिली के हैं, तो हमारी हर बातें भी मिडिल क्लास लाईन को ही फ़ॉलो करती हैं। गोवा एक इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस है, तो वहाँ पर टूरिस्ट्स को अट्रैक्ट करने के लिए तरह-तरह की चीज़ें, बातें, अजीब-अजीब सी सर्विसेज़ भी एवलेबल हैं। होटल, स्पा, मसाज पार्लर . . . बहुत सीधे-सीधे कहूँ तो बहुत सी इम्मोरल एक्टिविटीज़ होती हैं। जैसे ड्रग्स, सेक्स वग़ैरह। 

“इसने एक जगह पढ़ लिया कि अमुक मसाज कराने से स्किन इतनी स्मूद, ग्लोइंग, स्मार्ट हो जाती है कि आदमी अपनी एक्चुअल एज से दस-पंद्रह वर्ष छोटा दिखाई देने लगता है। बस यह एकदम पीछे पड़ गई कि वह और मैं दोनों वह मसाज ज़रूर करवाएँगे। उसे करवाए बिना वापस नहीं जाएँगे। 

“अब आप ही सोचिए कि क्या एक मिडिल क्लास सोच के व्यक्ति के लिए उसकी आत्मा को भी कुचल डालने वाला दृश्य नहीं होगा कि उसकी मिसेज फुल बॉडी मसाज किसी थर्ड पर्सन से, उसी के सामने करवाए और उसकी विवशता यह कि वह बोल भी ना सके। 

“इस मसाज के लिए ओके करते समय मैंने सोचा था कि चलो फ़ीमेल से करवा लेगी, किसी तरह बात बनी रहे। लेकिन यह अपनी इस लॉजिक के साथ अड़ गई कि ‘फ़ीमेल सॉफ़्ट हैण्ड होती हैं, इससे वो ठीक से मसाज नहीं कर पाएँगी, और रिज़ल्ट अच्छा नहीं आएगा। स्किन वैसी की वैसी ही रह जाएगी।’

“अपोज़िट सेक्स से मसाज कराने पर चार्ज दुगुना देना था। मैंने बहुत समझाया, रिक्वेस्ट तक की, लेकिन ये ऐसी रिजिड हुई कि मेरी सारी कोशिशें, रिक्वेस्ट बेकार हुईं। इसने वहाँ पंद्रह दिन तक मुझे अपने पैरों तले कुचलते हुए फ़र्ज़ी मसाज ट्रीटमेंट लिया। 

“जैसे इतना ही काफ़ी नहीं था, मसाज के बाद जब होटल एम्प्लॉयी सैटिस्फ़ैक्शन के बारे में पूछता, तो यह हर एक-दो दिन बाद ख़ुद को डिससैटिस्फ़ाइड बताती, तो नेक्स्ट डे मसाजर चेंज कर दिया जाता। 

“इस तरह इसने मेरी आँखों के सामने ही, एक माइक्रो ड्रेस भी पहने बिना ही, अलग-अलग छह लोगों से मसाज करवाई। आख़िर के चार दिन एक नीग्रो से यह ट्रीटमेंट लिया, जिसकी सर्विस के लिए इन्होंने सेंट-पर्सेंट मार्क्स दिए, उसे बड़ी टिप भी ऐसे दिलवाई जैसे कि यह किसी बिलेनियर की वाइफ़ हैं। 

“इतना ही नहीं ट्रीटमेंट लेना शुरू करने के पहले दिन से ही, किसी टीनएज गर्ल की तरह रोज़ मुझसे छुपकर, उस लड़के को फ़ुल बॉडी इमेज भेज कर पूछती रही कि मैं कैसी लग रही हूँ, स्किन कितनी ग्लो कर रही है। मेरी स्किन अब पहले से ज़्यादा ग्लो कर रही है या नहीं। यह सब देखते-देखते मेरी हालत ऐसी हो जाती जैसे कि मेरी पूरी स्किन निकाल कर मेरे पूरे शरीर पर ब्लैक पेपर पाउडर, सॉल्ट डाल दिया गया हो। 

“इसके करण मुझे छुट्टी बढ़ानी पड़ी। एक फ़्रेंड को बोल कर अकाउंट में और पैसे मँगवाने पड़े। यह सोचकर मैं आज भी अपना सिर धुनता हूँ कि मैंने जो कुछ सोच कर यह सब किया, रिज़ल्ट उसका ठीक अपोज़िट आया। 

“वहाँ उस लड़के को तो रोज़ इमेज भेज कर पूछती रही कि मैं कैसी लग रही हूँ, मेरी स्किन कितनी ग्लो कर रही है। लेकिन जो टूर पर ले गया, जिसने इतना पैसा ख़र्च किया, उसकी ख़ुशी का ख़्याल कर ब्लैक पेपर, सॉल्ट की एसिड की जलन जैसा पेन बर्दाश्त किया, उससे एक बार भी यह नहीं पूछा, फ़ॉर्मेलिटी के लिए भी कि मैं कैसी लग रही हूँ? हाँ, इस बात के लिए मुझसे नाराज़ ज़रूर हुई कि उसके बार-बार कहने पर भी मैंने उसकी तरह मसाज क्यों नहीं करवाई। मैंने सोचा कह दूँ कि तुमने पैरों तले मुझे ऐसा कुचल डाला है कि मैं मसाज कराने लायक़ बचा ही नहीं हूँ।”

यह कहते-कहते मिस्टर टिवार्सन बहुत भावुक हो गए, लगा कि अब बस रो ही देंगे। यह देख कर उन्हें काफ़ी देर से सुन रहे, डॉक्टर साहब ने कहा, “वेरी सैड मिस्टर टिवार्सन, आपकी बातें सुनकर किसी की भी संवेदनाएँ आपके साथ हो सकती हैं। मेरी लाइफ़ में यह अपनी तरह का पहला केस है। 

“वास्तव में मैं यहाँ किसी को कोई ट्रीटमेंट दे ही नहीं सकता। क्योंकि मामला किसी डॉक्टर नहीं, एडवाइज़र के पास जाने का है। मिसेज़ टिवार्सन ने तो एक ज़बरदस्त कांस्पिरेसी रची और मुझे भी उसमें शामिल कर लिया, एक डॉक्टर होकर मैं उनका एक टूल बन गया और समझ अब पा रहा हूँ। मैं बहुत डिप्रेस हुआ हूँ, मुझे बहुत ग़ुस्सा आ रहा है। ऐसी लेडी को तो पुलिस में दे देना चाहिए। लेकिन आपकी स्थिति को देखते हुए ऐसा नहीं कर रहा हूँ। क्योंकि उससे आपकी परेशानियाँ बढ़ जाएँगी।”

“थैंक्यू डॉक्टर साहब, आप तो देख ही रहें कि वह मुझे पागल डिक्लेअर करवाने में लगी हुई है। मैं जितनी कोशिश करता हूँ कि हमारे रिलेशन नॉर्मल हो जाएँ, वह उतना ही ज़्यादा रिवर्स जा रही है।”

“लेकिन मिस्टर टिवार्सन उन्होंने आपको साइकिक तब कहा जब आपने बेड-शीट, कुत्ता, टॉवल, जैसे ड्रामे किए।”

“जी ठीक है मान लेता हूँ कि मेरी ऐसी एक्टिविटीज़ के कारण उनके मन में मेरे साइकिक होने की बात आई, लेकिन प्रॉब्लम तो कई सालों से है। मैं कॉन्फ़िडेंस के साथ कहता हूँ कि मुझे साइकिक डिक्लेअर कराने की उनकी कोशिश पहले से थी। 

“मैं पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि पिछली मीटिंग में आपने उनसे मेरे ट्रीटमेंट के लिए जो कुछ कहा था, उन्हें करने की तो छोड़िए, टच तक नहीं किया। इसलिए इस पीरियड में जानबूझकर कर मैंने ऐसी एक्टिविटीज़ की, कि वो आपकी बातों को सीरियसली लें। उसे फ़ॉलो करें। 

“साथ ही यह क्रिस्टल क्लियर हो जाएगा कि मुझे ठीक कराने के लिए आप से कांटेक्ट किया है, या पूरे प्लान के साथ मुझे मेंटल डिक्लेअर कराने के लिए।”

“तो आपका कॉन्क्लूज़न क्या है?” 

“डॉक्टर साहब मेरा एकदम क्लियर कॉन्क्लूज़न है कि उनका टारगेट मुझे मेंटल डिक्लियर कराना ही है।”

“हूँ, तो इस स्टेज पर आकर आप क्या सोचते हैं कि इस रिलेशन को बचाकर पहले जैसी सिचुएशन में लाया जा सकता है? मुझे लगता है अब वह स्टेज है, जहाँ आपको यह सोचना चाहिए कि अब बस, दोनों के लिए यही बेहतर है कि इस अप्रसांगिक हो चुके रिश्ते को क्लोज़ कर अलग हो जाना चाहिए, नए सिरे से, नए पार्टनर के साथ नई लाइफ़ स्टार्ट की जानी चाहिए। लेकिन यह सब दोनों बच्चों, उनके भविष्य को सुरक्षित करने के बाद ही।”

डॉक्टर की इस बात पर मिस्टर टिवार्सन उन्हें कुछ देर देखते हुए सोचने के बाद बोले, “आप एक फ़ेमस साइकियाट्रिस्ट हैं, लर्नेड पर्सन हैं, आपसे एक एडवाइस माँगता हूँ, कि मुझे क्या करना चाहिए।”

उनकी इस बात पर डॉक्टर साहब मुस्कुरा कर बोले, “देखिए, मैं जब दिमाग़, तर्क से काम लेता हूँ तो यह कहना पड़ रहा है कि इस स्टेज पर एकमात्र सोल्यूशन यही है कि इस रिश्ते को खींचते रहने से अच्छा है कि पूरे फ़्रेंडली माहौल में, फ़्रेंड की ही तरह क्लोज़ कर, नए पार्टनर के साथ ख़ुशहाल ज़िन्दगी जी जाए। 

“लेकिन इस सोल्यूशन में मानवीय पक्ष नहीं है, या फिर बहुत कमज़ोर है, संवेदनहीनता है। दूसरी तरफ़ जब मानवीय दृष्टिकोण से आप दोनों, आपके बच्चों का भविष्य ध्यान में रखता हूँ, तो मैं यही चाहूँगा कि इस रिश्ते को बचाने की एक और कोशिश की जानी चाहिए। हो सकता है कि मिसेज़ टिवार्सन जो कुछ कर रही हैं, उस यंग चैप के सिखाने-पढ़ाने, बहकावे, क्षणिक भावनाओं में आकर कर रही हों। क्यों मिस्टर टिवार्सन, क्या मैं ठीक कह रहा हूँ।”

“सेंट परसेंट डॉक्टर साहब। मन में इस क्वेश्चन के साथ ही एक लास्ट चांस लेने की बात थी।”

“तो ठीक है मिस्टर टिवार्सन, आप लास्ट चांस लीजिए, मेरी सारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं। मुझे विश्वास है कि आपको सक्सेस मिलेगी। सक्सेस मिलने पर बताइएगा। वैसे भी यह केस मुझे हमेशा याद रहेगा। क्योंकि इसमें मैं एक डॉक्टर होते हुए भी पहले अनजाने ही एक कॉन्सपिरेसी का टूल, फिर दूसरी ही मीटिंग में देखते-देखते डॉक्टर से एडवाइज़र बन गया। ओके, थैंक्यू बाय बाय।”

डॉक्टर ने हँसते हुए जल्दी से अपनी बात कही और ऑफ़-लाइन हो गए। तभी मिस्टर टिवार्सन ने सोचा कि ग़लती हो गई। डॉक्टर साहब से आख़िर में दो-तीन मिनट जिम्मी की भी बात करानी ज़रूरी थी। अब पता नहीं क्या-क्या सोचेगी? सोचेगी क्या सीधे-सीधे बोल देगी कि मैंने कोई साज़िश की है। 

कोई आश्चर्य नहीं कि फिर से डॉक्टर साहब को कांटेक्ट करे। चलो जो होगा देखा जाएगा। पहले वह रास्ता तो ढूँढ़ूँ जिस पर चलकर इस रिश्ते को बचाने की आख़िरी कोशिश कर सकूँ। डॉक्टर साहब ने अपनी फ़ाइंडिंग्स मेल करने को कहा ही है। 

उसे देख कर हो सकता है, इसे अपनी ग़लती समझ में आए। मुझे साइकिक डिक्लेयर करा कर डायवोर्स लेने की अपनी प्लानिंग ड्रॉप कर दे। इसे समझाने की पूरी कोशिश करूँगा कि रोड्रिक से तुम्हारे रिलेशन लाइफ़ की बिगेस्ट मिस्टेक है। बच्चों के लिए ही सही, भूल जाओ उसे। इस रिलेशन को लेकर मैं कभी तुमसे कुछ नहीं कहूँगा। 

मिस्टर टिवार्सन डॉक्टर साहब की मेल की प्रतीक्षा करने लगे। उन्हें विश्वास है कि वह मेल ही उनके आगे बढ़ने का रास्ता बनाएगी। वह यह बुदबुदाते हुए लैप-टॉप ऑफ़ करते हैं कि थैंक यू, थैंक यू वेरी मच डॉक्टर सर। डॉक्टर नहीं, मेरे एडवाइज़र सर। और सिर कुर्सी पर पीछे टिका कर आँखें बंद कर ली। जिम्मी तमाम आशंकाओं के तूफ़ानों में फँसी बड़ी व्यग्रता से हस्बेंड के कमरे का दरवाज़ा खुलने की प्रतीक्षा करती रही। 

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