शेनेल लौट आएगी

01-10-2023

शेनेल लौट आएगी

प्रदीप श्रीवास्तव (अंक: 238, अक्टूबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

ऐमिलियो डोरा को मैं आज भी अपनी पत्नी ही मानता हूँ। वह आज भी मेरे हृदय के इतने क़रीब है, मुझमें इतना समायी हुई है कि मैं उसकी महक को महसूस करता हूँ। मुझे अब भी ऐसा लगता है कि जैसे वह मेरे सामने मेरे एकदम क़रीब मुझे स्पर्श करती हुई खड़ी है। मेरे गले में अपनी दोनों बाँहों को डाले चेहरे को एकटक देखती हुई। और उसकी गर्म साँसों को मैं चेहरे पर महसूस करते हुए उसी में खोया जा रहा हूँ। उसकी नज़रों में मैं क्या हूँ यह तो वही जाने। पता नहीं मैं उसे याद भी हूँ या नहीं। वह मुझे कितनी शिद्दत से चाहती है, याद करती है . . .या . . . पता नहीं। मेरे अब तक के जीवन में आई तमाम लड़कियों में एक वही है जिसकी मैंने पूरे रस्मों-रिवाज के साथ माँग भरी थी। गोल्डेन नाइट सेलिब्रेट की थी। 

उसी मधुर क्षण में उसे उसके देश सेनेगल से मिलता-जुलता नाम दिया था ‘शेनेल’। तब उसने बड़े प्यार से मुझे होंठों पर किस करते हुए कहा था, ‘वॉओ, कितना प्यारा नाम है, बिल्कुल तुम्हारी तरह। मैं अपने पेरंट्स, रिलेटिव्स, सारे फ्रेंड्स को बोलूँगी कि अब मुझे मेरे इसी प्यारे नाम से बुलाया करें।’ मैं उसे उसी क्षण से जब तक वह रही मेरे साथ उसे ऐमिलियो की जगह शेनेल ही बुलाता रहा। 

ऐमिलियो से जब मेरा संपर्क हुआ तब मैं काफ़ी समय से अकेला ही था। ई-मेल के ज़रिए उसने संपर्क किया था। उसकी सारी मेल जो सैकड़ों होंगी, मैंने आज भी सुरक्षित रखी हैं। उसकी याद आने पर उन्हें बार-बार पढ़ता हूँ। उसकी यादों में डूबता जाता हूँ। शुरूआती कुछ मेल के बाद ही वह बड़ी तेज़ी से मेरे क़रीब आने लगी थी। वह हर मेल में मुझसे मेरे बारे में सब कुछ जान लेने के प्रयास में रहती थी। ना जाने उसकी बातों, उसके व्यक्तित्व में कैसा जादू था कि मैं जल्दी ही उसे सब बताने भी लगा। ऐसी ही एक बड़ी डिटेल मेल में मैंने उसे लिखा: 

‘डियर ऐमिलियो डोरा, 

‘मुझे मेरे अधिकांश मित्र, परिचित एवं सारे रिश्तेदार आवारा-बदमाश लोफ़र कहते रहे हैं। अब इधर कुछ बरसों से उन्हीं में से कई रिश्तेदार, मित्र यह कहने लगे हैं कि मैं अब बहुत सुधर गया हूँ। ऐसे सारे लोगों को मैं पहले भी मूर्खाधिराज कहता था आज भी कहता हूँ। क्योंकि मैं पहले जो कुछ करता था वही सब आज भी करता हूँ। हाँ फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि अब यह सब पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गया है। तो जिन कामों को करते हुए यदि मैं पहले बिगड़ा हुआ था, तो वही सब करते हुए आज सुधरा हुआ कैसे हो गया हूँ? क्या यह बद अच्छा बदनाम बुरा वाली बात है। मगर इस बिंदु पर मैं कहूँगा कि नहीं। जिन कामों को लेकर मुझे आवारा, बदमाश, लोफ़र कहा गया मेरी नज़र में वह इस श्रेणी में आते ही नहीं। मेरी नज़र में वह सब एक अलग तरह की समाज-सेवा है। 

‘कोई अगर किसी कमज़ोर को परेशान कर रहा हो तो उसे मार-तोड़ कर सही कर देना क्या ग़लत है? बदमाशी है? देर रात तक बाहर रहना मेरी नज़र में आवारगी नहीं है। हाँ, इस दौरान यदि मैं ग़ैर क़ानूनी, ग़ैर सामाजिक कार्य करूँ तो आवारगी है। बहुत सी लड़कियों या औरतों के साथ सम्बन्ध रखना भी मैं ग़लत नहीं मानता। यदि यह मैं उन सब से ज़बरदस्ती, धोखे से, बहला-फुसला कर करूँ तो निश्चित ही ग़लत है। लेकिन ऐसा मैं सपने में भी नहीं करता। हाँ, यदि मैं चाहूँ तो इन सारे लोगों को बदतमीज़ कह सकता हूँ। गाली दे सकता हूँ। लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहता। क्योंकि मैं ऐसे लोगों पर सिर्फ़ तरस खाता हूँ। मेरी इस बात से तुम मुझे कोई संत महात्मा नहीं समझ लेना। 

‘ऐमिलियो मेरी प्रकृति ही ऐसी है कि मैं जो करता-धरता हूँ वह कभी छिपाता नहीं। साफ़-साफ़ बोल देता हूँ। मैं तुम्हें अपनी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहा हूँ जिन्हें मैं समझता हूँ कि कोई जल्दी नहीं बताता। लेकिन मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती। 

‘किसी बात को अपने में जज़्ब किए रहना, अपने में छिपाए रखना मुझे ख़ुद पर भारी बोझ लादे हुए घूमने जैसा लगता है। ऐसे में मुझे घुटन महसूस होती है। यह मुझे अच्छा नहीं लगता। इसीलिए मैं तुम्हें बहुत-सी ऐसी बातें बताने जा रहा हूँ जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकती। ऐसा तुम्हारी ज़बरदस्त क्यूरिसिटी के कारण कर रहा हूँ। क्यों कि पिछली मेल में मैंने मुश्किल से दो चार बातें ही अपने बारे में लिखी थीं। लेकिन तुम पीछे पड़ गई कि मैं और बताऊँ। 

‘शुरू में तुम्हारी कई मेल इसी लिए मैं नज़र-अंदाज़ करता रहा। लेकिन तुमने तो मेल की झड़ी ही लगा दी। हर दिन दो-तीन मेल। और हर में पहले से ज़्यादा ज़ोर कि मैं सब बताऊँ। ऐमिलियो, आगे मैं तुम्हें ऐमिलियो ही लिखूँगा। हाँ तो मैं अपने बारे में बहुत सारी बातें तुम्हें बताने के लिए इसलिए भी तैयार हुआ क्यों कि पिछले कुछ महीनों में तुम्हारी कई बातें मुझे प्रभावित कर गईं। 

‘जब से तुम अपना नक़ली चेहरा उतार कर सामने आई हो तो तुम्हारी बातों में मुझे सच्चाई बराबर दिख रही है। सच कहूँ कि तुम्हारी तरह ना जाने कितनी लड़कियाँ रोज़ मेल करती हैं। पिछले कुछ सालों से रोज़ ही दो-चार मेल इस तरह की आती रही हैं। अब भी आती हैं। जानती हो तुम्हारी तरह सभी मेल में सारी लड़कियाँ एक ही बात लिखती हैं। अब भी लिखती हैं। यह सभी अव्वल दर्जे की चार सौ बीस लड़कियाँ हैं। यदि तुम इन्हीं गुट की हो तो कम से कम इन सब को यह बता दो कि ये एक से बढ़ कर एक मूर्ख हैं। 

‘इन्हें यह समझाओ कि जब मेल किया करें मुर्गा फँसाने के लिए, तो कम से कम बातें अलग-अलग लिखा करें। सब एक ही कहानी लिखती हैं। जैसे तुम लिखती थी कि तुम दक्षिण अफ़्रीका के गृह युद्ध से ग्रस्त एक देश लाइबेरिया से हो। तुम्हारे पिता एक बड़ी कंपनी में बहुत ऊँचे ओहदे पर थे। इस गृह युद्ध में तुम्हारे माँ-बाप दोनों ही की नृशंसतापूर्वक हत्या कर दी गई। तुम्हें मेरा परिचय, ई-मेल आईडी फ़ेसबुक के ज़रिए मिली। 

‘मेरी प्रोफ़ाइल से तुमने मुझे भला आदमी समझा और अपनी बात शेयर करना चाहती हो। तुम्हारे पेरंट्स ने करोड़ों डॉलर जो तुम्हारे लिए छोड़े हैं वह तुम लेना चाहती हो। क़ानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए तुम्हें मेरी मदद चाहिए। इसके एवज़ में करोड़ों रुपए मुझे भी मिल जाएँगे। तुम इस समय डकार, सेनेगल में एक रिफ्यूजी कैंप में बड़ी दयनीय हालत में हो। 

‘जानती हो ऐमिलियो इस तरह की मेल के बारे में मेरे तमाम दोस्त पहले ही बताते रहे थे कि इन फ्रॉडियों के चक्कर में फँस कर अपना एकाउंट नंबर ना दे देना। कहीं उनकी भावुक कर देने वाली कहानी में फँस कर मोटी रक़म उनके एकाउंट में डाल मत देना। ऐमिलियो मेरे दोस्त मुझे यह एडवाइस विशेष रूप से ज़्यादा देते हैं, क्योंकि वह यही मानते हैं कि कोई भी लड़की मुझे आसानी से फँसा सकती है। मैं इस बारे में यही कहूँगा कि मेरे बारे में ऐसा सोचने वाले पूरी तरह ग़लत हैं। मेरे बारे में जब जानोगी, चौथाई भी जान लोगी तो तुम यही कहोगी कि बात तो इसके उलट है। बल्कि लड़कियाँ मेरी तरफ़ खिंची चली आती हैं। 

‘वो ही मेरी तरफ़ अचानक ही दौड़ पड़ती हैं। तुम चाहो तो अपना ही उदाहरण ले लो। अपनी काल्पनिक दुःख भरी कहानी लिख कर, अपने बदन की भड़कीली तस्वीरें भेज कर, मुझे फँसा कर ठगने की कोशिश में लगी थी। तुम भी बाक़ी लड़कियों की ही तरह ठगने की कोशिश कर रही थी। अपने को एक पॉस्टर के नियंत्रण में होना बताया। उनका नंबर वग़ैरह सब दिया। अपने चंगुल में फँसाने के लिए तुमने यह भी कहा कि रिश्तों के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि मैं चालीस का हूँ और तुम चौबीस की। 

‘सवा पाँच फ़ीट की गेंहुए रंग की तुम मेरे साथ जीवन बिताने को तैयार हो। मैं जिस जगह चाहूँ वहाँ तुम्हें लेकर चल सकता हूँ। भावनाओं को ब्वॉयलिंग प्वाइंट तक पहुँचाने के लिए तुमने यह भी लिखा कि अब तक तुम्हारा कई लोग शारीरिक शोषण कर चुके हैं। पॉस्टर भी अन्य कई लड़कियों के साथ-साथ तुम्हारा भी आए दिन बर्बरतापूर्वक शारीरिक शोषण कर रहा है। सच बताऊँ कि तुम्हारी बातें कई बार यक़ीन कर लेने को विवश कर देती हैं। लेकिन तुम सारी लड़कियों की एक-सी कहानी ने क्योंकि पोल खोल रखी है तो यक़ीन करने का कोई प्रश्न ही नहीं है। 

‘हाँ तुम्हारे और बाक़ी लड़कियों में एक फ़र्क़ था कि तुम पैसे ऐंठने के अलावा यह भी देख रही हो कि कोई ऐसा भी मित्र मिले जिससे कुछ और भी बातें हो सके। 

‘यही वजह है कि हम-तुम यहाँ तक बढ़ सके। नहीं तो बाक़ी लड़कियों का हाल यह है कि पहले अपनी कहानी शॅार्ट में भेजती हैं। परिचय भी नहीं है लेकिन माय डियर, डियरेस्ट, माय लव से शुरू करती हैं। यदि रिप्लाई में हाय भी लिख दो तो दिन बीतने से पहले विस्तृत स्टोरी दो-तीन या फिर चार फोटो के साथ आ जाती हैं। लोगों को फँसाने के लिए काफ़ी बोल्ड फोटोज़ भेजी जाती हैं। साथ ही डिटेल स्टोरी, वर्क, हॉबी, लाइक्स आदि के बारे में पूछा जाता है। 

‘जानती हो ऐमिलियो मैंने जैसे तुम्हें जवाब दिया था वैसे ही बाक़ियों को भी दिया था। हाय माई डियर, हाय माई लव। और जब मुझसे डिटेल माँगी गई तो इतना ही लिखा कि मैं एक राइटर हूँ। लिखना, पढ़ना, घूमना, मेरा शौक़ है। सेक्स मेरा फ़ेवरेट गेम है। मैं इस गेम को बहुत पसंद करता हूँ। और यह भी लिखा कि मैं तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूँ। तुम अपनी फ़ुली नेकेड फोटो भेजो। मैं तुम्हारे बूब्स, थाई एस्ट्रा-एस्ट्रा देखना चाहता हूँ। बस ऐमिलियो मेरे यह लिखते ही लड़की ग़ायब हो जाती। फिर दुबारा उसकी कोई मेल नहीं आती। 
मैंने तुम्हें भी यही सब लिखा लेकिन तुम भागी नहीं। तुमने बड़ा बैलेंस्ड जवाब दिया कि अभी हमारी फ्रैंडशिप उस लेवल की नहीं है कि तुम अपनी नेकेड फोटो भेज सको। इसके बाद हमारी-तुम्हारी मेल्स लंबी होती गईं। और बातें खुलती गईं। फिर जल्दी ही तुम्हें जब लगा कि सच्चाई मुझे मालूम है तब तुम मुखौटा उतार कर असली रूप में सामने आई। 

‘मुझे यक़ीन तब भी नहीं था। इसलिए मैंने कई तरह से तुम्हें चेक किया। और तुम हर बार पास होती गई। तब मैंने भी तुम्हें अपनी हक़ीक़त बताई कि मैं इंडियन रेलवे की गुड्स ट्रेन में गार्ड हूँ। अनमैरिड हूँ। बाक़ी जो शौक़ पहले लिखे थे वही हैं। इस बार भी मैंने तुमसे मन चाही फोटो माँगी लेकिन तुमने नहीं भेजी। बाद में बहुत कहने पर तुमने जैसी मैंने माँगी थी वैसी ही नेकेड फोटो भेजी। अब तुम चाहती हो कि मैं तुम्हें यह कैसे विश्वास दिला सकता हूँ कि मैं वाक़ई तुम्हें चाहता हूँ। तुमसे वाक़ई मित्रता चाहता हूँ। 

‘तुम बार-बार मुझसे यह कह रही हो कि मैं चालीस का होकर अपने से आधी उम्र की, तुम्हें कैसे लव कर सकता हूँ? मैं अब तक सिंगिल ही क्यों हूँ? अपने अब तक के जीवन कीे तमाम न भुलाई जा सकने वाली बातें तुमसे शेयर करूँ। जिससे तुम यह निष्कर्ष निकाल सको कि मैं तुम्हारे लिए कुछ करने की हिम्मत रखता हूँ। तुम्हें लेकर मैं ज़िन्दगी के बहुत से क़दम साथ चल सकता हूँ। 

‘ऐमिलियो जब तुमने अन्य लड़कियों की तरह यह लिखा था कि हमारे रिश्तों के बीच कोई बाधा नहीं आएगी तो मैं अपनी हँसी रोक नहीं पाया था। लेकिन तुम्हारी बातों से लगता है वाक़ई तुम्हारे साथ एक ख़ास रिश्ता या ये कहें लिवइन में मुझे कोई अड़चन नहीं आएगी। मैं तुम्हें साथ लेकर अपने देश में बहुत सी जगह घूमने चल सकता हूँ। 

‘मेरा परिवार कोई बाधा नहीं बनेगा। क्योंकि परिवार से मेरा कोई ख़ास रिश्ता रहा ही कहाँ है? हुआ यह कि मेरी लापरवाही भरी ज़िन्दगी ने मेरे और परिवार के बीच रिश्तों की डोर बहुत पहले ही कमज़ोर कर दी। क्यों कि मेरे छोटे भाइयों की नौकरी पहले लग गई तो शादी का ज़ोर पड़ने लगा। मैं अपनी आवारगी में मस्त था। गार्जियन का यह दबाव मैं ज़्यादा दिन नहीं झेल पाया कि मैं कुछ करूँ जिससे मेरी शादी हो, फिर छोटों का नंबर आए। 

‘मैंने ग़ुस्से में कह दिया कि मुझे जब जो करना होगा तब करूँगा। छोटों की शादी कर दो। आख़िर यही हुआ। सारे छोटे भाई-बहनों की शादी हो गई। मैं तब भी मस्त-घूमता रहा। मुझे लगा कि शादी-वादी करके बँध कर रहना मेरे जैसे लोगों के लिए सम्भव नहीं है। इस बीच मैं भाइयों से ज़्यादा कमाता था और वैसे ही उड़ा भी देता था। ऐमिलियो मैं कई-कई महीने घर से ग़ायब रहता था। बाद में तो हालत यह हो गई कि घर वालों ने यह भी पूछना बंद कर दिया कि कब आओगे? कहाँ हो? सब अपने-अपने परिवार में व्यस्त हो गए। मैं और ज़्यादा मस्त हो गया कि बढ़िया है, बेवजह की पूछताछ से मुक्ति मिली। 

‘ऐमिलियो हमारे देश, समाज में जीवन में क़िस्मत का रोल बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। मैं अब भी आश्चर्य में पड़ जाता हूँ, जब अपनी हालत देखता हूँ। कि आख़िर मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कब और कैसे पूरी हो गई। मैंने आर्टिस्टों के लिए ऑर्ट्स कॉलेज में मॉडलिंग भी की है। रेलवे में गार्ड बनने से पहले मुंबई के एक बड़े प्रतिष्ठित होटल में सिक्योरिटी इंचार्ज रहा। इसके बाद गोवा के एक ख़ूबसूरत बीच पर दो लोगों के साथ मिलकर रेस्टोरेंट भी चलाया। 

‘इन्हीं में एक बंदा ऐसा था जो शेयर मार्केट का माहिर खिलाड़ी था लेकिन ज़बरदस्त शराबी भी था। उसी के चक्कर में ज़ोरदार ढंग से कमाई कर रहा रेस्टोरेंट रातों-रात छोड़कर भागना पड़ा। नहीं तो स्थानीय गुंडों द्वारा मार ही दिया जाता। तुम बार-बार पूछती हो कि सरकारी नौकरी से पहले मैंने क्या किया? तो यही कहूँगा कि मैंने बहुत कुछ किया। इतना कुछ कि सब कुछ एक समय में ही याद कर पाना, लिख पाना सम्भव नहीं है। 

‘अभी जो याद आ रहा है वह बता रहा हूँ। इस नौकरी से पहले जहाँ मैंने सबसे ज़्यादा कमाई की वह क्षेत्र है दलाली का। मैं यहाँ की राजधानी दिल्ली में अपने ही जैसे एक मित्र के साथ वहीं के एक प्रॉपर्टी डीलर के साथ लग गया। क़िस्मत ने साथ दिया और कुछ ही महीनों में मैंने मोटी रक़म कमा ली। इतनी कि दिल्ली ही के पास गौतम बुद्ध नगर में एक ठीक-ठाक मकान ख़रीद लिया। थ्री बीएचके का यह मकान आठ बरसों से भी ज़्यादा समय तक मेरे कई दोस्तों का भी समय-समय पर ठिकाना बना रहा। तीन-चार साल पहले तक यहाँ हर छुट्टी में पार्टी-सार्टी अय्याशी होती रहती थी। रेव पार्टी भी कह सकती हो। बस एक चीज़ जो यहाँ नहीं होती थी वह थी ड्रग्स। 

‘नशे के नाम पर शराब, सिगरेट तक सीमित था। सेक्स भी जम के था। मगर प्रॉपर्टी डीलिंग के धंधे से अचानक ही क़दम खींचने पड़े। इसके साथ ही यह पार्टी भी ख़त्म हो गई। इस धंधे से निकलने के बाद मैं कई महीने बेकार रहा। पैसे तेज़ी से ख़त्म हो रहे थे। इस बीच स्थिति यह आयी कि बाइक रखी और अपनी एस यू वी  बेच दी। 

‘प्रॉपर्टी डीलिंग में इस एस यू वी ने बड़ा साथ दिया था। इसको बेचने से मिले पैसे से कई महीने ख़ूब मज़े किए। पहाड़ों पर घूमने निकल गया। रोहतांग दर्रा, लेह लद्दाख तक गया। फिर लौटा तो फ़ॉरेस्ट सफ़ारी पर निकल गया। वहाँ से लौटा तो एक मित्र के साथ पड़ोसी देश नेपाल गया। वहाँ की राजधानी काठमांडू में महीने भर घूमता रहा। वही काठमांडू जो कुछ साल पहले अप्रैल में भूकंप से तबाह हो गया था। 

‘मेरा वह दोस्त वहीं नेपाल का रहने वाला है। उसका परिवार वहाँ बड़ा बिज़नेसमैन है। मेरा दोस्त कुछ-कुछ मेरी ही तबियत का है। काम-धाम मेहनत से करता है। जेब में मोटी रक़म इकट्ठा होते ही मौज-मस्ती में तब तक लगा रहता है जब तक कि सारा पैसा फुर्र नहीं हो जाता। वह और मैं जब तक रहे नेपाल में दोनों ने मिलकर घूमने-फिरने, लड़कियों के साथ अय्याशी, खाने-पीने, होटल-बाज़ी में ख़ूब पैसा और समय ख़र्च किया। 

‘जब हम दोनों का पैसा ख़त्म हो गया तो वह वहीं रुक गया और मैं यहाँ अपने देश लौट आया। ऐमिलियो तुम यदि मेरी इन बातों से यह सोच रही हो कि मेरा सारा पैसा और समय मौज-मस्ती में ही ख़र्च होता है और बीतता है, तो काफ़ी हद तक सही हो। और यह भी बता दूँ कि यह सब रेलवे में नौकरी में आने के वर्ष भर पहले तक रहा। 

‘मैं नहीं जानता कि तुम्हारी यह बातें कितनी सच हैं कि तुम इंडिया मेरे साथ समय बिताने आओगी। मेरे साथ कोई भी संबंध साफ़-साफ़ कहूँ कि सेक्स संबंध में भी तुम्हें ख़ुशी होगी। भारत मेरे साथ ऐसे ही संबंधों के साथ घूमना चाहोगी। कुछ समय ऐसे संबंधों के साथ जीते हुए तुम्हें यदि यह लगता है कि तुम मेरे साथ लाइफ़ पार्टनर बनकर रह सकती हो तो फिर इंडिया में ही रहोगी। मेरे साथ रहोगी। यहीं की नागरिकता ले लोगी। मेरे साथ ही जीवन बिताओगी। 

‘मैं तुम्हें स्पष्ट बताऊँ कि मैं तुम्हारी इन बातों विशेष रूप से इंडिया में रहने की बात पर पूरा यक़ीन नहीं कर पा रहा हूँ। और जहाँ तक मेरे मन की बात है तो मैं भी वाक़ई तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ। लेकिन हम दोनों कितना ईमानदार हैं अपनी बातों में यह तो तभी पता चल पाएगा जब तुम इंडिया आओगी। मेरे साथ रहोगी। 
हाँ, इसके पहले बातों के ज़रिए हम दोनों जो विश्वास आपस में क़ायम कर सकते हैं, उसी क्रम में तुम्हें बता रहा हूँ, कि रेलवे ज्वाइन करने से पहले मैं एक बार सख़्त बीमार पड़ गया। 

‘लापरवाह स्वभाव के कारण बीमारी ने गंभीर रूप धारण कर लिया। मैं गौतमबुद्ध नगर के अपने मकान में अकेले पड़ा था। संयोग से पैसे भी सब ख़त्म हो गए थे। मैं इतना वीक हो गया था कि ज़्यादा चल-फिर नहीं सकता था। घर में माता-पिता गुज़र चुके थे। भाइयों से बरसों से कोई रिश्ता-नाता नहीं था। जो दोस्त थे वह भी अब तक ज़्यादातर सेटल हो चुके थे। अब किसी के पास मेरे लिए ना तो समय था और ना उधार देने के लिए पैसा। दवा की कौन कहे खाने के लिए भी लाले पड़ने लगे। 

‘जितने दोस्तों को फोन करता सब कोई ना कोई बहाना बना कर निकल देते। हालत यह हुई कि दोस्तों ने फोन उठाना ही बंद कर दिया। सही कहूँ ऐमिलियो तब मैंने समझा कि ये सब मेरे दोस्त हैं ही नहीं। ये सब पैसे के, मौज-मस्ती के साथी थे। अब ये सब मेरे पास है नहीं तो कोई क्यों आएगा? तभी मैंने यह समझा कि इसमें ग़लती तो मेरी ही है। 

‘वास्तव में मैंने कोई दोस्त जीवन में बनाए ही कहाँ? मेरा मन तब खीझ उठा कि मेरे जैसा आदमी दोस्त कहाँ बना सकता है। जो अपने को अपने परिवार से जोड़ कर ना रख सके वह क्या दोस्त बनाएगा? तभी मैंने यह तय कर लिया कि यदि जांडिस से जीत गया तो अपनी लाइफ़ स्टाइल बदलूँगा। अपने को यूँ कटी पतंग की तरह आसमान में पत्ताते हुए कहीं भी गिर कर नष्ट हो जाने के लिए नहीं छोड़ दूँगा। 

‘उस समय खाने की कमी और दवा जो कई दिन से बंद थी उसके चलते मेरी तबियत एकदम बिगड़ गई। मेरे सामने अचानक ही बाइक बेचने का ख़याल आया। लेकिन यह तुरंत नहीं हो सकता था। मुझे तुरंत पैसे चाहिए थे। हैरान-परेशान मैंने चेन, अँगूठी, घड़ी निकाली कि मार्केट में बेच दूँ। 

‘तैयार होकर निकलना चाहा तो निकल ही न सका। चक्कर आते रहे। बेड पर ही पड़ा रह गया। तब मुझे लगा कि अब मेरा बचना सम्भव नहीं। मोबाइल में नाम चेक नहीं कर पा रहा था। फिर उस समय परिवार की याद आई, मन भाइयों को फोन करने को हुआ। जिनसे मैं कई साल से कभी मिला ही नहीं था। फोन पर बात भी नहीं की थी। मेरे पास भाइयों से बात करने के लिए कोई कॉन्टेक्ट नंबर ही नहीं था। 

‘मौत क़रीब देख कर उस दिन मैं टूटने लगा। मैं आख़िरी कोशिश करते हुए फिर किसी दोस्त को फोन करने की कोशिश करने लगा। लेकिन नॉन पेमेंट के कारण मोबाइल की सर्विस बंद हो चुकी थी। मुझे लगा कि जैसे मेरे ख़िलाफ़ साज़िश हो रही है। मुझे हर तरफ़ से मारने का प्रयास हो रहा है। और तब मैंने मन ही में निश्चय किया कि इतनी आसानी से ख़ुद को मरने नहीं दूँगा। मैं पूरी ताक़त लगाकर बेड से फिर उठा कि किसी तरह घर से बाहर सड़क पर निकलूँ। जेब में अँगूठी, चेन, रख ली थी। 

‘मगर दस-बारह क़दम भी न चल पाया और ज़मीन पर गिर पड़ा। मैं अर्ध-बेहोशी की हालत में पड़ा था। इसे तुम मेरा भाग्य कह सकती हो या फिर संयोग कि आधे घंटे बाद ही मेरी एक परिचित आई, जिससे क़रीब दो वर्ष से बात तक नहीं हुई थी। वह मेरे ही एक मित्र के साथ लिवइन में दिल्ली में रहती थी। अचानक ब्रेकअप हुआ और वह सड़क पर आ गई। नौकरी उसकी कुछ महीने पहले ही गई थी। वह मुझसे मदद माँगने आई थी लेकिन हुआ उल्टा कि उसे मेरी ही मदद करनी पड़ी। 

‘ऐमिलियो उसी ने किसी तरह डॉक्टर वग़ैरह बुलाया। कुछ दवा, खाना-पीना मिलने के बाद मैं बोलने लायक़ हुआ, तब दोनों ने एक दूसरे की समस्या समझी। समय की यह ज़रूरत थी कि दोनों एक दूसरे की मदद करें। मजबूरी ने हम दोनों को एक कर दिया। उस मित्र शिरीन की मदद से घर का कई सामान बेचा। तब कहीं जाकर खाना-पीना और मेरी दवा हो सकी। मुझे ठीक होने में महीना भर लग गया। शिरीन पैसे से पूरी तरह ख़ाली थी। लिवइन में ठगी का शिकार हुई थी। उसने जी जान से मेरी सेवा कर मुझे ठीक कर दिया था। 

‘देखते-देखते हमारे उसके रिश्ते लिवइन में बदल गए। शिरीन मेरे ठीक होते ही जी जान से नौकरी ढूढ़ने में लग गई। उसी के कहने पर मैंने भी कुछ जगह एप्लाई किया। शिरीन के आने से एक बात यह हुई थी, कि उसने मुझ पर बराबर दबाव बनाया कि मैं अपनी लाइफ़ पर ध्यान दूँ, ख़ानाबदोशी छोड़ दूँ। शिरीन की जल्दी ही नौकरी लग गई। उसने घर का, मेरा सारा ख़र्च उठाना शुरू कर दिया। इधर मैं भी इधर-उधर से अपने भर का जल्दी ही कमाने लगा। 

‘इस बीच जब कभी ज़्यादा कमाई हो जाती तो शिरीन को ख़र्च करने के लिए मना कर देता। देखते-देखते दो-ढाई साल निकल गए। इस दौरान मैंने फिर से नई बाइक ख़रीद ली। इसी बीच एक दिन रेलवे में नौकरी का एप्वाइंटमेंट लेटर मिला। यह फ़ॉर्म मैंने कब भरा था। कब इग्ज़ाम दिया था मुझे कुछ याद नहीं था। ये मेरे लिए अंधे के हाथ बटेर लगने जैसा था। मैं ट्रेनिंग वग़ैरह करके गॉर्ड बन गया। 

‘मगर ऐमिलियो अगर ज़िन्दगी इतनी ही आसान होती तो दुनिया में सभी ख़ुश न होते। हम भी, तुम भी। यह जो हम दोनों परिचित हुए आपस में तो यह भी तो परेशानियों के कारण ही हुए। तुम पैसों की अपनी अधिक ज़रूरत के लिए यह जो जाल फैलाती हो यह आख़िर क्यों फैलाती? अगर तुम ख़ुश होती। तो मेरे साथ अब नई समस्या शुरू हो गई। 

‘हमारे शिरीन के बीच मनमुटाव शुरू हो गया। वजह नई नौकरी में शिरीन का एक साथी था। उसकी नज़दीकी शिरीन से बढ़ती जा रही थी। शिरीन को भी मैं उसकी तरफ़ बढ़ते हुए पा रहा था। इसी के चलते हमारे बीच झगड़ा शुरू हो गया। फिर हम एक छत के नीचे रहने में असमर्थ हो गए। आख़िर एक दिन शिरीन अपने उसी साथी के साथ चली गई। फिर जल्दी ही उससे शादी कर ली। 

‘बाद में उसके दो बच्चे हुए। ऐमिलियो शिरीन जब मुझे छोड़कर गई तब भी उसे मैं बहुत चाहता था। मैं नहीं चाहता था कि वो छोड़कर जाए। लेकिन क्यों कि वह शादी करके पारंपरिक दंपती की तरह जीवन बिताना चाहती थी और उसको इसके लिए अपना वह साथी मुझसे ज़्यादा उपयुक्त लगा तो वह चली गई। उसके प्रेम में मैं अनफ़िट था। उसके इस डिसीज़न से मुझे काफ़ी शॉक लगा। मैं अपनी गॉर्ड की नौकरी से भी ऊब रहा था। कहने को तो ड्यूटी आठ घंटे की है लेकिन अमूमन यह बारह घंटे की हो ही जाती है। 

‘ऐमिलियो यह बड़ी ऊबाऊ नौकरी है। सोचो एक गुड्स ट्रेन। जिसमें सौ से ऊपर डिब्बे। ड्राइवर और गॉर्ड के बीच सैकड़ों मीटर की दूरी। गॉर्ड का छोटा सा डिब्बा। उसी में मैं अकेला। गर्मियों के दिन में हालत ख़राब हो जाती है। और कड़ाके की ठंड में भी। कई बार जब रात के अँधेरे में किसी वजह से ट्रेन बियाबान जंगल में खड़ी हो जाती है तो हालत और ख़राब हो जाती है। तब मैं ज़रूरत भर को ही केबिन से बाहर निकलता हूँ। अपनी लंबी टार्च लेकर इंजन की तरफ़ देखता हूँ। यदि ड्राइवर मेरी तरफ़ आ रहा है तो मैं भी उधर ही चल देता हूँ। 

हम दोनों बीच रास्ते में मिलते हैं। जो भी स्थिति रहती है उस पर बात करके वापस अपने डिब्बे में। बड़ी कठिन इस ड्यूटी ने शुरू के दिनों में मुझे बड़ा परेशान किया। मन किया कि छोड़ दूँ नौकरी। लेकिन जांडिस के समय जो क्रिटिकल पोज़ीशन मेरी हुई थी उसकी याद आते ही मैं काँप उठता। और नौकरी छोड़ने की बात से ही तौबा कर लेता। सोचता उस बार तो संयोग से शिरीन आ गई। पूरे मन से मेरी केयर की। एक तरह से मेरी जान उसी ने बचाई। इसीलिए मैं उससे इमोशनली बहुत अटैच हो गया था। यही कारण था उससे ब्रेकअप पर मुझे बहुत दुख हुआ था। जब कि उसके पहले मुझे किसी भी औरत से अलग होने पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। 

‘यह रीपिटीशन ही लग रहा है मगर फिर भी कह रहा हूँ कि तुम अपने बारे में इधर बीच कुछ ऐसी-ऐसी बातें मेल में ज़्यादा बता रही हो और साथ ही एक तरह से मुझ पर प्रेशर ज़्यादा डाल रही हो कि मैं भी लाइफ़ की हर उस घटना को जो अब भी मुझे याद है वह तुम्हें ज़्यादा से ज़्यादा बताऊँ। जिससे तुम मेरे पास आने से पहले मुझे अच्छी तरह से समझ लो। पिछली मेल में तुमने बताया कि इधर बीच एक पूजा स्थान के पुजारी ने जहाँ तुम आजकल हो डकार, सेनेगल में, तुम्हारा कई बार शोषण किया है। इसके पहले जब तुम मात्र तेरह-चौदह की थी तभी तुम्हारे एक रिश्तेदार ने तुम्हारा सेक्सुअल हैरेसमेंट किया था। 

‘तुम मुझे यह बताने के साथ ही ज़ोर देकर पूछ रही हो, कि मैंने अपने अब तक के जीवन में कितनी लड़कियों का सेक्सुअल हैरेसमेंट किया? सच कहूँ मुझे तुम्हारे इस बचपने पर हँसी आ रही है। किसी भी देश में ऐसा करना निश्चित ही अपराध होगा। अपराधी को सज़ा दी जाएगी। तो फिर कोई कैसे लिखकर किसी के भी सामने यह स्वीकार कर लेगा कि उसने जीवन में कभी ऐसा किया। 

‘जहाँ तक बात मेरे देश की है तो यही कहूँगा कि अन्य देशों की तरह हमारे देश में भी बचपन में ही लड़कियों के सेक्सुअल हैरेसमेंट की घटनाएँ सामने आती हैं। लड़के भी अक़्सर शिकार हो ही जाते हैं। औरतों द्वारा भी शोषण की घटनाएँ सामने आती हैं। तुम यह पढ़ कर चौंक जाओगी कि मैं स्वयं चौदह की उम्र में एक महिला द्वारा सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार हुआ था। यह बात मैं आज पहली बार किसी से शेयर कर रहा हूँ। मेरा शोषण तो मेरे ही घर में, मेरे ही किराएदार की मिसेज ने किया था। पूरे एक साल तक। जबकि उसके तीन बच्चे थे। 

‘मकान छोड़ने के बाद भी वह मुझसे संपर्क बनाए रखने की कोशिश करती रही। तुम्हारे मन में यह क्वेश्चन आ रहा होगा कि मैंने अपने पेरंट्स से शिकायत क्यों नहीं की? तो ऐमिलियो सच यह है कि मेरे लिए यह एक अनोखा अनुभव था। जो अनायास ही मेरे हाथ लग गया था। बिना प्रयास ही वह मिल गया जिसे सोचा ही नहीं था। मुझे आश्चर्य-मिश्रित मज़ा आ रहा था। तो मैं शिकायत क्यों करता? 

‘कुछ महीनों के बाद तो मैं ही अक़्सर उससे ख़ुद बोलता सेक्स के लिए। तो वह प्यार से दाँत दबा कर मेरे गाल को नोंच लेती। कभी हल्के से काट लेती। वह उम्र में मुझसे क़रीब बीस साल बड़ी थी। ऐमिलियो जैसा कि तुमने बताया कि फ़र्स्ट रेप के बाद जब तुम सदमे से उबर गई साल भर में, तो इसके बाद सेक्स के अनुभव के लिए तुम्हारे मन में अक़्सर किसी पार्टनर की इच्छा होने लगी थी। 

‘मैं अपने बारे में यह कहूँगा कि उस औरत ने जब पहला अटेम्प्ट किया तो उसे मैं शोषण मान सकता हूँ। उस समय मैं ऐसी स्थिति से गुज़र रहा था जो मुझे एक अनजान दुनिया से गुज़रने वाला अनुभव दे रहा था। हाँ पहली बार के बाद उसने जितनी बार किया उसे मैं शोषण नहीं मानता, क्योंकि उसमें मेरी भी सहमति रहती थी। मैं भी उतना ही मज़ा लूटता था जितना वो। 

‘ऐमिलियो मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि तुम मेरी बातों से कैसे यह सुनिश्चित कर लोगी कि तुम मेरे पास आने पर जो कुछ जैसा चाहती हो वह तुम्हें मिल जाएगा, इसका तुम सही-सही अंदाज़ा लगा लोगी। मेरी बातें कितनी सच हैं यह तुम किस तरह चेक कर पाओगी? लेकिन यह समस्या क्यों कि मेरी नहीं है, इसलिए मैं इस पर और कुछ कहने की बजाय इसे तुम पर छोड़ता हूँ। 

‘नौकरी में ड्यूटी के दौरान अब तक हुई किसी न भूलने वाली घटना को लिखने को भी तुमने कहा। तो ऐसी ही एक घटना बता रहा हूँ। जो मुझे अपने डिब्बे में जाते ही याद आ जाती है। हालाँकि नौकरी में रहते हुए इसे डिस्क्लोज़ करना अपने हाथों जानते-बूझते हुए अपनी नौकरी को ख़तरे में डालने जैसा है। लेकिन चलो ठीक है, तुम्हारे आग्रह के सामने यह ख़तरा भी उठा ही लेता हूँ। सच बताऊँ कि पता नहीं क्यों तुम्हारी बातें टाल नहीं पा रहा हूँ। हालाँकि मैं अब भी यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि अपनी यह बातें, जो इतनी मेहनत से इतना समय ख़र्च कर, मैं तुम्हें बता रहा हूँ इनकी तुम्हारी नज़रों में कितनी अहमियत होगी। 

‘ख़ैर यह बात उस समय कि है जब नौकरी में आए मुझे कई बरस हो गए थे। शिरीन से ब्रेकअप हो चुका था। मैं जीवन में बड़ा अकेलापन महसूस कर रहा था। गॉर्ड के डिब्बे में तो यह एकदम सिर पकड़ लेता है। स्थिति बड़ी बिगड़ती जा रही थी। मुझे लगा कि मैं कहीं डिप्रेशन में ना चला जाऊँ। कोई दोस्त वग़ैरह तो मेरे रह नहीं गए थे। जिनसे मैं अपनी समस्या शेयर करता। गॉर्डों, ड्राइवरों के लिए जिस जगह उनकी ड्यूटी ख़त्म होती है वहीं विभाग ने उनके रुकने के लिए रिटायरिंग रूम बना रखे हैं। मैं भी इनमें रुकता ही हूँ। 

‘ऐसे ही एक बार नॉर्थ इंडिया के एक शहर में ड्यूटी ख़त्म करके रुका। हालात ऐसे बने कि दो दिन रुकना पड़ा। वहीं एक कर्मचारी के साथ शाम को घूमने निकल गया। मस्त-मौला, खाने-पीने वाला वह आदमी बड़ा दिलचस्प इंसान था। बातचीत में इतनी जल्दी घुल-मिल गया कि मेरी ज़ुबान पर निस्संकोच यह बात भी आ गई कि फ़िलहाल मैं सिंगिल हूँ। इसके पहले कई महिलाएँ जीवन में आईं लेकिन सेटिल होकर रहना पसंद नहीं इस लिए ऐसे ही चल रहा है जीवन। 

‘ऐसा पहली बार हुआ है कि दो-तीन साल से जीवन में कोई महिला नहीं है। और शिरीन के साथ बात कुछ अलग तरह से आगे बढ़ चुकी थी इसलिए उससे अलग होना खला था। अब यह खलना मुझे अकेलेपन का कुछ ज़्यादा ही अहसास करा रहे हैं। इस पर उसने कहा, “आज आप का अकेलापन दूर कर दूँगा।” फिर क़रीब एक घंटे के बाद वह बेहद चंचल सी लड़की रात-भर के लिए मेरे रूम में लेकर आया। उसका परिचय कराते हुए बोला, “सर ये आज आपको कंपनी देंगी। इनकी फ़्रेंड मेरे साथ है। सर ये जितनी ख़ूबसूरत हैं, इनका साथ भी उतना ही ज़्यादा ख़ूबसूरत होता है। मैं इतना ज़रूर कहूँगा कि इनकी कंपनी आप बार-बार पाना चाहेंगे।” 

‘ऐमिलियो वाक़ई उसकी कंपनी इतनी शानदार थी कि मेरा सालों का अकेलापन छूमंतर हो गया। अगले दिन उस आदमी ने जो कहा उससे मैं सन्न रह गया। उसने बताया कि कई ऐसे गॉर्ड हैं जो अपने डिब्बे में ऐसी लड़कियों की कंपनी अपनी ड्यूटी यानी आठ-दस घंटे के दौरान भी लेते हैं। बस गाड़ी रुकने पर या स्टेशन पर इन्हें ज़्यादा बाहर नहीं करें। यदि होम स्टेशन पर रुक रहे हैं तो चाहें तो घर पर या फिर किसी सुरक्षित जगह ठहरा दें। अगली ड्यूटी जब शुरू करें तो फिर पूरे टाइम कंपनी लें। 

‘इस काम की जानकारी तो मुझे थी। लेकिन ऐसे आसानी से होता है यह नहीं जानता था। मैं थोड़ा हिचकिचाया। कहीं चेक हो गया तो लेने के देने पड़ जाएँगे। उसने मेरी बात को हवा में उड़ाते हुए कहा कि ‘कैसी बात करते हैं। स्टाफ़ के चलते कुछ ख़ास होता-वोता नहीं। जहाँ रोका जाए बोल दीजिए बस पिछले स्टेशन पर ट्रेन के चलते ही अचानक ही चढ़ आयी थी, ट्रेन स्पीड ले चुकी थी और इसकी ख़राब हालत के कारण हमने मदद कर दी। अगले स्टेशन पर उतरने को कह रही है। लेकिन अब मैं इसे यहीं उतार दे रहा हूँ।’ इनको क्या कहना है इसे यह अच्छी तरह जानती हैं। यह इस मामले में परफ़ेक्ट हैं। यह पिछले हफ़्ते ही एक गॉर्ड को कंपनी दे चुकी हैं।” उसके बग़ल में ही खड़ी उस लड़की पर मैंने एक नज़र डाली, वह हल्की मुस्कान लिए खड़ी थी। उतना मासूम चेहरा कभी-कभी ही देखने को मिलता है। 

‘मैं आश्चर्य में था कि यह वही मासूम है जो रात भर मँझी खिलाड़ी की तरह मेरे साथ ऐसे खेली कि जैसे मैं न जाने कितने बरसों से उसका साथी खिलाड़ी हूँ। रात याद आते ही मेरा डर, संकोच वग़ैरह रफ़ू-चक्कर हो गए। उस आदमी ने उस लड़की को मेरे डिब्बे में ट्रेन चलने से पहले पहुँचा दिया। उसके साथ एक छोटा स्ट्रॉली बैग भी था। ऐमिलियो यहाँ गर्मी के दिनों में सुपर फ़ास्ट एक्सप्रेस ट्रेंस भी घंटों लेट हो जाती हैं। 

‘गुड्स ट्रेंस का तो कोई पुरुषाहाल ही नहीं होता। उस दिन मेरी ट्रेन के साथ यही हो गया। मुझे जिस स्टेशन पर ड्यूटी दूसरे गॉर्ड को हैंड ओवर करनी थी वहाँ पहुँचते-पहुँचते बारह घंटे से ऊपर हो गए। वहाँ सबसे नज़र बचा कर पार्टनर को उतार तो लिया। लेकिन मन में यह घबराहट होने लगी कि इसे कहाँ ठहराऊँ? ऐमिलियो मैं एक बात स्पष्ट रूप से बता दूँ कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर मैं कभी निश्चिंत नहीं रहा। 

‘मैंने उससे पूछा तुम इस शहर में पहले कभी आई हो तो उसने बड़ी संजीदगी से कहा मैं पहले कभी यहाँ नहीं आई। दरअसल मैं भी उस शहर रांची से ज़्यादा परिचित नहीं था। सोचा यहाँ के किसी होटल वग़ैरह में रुका तो एक तो पैसा बहुत ख़र्च होगा। दूसरे होटल वाले संदेह की दृष्टि से देखेंगे कि अपने से आधी उम्र की लड़की लेकर आया है। स्टाफ़ के एक आदमी से मदद माँगी। उसने जो समाधान निकाला वह मेरे लिए शानदार था। होटल का सारा ख़र्चा बच गया। असुरक्षा नाम की कोई चीज़ नहीं रही। उसने अपने ही एक दोस्त के घर इंतज़ाम करा दिया। एक दिन एक रात हम वहाँ रुके। लेकिन अगली ड्यूटी मुझे एक दूसरे ही रूट की मिल गई। 

‘मैं परेशान हो गया कि अब मैं इसे कहाँ लिए-लिए घूमूँ। इसके पैसे भी बढ़ते जा रहे हैं। मैंने उससे दबे मन से कहा कि दूसरी ट्रेन से बर्थ रिज़र्व करा दूँ वह चली जाए। लेकिन उसने ना-नूकुर की। हार कर साथ लिया। लेकिन एक के बाद एक मेरी ड्यूटी ऐसी लगती गई कि उसके शहर का नंबर ही नहीं आया। अंततः एक परिचित टीटी के साथ उसे उसके शहर भेज दिया। उसका जितना पैसा बना वह मैंने उसके एकाउंट में ट्रांसफ़र कर दिया। वह सारा कैश साथ लेकर नहीं जाना चाह रही थी। कुल मिलाकर चार-पाँच दिन का उसका साथ बहुत अच्छा रहा। 

‘कुछ इतना अच्छा ऐमिलियो कि मैं जब भी उसके शहर पहुँचता तो उसे ज़रूर बुलाता। उसका साथ मुझे इसलिए ज़्यादा अच्छा लग रहा था क्यों कि वह जितने समय तक रहती उतने समय तक एक पल को भी उसके किसी भी काम में कोई प्रोफ़ेशनलिज़्म नहीं दिखता था। यह उसके ज़बरदस्त प्रोफ़ेशनल होने का ही परिणाम था। बेहद अंतरंग क्षणों के समय भी वह ऐसे मिक्सअप होती कि मानों वह लाइफ़ पार्टनर हो। उसके काम में सेक्स वर्कर होने की छाया भी नहीं होती थी। उसका साथ, उसकी सेवाएँ मैं काफ़ी समय तक लेता रहा। एक बार ऐसा हुआ कि ना चाहते हुए भी उसे छोड़ना पड़ा। 

‘असल में हुआ यह कि एक बार ऐसे ड्राइवरों से पाला पड़ गया जो ब्लैकमेल करने लगे। एक जगह वह दोनों भी हाथ साफ़ करने पर उतारू हो गए। मैंने विरोध किया तो बात बिगड़़ गई। मेरे विरोध के चलते वे मेरी पार्टनर को छू तो नहीं पाए लेकिन अगले स्टेशन पर पहुँचने से पहले उन्होंने ख़ुराफ़ात कर दी। परिणामस्वरूप मैं पकड़ लिया गया। मगर पार्टनर की चाल ने ड्राइवरों की हवा निकाल दी। उसने हमारे सीनियर से पूरे ज़ोर से चिल्ला कर कहा, “ठीक है आपको लगता है कि ग़लत है तो आप को जो ठीक लगे वह करें। लेकिन इन दोनों ने मेरे साथ रेप करने की कोशिश की। मैं गॉर्ड साहब के कारण ही बच पाई। मुझे थाने में रिपोर्ट लिखाने का मौक़ा दिया जाए।” 

‘इस बात पर वह इतना ज़्यादा ज़ोर देने लगी, इस तरह अड़ गई, चिल्लाने लगी कि दोनों ड्राइवरों की हालत ख़राब हो गई। रिपोर्ट लिखाने का मतलब था कि दोनों ड्राइवर अरेस्ट होते। पार्टनर की इस चाल ने उसे और मुझे दोनों को बचा लिया। मगर इसके बाद हमने पार्टनर की सेवा लेना बंद कर दिया। क्योंकि मुझे हर हाल में नौकरी करनी ही है। 

‘इसके बाद अब मुझे ऐसा कुछ करना होता है तो अपने घर पर ही छु्ट्टियों में ही पार्टनर अरेंज करता हूँ। ऐमिलियो मुझे लगता है कि मुझे जितनी बातें तुम्हें बतानी चाहिए वह मैंने बता दीं। बल्कि मैं यह कहूँगा कि जो नहीं बतानी चाहिए वह भी बता दीं। अब बात आती है कि तुम्हारे आने के लिए मैं टिकट अरेंज करूँ। रास्ते के लिए जो पैसे चाहिए वह तुम अरेंज कर लोगी। तो ठीक है इतना करने के लिये मैं तैयार हूँ। तुम वहाँ के किसी अथॉराइज़्ड ट्रैवेल एजेंसी की डिटेल भेजो।’ 

ऐमिलियो पर विश्वास बढ़ने के बाद मैंने पहली बार किसी को इतनी लंबी मेल भेजी। असल में स्टुडेंट लाइफ़ ख़त्म होने के बाद यह पहला अवसर था जब मैंने एक बार में इतना कुछ लिखा। इसके बाद ऐसी लंबी मेल का सिलसिला शुरू हो गया। इस तरह महीनों मेल के ज़रिए मैंने ऐमिलियो से बातचीत की। हम दोनों ने एक दूसरे का विश्वास जीता। फिर मैंने उसके लिए यही से टिकट अरेंज किया। इस दौरान भी मेरे पास बहुत सी फ़्रॉड लड़कियों की मेल आती रही और मैं सबको रिस्पॉंन्स देता रहा। और घर को ऐमिलियो के आने के उपलक्ष्य में ठीक-ठाक कराया। सब कुछ जितना हो सकता था उतना बेहतर किया। 

मगर मन के एक कोने में यह डर बराबर बना रहता कि कही यह सब बेकार ना हो जाए। आख़िर ऐमिलियो भी तो उन्हीं फ़्रॉड लड़कियों की गैंग की है। और देखा जाए तो मैं वास्तव में उसकी ठगी का शिकार ही हो रहा हूँ। जानते हुए भी वो बराबर जो कह रही है वह कर रहा हूँ। वह मुझसे पैसे न ऐंठ पाई तो क्या। मेरे ही पैसे पर दो महीना इंडिया घूमेगी। मेरे ही घर में रहेगी। मुफ़्त में मेरे जैसा गाइड होगा जो इस सारे समय उसके साथ लिवइन पार्टनर की तरह रहेगा। कुल मिलाकर चित भी उसकी, पट भी उसकी, अंटा उसके बाप का होगा। इंडिया में वह मेरी होकर रहेगी, लाइफ़ पार्टनर बनेगी, यह सब भी दूर की कौड़ी ही लग रहा है। 

इन सारी बातों पर मैं ख़ुद को यह समझा कर तसल्ली देता कि ज़िन्दगी में बहुत से अनुभव लिए। अब विदेश गए बग़ैर एक विदेशी युवती का अनुभव घर पर ही लूँगा। विदेश यदि दो महीनों के लिए जाऊँ तो भी ख़र्च कम नहीं होगा। पराए देश में किसी युवती का इस तरह पार्टनर के रूप में मिलने का तो प्रश्न ही नहीं है। वहाँ की सेक्स वर्कर को कितना साथ ले पाऊँगा? पकड़े जाने का डर अलग रहेगा। दूसरे देश में कौन मेरी हेल्प करेगा? 

देश में तो मेरा कोई मददगार है नहीं, वहाँ कौन होगा? यह उधेड़बुन उस वक़्त और ज़्यादा थी जब मैं दिल्ली इंदिरा गाँधी एयरपोर्ट पर ऐमिलियो को लेने गया। मन में बराबर यह डर बना रहा कि पता नहीं आएगी कि नहीं। कही धोखा न दे दे। मेरे टिकट पर आकर कहीं किसी और के साथ न घूमे। यहाँ कहीं मुझे पहचाने ही ना। कहीं कोई ग़फ़लत न हो इसलिए मैंने उसकी मेल की गई फोटो में से एक का ब्रोमाइड प्रिंट साथ ले लिया था। वह अमेरिकी एयरवेज़ की बोइंग 741 की फ़्लाइट से आ रही थी। कुछ समय के इंतज़ार के बाद ही बोइंग रनवे पर लैंड करता है, मेरी धड़कनें बढ़ती जा रही थीं। जहाज़ के रुकने पर दरवाज़ा खुलता है, पैसेंजर उतरना शुरू करते हैं। 

मैं उनमें ऐमिलियो को पहचानने की कोशिश करता हूँ। क़रीब दर्जन भर पैसेंजर्स के उतरने के बाद एक लड़की ऐमिलियो से मिलती-जुलती क़द काठी की उतरती नज़र आती है। मेरी धड़कनें सातवें आसमान पर पहुँच रही थीं। मेरी नज़रें उस पर गड़ गईं थीं। जैसे-जैसे क़रीब आती गई उसका चेहरा साफ़ होता गया। वह फ़ेडेड हल्के नीले रंग की जींस और स्लीवलेस टी शर्ट में थी। क्लीयरेंस के बाद वह जब आई तो मैं उसके नाम की तख़्ती लिए उसके पास पहुँचा। 

पहचान पूरी तरह पुख़्ता कर लेने के लिए मैं जिस नाम से उसे मेल में संबोधित करता था उसी नाम से उसे पुकारा, “मिस ऐमिलियो फ़्रॉम सेनेगल।” वह तुरंत ही बोलती है, ‘यस एंड यू . . .’ वह मेरे नाम का प्रोनान्सुएशन सही नहीं कर पाई थी। हम दोनों को एक दूसरे को पहचानने में देर नहीं लगी। गर्मजोशी से हम दोनों ने हाथ मिलाया। फिर हाल-चाल पूछते-पूछते उसने अचानक ही बाँहों में भर लिया तो मैंने भी उसे कस लिया। कुछ पल के बाद वह अलग होती हुई बोली, “मैं आ गई।” 

मैंने उससे कहा, “ऐमिलियो तुम मेरी ख़ुशी का अंदाज़ा नहीं लगा सकती।” मैंने देखा कि वह हँस तो रही है लेकिन उसकी आँखें भरी हैं। उसके साथ दो सूटकेस थे। एक का हैंडिल उसने और एक का मैंने पकड़ा और उसे खींचते हुए बाहर आए। मैं एक टैक्सी लेकर गया था। बाहर आने तक उसने मेरा हाथ पकड़े रखा। मैंने भी। बेहद नर्म थे उसके हाथ। 

मैं भीतर-भीतर रोमांचित हुआ जा रहा था। टैक्सी में भी वह मुझ से सट कर बैठी। बार-बार मेरे हाथों को अपने हाथों में ले-ले रही थी। रास्ते भर वह इधर-उधर देखती रही और पूछती रही कई चीज़ों के बारे में। लंबी जर्नी की थकान उसके चेहरे पर नज़र आ रही थी। रास्ते में उसने यह भी बताया कि बीच-बीच में तो कई बार ऐसा लगा कि जर्नी कैंसिल करनी पड़ेगी। लेकिन मेरी बातों से इतना इंप्रेस थी कि हार नहीं मानी और आ गई मेरे पास। 

मेल में उसकी बातों से मेरा अनुमान था कि वह बेहद बातूनी होगी लेकिन इसके विपरीत रास्ते भर उसने इतनी बात नहीं कीं, कि उसे बातूनी कहता। मैंने रास्ते में कही गाड़ी नहीं रुकवाई। उसके स्वागत के लिए मैंने पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी। घर पहुँच कर टैक्सी वाले को मैंने विदा किया। गेट का ताला खोल रहा था कि तभी उसने एक नज़र घर पर डालते हुए कहा, “नाइस हाउस रोहिट।” मैंने उसे धन्यवाद कहा और पूरे आदर के साथ अंदर ले आया। कहा, “आओ-आओ ऐमिलियो स्वागत है तुम्हारा मेरे इस घर में। इस घर में आने वाली तुम पहली नॉन इंडियन मेहमान हो।” 

उसने थैंक्यू बोलते हुए फिर मुझे गले से लगा लिया। काफ़ी देर तक मुझे बाँहों में समेटे रही। फिर अलग हुई और कहा, “रोहिट (वह मेरे रोहित नाम का उच्चारण रोहिट ही करती थी) मेरे लिए यह अविश्वसनीय क्षण हैं।” मैंने कहा, “मेरे लिए भी, हम दोनों के लिए।” उसे सोफ़े पर बैठा कर मैं किचन में गया। मिठाई और ठंडा पानी लेकर आया। उसके लिए मैंने स्पेशल मिठाइयाँ लाकर रखी थीं। उसे मिठाई बहुत पसंद आई। हम दोनों दस मिनट तक आमने-सामने बैठे बातें करते रहे। 

वह अपने रास्ते भर का अनुभव बताती रही। उसने बताया यह उसकी दूसरी हवाई जहाज़ यात्रा थी। रास्ते में एक पैसेंजर ने एयर होस्टेज से बदतमीज़ी की। मना करने पर मार-पीट पर उतारू हो गया। तो उसे एक जगह लैंड करने पर उतार कर पुलिस के हवाले कर दिया गया। 

ऐमिलियो की बातचीत से लगा कि मैंने मेल के ज़रिए इसे जितना जाना-समझा था यह उससे कही ज़्यादा पढ़ी-लिखी, समझदार सुलझी हुई है। और उम्मीदों से कही ज़्यादा फ्रैंक, बेबाक और बोल्ड तो ग़ज़ब की है। हज़ारों किलोमीटर दूर वह एक तरह से बिल्कुल अनजान आदमी के घर मेरे पास आई थी। लेकिन भीतर-भीतर सहम मैं रहा था। और वह ऐसे विहेव कर रही थी कि मानो वह अपने घर में मेरा स्वागत कर रही है। 

उसने ड्रॉइंगरूम की तारीफ़ की तो मैंने उसे पूरा घर दिखाया। वापस बैठा तो उसने घर और मेरी पसंद दोनों की तारीफ़ की। और साथ ही शॉवर लेने की बात कही जिससे थकान दूर हो। इसके पहले बाथरूम की तारीफ़ करना भी वह न भूली थी। अति उत्साह में मैंने उसे बाथरूम भी दिखा दिया था। बाथिंग टब और बड़ा होना चाहिए उसने यह भी बेहिचक कह दिया था। मैंने एक अच्छे मेज़बान की तरह उसके लिए बाथरूम में तौलिया रख दिया। बाक़ी चीज़ें वहाँ थीं ही। जाते वक़्त उसने जींस टी-शर्ट उतार कर वहीं रखे सूटकेस पर ही रखे और बाथरूम में चली गई। 

नहा कर तौलिया लपेटे आई और सोफ़े पर बैठ गई। वह तौलिया उतना बड़ा नहीं था कि एक सवा पाँच फ़ीट लंबी भरे-पूरे जिस्म की लड़की को ठीक से ढँक पाती। लेकिन फिर भी बहुत कुछ ढके हुए थी। फिर बातचीत का दौर शुरू हुआ तो उसकी इच्छानुसार मैं एक वर्ल्ड वाइड फ़ेमस कंपनी के चिकेन लाली पॉप और दो कैन चिल्ड बीयर फ़्रिज से ले आया। बीयर के साथ चिकेन का मज़ा लेते हुए ही एक चक्कर शहर का लगा लेने का प्लान फ़ाइनल हो गया। घूमने की बात शुरू होने पर मेरे दिमाग़ में यह बात आई कि कुछ देर पहले तक तो यह थकान की बात कर रही थी। मगर इससे ज़्यादा मैं यह सोच रहा था कि यह तौलिए से निकल कर कपड़े पहन लेती तो अच्छा था। मैं बड़ा ऑड फ़ील कर रहा था। 

इस बीच मैं जान-बूझकर ऐसे एंगिल पर बैठा कि बार-बार पहलू बदलते उसके शरीर पर मेरी नज़र उलझे नहीं। और वह मुझे बदतमीज़ ना समझ ले। उसकी हँसी मुझे बड़ी मोहक लग रही थी। वह खुल कर खिलखिलाकर हँसती थी। जब काफ़ी टाइम होने पर भी उसने चलने की बात ना उठाई तो मैंने उसे याद दिलाया कि “घूमने को लेकर क्या इरादा है?” तो उसने कहा कि, “अभी बड़ी थकान महसूस हो रही है। सोच रही हूँ थोड़ा आराम कर लूँ तब चलूँ।”

मैंने कहा ठीक है ऐसा ही करते हैं। मन ही मन सोचा चलो इसी बहाने कपड़े तो पहन लेगी। लेकिन नहीं वह वैसे ही बेडरूम में जाकर लेट गई। मैंने एसी ऑन कर दिया था। मैं ड्रॉइंगरूम में बैठा टीवी देखता रहा। और डरता रहा कि कोई बखेड़ा ना खड़ा कर देे। दुनिया भर में यौन उत्पीड़न के तमाम केस और वसूली के लिए तमाम फ़र्ज़ी मामलों को सुन-सुन कर मैं पहले ही बहुत सतर्क था। 

घर का कोना-कोना मैंने सी-सी टीवी कैमरे की रेंज में कर रखा था। डर यह था कि यदि कल को इसने कुछ ऐसा-वैसा किया तो इसके ज़रिए मेरे पास अकाट्य प्रमाण तो होंगे। टीवी देखते-देखते मेरे दिमाग़ में आया कि आख़िर मुझे क्या हो गया है कि मैं इस ऐमिलियो के पीछे इतना पगलाया हुआ हूँ। इसके लिए इतनी दिवानगी क्यों है? 

सच तो यही है कि यह दिवानगी कोई भावनात्मक लगाव के चलते नहीं है। यहाँ तो भावनात्मक लगाव का कोई नाम ही नहीं है। यह दिवानगी तो सिर्फ़ इसके शरीर को लेकर है कि यह एक विदेशी है। बड़े आश्चर्यजनक ढंग से देखते-देखते घर आ पहुँची है। और वह भी तो मुफ़्त में भारत घूमने के उद्देश्य से आई है। 

साथ में घूमने के लिए कोई चाहिए तो मैं मिल गया। रहने के लिए मेरा घर। और उद्देश्य तो अभी भी पता नहीं है। पता नहीं घूमने आई है या लूटने के दूसरे किसी अजीबोग़रीब प्लान के साथ आई है। अभी कुछ दिन पहले ही तो मीडिया में आया था कि दो नाइजीरियन ने यहाँ एक लड़की से लाखों रुपए ठग लिए। और पैसा माँगा तो लड़की ने पुलिस की मदद ली और दोनों पकड़े गए। 

ऐमिलियो कहीं उनसे आगे की चीज़ न हो कि सीधे घर में रहकर ही लूटे। मेरी बेचैनी बढ़ी तो मैंने थोड़ी देर में एक कैन बियर और पी ली। मैंने एक घंटा ऐसे ही बिता दिया। ऐमिलियो के बेडरूम में जाते ही मैंने वहाँ का कैमरा ऑफ़ कर दिया था। मुझे कैमरा ऑन रखना उसके प्राइवेट टाइम में छिपकर ताँक-झाँक करने जैसा निहायत गंदा काम लगा था। क़रीब दो घंटे बीते तो मुझे लगा देखना चाहिए कि सो रही कि जाग रही है। घूमने चलना है कि नहीं चलना है। जैसा हो वैसा बताए तो उसके हिसाब से खाने-पीने का इंतज़ाम करूँ। 

मैं उठा कि दरवाज़ा नॉक करूँ लेकिन फिर आकर बैठ गया। सोचा कि ये पता नहीं क्या सोच ले? अंदर से दरवाज़ा तो बंद नहीं किया है। फिर मैंने कैमरे की मदद ली। ऑन कर देखा तो मैं बड़े आश्चर्य में पड़ गया। वह बेड पर एकदम निश्चिंत बेधड़क सो रही थी। ऐसे जैसे अपने घर में हो। निश्चिंत इतनी कि तौलिया कहीं था और वह कहीं और। कुछ क्षण उसे ऐसी हालत में देखने से मैं अपने को रोक न सका। लेकिन अपनी ग़लती का एहसास होते ही कैमरा ऑफ़ कर दिया। फिर सोफ़े पर बैठ गया। उसके बारे में सोचते-सोचते मुझे भी नींद आ गई। मैं सोफ़े पर ही सो गया। अजीब तमाशा हो रहा था। 

मेज़बान, मेहमान दोनों सो रहे थे। कहाँ तो घूमने-फिरने का प्रोग्राम ज़ोर-शोर से बन रहा था। सही ही कहा गया है कि बग़ल में कोई सो रहा हो तो नींद जागने वाले को भी आ ही जाती है। और मैं जगा तब, जब ‘रोहिट’ आवाज़ कानों में पड़ी। और साथ ही एक नर्म सा स्पर्श कंधों पर पड़ा। आँखें खोलीं तो सामने ऐमिलियो खड़ी थी। उसे देखते ही मैं सीधा बैठ गया। और पूछा, “अरे तुम कब उठीं?” वह बोली, “अभी। बाहर आकर देखा तो यहाँ तुम भी सो रहे थे। मैं कितनी देर तक सोती रही क्या मुझे बताओगे?” 

मैंने घड़ी की तरफ़ देखा। रात के दस बजने वाले थे। मैंने उससे कहा, “तुम क़रीब चार घंटे सोती रहीं। और मैं भी दो घंटे सो चुका हूँ। इंडियन टाइम के हिसाब से इस समय रात के दस बजे चुके हैं।” वह बोली, “ओह! तो अब क्या करना चाहिए?” मैंने कहा, “डिनर का टाइम हो रहा है। चलते हैं बाहर किसी रेस्त्रां में डिनर करते हैं। और थोड़ा घूमते भी हैं।” उसने कहा, “ठीक है।” चलने से पहले उसने मेरा लैपटॉप यूज़ किया। अपनी मदर, फ़ादर और एक फ़्रेंड को मेल किया कि वह इंडिया अपने फ़्रेंड रोहिट के पास पहुँच गई है। यहाँ रात के दस बज चुके हैं। मेरे साथ एक सेल्फ़ी लेकर वह भी मेल कर दी। 

उसे यह सब करते देखकर मैंने मन में कहा यह बंदी वाक़ई बड़ी स्मार्ट है। और हिम्मती तो इतनी है कि कुछ कहा ही नहीं जा सकता। कितनी ख़ूबसूरती से मेरे ही घर में बैठकर, मेरे ही लैपटॉप से अपने लोगों को डिटेल्स भेज कर मुझ पर एक दबाव बना दिया है। घर का पूरा एड्रेस तक मुझ से पूछ कर लिखा कि यहाँ रुकी हूँ। मैं उसके साथ से रोमांचित भी हो रहा था और अंदर ही अंदर तमाम सारी आशंकाओं से भयभीत भी हो रहा था। लेकिन वह एकदम निश्चिंत मस्त दिख रही थी। कम से कम ऊपर से तो ऐसा ही दिख रहा था। अंदर-अंदर वह भी मेरी तरह संशयग्रस्त थी या नहीं यह मैं समझ नहीं पाया। 

जब उसके साथ डिनर और थोड़ा बहुत घूम-फिर कर लौटा तो रात बारह बज गए थे। मगर क्योंकि हम दोनों पहले ही सो चुके थे इसलिए आँखों में नींद नहीं थी। आते वक़्त सिगरेट और वोदका की एक बोतल मैं उसी के कहने पर ले आया था। मेरे लिए यह कोई नई बात नहीं थी। पहले भी कई पार्टनर मेरे साथ पी चुकी थीं। लेकिन ये पार्टनर सबसे अलग थी। इसलिए मेरी मनःस्थिति भी एकदम अलग थी। मैं यह सोचकर भी परेशान हो रहा था कि यह कहीं ज़्यादा पी कर हंगामा न करे। वैसे बाहर बेहद शालीनता से पेश आई थी। रेस्त्रां हो या फिर अन्य कोई जगह जहाँ-जहाँ गई वहाँ पूरे सलीक़े से रही। 

आने के बाद ड्रॉइंग रूम में ही बैठा। वहीं उसके कहने पर एक-एक पैग वोदका ली। और सिगरेट भी पी। मेरे डर के विपरीत उसने एक पैग से ज़्यादा लेने से मना कर दिया। तभी एक अंग्रेज़ी चैनल पर एक पुरानी अंग्रेज़ी मूवी ‘वाइल्ड ऑर्किड’ शुरू हुई। उसे देखते ही उसने कहा, “ओह माई फ़ेवरेट मूवी। रोहिट इसे मेरे साथ देखना चाहोगे? बहुत ख़ूबसूरत फ़िल्म है।” मैंने कहा, “बिल्कुल देखूँगा। मुझे ख़ुशी होगी।” इसके अलावा मैं कुछ कह भी तो नहीं सकता था। 

इसके पहले कि मैं कुछ कहूँ उसने आगे के लिए एक भारतीय बीवी की तरह हुक्म जारी कर दिया कि कपड़े चेंज करते हैं, बेडरूम में टीवी है ही, वहीं आराम से देखते हैं। मैं सोच रहा था कि अलग-अलग कमरे में सोएँगे। लेकिन उसने साफ़ कहा, “रोहिट हम यहाँ तुम्हारे पास आए हैं। तुम्हारे साथ रहने। अलग रहने नहीं।” फिर उसने इमोशनल कर देने वाली कई बातें कह दीं। मैं निरुत्तर था। उसकी बातचीत, अंदाज़ से मुझे लगा कि मैं इसे जितना समझता हूँ यह उससे हर बार कहीं आगे निकलती है। 

मूवी शुरू हो चुकी थी। वह बेड पर मुझसे सटी बैठी देख रही थी। कभी सिर कंधे पर रख देती, कभी हाथ। उसकी स्लीपिंग ड्रेस भी मेरे हिसाब से कुछ अजीब थी। एक छोटी सी स्लीवलेस बनियान, और बेहद छोटी नेकर। और मेरा बरमुडा उसके सामने पूरा पजामा नज़र आ रहा था। और टी-शर्ट कुर्ता। उसकी खुली भरी हुई टाँगें, ब्रेस्ट मेरी अजीब सी स्थिति किए हुए थीं। 

जो फ़िल्म चल रही थी वह लेट नाइट की टू एक्स मूवी थी। एक से एक हॉट सीन मन का कमांकला किए जा रहे थे। और वह ध्यान से देख रही थी। बीच-बीच में कुछ बोलती जाती। कभी इधर पहलू बदलती कभी उधर। दो बजे मूवी ख़त्म होते-होते मुझे नींद आने लगी थी। उसकी आँखें भी मुझे बोझिल लग रही थीं। मूवी ख़त्म होने के बाद वह वॉशरूम होकर आई। फिर मैं भी हो आया। 

आया तो देखा वह फ़्रिज से बोतल निकाल कर मुँह ऊपर किए गटागट पानी पिए जा रही थी। मैंने भी पानी पिया। तभी उसने ओढ़ने के लिए चादर माँगी तो मैंने यूँ ही कह दिया कि, “कूलिंग ज़्यादा हो तो कम कर दूँ।” उसने कहा नहीं, “कूलिंग ठीक है। एक्चुअली मेरी आदत है चादर ओढ़ कर सोने की। सोते समय मैं कोई कपड़े नहीं पहनती।” मेरे लिए उसकी यह दूसरी बात किसी धमाके से कम नहीं थी। देखते-देखते उसने दोनों कपड़े उतारे, उन्हें साइड टेबल पर डाला और बेड के दूसरी तरफ़ पड़ी चादर गले तक खींच कर तकिए के सहारे अधलेटी हो बोली, “तुम कपड़े पहन कर सोते हो क्या?” 

मैंने कहा, “हाँ।” तो वह बोली, “चेंज कर दो यह आदत। कम से कम सोते समय तो हमें शरीर को कुछ घंटों के लिए एकदम आज़ाद कर देना चाहिए। आज की मेडिकल साइंस भी कहती है निर्वस्त्र होकर सोने से ब्लड सर्कुलेशन अच्छा रहता है। सेहत अच्छी रहती है।” फिर उसने किसी साइंटिस्ट की एक रिसर्च रिपोेर्ट का हवाला देते हुए कहा, “चलो रोहिट आज से शुरू कर दो।” 

कहाँ तो मैं उसके साथ एक बेड पर सोने से ही हिचक रहा था और कहाँ वह साथ सोने ही नहीं, निर्वस्त्र होकर सोने के लिए प्रेशर डाल रही थी। प्रेशर इतना था कि मैं भी कपड़े उतार कर लेटा। एक ही चादर में। तब जो रोमांच, जो एक्साइटमेंट मैंने महसूस किया वह पहले कभी नहीं किया था। एक अजीब अनुभव। अकल्पनीय, अवर्णनीय स्थिति से गुज़र रहा था मैं। मन की गहराई में एक बात और चल रही थी। कि इतनी हॉट मूवी देखी है इसने। अंतरंग क्षणों के कितने सीन देखे हैं। यह एक्साइटमेंट से भरी है। 

अभी सोने से पहले यह अपना एक्साइटमेंट भी मेरे साथ ज़रूर ख़त्म करेगी। शायद इसीलिए बहाना बनाया कि कपड़े उतार कर सोते हैं। मैं पहल करूँ इसके लिए इसकी यह एक चाल भी हो सकती है। मगर ऐमिलियो को लेकर मेरा हर असेसमेंट ग़लत हो रहा था। चादर में मेरे घुसते ही उसने करवट ली और मुझे बाँहों में भर लिया। चिपक गई मुझसे। फिर ‘गुडनाइट रोहिट’ कह कर शांत लेटी रही। मैं भी लेटा रहा। कुछ मिनट भी ना बीते होंगे कि वह गहरी नींद में सो गई। उसकी पकड़ एकदम ढीली पड़ गई। 

वह एकदम निश्चिंत सो रही थी। कुछ देर बाद मैंने उसे अपने से अलग किया। बहुत ही धीरे से। जिससे उसकी नींद ना खुले। मैं अपने शरीर में बढ़ते तनाव से परेशान हो रहा था। थोड़ी ही देर में मैं चार बार उस चादर में अंदर लेटा और बाहर आया। मैं ऐमिलियो को छूना नहीं चाह रहा था। मैं कोई पहल नहीं करना चाह रहा था। नींद से आँखें कडु़वा रही थीं। आख़िर मैं एक बार फिर वॉशरूम हो आया। एक और चादर भी ले आया। फिर अपना बरमुडा पहन कर ऐमिलियो की बग़ल में अलग चादर ओढ़ कर सो गया। 

जिससे अपने तनाव पर कुछ क़ाबू पा सकूँ। ऐमिलियो की चादर भी खींच कर उसे गले तक ढक दिया था। वॉशरूम से जब लौटा था तो उसकी चादर कमर तक हटी हुई थी। मैं बहुत बाद तक भी यह नहीं समझ पाया कि उस वक़्त मैं तनाव पर नियंत्रण कैसे कर पाया? शायद कोई डर था जो मुझे रोके रहा। या मेरी प्रौढ़ता ने मुझे उतावलेपन पर कंट्रोल करने की क्षमता दे दी थी। लेटते ही मैं भी जल्दी ही सो गया। 

सुबह नींद खुली तो आठ बज गए थे। एसी फ़ुल स्विंग में चल रहा था। उसकी ठंड से ही मेरी नींद खुली थी। नींद खुलते ही ऐमिलियो की याद आई। याद आते ही नज़र बग़ल में गई। तो दिल धक् से हो गया। ऐमिलियो वहाँ नहीं थी। उसका तकिया क़रीने से रखा हुआ था। चादर भी। पल में यह बात मन में दौड़ गई कि यह हाथ साफ़ कर रफ़ू-चक्कर हो गई क्या? झटके से उठा, कमरे के बाहर ड्रॉइंगरूम में आया तो वह ख़ाली था। मेरी धड़कन एकदम से और बढ़ गई। मैंने आवाज़ देने की सोची कि देखूँ वह बाथरूम में तो नहीं है। लेकिन तभी ‘गुडमॉर्निंग’ की हल्की सी आवाज़ मेरे कान में पड़ी। 

मुड़कर देखा तो दो कप कॉफ़ी लिए ऐमिलियो खड़ी थी। आश्चर्य भी हुआ। मैंने गुडमॉर्निंग कह कर कहा, “अरे तुमने क्यों कष्ट किया? बताया होता मैं उठ कर बनाता। आफ़्टर ऑल तुम मेरी गेस्ट हो।” उसने कहा, “फॉर्मेलिटी में क्या रखा है रोहिट?” मुझे मेरी कॉफ़ी पकड़ा कर फिर बोली, “तुम्हें बुरा तो नहीं लगा कि तुम्हें बिना बताए किचन में चली गई।” मैंने कहा, “नहीं।” तब वह मुस्कुराती हुई बोली, “एक्चुअली रोहिट कल तुमने जिस तरह मेरा वेलकम किया उससे मैं बहुत इम्प्रेस्ड थी। मैं तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहती थी। 

“सुबह जब उठी तब भी दिमाग़ में कुछ नहीं था। तुम गहरी नींद में सो रहे थे। फिर नज़र तुम्हारे कपड़ों पर गई। देखा तुम अपनी आदत कुछ घंटों के लिए भी नहीं छोड़ पाए। और मैं अपनी। मैं कपड़े पहन कर नहीं सो सकती तो नहीं सोई। तुम पहने बिना नहीं सो सकते तो नहीं सोए। उठते ही मुझे बेड-टी लेने की आदत है। वह भी ब्लैक। आदत के मुताबिक़ एकदम से इच्छा हुई। सोचा कि तुम्हें उठाऊँ। मगर कपड़ों की कहानी से मैंने अंदाज़ा लगाया कि तुम मेरे सोने के बाद भी बहुत देर तक जागते रहे हो। इसलिए जगाना अच्छा नहीं समझा। तभी दिमाग़ में सरप्राइज़ देने की बात ने आइडिया दिया कि चाय बनाऊँ और तुम्हें बेड-टी दूँ। किचन में मैं चाय ढूँढ़ नहीं पाई। कॉफ़ी मिली तो सोचा चलो यही सही, यह तो और अच्छा है।”

मैंने कहा, “हूँ . . . गुड सरप्राइज़, कॉफ़ी बहुत अच्छी बनाई है। वैसे चाय भी वहीं रखी है। ऐमिलियो मेरे लिए ये वाक़ई सरप्राइज़ है। रियली यू आर ए ग्रेट लेडी।” इस पर वह खिलखिला का हँस पड़ी। इतना ही बोली, “ओह रोहिट।” 

इसके बाद हम इधर-उधर की बातें करते रहे। और तैयार भी होते रहे। सुबह का नाश्ता बाहर रेस्त्रां में ही किया। इस बीच सबसे पहले दिल्ली घूमने का प्रोग्राम बना। एक टैक्सी मँगाई और उस दिन उसे लुटियन की दिल्ली के कई हिस्से घुमा कर ले आया। उसे संसद भवन की इतनी बड़ी सर्कल बिल्डिंग आश्चर्यजनक लगी। दिल्ली का कुज़ीन भी उसे रास आया। 

रात को हम जब लौटे तो डिनर साथ पैक करा कर ले आए। तय हुआ कि रेस्त्रां के बजाय घर पर आराम से करेंगे। लंच और तमाम तरह की चाट वग़ैरह खाने के चलते डिनर जल्दी करने का मन नहीं हो रहा था। रात क़रीब ग्यारह बजे घर पहुँच कर हम दोनों नहा-धोकर फ़्रेश हुए। दिन भर की थकान दूर की। मैंने दिन भर के उसके व्यवहार से यह समझ लिया कि वह एक बेहद प्रैक्टिकल लेडी है। वह किसी भी काम को करने में केवल दिमाग़ से काम लेती है। दिल या भावना का नहीं। दिन भर में उसने अपनी बातों व्यवहार से मेरे मन की हिचक, संकोच को कम क्या क़रीब-क़रीब ख़त्म कर दिया। अब मैं भी खुलकर बोल रहा था। 

डिनर पूरा कर हम फिर अपने बेड पर थे। फिर टीवी चल रहा था। हॉलीवुड की एक ऐक्शन मूवी चल रही थी। मेरा बेडरूम बेहद सादगीपूर्ण था। दीवारों पर कोई पेंटिंग, कैलेंडर, शो पीस कुछ नहीं था। इस ओर ध्यान दिलाते हुए उसने कहा, “इन जगहों पर न्यूड कपल्स की रोमांटिक मूड वाली पेंटिंग्स होनी चाहिए।” 

मैंने कहा, “मुझे क्या ज़रूरत है इनकी? सिंगल हूँ। कभी यहाँ या कभी सोफ़े पर जहाँ मूड हुआ वहीं सो जाता हूँ।” उसने कहा, “नहीं मैं तो मानती हूँ कि घर के हर प्रमुख हिस्सों में सेक्सी कपल्स के पोस्टर्स, पेंटिंग्स होनी चाहिएँ। क्योंकि ये ख़राब से ख़राब मूड को सही कर देती हैं। आप ख़राब मूड लेकर सोने जाएँ तो जल्दी नींद नहीं आएगी। नींद पूरी नहीं होगी। और अगला दिन भी ख़राब बीतेगा। चिड़चिड़ाहट में सारे काम ख़राब करेंगे।”

मैंने कहा, “न्यूडिटी या सेक्स कैसे ठीक कर देगा यह सब, मैं नहीं समझ पा रहा हूँ।” वह बोली, “वेरी सिम्पल रोहिट। मैं यह मानती हूँ कि न्यूडिटी, सेक्स एक ऐसी चीज़ है जो हर तरफ़ से लोगों का ध्यान अपनी तरफ़ खींच लेती है। तमाम तरह की निगेटिव बातों से आप परेशान हों लेकिन एक ख़ूबसूरत न्यूडिटी आपके सामने आ जाए तो आप का ध्यान उधर जाता ही है, मैं तो कम से कम यही मानती हूँ। यह भी कहूँगी कि यह मेरा अनुभव रहा है।” मैंने देखा आज ऐमिलियो का मूड फ़िल्म देखने में नहीं लग रहा है। उसका मूड बात करने का है। 

उसने सिगरेट की डिब्बी उठा कर एक जला ली और डिब्बी मेरी तरफ़ भी बढ़ा दी। मैंने भी एक जला ली। ऐश ट्रे को बीच में ही रख लिया। एक दो कश लेने के बाद मैंने कहा, “तुम्हारा अनुभव क्या है मैं नहीं जानता। लेकिन मेरा मानना है कि मूड का रोल अहम है। मूड ख़राब हो तो सेक्स, न्यूडिटी क्षण भर को एक ब्रेक दे सकती है लेकिन स्थायी समाधान नहीं। कम से कम यदि मेरा मूड ख़राब होता है तो सेक्स किसी भी रूप में सामने आ जाए, मैं एक नज़र डाल भी लूँ लेकिन बाक़ी सब भूल कर उसमें खो नहीं सकता। सब कुछ भूल कर तुम कैसे खो जाती हो सेक्स में यह मैं नहीं समझ पा रहा।” 

“रोहिट यह अपना-अपना विज़न है। जब मैं टेन्थ स्टैंडर्ड में थी तो किसी बात पर मेरी मदर ने मेरी बहुत इंसल्ट की, और बुरी तरह पीट दिया। संयोग यह हुआ कि हफ़्ते भर में तीन बार पिटाई हुई। इससे मुझे बड़ी ग़ुस्सा आया। अपने को माँ से इमोशनली हर्ट फ़ील कर रही थी। मैंने डिसाइड किया कि सुसाइड करूँगी। कमरे की खिड़की के पास पहुँच कर मैं उसका दरवाज़ा बंद करने लगी। तभी मेरी नज़र सड़क की दूसरी तरफ़ एक लड़के, लड़की पर पड़ गई। जो मेरी उम्र के थे। दोनों एक दूसरे को प्यार किए जा रहे थे। इतने उत्तेजित थे कि अपना नियंत्रण खो रहे थे। लड़की, लड़के से भी आगे थी। 

“मैं उन्हें देख कर ख़ुद भी कसमसाहट सी, तनाव सा महसूस करने लगी। दरवाज़ा बंद करना भूल कर मैं उन्हें देखती रही। तभी वह दोनों किसी की आहट सुन कर वहाँ से भाग गए। मगर मैं तब भी खड़ी रही। कुछ देर बाद फिर मुड़ी तो बाहर वाले दरवाज़े पर आवाज़ हुई। मैंने वहाँ जाकर खोला तो मेरा क्लासफेलो था। मैं उसे देखकर और ज़्यादा तनाव महसूस करने लगी। 

“वह मेरी माँ के पास किसी काम से आया था। मैंने कहा, ‘वह तो हैं नहीं, बैठो।’ वह जाना चाहता था। लेकिन मैंने बैठा लिया। रोहित मैंने कंट्रोल करने की बहुत कोशिश की लेकिन कर नहीं सकी। खिड़की के बाहर देखे दृश्य ने मुझे आउट ऑफ़ कंट्रोल कर दिया था। कोई आ ना जाए और बाहर भागे जोड़े की तरह हमें ना भागना पड़े यह सोच कर मैंने बिना समय गँवाए उसके साथ सेक्स किया। 

“मैं सुसाइड करना भूल गई। सोचा बेवजह अपनी लाइफ़ नष्ट कर रही थी। जिसमें मज़े ही मज़े भरे हुए हैं। वह चला गया। लेकिन मैं ख़ुशी के मारे भीतर-भीतर उछल रही थी। मदर की पिटाई का कोई मलाल ही नहीं था। खिड़की के बाहर उस दृश्य के अलावा कुछ और होता तो शायद मेरा ध्यान सुसाइड से इस तरह ना हटा होता। और तभी से मेरा सेक्स, न्यूडिटी को लेकर नज़रिया बदल गया है।”

उसकी इस बात से मैं सोच में पड़ गया कि जो सुसाइड करने जा रहा हो वह कुछ ही मिनटों में एक कामुक क्षण देखकर कैसे तुरंत बदल जाएगा। और इतना कि सेक्स कर डाले। मन ही मन कहा यह इसके तमाम फ़रेबों में से एक और फ़रेब हो सकता है। इसकी हर बात पर यक़ीन करना मुश्किल है। तब मैंने कहा, “तुम्हारी बात ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया है।” वह बोली, “इसमें आश्चर्य वाली क्या बात है? मैं तो समझती हूँ कि मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता।” मैं कुछ देर उसे देखने के बाद बोला, “मेरा तो यह मानना है कि सब ऐसा नहीं कर पाएँगे। हाँ जो सेक्स पर ज़्यादा ध्यान देते हैं वो ऐसा कर सकते हैं।” 

मैंने सोचा युवावस्था का जोश, उफान यह करा सकता है। आश्चर्य नहीं करना चाहिए। यहाँ जो मैं कर रहा हूँ। यह क्या है, यह जोश में होश खो बैठने जैसा नहीं है क्या? ना जान ना-पहचान। मेल के ज़रिए इस बाला ने जो कुछ बताया वह कितना सच है पता नहीं। मगर मैं इसके पीछे पगलाया हुआ हूँ। लाखों ख़र्च करने को तैयार बैठा हूँ। इस मैच्योर एज में विदेशी युवती से सम्बन्ध जीने के लिए होश खोए बैठा हूँ। और सही मायने में तो मैच्योर ये है, कि कितनी योजनाबद्ध ढंग से यहाँ मेरे बेड तक पर आकर बैठ गई है। वह भी कुछ सोच कर बोली, “हो सकता है तुम्हारी बात सही हो रोहिट। वैसे हम लोग भी क्या बहस कर रहे हैं। दिन भर घूमा है, एंज्वाय किया है हम दोनों ने। अब आराम भी एंज्वाय करते हैं। इसी के लिए तो मैं सेनेगल से यहाँ आई हूँ, और तुमने ऑफ़िस से छुट्टी ले रखी है।” 

इसके बाद ऐमिलियो ने फिर वही किया जो पिछली रात किया था। एक चादर में हम दोनों थे। मूवी चलती रही और हम दोनों का गेम भी ख़ूब चला। इस दौरान ऐमिलियो की हर एक एक्टिविटी ने साफ़-साफ़ बता दिया कि वह एक्स्पर्ट है इस खेल की। उसने यह खेल ख़ूब खेला है। मैं भले ही दोगुनी उम्र का हूँ। इस खेल का पुराना खिलाड़ी हूँ। ना जाने कितनी खिलाड़ियों के संग खेल चुका हूँ। लेकिन यह किसी सूरत में उन्नीस नहीं पड़ी। 

मैं इसकी जगह होता, कहीं दूसरे देश में ऐसे पहुँचता तो निश्चित ही किसी से भी उन्नीस ही पड़ता। इसने तो पूरी बोल्डनेस के साथ गेम भी ख़ुद ही शुरू किया। गेम पूरा हुआ तो कैसे आराम से सो गई। जैसे अपने ही घर में सो रही है। सोते-सोते यह कहना नहीं भूली कि मैं उसके सोने के बाद कपड़े ना पहनूँ। कैसे लिपटी हुई है पूरे अधिकार के साथ। ऊपर से कैसे हँसते-हँसते ताना मारा कि मेल में तो मैं अपना फ़ेवरेट गेम सेक्स बता रहा था। और उसके साथ सेक्स के लिए बहुत ही ज़्यादा एक्साइटेड था। लेकिन जब आ गई तो ऐसा कोई एक्साइटमेंट दिख ही नहीं रहा है। अंततः स्टार्ट भी उसे ही करना पड़ा। 

जब मैंने देखा वह गहरी नींद सो गई है, उसकी बाँहों की पकड़ मुझ पर बिलकुल ढीली पड़ गई है, तो मैंने धीरे-धीरे उससे अपने को मुक्त किया। बाथरूम गया। फिर फ़्रिज से बीयर का एक कैन निकाल कर बेड पर ही बैठ कर पीने लगा। मैं सोचने लगा कि कैसे यह ताना मार गई कि मैं अपना फ़ेवरेट गेम छत्तीस घंटे बाद भी स्टार्ट करने की हिम्मत नहीं कर सका। वह उसके साथ रात भर नेकेड ही सोई लेकिन वह ना जाने किस संकोच में पड़ा रहा। 

तब उसे दी अपनी सफ़ाई पर भी मुझे हँसी आई कि मैंने कैसी बचकानी बात कही थी, कि उसने कोई पहल नहीं की इसलिए मैंने भी इनिशिएटिव नहीं लिया। उसे देखने से उसका मूड भी ऐसा कुछ करने के लिए नहीं दिख रहा था। इस लिए पहल नहीं की, सो गया। क्यों कि उसकी इच्छा के बिना करता तो यह रेप होता। और रेप मेरी दृष्टि में बहुत गंदा है। जानवरों से भी नीचे गिरने जैसा है। 

मेरे इस जवाब पर यह कैसे खिलखिलाई थी। एक तो कई बार इसकी अमरीकन स्टाइल की इंग्लिश भी बातों को समझने में घोरमट्ठा (कंफ्यूजन) पैदा कर देती है। जब तक समझता हूँ तब तक यह आगे निकल चुकी होती है। यह तो यही बात हुई कि यह मेरे ही घर में आकर मुझ पर ही हावी है। बातें ऐसे करती है कि जैसे मैं मेहमान हूँ और यह मेज़बान। और मैं, मैं अपनी ऐंठ, अपनी मनमानी के लिए सबकेे बीच में जाना जाता हूँ। मगर यहाँ तो जो देखेगा वो मुझे भीगी बिल्ली ही कहेगा। बड़ा टेंशन में कर दिया है इसने तो। 

मैंने बीयर ख़त्म कर के कैन डस्टबिन में डाला। पता नहीं क्यों अजीब सी उलझन महसूस कर रहा था। उठ कर ड्रॉइंगरूम में गया और सिगरेट पीने लगा। टीवी ऑन किया मगर मन नहीं लगा। मैं बड़ा अपमानित महसूस करने लगा कि मैं अपना फ़ेवरेट गेम स्टार्ट करने में पिछड़ गया। हिम्मत नहीं कर सका। एक कल की छोकरी मेरी खिल्ली उड़ा रही है। यदि मैं समय से शादी ब्याह करता तो आज मेरे बच्चे इससे कम बड़े नहीं होते। टीवी चल रहा था लेकिन मन अंदर बेडरूम में ऐमिलियो पर लगा था। 

मैं अपने अंदर कुछ आवेश सा महसूस कर रहा था। सिगरेट ख़त्म होने जा रही थी। मैं सोफ़े पर से उठा और दरवाज़ा खोला। ऐमिलियो बेसुध सोई पड़ी थी। उसे देखकर ये कहे बिना ना रह सका कि जो भी हो हिम्मत कमाल की है। अपने घर में मैं यहाँ बेचैन सिगरेट फूँक रहा हूँ और यह बेधड़क सो रही है। बिस्तर पर लोट-पोट ऐसी कि चादर नीचे पड़ी है। और ख़ुद . . . उस पर से मेरी नज़र नहीं हट रही थी। 

जितना मैं देख रहा था उतना ही उबलता जा रहा था। मैं अपने उपहास, अपने प्रति उसके नज़रिए को बदल देने के लिए धधकता जा रहा था। मैंने उसे प्यार से छुआ। फिर उसके नर्म मुलायम, नाज़ुक जगहों पर अपने स्पर्श की गर्मी से उसे जगा दिया। उसकी आँखों में वाक़ई नींद थी, लेकिन मैं अपने उपहास से आक्रांत था। सब कुछ नज़र-अंदाज़ किए जा रहा था। उसने मुझे बाँहों में भर कर साथ लिया कि सो जाऊँ। लेकिन मैं कहाँ अपने वश में था। 

मुझ पर ख़ुद को प्रमाणित करने का भूत सवार था। और भूत उतरा तब जब मैंने अपने हिसाब से प्रमाणित कर दिया। तब ऐमिलियो ने कहा, “मानती हूँ कि तुम्हारा फ़ेवरेट गेम क्या है?” उसकी नींद टूट गई थी। उसने सिगरेट माँगी मैंने दे दिया। उसका आग्रह मैं नहीं टाल सका और मैंने भी सिगरेट सुलगा ली। वह बग़ल में बैठी कंधे पर सिर टिकाए बोली, “रोहिट मुझे यक़ीन है कि मैं यहाँ तुम्हारे साथ पूरा एंज्वाय करूँगी। अगर क़िस्मत ने चाहा तो हम दोनों पूरा जीवन साथ ही बिताएँगे।” मैंने उसकी बातों का कोई जवाब देने के बजाय सिर घुमाकर हौले से उसका चुंबन ले लिया। अब मैं इस बात में उलझने लगा कि मैंने जो किया क्या वह सही था? मेरे ही हिसाब से यह रेप से कम नहीं। इसकी इच्छा इस समय कहाँ थी। यह तो सोना चाह रही थी। इसने तो एक तरह से यहाँ सिर्फ़ मैनेज किया है। वास्तव में यह फिर जीती है और मैं हारा हूँ। मैं उसके साथ लेटा रहा। वह फिर सो गई थी। मुझे नींद नहीं आ रही थी। अगले दिन भी पहले वही उठी। अपनी कॉफ़ी और मेरे लिए चाय लिए इंतज़ार कर रही थी। उसका यह रोल मुझे उसकी आदतों, उसकी लाइफ़ स्टाइल दोनों ही से मेल खाता नहीं लगा। 

उसके साथ एक हफ़्ते तक दिल्ली में घूमा। फिर गोल्डेन टेंपल अमृतसर गया। उसने कहीं पढ़ रखा था कि वहाँ सोने का मंदिर है। उसकी इच्छा पर ही स्वर्ण मंदिर गए। फिर दो दिन आराम करने के बाद मैं उसे लेकर शिमला, कुल्लू, मनाली, रोहतांग दर्रा भी हो आया। वहाँ ज़बरदस्त ठंड ने मेरी हालत ख़राब कर दी थी। मुझे वहाँ पहुँचने पर ही मालूम हुआ कि यह समुद्र तल से चार हज़ार मीटर से ज़्यादा ऊँचाई पर है। 

हमेशा बर्फ़ पड़ी रहती है। कुल्लू से रोहतांग के लिए चलते हुए जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे रास्ता कठिन हो रहा था। ठंड भी बढ़ रही थी। एक बार मन में आया कि यहीं से लौट चलूँ। लेकिन जिस तरह आगे ख़ूबसूरत दृश्य मिलते जा रहे थे, उससे मन करता अब यहाँ तक आकर लौटना बेवुक़ूफ़ी है। व्यास नदी के किनारे वशिष्ठ गाँव में तो ऐमिलियो को इतना अच्छा लगा कि वह और ज़्यादा समय तक रुकना चाहती थी। 
वहाँ की ठंड को देखते हुए हमने मनाली से आगे जाते वक़्त ही वहाँ की कड़ाके की ठंड से बचने के लिए ख़ास तरह के कोट और जूते किराए पर ले लिए थे। अपनी सुविधा के लिए मनाली से ही एक जीप किराए पर ली थी। 

यहाँ ऐमिलियो के साथ व्यास नदी का स्रोत, महर्षि वेद व्यास का मंदिर देखा और अद्भुत व्यास कुंड का पानी भी पिया। रोहतांग दर्रे पर से हिमालय का जो चमत्कृत कर देने वाला दृश्य हम दोनों ने देखा तो बड़ी देर तक स्टेच्यू बने देखते ही रह गए। उस दृश्य को मैं जीवन में भूल नहीं सकता। ऐमिलियो का पता नहीं। बादलों को अपनी आँखों से पर्वतों के नीचे देख कर मैं, ऐमिलियो ठगे से रह गए। 

वहाँ पर मैंने ऐमिलियो के साथ स्कीइंग भी की। हमारा ड्राइवर था तो नवयुवक ही लेकिन बेहद जानकार, हँसमुख और हिम्मती आदमी था। उसी ने बताया कि इसका प्राचीन नाम भृगुतुंग था। भगवान शिव ने भृगुतुंग पर्वत कोे अपने त्रिशुुल से काट कर यह बनाया था, इसीलिए इसका नाम भृगुतुंग पड़ गया था। 

ऐमिलियो के साथ मेरी यह यात्रा बड़ी दिलचस्प, रोमांचक रही। ऐमिलियो का बिंदास लुक, विदेशी होना, उसके बेहद उन्मुक्त व्यवहार ने मुझे रोमांचित तो बहुत किया मज़ा भी ख़ूब दिया। लेकिन घर वापस आने तक कई बार मुश्किल में भी डाला। एक बार कुल्लू में होटल में हंगामा किया। इतना कि होटल वालों ने पुलिस बुला ली। तब किसी तरह रिक्वेस्ट वग़ैरह करके मामले को शांत करा पाया था। उस रात उसने ज़रूरत से ज़्यादा शराब पी ली थी। 

इस रोमांचक टूर से लौटा तो एक मुश्किल और ऑन पड़ी। ऐमिलियो को बुख़ार हो गया। हफ़्ते भर ठीक ही नहीं हुआ। उस समय दिल्ली और आस-पास डेंगी बुख़ार ने क़हर ढा रखा था। पिछले दसियों साल का रिकॉर्ड टूट गया था। मैं डरा कहीं इसे भी डेंगी तो नहीं हो गया। बैठे-बिठाए एक आफ़त आ जाएगी। डॉक्टर ने संदेह भर किया तो मैंने सारे चेकअप करवा डाले। मगर सौभाग्य से डेंगी नहीं निकला। वायरल ही था जो बिगड़ गया था। 

उसे पूरी तरह ठीक होने में हफ़्ता भर लगा। इस बीच चाय-नाश्ता खाना-पीना सब मैं अकेले ही सँभालता रहा। बनाने को तो सिर्फ़ चाय-कॉफ़ी ही बनाता था। बाक़ी सब होटल से ही लाता। जितना हो सका मैंने ऐमिलियो की पूरी देखभाल की। मैं सोचता कि इसे कहीं यह ना लगे कि यह दूर देश में है। और कोई इसकी देखभाल करने वाला नहीं। वह यह ना सोच ले कि मैंने उसे यहाँ बुलाकर अनदेखी की। वह रोज़ ही दिन भर में मुझे दस बार थैंक्यू बोलती। बार-बार कहती, “रोहिट तुम मेरा कितना ध्यान रखते हो। इतना ध्यान तो घर में मेरी माँ भी नहीं रखती।” 

मैं कहता, “तुम मेरी मेहमान हो। तुम्हारी देखभाल करना मेरा कर्त्तव्य है।” वह मुझसे बार-बार कहती कि, “तुम्हें भी इंफ़ेक्शन हो जाएगा। अलग सोओ।” लेकिन मैं बराबर उसके साथ ही सोता रहा। पता नहीं क्यों मैं बिना उसके सो नहीं पा रहा था। कुछ हद तक मैं यह भी कह सकता हूँ कि यह डर भी था कि मैं उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता था। 

इस एक हफ़्ते में उसने अपने बारे में कई और नई बातें बताईं जो उसकी पहले बताई बातों से मेल नहीं खा रहीं थीं। लेकिन इसका मुझ पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ रहा था। जैसा कि पहले उसने बताया था कि उसके पेरंट्स लाइबेरिया में गृह-युद्ध में मारे गए थे। लेकिन उसने बीमारी के समय नई कहानी बताई कि उसकी माँ ने जिस व्यक्ति से शादी की थी, वह और माँ दोनों एक ही जगह काम करते थे। माँ के द्वारा गोरी अँग्रेज़ औरत होने पर भी नीग्रो से शादी करने के वक़्त कई रिश्तेदारों और दोस्तों ने उन्हें मना किया था। लेकिन दोनों ने किसी की परवाह नहीं की। शादी कर ली। शादी के कुछ महीनों बाद ही ऐमिलियो का जन्म हो गया। यही कोई छह महीने बाद। वह शादी से पहले ही प्रेग्नेंट हो चुकी थीं। 

नीग्रो-अँग्रेज़ की संतान के कारण वह एक मिला-जुला रूप लेकर पैदा हुई। न पूरी तरह अँग्रेज़ न पूरी तरह नीग्रो। ऐमिलियो ने बताया कि वह जब छोटी थी तभी उसके माँ-बाप अलग हो गए। उसके पिता इस बिना पर अलग हो गए कि माँ उनके एक दोस्त से रिलेशन बना चुकी है। इस बात को लेकर दोनों में रोज़ झगड़ा होता। अंततः दोनों अलग हो गए। 

माँ ऐमिलियो को अपने साथ ले आईं। उसके पिता ने ज़्यादा वक़्त नहीं बिताया और दूसरी शादी कर ली। और माँ उसी व्यक्ति के साथ क़रीब तीन साल रहीं जिसके कारण उनके और पिता के बीच झगड़ा हुआ। और दोनों अलग हो गए। ऐमिलियो की नज़रों में यह दूसरा व्यक्ति जो कि एक गिरा हुआ इंसान था, वह उसका सौतेला पिता बन बैठा था। शुरू में तो उसका व्यवहार कुछ अच्छा था लेकिन फिर आए दिन माँ से मारपीट करने लगा। और जिस दिन माँ उससे अलग हुई उस दिन उन्होंने यह भी कहा कि वो एक गंदा इंसान है। वह उसकी लड़की ऐमिलियो को गंदी नज़रों से देखता, छूता, पकड़ता है। उसकी बेटी की लाइफ़ ख़तरे में है। उसकी भी। इसलिए वो अब उसके साथ नहीं रहेंगी। 

ऐमिलियो की माँ ने इसके बाद उसे तीन और सौतेले पिता दिए। जिनमें एक बेहद नेक इंसान है। जिन्हें ऐमिलियो आज भी बहुत याद करती है। लेकिन माँ उनके साथ भी साल भर से ज़्यादा नहीं रहीं। उनका आरोप था कि वह भले ही एक नेक इंसान हों, लेकिन अच्छा लाइफ़ पार्टनर बनने की क़ाबिलियत उनमें नहीं है। इसलिए उनके साथ एक उबाऊ लिजलिजा जीवन जीना सम्भव ही नहीं। ऐमिलियो आज भी इसी सौतेले पिता की शुक्रगुज़ार है। जिसने सेनेगल की राजधानी डकार में उन्हें एक रहने लायक़ ठीक-ठाक मकान दिया। जिसमें वह माँ-बेटी आज भी रहती हैं। 

माँ से अलग होने के बाद भी इस सौतेले पिता ने अपना मकान वापस नहीं लिया। कभी-कभी वह आज भी ऐमिलियो से मिलता है। उसे महँगे उपहार देता है। लाइबेरिया से आने के बाद उसकी माँ जो नौकरी कर रही थी वह कुछ ख़ास नहीं थी। इसी पिता ने उसे अच्छी नौकरी भी दिलाई थी। वह पहले तो माँ से अपने बिज़नेस में हाथ बँटाने को कह रहे थे। लेकिन माँ के नौकरी करने पर अड़े रहने के कारण उन्होंने फिर कभी नहीं कहा। लेकिन उन्हें नौकरी अच्छी दिला दी। 

आख़िरी पिता से अलग होने के बाद माँ पिछले कई बरसों से अकेले ही है। एक व्यक्ति है जिसके साथ वह अक़्सर देर तक बातें करती हैं। और आए दिन उसके साथ घंटों के लिए कहीं चली जातीं हैं। ऐमिलियो को यह आदमी बहुत धूर्त और मवाली दिखता है। वह माँ से उम्र में काफ़ी छोटा लगता है। ऐमिलियो उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती और उसके आने पर अपने को दूसरे कमरे में बंद कर लेती है। माँ भी अब उससे कोई ज़्यादा बातचीत नहीं करतीं। उसकी पढ़ाई-लिखाई कॅरियर को लेकर उसे कोई फ़िक्र ही नहीं है। 

वह अपने दोस्तों के साथ घंटों के लिए कहीं चली जाए या कई दिन तक ना आए माँ तब भी कुछ नहीं पूछतीं। भारत आने की बात भी ऐमिलियो ने बताई तो भी उन्हें कोई फ़िक्र नहीं थी। इतना ही कहा, “देखो मुझे किसी मुसीबत में नहीं डालना। पहले ही मैं तुम्हारे कारण कई मुसीबतें झेलती आ रही हूँ।” ऐमिलियो को उनका यह जवाब बहुत ख़राब लगा था। बहुत दुख हुआ था उसे। 

आने के एक दिन पहले उसने यह बात अपने अच्छे वाले सौतेले पिता को बताई तो उन्होंने कहा था कि, “मैं तुम्हें रोक तो नहीं सकता। लेकिन मेरी सलाह है कि तुम्हें इस तरह किसी दूसरे देश में नहीं जाना चाहिए। दुनिया में इस समय माहौल बहुत तनावपूर्ण है। तुम जिस व्यक्ति के पास जा रही हो उससे पहले कभी मिली भी नहीं हो।” लेकिन ऐमिलियो के अडिग रहने पर कहा कि, “ठीक है अपनी लोकेशन, अपने इस इंडियन फ़्रेंड के बारे में बराबर ज़्यादा से ज़्यादा डिटेल्स मेल करती रहना।” 

उन्होंने ही आते समय उसे ‘आई फ़ोन’ फोन दिया था। एयर पोर्ट तक छोड़ने आए थे। जब कि माँ घर के दरवाज़े पर भी नहीं आयी। बस इतना कहा था, “ध्यान रखना अपना, फोन करती रहना।” ऐमिलियो यह कहते हुए बहुत भावुक हो गई थी। कि वह अपनी माँ से ज़्यादा अपने इस अच्छे वाले सौतेले पिता को चाहती है। उसे अपने बॉयोलॉजिकल पिता के बारे में अब कुछ पता नहीं कि अब वह कहाँ हैं? कैसे हैं? उसे उनका चेहरा भी याद नहीं है। क्यों कि वह जब छोड़कर गए थे तब वह बहुत छोटी थी। और माँ ने उनका एक फोटो तक नहीं रखा है कि वह अपने पिता की सूरत भी पहचान सके। 

इन बातों को बताते समय ऐमिलियो पिछली कई बार की तरह यह कहना नहीं भूली कि, “रोहिट मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ। तुम्हें लाइफ़ पार्टनर बनाना चाहती हूँ। तुमसे शादी करना चाहती हूँ। इतने दिनों में ही तुम्हारे कंट्री को जितना देखा है उसी से मैं इतना इंप्रेस हुई हूँ कि इसे छोड़ कर जाने का जी नहीं कर रहा है।” ऐमिलियो की यह नई कहानी मुझे उसकी पहले की कई बातों से ज़्यादा प्रभावकारी लगी। सच के ज़्यादा क़रीब लगी। वह जिस तरह से बार-बार हमेशा के लिए साथ रहने को कहती उससे मैं सोचने लगता कि इसका प्रस्ताव ग़लत तो नहीं है। 

जब तक उसकी तबियत ठीक नहीं हुई तब तक उसने ना जानें कितनी बातें बताईं। साथ ही हम दोनों अगले टूर पर निकलने की भी तैयारी करते रहे। नेट के ज़रिए तमाम जानकारियों के बाद एक लंबा प्रोग्राम भी फ़ाइनल कर लिया गया। इस बार ऐमिलियो का ज़्यादा ज़ोर बीच पर चलने का था। इसके लिए मैंने चेन्नई का कोवलंग बीच, गोल्डेन समुद्र तट रिज़ॉर्ट, मनीला बीच और इसके अलावा गोवा के अगोंडा बीच, कैंडोलिम बीच, कैलोंगुट बीच को चुना। नेट पर ही देखकर ऐमिलियो साउथ की स्थापत्य शिल्प को भी ज़रूर देखना चाहती थी। खजुराहो की मूर्तिशिल्प कला की तो वह इतनी दीवानी हो गई कि दिन भर में दो तीन बार तो उसके चित्र, उसके वीडियो देखती। 

यात्रा करने में ज़्यादा समय ना बरबाद हो इसके लिए मैंने चेन्नई, गोवा की यात्रा के लिए हवाई यात्रा का विकल्प चुना। मेरे लिए यह एक रोमांच भरा अनुभव भी होता। क्योंकि इसके पहले मैंने हवाई यात्रा नहीं की थी। मेरे पास पैसों को लेकर कोई समस्या नहीं थी। मैंने पर्सनल लोन ले रखा था। यहाँ तक कि मैंने डिपार्टमेंट से दो लाख रुपए लोन के साथ-साथ दो महीने की मेडिकल लीव भी ले रखी थी। यह सब ऐमिलियो के प्रति मेरी दिवानगी का ही प्रतीक है। 

चेन्नई के लिए उड़ान से एक दिन पहले ऐमिलियो ने बिल्कुल हिंदुस्तानी पत्नियों की तरह रात बेड पर बड़े प्यार मनुहार के साथ मुझे अपनी बाँहों में समेटे हुए कहा, “रोहिट मेरे पास इन टूर पर जाने के लिए कोई अच्छी ड्रेस नहीं है। कई दिनों से सोच रही थी लेकिन थोड़ा संकोच में थी।” उसने इतने मनुहार के साथ कही थी यह बात कि उस पर मुझे प्यार आ गया। 

दोनों हाथों से उसके दोनों गालों को प्यार से खींचते हुए कहा था, “ओह डॉर्लिंग तुम्हें पहले बताना चाहिए था। ख़ैर कोई बात नहीं कल दिन में ही ले आएँगे।” उसने मेरे इस प्यार का भरपूर फ़ायदा उठाया। अगले दिन क़रीब दो लाख रुपए से ज़्यादा की शॉपिंग कर डाली। निक्कॉन का एक शानदार कैमरा भी ख़रीद लिया कि रोहतांग टूर के समय जो कैमरा यूज़ किया उसका रिज़ल्ट अच्छा नहीं है। और इतना ही नहीं लगे हाथ एक आईपैड भी लिया। 

अगले दिन चेन्नई के लिए चल दिए। वहाँ कोवलंग बीच, गोल्डेन समुद्र तट रिसॉर्ट, मनीला बीच पर हम दोनों ने वाक़ई ना भूलने वाली मस्ती की। ये कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि ऐमिलियो जैसी पार्टनर ना होती तो निश्चित ही इतना मज़ा नहीं ले पाता। मज़ा लेना भी अपने आप में एक कला है। जिसमें मैंने पाया कि ऐमिलियो पारंगत है और मैं उसके सामने खिलाड़ी छोड़िए अनाड़ी ही था। चेन्नई में साउथ इंडियन कुज़ीन में भी उसे बहुत मज़ा आया। सांभर, डोसा, इडली, रस्म उसे बहुत भाए। योगगिरि की पहाड़ियों में छोटे-छोटे गाँवों में जाना मुझे बहुत भाया। हाँ, मनीला तट पर एक बार ऐमिलियो के कारण थोड़ा अपमानित होना पड़ा। 
उसके नाम मात्र के कपड़ों एवं वल्गर हरकतों के कारण हमें टोका गया। मेरे साथ एक विदेशी युवती वह भी आधी़ उम्र की यह भी लोगों की नज़र में हमें तुरंत ला देता था। ऐमिलियो को मैंने आख़िर समझाया कि यह इंडिया है। यहाँ हर बात की अपनी एक सीमा है। जिसका पालन करना ही पड़ेगा। उसने सॉरी बोला और बात ख़त्म। प्लान तो एक हफ़्ते का था। लेकिन वहाँ दस दिन रुकने के बाद गोवा के लिए चल दिए। गोवा में तो वाक़ई अपनी अलग ही दुनिया रही। ऐमिलियो ने मुझे वहाँ वो सुख दिया जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। 
दो दिन तो वहाँ हम शहर घूमते रहे। उसके बाद पूरा एक दिन कलिंगोट बीच पर बिताया। लेकिन वहाँ की भीड़-भाड़ ने हमें बराबर असहज बनाए रखा। ऐमिलियो ना होती तो शायद इतना असहज ना होता। कुल मिला कर वहाँ का मेरा सारा मज़ा मारा गया। ऐमिलियो भी मनीला बीच की तरह यहाँ पर कुछ ख़ास मज़ा न ले पाई। एक दिन वहाँ रात में ओवर इटिंग के चलते हम दोनों की तबियत अगले दिन ढीली रही। 

हम दिन भर रिसॉर्ट में ही पड़े रहे। अगले दिन हम फ़िट थे। और थोड़ा सुनसान बीच कौन है यह रिसॉर्ट के इंप्लाई से रात में ही जान लिया था। इस अपेक्षाकृत बहुत कम भीड़-भाड़ वाले बीच अगोंडा में हमने पिछले दो दिन की कसर पूरी की। समुद्र की लहरों में खेलकूद के बाद ऐमिलियो, हमने वहाँ की प्रसिद्ध काजूफ़ेनी पी। यह अपनी तरह की एक अलग ही वाइन है। एक अलग ही सुरूर देने वाली लोकल लिकर। 

इसी के सुरूर में हम दोनों टहलते-टहलते लोगों से दूर बहुत, दूर निकल गए। ताड़ के पेड़ों की छाया में एक जगह बालू में वह पसर गई। ऐमिलियो ने वहाँ फिर पी। मैंने ना चाहते हुए भी और पी ली। बालू में पसरी ऐमिलियो ने फिर वह खेल खेला जिसके लिए मैंने सोचा भी नहीं था। अपने दोनों ब्रीफ़ उतार कर वह बार-बार हवा में ऊपर उछालती और ताली बजाकर हँसती। बिना कपड़ों के कभी इधर तो कभी उधर दौड़ती फिर बालू पर ही गिर जाती। मुझे भी बार-बार खींचती और एक बार मेरा भी ब्रीफ़ खींच ले गई। मैं बार-बार उससे लेकर पहनना चाहता लेकिन वह पहनने ना देती। 

मैं किसी के आ जाने के डर से बराबर डरा जा रहा था। उसके गेहुंए रंग के शरीर पर बालू के कण धूप में चमक रहे थे। हम दोनों ने इस हुड़दंग का समापन समुद्र की लहरों के किनारे बालू पर सूरज की किरणों में नहाए एक घनघोर मिलन के साथ किया। जब हम रिसॉर्ट लौटे तो अँधेरा हो चुका था। हम बेहद थके हुए थे। नहा धो के आराम करने के बाद डिनर कर हम दोनों आलस्य में लेटे हुए थे। तभी ऐमिलियो उठी और फिर लैपटॉप ऑन कर कैमरे से बहुत सी फोटो कॉपी कर डिटेल सहित अपने अच्छे वाले सौतेले पिता को मेल किया। 

इंडिया मेरे पास आने के बाद उसका यह डेली का काम था। गोवा में ऐमिलियो का मन ज़्यादा नहीं लगा। जब कि मैं बहुत एंज्वाय कर रहा था। और ज़्यादा रुकना चाहता था। मगर ऐमिलियो की ज़िद के आगे वहाँ से खजुराहो चल दिए। खजुराहो में ऐमिलियो के एकदम नए रूप से मेरा सामना हुआ। मैं उसके इस रूप से इस सोच में पड़ गया कि आख़िर यह लड़की है क्या? वहाँ पहुँचने के बाद पहले तो वह दो दिन तक होटल से बाहर ही नहीं निकली। 

होटल ही में खाना-पीना, टीवी या नेट पर कुछ टाइम बिताना या फिर सोना। वह बारह-बारह घंटे सोई। मैं बोर हो जाता। तो उसे कमरे में छोड़ कर कुछ देर को बाहर घूमने चला जाता। लेकिन बाहर भी ज़्यादा ठहर नहीं पाता। मन ऐमिलियो पर लगा रहता था। मैं उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता था। तीसरे दिन सुबह-सुबह घूमने निकलने का प्रोग्राम बना। 

स्थापत्य ख़ासतौर से मूर्तिशिल्प के अद्भुत नमूने वहाँ के मंदिरों को देखकर ऐमिलियो एकदम अवाक्‌ रह गई। मंदिरों की भव्यता और बाहर दीवारों पर स्त्री-पुरुषों की अकल्पनीय मैथुनी मुद्राओं में बनीं असंख्य मूर्तियों ने उसे अचंभे में डाल दिया। मैं भी पहली बार देख रहा था। तो अचंभे में मैं भी था। लेकिन ऐमिलियो जितना नहीं। मैं हतप्रभ था यह देखकर कि कैसे सदियों पहले शिल्पियों ने यह बनाया। कला तो अवर्णनीय है ही। सबसे बड़ी बात विषय वस्तु की है। कि इतने समय पहले सेक्स को लेकर समाज की क्या सोच रही होगी। 

रात में डिनर के बाद ऐमिलियो के साथ बेड पर बैठा टीवी देख रहा था। और ऐमिलियो दिन भर की डिटेल्स, फोटो मेल कर रही थी। बीच-बीच में मूर्तियों को लेकर कुछ-कुछ बातें भी करती जा रही थी। अपना काम ख़त्म कर उसने फिर शाम की तरह तमाम प्रश्न शुरू कर दिए। मैंने कहा, “देखो गाइड ने जो बताया मैं उतना भी नहीं जानता। इतिहास कभी पढ़ा नहीं इसलिए अपनी इस विरासत धरोहर के बारे में विश्वास से कुछ ज़्यादा नहीं कह सकता। सदियों पहले चंदेल राजाओं ने इन्हें बनवाया था। वास्तव में यह निर्माण बरसों में पूरा हुआ। इसमें कई राजाओं का योगदान है।” 

मैंने उसे ऋषि वात्स्यायन, मैथुनरत मूर्तियों के बारे में बताया कि शायद तब यहाँ के लोगों के लिए सेक्स एक प्राकृतिक, स्वाभाविक क्रिया, एक सामान्य काम रहा होगा। ऐसा भी मानते हैं कि अध्यात्म, मोक्ष का एक रास्ता सेक्स से होकर गुज़रता माना गया होगा। या मंदिरों में प्रवेश करने वाले विकारों से मुक्त हो प्रवेश करें। यदि वह मुक्त नहीं हैं, तो ये मैथुनरत मूर्तियाँ और विकारग्रस्त बना देंगी। और वो गंदे मन से अंदर नहीं जाएँगे। 
मैंने इसी क्रम में संभोग से समाधि की ओर रजनीश की किताब का उल्लेख करते हुए पूछा कि, “ऐमिलियो क्या उन मूर्तियों को देखते हुए तुममें उस समय सेक्स करने या इस तरफ़ दिमाग़ क्षणभर को भी गया था?” उसने कहा, “मैं इमेजिन नहीं कर पा रही थी कि पत्थरों पर ऐसा कुछ बनाया जा सकता है। सारी मूर्तियाँ लगता है जैसे अभी बोलने ही वाली हैं। जैसे वहाँ वह मूवी चल रही है और हम दर्शक बने देख रहे हैं। लेकिन इतने समय पहले लोग सेक्स को लेकर इतने ओपेन माइंडेड थे। यह यक़ीन नहीं कर पा रही हूँ।” 

ऐमिलियो ने उस दिन और फिर आगे कई दिन, जब तक वहाँ रहे रोज़ तमाम वीडियो बनाए, फोटो खींची। और तमाम तर्क-वितर्क किए। उसका यह तर्क बड़ा बचकाना सा लगा कि मूर्तिकारों के सामने तमाम स्त्री-पुरुषों ने यही करके दिखाया होगा। तभी वह यह बना पाए। कितने हिम्मती थे वो स्त्री-पुरुष जिन्होंने लोगों के सामने सेक्स किए। ऐसे-ऐसे पोज़ में। 

उस वक़्त बातचीत में मैंने उसे जो थोड़ी-बहुत जानकारी ऋषि वात्स्यायन की दी थी। वह सब उसके रोमांच उसके एक्साइटमेंट को बढ़ाने वाली साबित हुईं। उस दिन उसने मिलन कई ऐसे पोज़ में संपन्न किए जो वहाँ देखे थे। और अमूमन आज एक आम आदमी नहीं करता। लेकिन ऐमिलियो जब तक रही तब तक खजुराहो को दोहराने का प्रयास अवश्य किया। वहाँ से उसने तमाम चीज़ें लोहे, तांबे, पत्थर की ऐसी खरीदीं जिनमें सेक्स की कृतिया बनी थीं, या उन मूर्तियों की अनुकृति थीं। वह मेरे साथ वहाँ से थोड़ी ही दूर कालिंजर और अजेय गढ़ क़िले को भी देखने गई। लेकिन वहाँ उसका मन नहीं लगा। 

इस पूरी खजुराहो यात्रा में मैंने ऐमिलियो की एक और बात जानी। कि वह सामने वाले को उतना ही अपने बारे में जानने देती है, जितना वह चाहती है। मैं तमाम कोशिशों के बाद भी उससे उतना ही जान पा रहा था जितना कि वह चाह रही थी। उस दिन होटल में मैंने जाना कि वह अंग्रेज़ी लिट्रेचर भी बहुत अच्छा जानती है। वह ड्रॉमा की बहुत शौक़ीन है। अंग्रेज़ी के प्रमुख ड्रामा राइटर्स को उसने ख़ूब पढ़ा है। 

बचपन में वह एक्टिंग करना चाहती थी, प्ले करना चाहती थी लेकिन हालात ने उसका यह सपना तोड़ दिया। उसी से मैंने पहली बार जाना कि, महान अंग्रेज़ी नाटक लेखक विलियम शेक्सपीयर से पहले सोलहवीं सदी में उनसे भी बड़े नाटककार क्रिस्टोफर मारलो हुए थे। जो उनतालीस वर्ष में ही मार दिए गए थे। उन्हीं के नाटकों को पढ़ कर शेक्सपीयर आगे बढ़े और महान बने। 

इसी क्रम में उसने एक लेखिका का वर्णन किया जिनका नाम मैं क्रिस्टोफर मारलो की ही तरह पहली बार सुन रहा था। यह थीं ईव इंसलर। जिनकी ऐमिलियो दीवानी थी। वह उनको महिलाओं के मनोविज्ञान को समझने वाली सबसे अच्छी लेखिका मानती थी। उसने उनके ड्रामा ‘वजाइना मोनोलॉग’ को आधुनिक साहित्य का सबसे बोल्ड और कालजयी रचना कहा। मैंने कहा देखो, “यह तुम्हारा विचार हो सकता है। समय के साथ परिवर्तन होता रहता है। 

“अब तुम देखो ना कि हमारे देश में वात्स्यायन जैसे ऋषि हुए जिन्होंने दुनिया का पहला ‘कामसूत्र’ लिखा। सदियों बाद आज भी वह दुनिया में सबसे ज़्यादा बिकने वाली किताबों में शामिल है। खजुराहो जैसी सेक्स में रत मूर्तियाँ बनीं। लेकिन आज देश में हम प्वाइंट वन परसेंट को छोड़ कर अन्य महिलाओं के सामने ईव इंसलर के ड्रामा ‘वजाइना मोनोलॉग’ का नाम भी नहीं ले सकते।” खुलकर बात हुई तभी मुझे याद आया कि भारत में तमाम अड़चनों के बाद एक दो बार यह ड्रामा प्ले हुआ है। वह भी विशेष वर्ग के दर्शकों के सामने। 

मैंने उसके बताए डॉयलाग को दोहराते हुए कहा, “ऐसा यहाँ पब्लिकली प्ले होने वाले ड्रामा में बोल पाना मुश्किल है।” मैं लिट्रेचर के मामले में ऐमिलियो के सामने कहीं नहीं टिक पा रहा था। मैंने कामसूत्र की बात बताई तो उसने जापान के शुंगा एलबम का नाम बताया कि, उसमें सेक्स के अनेकों पोज़ बनाए गए हैं। यह एलबम विशेष अवसर पर लोगों को भेंट किए जाते हैं। 

मैंने मन में ही कहा कि भारत में मैंने किसी को ‘कामसूत्र’ गिफ़्ट करते ना देखा है ना सुना। ऐमिलियो को जैसी जानकारी थी उससे मुझे लगा कि यदि इसे सही परवरिश, पढ़ने-लिखने का ढंग से मौक़ा मिला होता तो यह एक शानदार कॅरियर बनाती। जैसा इसने बताया उस हिसाब से इसकी माँ और इसके देश लाइबेरिया का गृह युद्ध इसकी बरबादी का मुख्य कारण हैं।

ऐमिलियो के साथ हफ़्तों का भारत भ्रमण कर जब हम वापस घर पहुँचे तब तक मैंने यह अहसास किया कि ऐमिलियो के प्रति मुझमें कुछ भावनात्मक लगाव पैदा हो गया है। उसके पहले तो बस एक दूसरे से एक अजब क़िस्म की स्थितियों में मिलना और एक दूसरे को कंपनी देने या लेने जैसी ही बातें थीं। ऐमिलियो में भी मैं कई बार ऐसा महसूस कर रहा था। जब वह अंतरंग क्षणों में या यूँ ही जिस तरह से मिलती या खाते-पीते समय जैसा विहेव करती, उसमें मैं भावनात्मक लगाव का पुट महसूस करता था। जब हम घर आए तो ऐमिलियो की अपने देश वापसी के मात्र पाँच दिन और बचे थे। 

यह पाँच दिन हमने फिर से दिल्ली घूमने खाने-पीने या फिर घर में ही मौज-मस्ती में बिताए। जहाँ-जहाँ गए वहाँ के बारे में भी ख़ूब बातें हुईं। इस बीच मैंने देखा कि उसके जाने की जैसे-जैसे तारीख़ निकट आ रही है मेरी बेचैनी वैसे-वैसे ज़्यादा बढ़ती जा रही है। मेरा मन कर रहा था कि ऐमिलियो जाए ही नहीं। वो मेरे ही साथ रहे। इस स्थिति के चलते मैंने ऐमिलियो की जितनी चाहत थी उससे भी कहीं ज़्यादा शॉपिंग कराई। उसकी मन-पसंद चीज़ों का ढेर लगा दिया। सच यह था कि मेरे मन में उससे शादी कर लेने की भावना एकदम उमड़ सी पड़ रही थी। मैं विधिवत शादी कर उसे अपने देश का नागरिक बनाना चाहता था। जब कि ऐमिलियो ने पहले कई बार लिवइन के लिए संकेत किया था। लेकिन मैं इससे आगे की सोच रहा था। 

आख़िर जाने को एक दिन रह गया तो मैंने उससे कहा, “ऐमिलियो तुम्हारे साथ इतने दिनों रहने के बाद मैंने तुम्हें जितना जाना समझा है, मेरे मन पर तुम्हारा जो प्रभाव पड़ा है। उससे मैंने ये डिसाइड किया है कि यदि तुम्हें एतराज़ ना हो तो मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। तुम्हें यहीं की नागरिकता मिल जाएगी। देखा जाए तो यह दो महीने से लिवइन में तो हैं ही। तुम चाहोगी तो हम दोनों एक बढ़िया जीवन जी सकते हैं। बच्चे भी कर सकते हैं।” मेरी इस बात पर ऐमिलियो ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी उससे मैं शुरू में ख़ुशी से एकदम पागल-सा हो उठा। 

उसने पहले तो कुछ क्षण मुझे एक-टक देखा, मुझे लगा कि उसकी आँखें भर आई हैं। फिर उसने मुझे अपनी बाँहों में भर कर दर्जनों जगह चूम लिया। मुझे जकड़े बैठी रही। फिर बोली, “रोहिट मैं भी यही चाहती हूँ। लेकिन डरती हूँ कि कहीं मेरी वजह से तुम्हें कोई दिक़्क़त ना हो जाए। मैं नीग्रो हूँ। आज तुम मुझे पसंद कर रहे हो। कहीं जल्दी ही तुम मुझे अधर में ना छोड़ दो। 

“कहीं यह ना कहो कि हमारे बीच बहुत बड़ा एज गैप है। हमारे विचार इतने नहीं मिलते कि हम जीवनभर साथ रह सकें। इन दो महीनों में मैंने जितना तुम्हारे देश को जाना। जितना देखा है, उससे भी यह सोचती हूँ कि तुम अपने कंट्री, अपने लोगों की बातों को कैसे फ़ेस कर पाओगे? रोहिट मैं तो लाइफ़ पार्टनर बनने का सपना लेकर ही आई हूँ तुम्हारे पास। तुम्हें परेशानी ना हो बस यही एक मात्र मेरी चिंता है।” 

उसकी बातों ने मुझे और भावुक कर दिया। उसे एक बार गले से लगा कर कहा, “ऐमिलियो तुम जितनी बातें कह रही हो यह कोई मैटर ही नहीं है। रिश्ते में एज गैप के लिए तुमने तो स्वयं पहले ही कहा था कि एज कोई मैटर नहीं रखता। फ़ैमिली से मेरा कोई सम्बन्ध ही नहीं है। इसलिए वहाँ से सहमति-असहमति का प्रश्न ही नहीं। बाक़ी हमारा समाज अब इतना व्यस्त है कि उसे ये सब देखने की फ़ुरसत ही कहाँ? सबसे बड़ी बात यह कि तुमने कहा कि तुम नीग्रो हो। इसलिए मैं जल्दी ही अलग हो जाऊँगा। मेरा यक़ीन करो ऐमिलियो ऐसा कुछ नहीं है। मैं तुम्हें इमोशनली चाहने लगा हूँ। असल में मुझे लगता है कि यह तुम्हारा एक डर है और जल्दी ही दूर हो जाएगा। तुम्हारे पास आकर मन का रिश्ता पहले ही बन गया है। तन का बाद में। 

“फिर तुम्हारा रंग एकदम नीग्रो जैसा कहाँ है? तुम्हारे रंग को हम व्हीटिश या गेंहुआ कहते हैं। तुम्हारा रंग मुझसे ज़्यादा दबा नहीं है। ऐमिलियो मैं तुम से बहुत साफ़ कहना चाहता हूँ कि कोई समस्या ही नहीं है। बस तुम्हारी हाँ चाहिए। जो अभी तक नहीं मिली। हमारे तुम्हारे बीच सही मायने में यही पहली और आख़िरी समस्या है।” इसके बाद मेरी और कई बातों के बाद ऐमिलियो मेरे गले से लग गई। मुझे बाँहों में कस लिया था। वो एकदम चुप थी। कुछ ही पलों बाद मैंने अपने कंधे पर कुछ गीलापन महसूस किया। मैंने दोनों हाथों से पकड़ कर उसका चेहरा सामने किया। वह रो रही थी। 

उसके आँसू देख कर मैं भी एकदम भावुक हो उठा। उसे ऐमिलियो-ऐमिलियो कहते हुए बाँहों में भर लिया। वह सुबुक पड़ी। उसने सुबुकते हुए कहा, “रोहिट मैं जाना ही नहीं चाहती। मैं भी तुम्हारी ही तरह सोच रही हूँ। कई दिन से यही सोच रही हूँ।”

मैंने कहा, “ऐमिलियो जब हम दोनों यही सोच रहे हैं तो फिर कोई बाधा ही नहीं है। रुक जाओ। तुम जाओ ही नहीं। क़ानूनी अड़चनों का भी कोई हल निकाल ही लेंगे। तुम चाहो तो कल ही कोर्ट मैरिज कर लेते हैं।” 

ऐमिलियो ने अलग होते हुए कहा, “ठीक है रोहिट। हम दोनों शादी करेंगे। लेकिन इसके पहले मुझे एक बार अपने देश जाना ही पड़ेगा।” ऐमिलियो की ‘हाँ’ ने मेरी ख़ुशियों को एक झटके में सातवें आसमान पर पहुँचा दिया। ख़ुशी से मैं पागल हो उठा। हमारे बीच यह तय हुआ कि ठीक है वह अपने देश जाए। और जितनी जल्दी हो अपने सारे काम निपटा कर आ जाए। फिर बिना एक पल गँवाए हम दोनों शादी कर के एक साथ जीवन बिताएँगे। ख़ुशी के मारे मेरे दिमाग़ में एक बार भी यह नहीं आया कि उससे कहता कि जाने से पहले शादी कर के जाओ। 

मैं ख़ुशी से इतना पगलाया हुआ था कि उस दिन ऐमिलियो के साथ फिर घूमने गया। सेनेगल जाने से पहले उसे काफ़ी शॉपिंग करनी थी। अब वह अपने मूल देश लाइबेरिया के बजाय जहाँ शरणार्थी थी उसी देश सेनेगल को अपना देश कहती थी। उसकी वापसी के पहले मैं शादी के सपने देखते हुए उसे जोश में चार लाख रुपए से अधिक की शॉपिंग करवा बैठा। 

उसके लिए एक डायमंड पेंडेंट गोल्ड चेन के साथ लिया। एक शो रूम में साड़ी पहने खड़ी एक ख़ूबसूरत सी डमी देखकर दिमाग़ में एक ख़ूबसूरत सी शरारत सूझी और ऐमिलियो के लिए एक महँगी साड़ी ब्लाउज का सेट ले आया। लौटते समय ढेर सारी गुलाब की पखुड़ियाँ, सेंट ले आया। साड़ी और अन्य चीज़ों के लिए उसने पूछा तो कुछ बताया नहीं। यहाँ तक की हज़ारों रुपए मेकअप के सामान में ही ख़र्च कर दिए। 

उस रात मैंने उसे अपने देश सेनेगल जाने से पहले ख़ूबसूरत सरप्राइज़ देने की ठानी हुई थी। साथ ही ख़ुद भी एक अद्भुत अहसास से गुज़रने का अनुभव करना चाहता था। तो रात मैंने कहा, “जब तक मैं ना कहूँ तब तक प्लीज़ बेडरूम में ना जाना।” वह मान गई। फिर मैंने बेडरूम को फूलों से सुहागसेज में बदल दिया। उसके बाद ऐमिलियो को बताया कि यह साड़ी भी तुम्हारे लिए लाया हूँ। उसने आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा, “इसे पहनेंगे कैसे? मुझे तो आती नहीं।”

मैंने कहा, “ऐमिलियो गुगल बाबा के रहते यह नामुमकिन नहीं है।” फिर यू-ट्यूब पर साड़ी पहनने के तरीक़े हम दोनों ने देखे। उसके बाद सेंट के पानी से दोनों ने ख़ूब नहाया। फिर मैंने उसे साड़ी-ब्लाउज आदि पहनाया। उसका मेकअप किया। मेकअप के बाद अपने को शीशे में देख कर उसने ख़ुशी से कहा, “ओह मॉय गॉड रोहिट इट्स मी। आई कॉन्ट विलीव इट, इट्स अमेजिंग।” 

संयोग से उसे मैं बहुत अच्छे ढंग से साड़ी पहनाने में सफल हो गया था। वह साउथ इंडियन फ़िल्मों की हिरोइन सी नज़र आ रही थी। क्रीम कलर की काफ़ी काम की हुई डिज़यनर साड़ी थी। महरून लिपिस्टक, डार्क लिप लाइनर, ख़ूबसूरत लाल बिंदी, बस माँग में सिंदूर नहीं था। उसे भी मैं कुछ देर में भरने वाला था। लेकिन पहले मैंने हिंदी फ़िल्म का यूट्यूब पर विवाह वाला दृश्य दिखाया। और सुहागरात का भी। इसे देखकर वह कुछ गंभीर सी दिखने लगी। मुझसे बोली, “रोहिट मैं नहीं समझ पा रही हूँ कि तुम क्या कर रहे हो? क्यों कर रहे हो? मगर जो भी है मुझे अच्छा लग रहा है। ख़ुशी हो रही है। मैं रोमांचित हो रही हूँ।” 

मैंने कहा, “ऐमिलियो मैं ख़ुशी बटोर रहा हूँ। अपने लिए, तुम्हारे लिए। मैं अपने और तुम्हारे बिखरे हुए जीवन को एक जगह समेट, सजा कर दुनिया के तमाम ख़ुशहाल कपल्स की तरह जीवन जीना चाहता हूँ। मैं उसी की शुरूआत कर रहा हूँ। हम दोनों अब हमेशा साथ रहेंगे। ख़ुश रहेंगे। एक कंप्लीट सेटल्ड लाइफ़ जिएँगे।” मेरी बातों का उस पर ना जाने क्या असर हो रहा था कि उसके होंठों, चेहरे पर मैं मुस्कान और भावुकता, की लकीरें साफ़ देख रहा था। 

घर में भगवान का कोई चित्र या मूर्ति के नाम ड्रॉइंगरूम में एक कैलेंडर टँगा था। जिसमें तारीख़ों के बॉक्स के ऊपर शिव-पार्वती हिमालय पर्वत पर एक हिम खंड पर बैठे हुए थे। मैं उसी कैलेंडर के सामने ऐमिलियो को लेकर खड़ा हुआ और साथ में लाए सिंदूर की डिबिया निकालकर उसे फ़िल्म की शादी की बात याद दिलाई और ईश्वर को साक्षी मान कर ऐमिलियो से माँग भरने की इजाज़त माँगी। उसे मैं इसका सारा मतलब साफ़-साफ़ बता चुका था। इजाज़त माँगने पर वह कुछ देर मुझे अपलक देखती रही। उस समय उसके चेहरे पर आ रहे तमाम भाव मैं नहीं समझ पा रहा था। मुझे लगा कि उसकी आँखें भरती जा रही हैं। ख़ुद को भी मैं भावुकता में डूबता हुआ महसूस कर रहा था। 

क़रीब पंद्रह सेकेंड के बाद ऐमिलियो ने अपना सिर हल्का सा आगे झुका दिया। उसे मैंने उसकी सहमति समझी और माँग में सिंदूर भर दिया। चुटकी से कितनी बार सिंदूर भरना होता है यह मुझे मालूम नहीं था। तो झट तर्क लगाया, कि सात फेरे लेते हैं। तो सात बार सिंदूर भी भर देते हैं। ईश्वर को साक्षी मानकर कर रहे हैं। पवित्र साफ़ मन से कर रहे हैं। ईश्वर अंतरयामी है। सब जानता है। ग़लत, सही वह सब देख समझ लेगा। ठीक कर देगा। सिंदूर भरने के बाद मैंने उसे गले से लगाकर चूम लिया। वह अखंड सुहागन दिखाई दे रही थी। माँग भरने की प्रक्रिया में ना जाने क्या था कि हम दोनों के चेहरे पर भावुकता मुस्कान दोनों साथ-साथ थी। अब हम बोल कम रहे थे। चेहरे के भावों से ज़्यादा बातें कर रहे थे। 

ऐसे मौक़े पर नई-नवेली दुलहन को जैसे घर की महिलाएँ ख़ास तौर से ननदें, जिठानी जिस प्रकार सुहाग सेज पर ले जाकर बिठा देती हैं, वैसे ही मैंने ऐमिलियो को बेडरूम में ख़ुद सजाए बेड पर बिठा दिया। फूलों की पंखुड़ियों से सजे और सेंट से मह-मह महकते बेड पर उसे बिठा कर मैंने एक शरारत और की। उसका चेहरा घूँघट से ढँक दिया। फिर एक गिलास में केसर मिला दूध लाकर रख दिया। 

उसे याद दिला दिया कि फ़िल्म में जो देखा है आगे वह प्रक्रिया तुम पूरी करोगी। इन सब के दौरान वह तीन-चार बार हँसी। और कहा, “रोहिट यह सब क्या कर रहे हो मैं समझ नहीं पा रही हूँ, लेकिन अच्छा लग रहा है।” 

मैंने कहा, “ऐमिलियो अभी और अच्छा लगेगा। हम एक ऐसे क्षण को एंज्वाय करने वाले हैं जिसका मौक़ा लकिएस्ट पर्सन को ही मिलता है।”

फिर मैं कमरे से बाहर आ गया। और अपने कपड़े चेंज कर दो मिनट में ही बेडरूम में पहुँच गया। मैं जानता था कि ऐमिलियो ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकती। मगर कमरे में मेरे पहुँचते ही ऐमिलियो ने जिस तरह से मुझे सरप्राइज़ दिया। मुझे चौंकाया वह अद्भुत था। मेरे लिए अकल्पनीय था। मैं पहुँचा तब भी वह घूँघट किए ही बैठी थी, कि तभी बिजली सी कौंध गई। 

जब ऐमिलियो एक भारतीय दुलहन की तरह उठी और झुक कर दोनों हाथों से मेरे पैर छू लिए। मैं अवाक्‌ रह गया। और उसे उठा कर बाँहों में भरकर चूम लिया। यूट्यूब पर देख कर वह इतनी निपुणता के साथ यह कर गुज़रेगी यह मैंने सोचा भी नहीं था। मैं फिर भावुक हो उठा। मैं उसे लेकर बेड पर बैठ गया। तभी उसने बेड के बग़ल में रखे दूध का गिलास उठाकर उसे पिलाने-पीने की रस्म भी पूरी कर डाली। और मैंने उसे सुहाग रात का गिफ़्ट डायमंड पेंडेंट उसके गले में डाल दिया। उसे पहन कर वह ख़ुशी से भर गई। 

मेरे हाथों को पकड़ कर बोली, “रोहिट मैंने सब ठीक तो किया। कोई मिस्टेक तो नहीं हुई।” उसके चेहरे को दोनों हाथों में भरते हुए मैंने कहा, “एक्सीलेंट।” फिर हमने एक भारतीय नवविवाहित की तरह ही ख़ूब ज़ोरदार ढंग से रात-भर सुहागरात मनाई। उसके पहले उसे अपने प्यार की सबसे ख़ूबसूरत बेशक़ीमती निशानी, नया नाम दिया था। ’शेनेल’ जिसे सुन कर उसने अपनी ख़ुशी ‘किस’ कर के व्यक्त की थी। 

मैं उस रात को उसके साथ जी भर कर जी लेना चाहता था। निश्चित ही वह भी यही कर रही थी। उस रात मैंने पहले उसकी व्हिस्की की डिमांड यह कह कर मना कर दी थी कि, “आज हमें नहीं पीना चाहिए।” मगर कुछ देर में उसे भी दिया और ख़ुद भी पी कि इसका दिल ना दुखे। हमारी सुहागरात भोर होने के क़रीब तक चलती रही। अगले दिन हम दोनों बहुत देर से उठे और फिर दिनभर उदास रहे। ना वह ज़्यादा बोल रही थी और ना मैं। 

उसके अपने देश जाने का समय जैसे-जैसे क़रीब आ रहा था यह उदासी और गहरी होती जा रही थी। आख़िर यह भारी समय भी बीत गया। और रात में मैं उसे इंदिरा गाँधी एयर पोर्ट पर छोड़ने गया। वह बराबर मेरा हाथ पकड़े रही। चेक-इन के बाद वह प्लेन के रनवे पर आने पर अन्य यात्रियों की तरह चलने को उठ खड़ी हुई। हम फिर गले मिले। मैंने ‘हैप्पी जर्नी’ बोला उसने मुझे अपना ख़्याल रखने को कहा। फिर चल दी। मुड़-मुड़ कर पीछे देखती, हाथ हिलाती जाती। उसकी आँखों में आँसू चमक रहे थे। और गले में वह डायमंड पेंडेंट भी। 
वह छह हज़ार मील दूर अपने देश जा रही थी। लौट कर हमेशा के लिए मेरे पास आने के लिए। मैं उसे ओझल हो जाने तक देखता रहा। और फिर प्लेन को टेक ऑफ़ कर आसमान में ओझल हो जाने तक। मेरी आँखों से बार-बार आँसू टपक रहे थे। मन बार-बार शेनेल, शेनेल कह रहा था। शेनेल जितनी जल्दी हो चली आना। अब तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है। मैं तुम्हें अपनी लाइफ़ पार्टनर ही नहीं पत्नी मान चुका हूँ। बना चुका हूँ। शेनेल, शेनेल, मेरी शेनेल। घर लौटा तो मैं रातभर उसकी याद में जागता रहा। सिगरेट पीता रहा। और लैपटॉप पर बार-बार पिछली रात की वह क्लिपिंग्स देखता रहा जिसे मैंने और शेनेल ने अपने-अपने मोबाइल से बनाया था। और शेनेल ने अपने अच्छे वाले सौतेले पिता को मेल किया था। 

अगले पूरे दिन मैं घर पर पड़ा रहा, बार-बार मेल चेक करता। ऐमिलियो के नंबर पर रिंग करता। मगर वह ऑफ़ मिलता। कोई मेल नहीं आई। मैंने सोचा सफ़र के थकान के कारण सो रही होगी। उठेगी तो करेगी। मगर धीरे-धीरे एक दिन, दो दिन, और फिर कई दिन बीत गए। ना उसका मोबाइल ऑन हुआ, ना मेल आई। फिर नंबर आउट ऑफ़ ऑर्डर हो गया। मेल बाउंस होने लगी। उसके अच्छे वाले सौतेले पिता और माता का नंबर भी आऊट ऑफ़ ऑर्डर हो गया। मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था कि मैं ठगा गया। तन, मन, धन तीनों तरह से। हर तरह से। 

बीतते समय ने अंततः पक्का यक़ीन करा दिया कि छह हज़ार मील दूर से आकर दो महीने में दस लाख का चूना लगा गई। कितनी अच्छी, लाजवाब थी उसकी साज़िश कि विदेश में दो महीने खाना, पीना, घूमना, गाइड, सेक्स पार्टनर सब कुछ। जाते-जाते लाखों का सामान ले गई। सिर्फ़ साड़ी को छोड़ कर। जिसे ग़ुस्से में मैंने जला दिया। मैं इतना विवश था कि कुछ नहीं कर सकता था। किसको बताता? क्या बताता? शादी का जो वीडियो बनाया था वैसी शादी का कोई क़ानूनी अर्थ नहीं। क़ानूनी मदद लूँ भी तो दुनिया हँसेगी अलग, कि आधी उम्र की लड़की को दो महीने साथ रखा, ऐश करते रहे तब यह सब पता करने का होश नहीं था। दोस्तों की सलाह तब याद नहीं आई कि देखना इन धूर्त लड़कियों, इनकी बातों में उलझ ना जाना। 

मगर उदासियों से हर बार पार पा कर आगे बढ़ जाना तो मेरी आदत है। तो कुछ ही दिनों में इस उदासी को भी तार-तार कर फिर से अपने अब तक के सबसे सुरक्षित वफ़ादार साथी गुड्स ट्रेन के लोहे के घड़-घड़ करते गॉर्ड के डिब्बे में सवार हो गया। मीलों-मील की यात्रा करने। सबका माल सुरक्षित पहुँचाने के लिए। गॉर्ड बोगी की घड़-घड़ाहट दिमाग़ की नसें चीर दें इससे बचने के लिए मैं फिर अक़्सर किसी ड्यूटी पार्टनर को साथ ले लेता हूँ। 

ड्यूटी पर एक सेक्स वर्कर को साथ लेकर चलने से नौकरी जाने का ख़तरा है तो क्या? अकेलापन नशों को चीर तो नहीं रहा। और शेनेल! ये नहीं कहूँगा कि उसकी याद नहीं आती। आती है, अब भी आती है। और तब उसके लिए कोई अपशब्द नहीं निकलता। बस हँसी आती है। और याद आते हैं साथ बिताए ख़ूबसूरत पल। तब अनायास ही मुँह से निकल जाता है। शेनेल . . .!

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