सत्या के लिए

01-01-2023

सत्या के लिए

प्रदीप श्रीवास्तव (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

वह उस बार में रोज़ ही देर शाम को बैठ कर घंटे भर तक व्हिस्की पीती है, जो शहर का एक ठीक-ठाक बार कहा जाता है। जगह ज़्यादा बड़ी होने के कारण शान्ति से देर तक बैठ कर पीने वालों का वह पसंदीदा बार है।

वह बाहर से लेकर भीतर तक सिंपलीसिटी इज़ द बेस्ट ब्यूटी के सिद्धांत पर बना लगता है। उसकी सभी दीवारें सुपर व्हाइट कलर की हैं।

सभी फ़र्नीचर स्टील के हैं। बार-टेंडर से लेकर सारा स्टाफ़ सफ़ेद रंग की ही ड्रेस में रहता है। शराब से लेकर खाने-पीने की हर चीज़ बड़ी सादगी से परोसी जाती है।

उसके सेकेण्ड फ़्लोर पर केवल जोड़ों में आए लोग ही बैठ कर पी सकते हैं। वहाँ का सारा स्टाफ़ लेडीज़ है। क्योंकि मैं और वह दोनों ही वहाँ अकेले ही बैठ कर पीते हैं, इसलिए हमारी जगह नीचे ही होती है।

पूरे समय वहाँ पर बहुत धीमा संगीत बजता रहता है। दीवारों पर हॉलीवुड या बॉलीवुड की नायिकाओं की नहीं, बल्कि अमेरिका की एक विख्यात पत्रिका में छपने वाली मॉडलों की क्लासिक न्यूड ए थ्री साइज़ की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें हर तरफ़ लगी हुई हैं।

सबसे बड़ी बात यह कि शहर के अन्य बार कि अपेक्षा वहाँ चार्जेज बहुत कम हैं। इसलिए भी वह रोज़ पीने वालों की पसंदीदा जगह है।

रोज़ पहुँचने वाली वह क़रीब पैंतीस वर्षीय हृष्ट-पुष्ट शरीर की महिला है। वह हमेशा नीले रंग की जींस और उस पर ढीली-ढाली डेनिम शर्ट पहन कर आती है। उसके बाल कंधे से नीचे ब्रेज़री स्ट्रिप तक कटे हुए हैं। जिसे वह बड़ी लापरवाही से मोड़-माड़ कर क्लच लगा देती है या कभी-कभी रबड़ बैंड।

उसके चेहरे पर हमेशा ग़ुस्से और चिंता की लकीरें ही दिखाई देती हैं। वह एकदम पीछे कोने की टेबल पर ही जाती है। वह किस वजह से रोज़ ही पी रही है, यह तो मुझे नहीं पता लेकिन कुछ न कुछ गंभीर परेशानी उसके साथ ज़रूर है, यह निश्चित है।

मैं भी रोज़ पहुँचता हूँ। मैं कोई ऐसा पियक्कड़ नहीं हूँ कि रोज़ बिना पिए नहीं रह सकता। लेकिन जब साल भर पहले पत्नी बच्चों को लेकर अलग रहने लगी, तो बिना पिए मैं रात को सो नहीं सकता, इसलिए शाम यहीं बीतने लगी है।

पत्नी इसलिए छोड़ कर चली गई, क्योंकि वह यह बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी कि मैं बाहर अन्य औरतों से भी सम्बन्ध रखूँ। मैं बार-बार उससे कहता था कि ‘समझने की कोशिश करो, मैं किसी को न तो घर ला रहा हूँ, और न ही किसी से शादी करने जा रहा हूँ, न ही तुम्हारे हिस्से का टाइम, पैसा उन औरतों पर ख़र्च करता हूँ। यार थोड़ा सा मूड फ़्रेश हो जाता है, दुनिया भर के तनाव से थोड़ी मुक्ति मिल जाती है।’

लेकिन मेरी हर बात, तर्क का वह एक ही उत्तर देती थी कि ‘तुम्हारा यह तनाव क्या मेरे साथ नहीं ख़त्म हो पाता? क्या मैं तुम्हारा तनाव दूर नहीं कर पाती, जो तुम इधर-उधर मुँह मारते फिरते-रहते हो।’

वह बड़े गंदे-गंदे शब्दों का प्रयोग करती। लेकिन मैं उसकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानता था। उसकी कठोर से कठोर बात को हँस कर टाल दिया करता था। क्योंकि अंततः सच तो यही है कि कई औरतों से सम्बन्ध मेरे ही थे। वह चली गई लेकिन फिर भी यह सारे सम्बन्ध बने हुए हैं।

लेकिन यह सारे सम्बन्ध ऐसे नहीं हैं कि मेरी घर गृहस्थी को डिस्टर्ब कर सकें, मतलब कि मेरी पत्नी का स्थान ले सकें। लेकिन बार-बार इतना सब-कुछ समझाने के बावजूद, मेरे लिए अब भी हर पल स्मरणीय पत्नी महोदया किसी भी स्थिति में मेरी बात समझने को तैयार नहीं हुईं, अब भी नहीं है।

दोनों बेटों को लेकर अलग रह रही है। अपने मायके भी नहीं गई। नौकरी करती है, इसलिए उसे रुपए पैसों के लिए किसी के सहारे की ज़रूरत नहीं है। उसे मैं घमंडी कहता, तो वह कहती मैं स्वाभिमानी हूँ, घमंडी नहीं।

मेरा पूरा विश्वास है कि यदि वह नौकरी नहीं कर रही होती, तो मुझे इस तरह छोड़ कर कभी नहीं जाती। लड़ती-भिड़ती सब-कुछ करती, कुछ भी, लेकिन मेरे साथ ही रहती। मेरा परिवार इस तरह बिखरता नहीं।

पत्नी बच्चे होते हुए भी, अपने बड़े से घर में दीवारों से बाते नहीं कर रहा होता। उसकी नौकरी और दूसरी औरतों से मेरे सम्बन्ध बस यही दो मुख्य कारण हैं मेरे परिवार के बिखरने के। वास्तव में उसकी नौकरी आंशिक कारण ही कही जाएगी।

कारण जानने के बावजूद मैं अपनी लत से मजबूर हूँ। न ही मैं अनन्य सुंदरियों को छोड़ पा रहा हूँ, न ही वो मुझे। पता नहीं कामदेव का प्रकोप मुझ पर से कब समाप्त होगा, और वह अनन्य सुंदरियाँ देवी रति के प्रकोप से मुक्त होगी।

इसीलिए मित्रों से कहता हूँ कि भले ही नशा कर लेना, लेकिन किसी चीज़ की लत नहीं लगने देना। यह लत ही तो है कि यह डेनिम वुमेन मेरी तरह रोज़ बार में आकर पीती है। लेकिन यह कैसे लती बनी, किन कारणों से इस तरह से पीती है, यह जानने की मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी, हर दिन। एक कारण यह भी हो सकता है कि जाने-अनजाने वह मुझे आकर्षित करने लगी थी।

जिस क्षण मुझे इस बात का अहसास हुआ, मैंने मन ही मन कहा, “हे कामदेव महाराज मुझ पर ही यह अतिशय कृपा क्यों? इस मृत्यु-लोक में मुझे रहने लायक़ छोड़ेंगे कि नहीं।”

मेरा मन उससे बात करने के लिए व्याकुल हो रहा था। एक दिन मैं बार के बाहर तब-तक उसका इंतज़ार करता रहा, जब-तक वह आकर अंदर अपनी जगह बैठ नहीं गई।

उस समय उसकी आस-पास की टेबल पर और कोई नहीं था। छह-सात लोग आगे बैठे हुए थे। लेकिन मैं सीधे उसके पास पहुँचा और बहुत ही शालीनता से उसके सामने वाली चेयर की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा, “क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?”

वह नज़रें झुकाए अभी तक मोबाइल में कुछ देख रही थी। मेरी आवाज़ सुनते ही उसने चेहरा ऊपर किया, कुछ क्षण मुझे देखा, फिर बोली, “जैसी आपकी इच्छा, मुझे आपत्ति क्यों होगी?”

मैं उसे धन्यवाद कहता हुआ बैठ गया। मन में ख़ुश हुआ कि मैं इसकी तरफ़ पहला क़दम ठीक-ठीक बढ़ा पाया। लेकिन वह अपने मोबाइल में ऐसे व्यस्त हो गई, जैसे मैं वहाँ पर हूँ ही नहीं। इसी बीच वेटर आ गया, उसने रोस्टेड चिकन का ऑर्डर किया एक ठीक-ठाक ब्रांड की व्हिस्की के साथ।

मैंने भी अपने ब्रांड की व्हिस्की, सीख कबाब का ऑर्डर दिया। मैं उससे बातचीत शुरू करने का अवसर ढूँढ़ रहा था, लेकिन वह बिल्कुल भी अवसर नहीं दे रही थी।

रोज़ की तरह व्हिस्की पीने लगी, लेकिन चिकेन को हाथ ही नहीं लगाया। तभी मेरा ध्यान गया कि उसने रोज़ की तरह सिगरेट नहीं निकाली है। मैंने सोचा कि यह एक अच्छा अवसर है कि मैं इसे सिगरेट ऑफ़र करूँ। बातचीत करने का बेस यही तैयार करेगा।

मैंने सिगरेट, लाइटर निकाला और पूरी विनम्रता के साथ उसे ऑफ़र किया, लेकिन उसने नज़र उठा कर देखे बिना ही मुझसे कहा, “जी नहीं, धन्यवाद।”

लेकिन बात आगे बढ़ाने का सूत्र मैंने पकड़ लिया था। मैंने कहा, “मैं आपको रोज़ ही यहाँ पर देखता हूँ। क्या हम एक दूसरे से परिचित होते हुए व्हिस्की एन्जॉय कर सकते हैं।” उसने बहुत ही बेरुख़ी दिखाते हुए कहा, “आप मुझे डिस्टर्ब कर रहे हैं।”

यह सुनकर मैं थोड़ा निराश हुआ। सॉरी बोल कर चुपचाप पीने लगा। रोज़ की तरह सींख कबाब आज भी बहुत शानदार बना था। दिन में किसी वजह से मैं लंच नहीं कर सका था, इसलिए मुझे भूख लगी हुई थी। गरम-गरम कबाब मैंने जल्दी-जल्दी खा लिए।

मैं बहुत टाइम लेकर पीता हूँ, जब मेरा पहला पैग ख़त्म हुआ तब-तक वह तीसरा भी आधा पी चुकी थी। मगर चिकन को उसने अभी हाथ भी नहीं लगाया था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या हुआ है। रोज़ तो यह जल्दी-जल्दी खा लेती है और फिर धीरे-धीरे व्हिस्की और सिगरेट पीती रहती है।

मेरा ध्यान इस तरफ़ भी गया कि आज उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ, ग़ुस्सा ज़्यादा है। मैंने सोचा कि इससे बात करने का प्रयास करने का, आज उचित अवसर नहीं है।

लेकिन मैंने यह तय कर लिया कि आज मैं तभी उठूँगा, जब यह यहाँ से उठेगी। घंटे भर के बाद जब वह उठी तो उसके पाँव लड़खड़ा रहे थे। मैंने सोचा यह अपनी स्कूटर कैसे ड्राइव करेगी। लेकिन यह उसका रोज़ का काम था।

मगर अत्यधिक नशे में भी वह अपने होश क़ायम रखती थी। जिस दिन उसको लगता कि वह स्कूटर ड्राइव नहीं कर पाएगी, उस दिन वह स्कूटर बार में ही छोड़ कर कैब बुक करके चली जाती थी।

इसके लिए उसने संभवतः बार के मैनेजर से पहले ही बात कर रखी थी। आज भी वह कैब बुलाकर घर चली गई।

मैं बड़ी देर रात तक उसके बारे में सोचता रहा कि आख़िर यह एक महिला होते हुए रोज़-रोज़ बार में पीने कैसे चली आ रही है। माना पश्चिमी सभ्यता के पीछे हम भारतीय बेतहाशा भाग रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद ऐसी स्थिति अभी नहीं आई है कि कोई लेडी इस तरह रोज़ ड्रिंक करे, वह भी किसी बार में, अकेले ही। क्या इसके परिवार में और कोई नहीं है या फिर इसका परिवार किसी और शहर में रहता है।

न जाने क्यों उसके बारे में सब-कुछ जान लेने की मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। कई प्रयासों के बाद अंततः एक दिन वह मेरे साथ पीने के लिए तैयार हो गई। उस दिन मैंने बात-चीत में यह जाना कि वह एक अच्छी नौकरी करती है, साथ ही योग टीचर भी है। यह सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ कि योग टीचर होकर, योग की अच्छी जानकारी रखते हुए भी, यह इस तरह शराब और नॉन-वेज खाती है, वह भी रोज़।

जबकि देश में हिन्दू समुदाय में सामान्यतः जेंट्स लोग भी मंगल, बृहस्पति और शनिवार को नॉन-वेज नहीं लेते। उस दिन उसके बारे में जानने से पहले मैंने उसे अपने बारे में बहुत कुछ बता दिया, यह भी बता दिया कि अकेले ही रहता हूँ। यह कहते हुए मैंने उसके चेहरे के भावों को पढ़ने का विशेष रूप से प्रयास किया था। लेकिन कुछ समझ नहीं पाया। वह मेरी समझ से भी ज़्यादा ठीक, और होशियार थी।

तीन पैग हो जाने के बाद वह बात-चीत में ज़्यादा खुलने लगी। उसे फ़ैशन इंडस्ट्री, फ़ैशन के अलावा शेयर मार्केट के बारे में भी बहुत अच्छी जानकारी थी। नौकरी के अलावा वह शेयर-मार्केट से भी हर महीने अच्छी-ख़ासी कमाई कर रही थी। वह हफ़्ते में तीन दिन शेयर ट्रेडिंग का काम करती थी। कहीं मैंने यह समाचार पढ़ा था कि दो हज़ार बीस के बाद, दो वर्ष के भीतर देश में क़रीब छब्बीस लाख महिलाएँ शेयर मार्केट से जुड़ीं।

दूसरे दिन भी मैंने उसे अपने साथ खाने-पीने के लिए तैयार कर लिया। उस दिन वह पहले दिन से थोड़ा ज़्यादा सहज थी। उसके चेहरे पर ग़ुस्सा चिंता की जो लकीरें रहा करती थीं, वह मुझे कम दिखीं।

उस दिन पूरी बात-चीत के दौरान वह मुझसे मेरी पसंद ना-पसंद के बारे में ही बात करती रही। मैंने देखा कि उसे अन्य तमाम औरतों की तरह अपने शारीरिक सौंदर्य की प्रशंसा सुनने में कोई ख़ास रुचि नहीं थी।

बातचीत में वह बहुत फ्रैंक थी। मैंने उससे कहा कि “क्यों नहीं संडे को आप मेरे यहाँ आतीं, बार के बजाय घर पर खाने-पीने को एंजॉय किया जाए। थोड़ा चेंज भी तो होना चाहिए।”

लेकिन वह मेरी बात को बड़ी ख़ूबसूरती से टाल गई। क़रीब एक दर्जन बार साथ खाने-पीने के बाद मैंने उससे मोबाइल नंबर शेयर किया। अपना नंबर बताते समय उसे मैंने कुछ संकोच में देखा था। मैंने उससे यह भी पूछ लिया कि उसे किस समय कॉल करना ठीक रहेगा। उसने कहा, “जब मन आए कर लीजिएगा। समय रहने पर कॉल रिसीव कर लूँगी।”

नंबर लेने के तीन-चार दिन बाद मैंने एक दिन लंच टाइम में उसे फोन किया, लेकिन उसने कॉल रिसीव नहीं की। मुझे बुरा लगा कि जब कॉल रिसीव ही नहीं करनी थी तो नंबर लेने-देने का मतलब क्या है?

उस दिन शाम को जब मैं बार पहुँचा तो वह भी क़रीब-क़रीब उसी समय पहुँची थी। मुझे देखते ही बोली, “सॉरी मैं आपकी कॉल रिसीव नहीं कर पाई, मैं उस समय बहुत बिज़ी थी।”

मैंने कहा, “कोई बात नहीं।” मुझे लगा कि वह रोज़ की अपेक्षा आज कुछ ज़्यादा ही तनाव में है। मैंने अपनी और उसकी पसंद की व्हिस्की और सीख कबाब मँगवाया। उसने व्हिस्की को इस तरह पीना शुरू किया जैसे कि उस पर अपना ग़ुस्सा उतार रही हो। देखते-देखते उसने चार पैग ख़त्म कर दिए। और एक प्लेट कबाब भी।

मेरे अभी तक दो पैग भी ख़त्म नहीं हुए थे। मन में ही सोचने लगा कि आज यह फिर स्कूटर यहीं छोड़ कर जाएगी।

मैं नहीं चाहता था कि वह और ज़्यादा पिए, लेकिन वह ऑर्डर पर ऑर्डर देती चली गई। जब छह पैग हो गए तो मैंने कहा, “अब काफ़ी हो गया है। अभी घर भी चलना है।”

तो उसने कहा, “इतनी जल्दी भी क्या है? दस भी तो नहीं बजे हैं।” उसकी ज़बान बहुत ज़्यादा लड़खड़ा रही थी। कुर्सी पर बैठे-बैठे वह इधर-उधर हिल रही थी।

मेरे बार-बार मना करने के बावजूद उसने दो पैग और पी लिए। इसके बाद मैंने वेटर को मना कर दिया, तो वह नाराज़ होने लगी, लड़खड़ाती आवाज़ में जो कुछ भी बोल रही थी, वह समझ में नहीं आ रहा था। उसकी आँखें झुकी जा रही थीं।

इसी बीच उसने अचानक ही मेरा गिलास उठा कर, जो आधा पैग था, उसे एक झटके में पी लिया। इसके साथ ही उसके हाथ से गिलास छूट कर नीचे गिर गया। वह एकदम से बाईं तरफ़ लुढ़क गई। उधर यदि दीवार न होती तो वह ज़मीन पर गिर जाती। मैंने उसे सँभाला, सीधा किया। लेकिन अब-तक उसकी आँखें बंद हो चुकी थीं। वह बिल्कुल भी होशो-हवास में नहीं थी।

मैंने स्टाफ़ से बात करके पानी से कई बार उसका मुँह धोया कि वह कुछ तो होश में आ जाए, लेकिन उसे बिलकुल भी होश में नहीं आया। मैंने सोचा यह रोज़ ही पीने वाली है, हैविचुवल है, केवल सात-आठ पैग से ही इतनी गहरी बेहोशी नहीं आनी चाहिए।

तभी बात-चीत में वेटर ने बताया कि मैडम जब आईं तभी उन्होंने पी रखी थी। मुझे चिंता हुई कि यह अब घर कैसे जाएँगी। मुझे उसके घर के बारे में कुछ भी पता नहीं था कि मैं अपनी गाड़ी से उसे छोड़ देता। मैंने मैनेजर से बात की, कि क्या उसे कुछ आईडिया है। तो उसने इंकार कर दिया।

लेकिन यह भी कहा कि गाड़ी में इनका कोई आई कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस तो होगा ही, उससे इनका एड्रेस मालूम हो सकता है। गाड़ी चेक करने से पहले मैंने सोचा कि इनका मोबाइल चेक करूँ, जिन नम्बरों पर इन्होंने कॉल कि हो, उन पर कॉल करने पर कुछ पता चल जाएगा।

लेकिन मोबाइल भी साइलेंट मोड में गाड़ी में ही मिला। उसे पासवर्ड देकर लॉक किया हुआ था। आख़िर मैं उसे अपनी गाड़ी से लेकर चला। एड्रेस कार्ड से मिल गया था। मुश्किल से चार किलोमीटर चला होऊँगा कि मुझे गाड़ी में भयानक बदबू महसूस हुई। जिस आशंका के साथ मैं गाड़ी रोक कर नीचे उतरा, वह सही निकली।

मैंने उसे पीछे सीट पर लिटाया हुआ था। सीट से लेकर नीचे लेग स्पेस तक का काफ़ी हिस्सा भीगा हुआ था। मैं बुदबुदाया बड़ी मुश्किल है। अब क्या करूँ। मैं गाड़ी के शीशे खोल कर, नाक पर रुमाल बाँध कर, उसके एड्रेस पर पहुँचा। वह बार से क़रीब दस किलोमीटर दूर एक नई-नई बन रही सोसाइटी की कॉलोनी थी। गूगल मैप के ज़रिए एड्रेस ढूँढ़ने में ज़्यादा दिक़्क़त नहीं आई।

क़रीब बीस गुणे पचास का मकान सेमी फ़िनिश्ड लग रहा था। दीवार का प्लास्टर भी अधूरा पड़ा था। कॉलोनी में आधे से ज़्यादा मकान अधूरे बने पड़े थे। दो-दो, चार-चार मकान छोड़कर लोग रह रहे थे। उसके बैग से चाबी निकालकर मैंने गेट खोला। फिर कमरे का दरवाज़ा खोला, जो उसका ड्राइंग-रूम कम बेड-रूम लग रहा था।

अब मेरे सामने समस्या यह थी कि उसके घर के आस-पास एक भी आदमी नहीं दिख रहा था। रात्रि के ग्यारह बजने वाले थे। बार पर तो वहाँ के स्टॉफ़ ने मिलकर उसे गाड़ी की पिछली सीट पर लिटा दिया था।

यहाँ मैं अकेले कैसे उतारूँ? पास-पड़ोस के लोगों को जगाना भी नहीं चाहता था। क्योंकि मैं भी नशे में था। दोनों को नशे में देखकर लोग न जाने क्या-क्या तमाशा खड़ा कर सकते हैं। अंततः मैं गाड़ी को पोर्च में ले आया।

बहुत ही मुश्किल से मैं उसे खींच-खाँच कर गाड़ी से बाहर निकाल पाया। और उसी तरह खींचते हुए अंदर ले आया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ। इस हालत में इसे न तो बेड पर लिटा सकता हूँ, न ही ज़मीन पर छोड़ कर जा सकता हूँ। कहीं कुछ होश आने पर उठी, गिर गई तो जान-लेवा चोट भी लग सकती है।

अब-तक भयानक बदबू के चलते मेरा सारा नशा उतर चुका था। मैंने बाथरूम में अपनी रुमाल भिगोकर फिर नाक पर बाँध ली।

एक बार सोचा कि इसे कमरे में बंद करके बाहर गाड़ी में रात बिताऊँ, जब इसे होश आ जाए तभी घर जाऊँ। सवेरे से पहले तो यह होश में आने वाली नहीं।

लेकिन तभी याद आया कि गाड़ी की सीट तो इतनी ज़्यादा गंदी है कि कमरे से ज़्यादा बदबू तो वहीं पर है। पूरी सीट भीगी हुई है। बदबू कमरे में रुकने नहीं देगी, और गाड़ी तो बिना धुले चलाने लायक़ भी नहीं है।

इन सब से ज़्यादा मुझे चिंता यह हो रही थी कि कहीं होश में आने पर यह कोई विवाद न पैदा कर दे कि मैं इस तरह घर कैसे आ गया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। स्थितियाँ मुझे वहाँ से निकलने नहीं दे रही थीं, और भयानक बदबू वहाँ ठहरने नहीं दे रही थी।

आख़िर मैं गेट से बाहर निकल गया। इधर-उधर टहलने लगा। तभी चौकीदार मुझे देखता हुआ आगे निकला और थोड़ा ही आगे जाकर पहले दो बार सीटी बजाई, फिर पलट कर मुझे ऐसे देखा जैसे कि पहचानने, कुछ जानने-समझने की कोशिश कर रहा हो, और फिर धीरे-धीरे आगे चल दिया।

मैंने सोचा यह चौकीदार है, कॉलोनी में मुझ अनजान को इस तरह टहलता हुआ देखकर कहीं लोगों को इकट्ठा न कर ले। मैं चुपचाप अंदर चला आया। मगर अंदर तो हालत और भी ज़्यादा ख़राब हो चुकी थी। उसने एक बार फिर से कपड़े और गंदे कर दिए थे। उसकी कमर के इर्द-गिर्द गंदगी का कुंड सा बन गया था।

अब मेरे सामने दो ही रास्ते थे कि मैं चुपचाप पोर्च में ही किसी तरह गाड़ी को साफ़ करूँ और इसे कमरे में बंद करके चला जाऊँ। मैंने देखा बाथरूम में पानी, पाइप सब-कुछ है। मगर जब ध्यान उसकी तरफ़ गया तो फिर उसकी चिंता हुई कि पता नहीं क्या कर बैठे? इस तरह छोड़ कर जाना ठीक नहीं होगा।

कोई भी घटना हुई तो मैं ही पकड़ा जाऊँगा, चौकीदार सब देख कर ही गया है। आख़िर मैंने उसे साफ़-सुथरा करके बेड पर लिटा देना ही उचित समझा। सोचा होश में आने पर यह जब अपनी हालत के बारे में जानेगी-समझेगी तो मुझे धन्यवाद भले ही नहीं कहेगी तो कम से कम नाराज़ भी नहीं होगी, यदि होगी तो देखा जाएगा। इसकी जान को सुरक्षित करना ज़्यादा ज़रूरी है।

सबसे पहले मैंने सटे हुए दूसरे कमरे में जाकर उसके लिए दो कपड़े निकाले। पूरा घर अस्त-व्यस्त था। अंदर भी एक बेड पड़ा था। जिस पर कपड़ों का ढेर था। दो अलमारी भी थीं, दोनों बंद थीं।

बहुत ही मुश्किल से उसे साफ़ करके, उसके कपड़े चेंज किए और बेड पर लिटा दिया। इस दौरान वह दो एक बार थोड़ा सा होश में आती दिखी।

उसे लिटाने के बाद मैंने पूरा कमरा धो डाला। कार में से फ्रेशनर लाकर लगाया। अब-तक मैं बहुत ज़्यादा थक चुका था। मुझे नींद भी आ रही थी। लेकिन सोऊँ या जागता रहूँ कुछ डिसाइड नहीं कर पा रहा था। सोने के लिए कोई जगह भी नहीं थी।

मैं फिर भीतर वाले कमरे में गया और बेड पर से ढूँढ़ कर दो चादरें उठा लाया, और सोफ़े पर ही लेट गया यह सोचते हुए कि अभी पूरी रात पड़ी है और यह देर सुबह से पहले उठने वाली नहीं।

लेटते ही मुझे नींद आने लगी, मेरी कोशिश थी कि जागता रहूँ लेकिन अंततः कुछ ही देर में सो गया। सुबह के क़रीब नौ बजे होंगे, तभी मुझे लगा कि जैसे कोई मुझे हिला-हिला कर मेरा नाम ले रहा है। मैंने आँखें खोलीं तो सामने वही खड़ी थी।

उसे देखते ही मेरी नींद हिरन हो गई। मुझे लगा कि अब यह बड़ा बवाल करेगी। कोई आश्चर्य नहीं कि मुझे पुलिस के हवाले कर दे, कि मैंने उसके नशे में होने का फ़ायदा उठाते हुए, उसके साथ ग़लत काम किया है। इसने ऐसा किया तब तो मैं तुरंत गिरफ़्तार कर लिया जाऊँगा। कई साल के लिए जेल भेज दिया जाऊँगा।

मैं एकदम हकबकाया हुआ-सा उसे देखता रहा। उसका चेहरा, आँखें सूजी हुई थीं, लाल हो रही थीं, और बहुत भरी-भरी सी भी लग रही थीं। वह एकटक मेरी आँखों में देख रही थी।

मैं उठ कर बैठ गया। मैंने कहा, “सॉरी और कोई रास्ता ही नहीं था। आपकी हालत बहुत ख़राब थी। आपको उसी तरह रात-भर गीले में छोड़ कर चला जाना मुझे ठीक नहीं लगा।”

वह उसी तरह देखती हुई चुप रही, तो मैंने फिर सॉरी बोला, तो उसने एक गहरी साँस लेते हुए कहा कि “आपको सॉरी बोलने की ज़रूरत नहीं है। सॉरी तो मुझे बोलना चाहिए। आपको धन्यवाद देना चाहिए। आपकी हेल्प की वजह से मैं ठीक-ठाक हूँ, अपने घर में आपसे बात कर रही हूँ। मेरी वजह से आपको इतनी ज़्यादा परेशानी हुई। कल मैं बहुत ज़्यादा परेशान थी। मेरी समझ में ही नहीं आया कि मैं कितना पीती जा रही हूँ।”

उसकी इन बातों से मेरा तनाव, मेरा डर बिल्कुल ख़त्म हो गया कि यह मुझे पुलिस को दे सकती है। मुझे उसकी आँखों में शर्मिंदगी, पश्चाताप दिख रही थी। मुझे उठाने से पहले वह नहा-धो चुकी थी। उसने स्लेटी कलर की एक मैक्सी पहन रखी थी।

मैं भी छह-सात घंटे सो चुका था, लेकिन फिर भी बदन टूट रहा था, दर्द कर रहा था। मैंने सोचा कि अब घर चलूँ। तैयार होकर साढ़े नौ बजे तक ऑफ़िस के लिए निकलना होगा। यह पता नहीं ऑफ़िस जाएगी या नहीं। इसकी हालत तो अभी ऑफ़िस जाने लायक़ दिख नहीं रही। मेरी तरह यह भी हैंग-ओवर में दिख रही है।

मैंने उससे कहा, “अब मैं चलता हूँ, तैयार हो कर ऑफ़िस के लिए भी निकलना है।”

उसने फिर से एक गहरी साँस ली और कहा, “क्या आज छुट्टी नहीं ले सकते?”

मेरे लिए यह अप्रत्याशित था। क्या जवाब दूँ मैं सोच रहा था कि तभी उसने कहा, “यदि आपको कोई प्रॉब्लम न हो तो।”

उसकी सारी बातें व्यवहार सब-कुछ मेरे अनुमानों के विपरीत था। मैंने कहा, “नहीं प्रॉब्लम तो कोई नहीं होगी। बताइए क्या बात है?”

“कई बातें हैं, लेकिन मैं सोच रही हूँ कि पहले आपके लिए कॉफ़ी बनाती हूँ।”

मैंने देखा वह बहुत ही ज़्यादा थकी हुई है। ऐसे में इससे कोई काम करवाना ठीक नहीं होगा। यह सोचकर मैंने कहा, “आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। आप जो कहना चाहती हैं, वह कहें, मैं घर जाकर कॉफ़ी वग़ैरह पियूँगा।”

“नहीं परेशान होने वाली कोई बात नहीं है। अकेली होती तो भी बनाती ही।”

मैं कुछ और नहीं कह सका। वह किचन में चली गई। मेरी उलझन बढ़ती जा रही थी कि इसने अभी तक इस बात पर आपत्ति क्यों नहीं उठाई कि मैं इनको लेकर कैसे घर तक पहुँच गया। और सबसे बड़ी बात यह कि इनके कपड़े चेंज करने की हिम्मत कैसे कर ली।

क्या इन्हें इस बात से ज़रा भी ग़ुस्सा नहीं आया कि एक ग़ैर मर्द होकर मैंने जब यह बिलकुल भी होशो-हवास में नहीं थी, तो इन्हें लेकर घर आ गया और उसी स्थिति में इनके कपड़े तक चेंज कर दिए। मैंने इतनी हिम्मत कैसे कर ली। कपड़े गीले ही तो थे, जब उठती तो चेंज कर लेती।

यह तो सीधे-सीधे मेरी इज़्ज़त पर डाका डालना हुआ। मुझे लगा कि यह निश्चित ही अब मेरी इस मूर्खतापूर्ण ग़लती के लिए मुझसे तमाम क्वेश्चन करेंगी, मुझे अपमानित करेगी। लेकिन मैं इस बात के लिए निश्चिंत हो गया कि यह बाक़ी चाहे कुछ भी करे लेकिन कम से कम पुलिस को नहीं देगी।

जब वह दो कप कॉफ़ी लेकर आई तो मैंने कहा, “बस मैं दो मिनट में आया।” बाथरूम में जाकर मैंने जल्दी से उँगली पर पेस्ट लेकर मंजन किया, हाथ-मुँह धोया और जेब से रुमाल निकाल कर पोंछता हुआ आकर बैठ गया।

कॉफ़ी के साथ उसने प्लेट में नमकीन भी रखा था। कॉफ़ी मुझे देती हुई बोली, “मेरे साथ पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। मैं ख़ुद ही स्कूटर चला कर आ जाती थी। एक-दो बार स्कूटर वहीं छोड़ कर कैब से चली आई। कल कैसे क्या हो गया, मैं समझ नहीं पा रही हूँ। मुझे आप सारी बातें बताइए।”

मुझे लगा कि यह आत्म-ग्लानि की आग में झुलस रही है। साथ ही इसके मन में यह भी है कि मैंने क्या और कैसे किया? क्या मेरे साथ कोई और भी था? मैंने एक चम्मच नमकीन उसके हाथ पर देते हुए कहा, “देखिए जो हो गया। उसको याद करके परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। ड्रिंक करते समय ऐसी स्टेज कभी-कभी आ ही जाती है। भूल जाइए उन बातों को। आपने कॉफ़ी सच में बहुत अच्छी बनाई है।”

“धन्यवाद। लेकिन मैं सिर्फ़ यह समझना चाहती हूँ कि मुझसे यह सब कैसे हो गया। यह अच्छा हुआ कि आप वहाँ थे, और घर ले आए। रात का समय था, कोई ग़लत आदमी भी मिल सकता था, मेरे साथ कुछ भी कर सकता था। जान भी जा सकती थी। इसलिए प्लीज़ बताइए मुझे।”

उसके ज़्यादा प्रेशर डालने पर मैंने उसे सारी बातें बताईं कि कैसे उसने बहुत ज़्यादा पी ली, होशो-हवास खो बैठी तो मैनेजर से बात करके किस तरह उसे घर ले आया।

मैंने कपड़े गंदे होने, चेंज करने की बातों को अवॉइड करना चाहा, सोचा ऐसी बातों को क्या दोहराना। लेकिन उसके ज़ोर देने पर मैंने कहा, “आधे रास्ते में था, आपके कपड़े गंदे हो चुके थे। पहले मैंने सोचा कि आपके कपड़ों को कैसे टच करूँ, आपके लिए एक लेटर लिख कर टेबल पर रख दूँ, और बाहर से दरवाज़ा बंद करके मैं अपने घर चला जाऊँ, नंबर आपके पास है ही। जब आप उठेंगी तो मुझे कॉल करेंगी और मैं चाबी लेकर आ जाऊँगा।

“फिर सोचा कि नहीं ऐसी हालत में अकेला छोड़ना ठीक नहीं है। कहीं होश आने पर आप लड़खड़ा कर इधर-उधर गिर न जाएँ, चोट न खा जाएँ। घर बंद रहेगा तो मुश्किल हो जाएगी। मैंने यह भी सोचा कि मैं भी इधर-उधर कहीं लेटा रहता हूँ। जब आपको होश आएगा तो आप ख़ुद ही चेंज कर लेंगी।

“लेकिन स्थिति ऐसी थी कि न तो मैं घर के अंदर बैठ सकता था, न ही बाहर कार में रात बिता सकता था। मैंने नाक पर रुमाल भी बाँधी, लेकिन उससे भी काम नहीं चला। तभी देखा कि दूसरी बार और भी ज़्यादा गीला हो गया। आप ज़मीन पर थीं।

“मैंने सोचा इस तरह गीले में आठ-नौ घंटे पड़े रहने से आपकी तबीयत ख़राब हो सकती है, ऐसी हालत में आपको कौन देखेगा।

“आपके कपड़े टच करते हुए मुझे बहुत डर लग रहा था कि जब आप होश में आएँगी तो मुझे ज़रूर पुलिस में दे देंगी कि मैंने आपकी इज़्ज़त पर हाथ डाला, मेरी हिम्मत कैसे हुई आपके शरीर को छूने, कपड़े उतारने, बाक़ी सब-कुछ करने की। मगर जब आप की हालत पर ध्यान जाता तो मुझे लगता कि नहीं पहले आप को बचाना ज़्यादा ज़रूरी है, बाद में जो होगा देखा जाएगा।

“साथ ही मैं यह भी सोचता कि जब आप सारी स्थिति जानेंगी तो थैंक्यू भले ही नहीं कहेंगी, लेकिन कम से कम पुलिस में तो नहीं देंगी। बस यही सोच कर मैंने सब-कुछ किया। आप इतना ज़्यादा नशे में थीं कि जब मैंने पानी यूज़ किया, तब भी आपकी आँख भी, ज़रा सी भी नहीं खुली।

“अंदर कमरे में जब आपके कपड़े ढूँढ़ने लगा तो मेरे हाथ आपकी मैक्सी लगी। मैंने सोचा कि यह अच्छा हुआ है। इसे पहनाना बहुत आसान रहेगा।

“आपको बेड पर लिटाने के बाद यह पूरा कमरा धोया, कार भी उसी समय धो डाली। कार के फ्रेशनर से बदबू को ख़त्म करने की कोशिश की।

“मैंने सोचा कि अगरबत्ती वग़ैरह कुछ मिल जाए तो जला दूँ। लेकिन फिर यह सोचकर चुप बैठ गया कि इस तरह घर की छानबीन करना अच्छा नहीं। मैं रात जागते हुए बिताना चाहता था, लेकिन सोफ़े पर लेटते ही नींद पर ज़्यादा देर तक कंट्रोल नहीं कर सका और सो गया।

“मेरे इन कामों से यदि आप नाराज़ हैं, आपके कपड़े चेंज करना मेरी ग़लती थी तो क्षमा चाहता हूँ। आप मेरा विश्वास कीजिए चेंज करते समय आपको मैंने सेकेण्ड भर के लिए भी ग़लत नियत से नहीं देखा, नहीं छुआ।”

अपनी बात कहते हुए मैं उसके चेहरे पर आने वाले भावों को समझने का प्रयास करने लगा। जिस पर पछतावा साफ़ दिख रहा था। उसने एक घूँट कॉफ़ी और पीने के बाद कहा, “क्षमा तो मुझे माँगनी चाहिए। आपको शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं। रही बात मेरे बदन को देखने, छूने की तो यही कहूँगी कि कभी मेरे जीवन में एक ऐसा गंदा, कमीना आदमी आया कि उसके बाद कुछ छिपाने बचाने के लिए मेरे पास बचा ही नहीं। कल भी जो कुछ हुआ, वह भी उसी गंदे जानवर के कारण ही हुआ।”

उसकी इन बातों ने मेरी उत्सुकता बहुत बढ़ा दी। मैंने सोचा कि इसका मतलब मेरा अनुमान बिलकुल सही था कि मेरी तरह इसके साथ भी कोई बड़ी समस्या ज़रूर है, तभी यह इस तरह पीती है। मैंने कहा, “यदि मुझे बताने में आपको कोई दिक़्क़त नहीं हो तो बताइए, हो सकता है मैं आपकी कोई मदद कर सकूँ।”

वह कुछ सोचने के बाद बोली, “जो दिक़्क़त है, उससे ज़्यादा बड़ी दिक़्क़त तो कुछ और हो ही नहीं सकती। इसलिए सोचती हूँ कि बात करूँ आपसे। डिस्ट्रिक कोर्ट में मेरा एक मुक़दमा चल रहा है। कल उसकी पेशी थी। मैं अपनी ज़िन्दगी बर्बाद करने वाले को सज़ा दिलाने की कोशिश कर रही हूँ।

“लेकिन कोर्ट में कल मेरे वकील ने जिस तरह से मेरे केस की पैरवी की, उससे मुझे लगा कि मेरा वकील विरोधी पक्ष से मिला हुआ है। जानबूझकर मेरे केस को कमज़ोर कर रहा है। मेरा केस एकदम खुला और एकतरफ़ा मेरे पक्ष में है। एक लव-जेहादी, उसके परिवार ने मुझे धोखा दिया, मेरी हत्या करने की कोशिश की।

“वकील की बातों से जब मेरा संदेह पक्का हो गया, तो मैंने सुनवाई के दौरान ही न्याय-मूर्ति से कहा कि ‘लॉर्ड-शिप मैं अपना वकील बदलना चाहती हूँ, इसलिए मुझे अगली डेट देने की कृपा करें।’ अचानक मेरा इतना कहना था कि वकील जज के सामने ही बड़ी बदतमीज़ी से बीच में ही बोलने लगा।

“लेकिन जज ने कहने को भी उसे नहीं टोका कि अदालत में उसके ही सामने वह ऐसे बदतमीज़ी से कैसे बात करा रहा है। उसकी बदतमीज़ी की अनदेखी करते हुए मुझसे बहुत सख़्त अंदाज़ में पूछा कि ‘आप ऐसा क्यों करना चाह रही हैं?’

“मुझे भी ग़ुस्सा आ गया था, तो मैंने भी साफ़ शब्दों में कहा कि ‘लॉर्ड-शिप कई कारणों से मेरा विश्वास टूट गया है, इसी लिए मैं अपना वकील बदलना चाहती हूँ।’

“मेरा इस तरह स्पष्ट बोलना वकील की ही तरह जज को भी बहुत बुरा लगा। उन्होंने नाराज़ होते हुए कहा, ‘आपको यह बात कार्रवाई शुरू होने से पहले करनी चाहिए थी। बीच कार्रवाई के दौरान ऐसा करना कोर्ट का समय बर्बाद करना है। आप को चेतावनी दी जाती है कि भविष्य में ऐसा दोबारा नहीं करें।’

“इसके बाद उसने और कई बातें कहीं और मुझे दो महीने के बाद की डेट दे दी। मैंने उसी समय उनसे यह भी कहा कि ‘लार्ड-शिप मुझे अपनी सुरक्षा को लेकर बहुत ही ज़्यादा संदेह पैदा हो गया है। मुझे डर है कि मेरी हत्या की जा सकती है। लार्ड-शिप से मेरी रिक्वेस्ट है कि मेरी सुरक्षा सुनिश्चित कराने की कृपा करें।’

“मेरी इस बात पर भी वह नाराज़ हुए कि ‘क्या मुझ पर पहले कोई हमला हुआ है, जब नहीं हुआ है तो केवल संदेह के आधार पर अदालत कोई कार्रवाई नहीं कर सकती। आपको जिस पर भी संदेह है उसका नाम स्पष्ट करिए।’

“उनकी इस परस्पर विरोधी बात से मेरा ग़ुस्सा और बढ़ गया कि एक तरफ़ कह रहे हैं कि संदेह के आधार पर कार्रवाई नहीं करेंगे, दूसरी तरफ़ कह रहे हैं कि जिस पर संदेह हो उसका नाम बताइये। ग़ज़ब तमाशा है।

“अब मैं उनको क्या बताती कि मेरे मुकदमे में एक बात यह भी लिखी गई है कि मेरी हत्या भी करने की कोशिश की गई थी, और अब यह वकील भी मेरे अगेंस्ट हो गया है। ऐसे में मैं बिल्कुल अकेली हूँ। वकील ने उनके सामने ही जिस तरह से मेरे अगेंस्ट कठोर शब्दों का प्रयोग किया, उसके बाद तो कोई संदेह ही नहीं रह गया है कि वह मेरी विरोधी पार्टी से मुझ पर हमला करवा सकता है। लेकिन जज ने उल्टा मुझे ही चार बातें सुना कर, डेट देकर कर भेज दिया।

“मैं जब कोर्ट से बाहर निकली तो मुझे जैसा संदेह था, वैसी ही बातें देखने को मिलीं। मेरी अगेंस्ट पार्टी मुझे सुना-सुना कर भद्दी-भद्दी बातें, अश्लील कमेंट कर रही थी। मेरा वकील भी उन्हीं के साथ मुझ पर टॉन्टबाज़ी कर रहा था। इससे मैं बहुत ज़्यादा आहत हो गई थी।

“मैं बहुत निराश हो गई कि अब मुझे कभी कोई न्याय मिल पाएगा। एक न एक दिन जेहादियों का वह झुण्ड मुझे मार ही डालेगा। उनका पूरा कुनबा एकजुट है। मज़हब के नाम पर उनका पूरा समाज उनके साथ है। हर महीने सब पैसा इकट्ठा करके उसे मुक़दमा लड़ने के लिए देते हैं। इसी मोटी रक़म से उन सबने हमारा वकील भी ख़रीद लिया। मैं अकेली कब-तक इन सब का सामना करूँगी। इसीलिए शाम को मैं इतना अपसेट हो गई थी कि मैं कहाँ हूँ, कितनी पीती जा रही हूँ, इसका भी ध्यान नहीं रख पाई।

“यह भाग्य ही था कि आपसे कुछ दिन पहले से ही बातचीत शुरू हो गई थी, और आप एक भले आदमी की तरह मुझे यहाँ ले आए। नहीं तो कल रात न जाने क्या होता। न इज़्ज़त बचती, न जान।”

मुझे अंदाज़ा नहीं था कि वह ऐसी विकट समस्या से घिरी हुई है। मैंने कहा, “देखिए जैसे संदेह होने पर आपने वकील हटाया है, वैसे ही अपना केस दूसरी अदालत में लेकर जा सकती हैं। वैसे ऐसी क्या बात हो गई थी कि बात मुकदमें तक पहुँच?”

यह सुनते ही वह और ज़्यादा गंभीर हो गई। कुछ देर खोई-खोई सी, कुछ सोचने के बाद उसने जो बातें बताईं वह सुनकर मैं अचंभित हो गया। मुझे बड़ा ग़ुस्सा आया प्रदेश और देश की सरकारों पर और ख़ुद पर भी। कि मैं अब तक सेकुलरिज़्म का राग अलापने वाले भांडों के झाँसे में आकर एक कटु सत्य को झूठ क्यों मानता रहा और सच को झूठ बताने वाले सेकुलर गैंग को क्यों वोट देता चला आ रहा था।

सरकार के पास तो सारी बातों की जानकारी रहती है, आख़िर इन लव-जेहादियों के विरुद्ध कोई कठोर क़ानून क्यों नहीं बना रही है, कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रही। हर साल हज़ारों हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी लड़कियाँ, औरतें लव-जिहाद का शिकार होकर अपनी जान से हाथ धो रही हैं। परिवार के परिवार बर्बाद हो रहे हैं।

फिर भी सेकुलर गैंग तुष्टीकरण, वोट के लिए यह झूठ स्थापित करने में लगा हुआ है कि लव-जिहाद नाम की कोई चीज़ नहीं है। अभी एक लव-जेहादी द्वारा दिल्ली में एक लड़की के पैंतीस टुकड़े करने की बात पुरानी भी नहीं हो पाई है कि दूसरे जेहादी ने लड़की के पचास टुकड़े कर के फेंक। उसकी त्वचा तक खींच कर निकाल दी थी।

और फिर भी यह मक्कार सेकुलर गैंग झूठ बोलकर लोगों की आँखों पर पर्दा डालने की कोशिश करता चला आ रहा है। और हम जैसे मूर्ख इसी झूठ में फँसते चले आ रहे हैं। अक्टूबर दो हज़ार नौ में केरल कैथोलिक बिशप काउन्सिल और दो हज़ार चौदह में सिख काउन्सिल और हिन्दू संगठन तो बीसों साल से कह रहे हैं, चर्चों ने दो हज़ार बीस में फिर दृढ़ता से कहा, केरल हाई-कोर्ट तक ने कहा, फिर भी इन मक्कारों ने इतना झूठ फैला रखा है कि सच मुझे भी नहीं दिखाई दिया।

मैंने उसी समय दृढ़ता से यह सोचा चाहे जैसे भी हो, जो भी हो लव-जिहाद की शिकार इस महिला का हर स्तर पर सहयोग करूँगा, इसे न्याय दिला कर ही रहूँगा, अगर इस कोर्ट में नहीं तो दूसरे कोर्ट से।

मैंने उससे जब अपनी इच्छा ज़ाहिर की तो वह आश्चर्य से मुझे देखने लगी। मैंने कहा, “आप मेरा विश्वास करिए, मैं हर स्थिति में अंतिम साँस तक आपका सहयोग करूँगा, आपको न्याय दिलवाए बिना पीछे नहीं हटूँगा। एक इंसान होने के नाते यह मेरा कर्तव्य भी है।

“मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ इसके लिए यह ज़रूरी है कि आप मुझे सारी बातें विस्तार से बताइए। जिससे कोर्ट में अगली पेशी तक सारी तैयारी कर ली जाए और आप पूरी मज़बूती से अपनी बात कोर्ट में रखें, और कोर्ट न्याय देने के लिए आगे आए।”

वह मेरी बातों को ध्यान से सुन ही नहीं रही थी, बल्कि मेरे भावों को पढ़ने का भी पूरा प्रयास कर रही थी। यह मैं अच्छी तरह समझ रहा था।

उसने मेरी आँखों में गहराई से देखते हुए कहा, “आप पहले ठीक से सोच-समझ लीजिए। काम बहुत कठिन है और समय भी बहुत लगेगा। अदालत के चक्कर काटते हुए कई साल निकल चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई ख़ास प्रोग्रेस नहीं हुई है।”

मैंने कहा, “विश्वास कीजिये, मैंने सब सोच-समझ कर ही कहा है। अब और सोचना भी नहीं चाहता। आप यह बताइए कि क्या आपके परिवार के लोग आपको सपोर्ट नहीं कर रहे, भाई-बहन, माँ-बाप परिवार में और कोई . . .”

“मुश्किल तो यही है कि सब हैं, मगर होकर भी नहीं है।”

“क्या मतलब? मैं समझा नहीं।”

“मतलब यह कि माँ-बाप, भाई-बहन सब हैं। मगर कमी है तो यह कि जेहादियों का कुनबा, झुण्ड हर मामले में जिस तरह एकजुट होकर मज़बूती से आगे बढ़ता है, वह नहीं है। बस सहयोग के लिए सहयोग की बात थी तो मैंने सोचा क्यों इन लोगों को धर्म-संकट में डालूँ। फिर मैंने ख़ुद ही सबसे स्वयं को अलग कर लिया।”

“ओह, अच्छा ही किया आपने, ऐसी स्थिति में इससे अच्छा कुछ और नहीं हो सकता। वैसे परिवार कहाँ रहता है?”

“देवबंद में रहता है। माँ-बाप, दो बहन और एक भाई है। वहीं माँ त्रिपुर बाला सुंदरी मंदिर से कुछ दूरी पर है घर। वहीं एक छोटी सी मार्केट में फ़ादर की दुकान है। मैं सबसे बड़ी हूँ। शहर से दूर गाँव में दो बीघा खेत भी है।

“खेती-बाड़ी का काम देखने के लिए फ़ादर जब चले जाते थे तो कई बार माँ के साथ मैं भी दुकान पर बैठ जाती थी।

“वहीं पर हर्षित बाजपेई आता था। सामान लेने-देने के बहाने वह मुझसे बातें करने लगा। जल्दी ही मैं उसकी मीठी-मीठी बातों में फँस गई। ऐसे में जो होता है, वही हुआ। घर में बवाल शुरू हो गया। और मेरी आँखों पर पट्टी बँध गई। माँ-बाप घर वालों की बातें ज़हर लगने लगीं। हर्षित के बहकावे में आकर मैंने उसके साथ भाग कर मंदिर में शादी कर ली। वह मुझे बाइक से लेकर दिल्ली चला गया। वहाँ से मुश्किल से डेढ़-दो घंटे का रास्ता है।

“दिल्ली में पहले दिन वह अपने एक दोस्त के यहाँ रुका और मेरा जानवरों की तरह शारीरिक शोषण किया। उसका ऐसा बदला रूप देखकर मैं दंग रह गई। शादी से पहले भी बहुत बार शारीरिक संबँध बनाए थे उसने, मगर तब जानवर नहीं बना था, अननेचुरल नहीं था। वह सीलमपुर की एक तंग बस्ती में छोटे से मकान में हफ़्ते भर रहा। उसका कोई दोस्त वहाँ पर दिखाई नहीं दिया।

“उसने कई काग़ज़ों पर मुझ से दस्तख़त कराए। मेरा वीडियो बनाया कि मैं बालिग़ हूँ और पूरे होशो-हवास में अपनी इच्छा से हर्षित से मंदिर में शादी की है। मुझे मेरे माँ-बाप, भाई-बहन परेशान कर रहे हैं। मेरी और मेरे पति हर्षित को उनसे जान का ख़तरा है।

“मैंने कहा यह तो झूठ है, ‘ऐसा तो कुछ भी नहीं है। वह सब तो इतने सीधे हैं कि कभी लड़ाई-झगड़ा तक नहीं करते।’ तो उसने कहा, ‘घबराने की ज़रूरत नहीं है। मैं ऐसे ही बना रहा हूँ। उन लोगों ने पुलिस में रिपोर्ट की है। पुलिस तुमको, हमें गिरफ़्तार न कर ले, परेशान न करे, इसलिए इसे बना रहा हूँ।’

“इसके बाद वह मुझे लेकर थाने गया और इसी तरह की बातें लिखते हुए एक एप्लीकेशन दिलवा दी मेरी तरफ़ से कि मुझे, मेरे पति को मेरे परिवार से जान का ख़तरा है। पुलिस समझ रही थी कि सच क्या है? लेकिन क़ानून ने उसके हाथ ऐसे बाँधे हुए हैं, कि सच सामने होते हुए भी वह झूठ का साथ देने के लिए विवश दिखी। धिक्कार है ऐसे क़ानून को, जो कुकर्मियों, चोर-मक्कारों के सामने विवश हो जाए।

“उसकी चालाकी धूर्तता का असली रूप मेरे सामने आता जा रहा था। दूसरे मकान में वह महीने भर रहा। वह मुझे रोज़ बिना कारण पीटता था, मुझे एक पल को भी अकेला नहीं छोड़ता था। मेरा मोबाइल छीन लिया था। मैं किसी से बात भी नहीं कर सकती थी।

“रोज़ कई-कई बार जानवरों की तरह मेरा शारीरिक शोषण करता था। मैं समझ नहीं पा रही थी कि उसके पास पैसे कहाँ से आ रहे थे। मैं जो पूजा-पाठ करती थी, उसने वह सब बंद करवा दिया।

“मेरे गले में एक माला पड़ी हुई थी, जिसमें माँ त्रिपुर बाला सुंदरी की फोटो की लॉकेट था, उसने वह भी निकलवा दिया। उसे ले जाकर कहाँ क्या किया, मुझे उसकी कोई जानकारी आज तक नहीं हुई।

“मगर देखिये मेरी आँखों पर पट्टी इस तरह बँधी हुई थी कि मुझे तब भी उस पर यह शक नहीं हुआ कि कहीं यह कोई लव-जिहादी तो नहीं है। मैंने इतना भर सोचा कि हो सकता है कि यह नास्तिक हो। पहले केवल मेरा मन रखने के साथ मंदिर चला जाता था।

“महीने भर के बाद ही एक दिन बोला कि ‘मेरे घर वाले इस शादी से नाराज़ नहीं हैं। घर वापस बुलाया है।’ मैं ख़ुश हुई कि चलो घर पर रहेगा तो मुझे इस तरह मारेगा-पीटेगा नहीं। अननेचुरल यातना से मुक्ति मिलेगी। घर में सब के साथ रहेंगे। सास-ससुर, नंद-देवर से मिलेंगे। लेकिन जब वह मुझे लेकर वापस घर देवबंद पहुँचा, तो उसका घर देखकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

“शहर के एकदम पिछड़े इलाक़े की मुस्लिम बस्ती में एक टूटा-फूटा, अस्त-व्यस्त सा मकान था। मैंने दरवाज़े पर ही पूछा कि ‘यह कहाँ ले आए हो?’ तो वह गँवारों की तरह डाँट कर बोला, ‘चुप रहो।’

उसके बड़े संदेहास्पद हाव-भाव को देख कर मैं बड़े असमंजस पड़ गई कि यह क्या हो रहा है? कई बार दरवाज़ा खटखटाने पर जब मैला-कुचैला सलवार, कुर्ता पहने, नंगे पैर एक फूहड़, काली, भद्दी मोटी-सी मुस्लिम औरत ने खोला तो उसे देखकर मैं डर गई। वह अजीब चोर नज़रों से मुझे देखती हुई हर्षित से बोली, ‘अंदर आ बाहर क्यों खड़ा है।’

“वह मोटर-साइकिल पर पीछे बैग को खोल रहा था। जब वह मेरा हाथ पकड़ कर अंदर चलने लगा तो मैं ठिठक गई। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन मेरे ठिठकते ही वह मुझे क़रीब-क़रीब खींचता हुआ अंदर लेकर चला गया। अंदर बकरियों, मुर्गियों की गंदगी, बदबू से मेरी नाक फटने लगी।

“मुझे अब यह विश्वास हो गया कि मैं ठगी गई। मैं लव-जिहादी के धोखे, षड्यंत्र का शिकार हो गई हूँ। उसी समय मेरे कानों में उसकी एक बहन की आवाज़ सुनाई दी, “अब्बू उठो, हारून भाई-जान अपनी बीवी को लेकर आ गया है।” उसकी बात मेरे कानों में पिघले शीशे सी घुस गई।

लव-जिहाद के बारे में मीडिया से लेकर सोशल-मीडिया तक हर जगह देखती सुनती रहती थी। मगर मैं भी इसका शिकार हो जाऊँगी कभी नहीं सोचा था। मैं उसके ऊपर बिगड़ गई। मैंने उससे चीख कर कहा, “तुमने मुझे धोखा दिया। तुम हर्षित नहीं हारून हो, मुसलमान हो। मैं यहाँ नहीं रहूँगी। मेरा तुम्हारा अब कोई सम्बन्ध नहीं है।”

मैं चीखती हुई घर से बाहर की ओर भागी, लेकिन उसने झपट कर मुझे दबोच लिया। अब-तक उसकी बहनें, भाई, छोटे–बड़े दर्जन भर बच्चे, सब ने मुझे घेर लिया। उस जानवर हारून ने मेरी चोटी खींच कर मुझे ज़मीन पर पटक दिया। इसके बाद पूरा झुण्ड मुझे खींचता हुआ भीतर कमरे में ले गया। वहाँ सब ने मुझे बुरी तरह पीटा।

मेरी नाक-मुँह से ख़ून आने लगा। मेरे मुँह में कपड़ा ठूँस कर बाँध दिया, जिससे मेरी आवाज़ घर से बाहर नहीं जाने पाए। जब मैं बेहोश हो गई तो जानवरों ने मुझे उस गंदी नरक सी कोठरी में बंद कर दिया।

पूरे परिवार ने मुझे पीटा था। उसके लंगड़े अब्बू, घिनौनी भैंस अम्मी, सबने। बहुत देर रात को जब मुझे होश आया तो मैं समझ नहीं पाई कि कितने बज रहे हैं। कोठरी में कहने भर को लाइट थी। मेरे मुँह से कपड़ा निकाल दिया गया था। हाथ-पैर भी खुले हुए थे।

पूरा शरीर जगह-जगह गहरी चोटों के कारण सूज गया था, काले निशान पड़ गए थे। मुझे बहुत तेज़ प्यास लगी हुई थी। बाथरूम भी जाना चाहती थी। जब मैं ज़मीन पर उठी तो देखा मेरे बदन पर एक कपड़ा नहीं था।

मैंने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की तो मालूम हुआ कि वह बाहर से बंद है। बाहर पूरे झुण्ड की चख-चख की आवाज़ आ रही थी। मैं वहाँ किसको आवाज़ देती, किससे मदद माँगती, जिसको हर्षित समझा था वह हारून नाम का धोखेबाज़ मक्कार जानवर निकला था। पूरा परिवार ही मक्कार जाहिलों का झुण्ड था। मुझे लगा कि अब मेरा बचना मुश्किल है। ये झुण्ड अन्य लव-जेहादियों की तरह पहले मुझे ख़ूब यातना देगा फिर कहीं मार काट कर फेंक देगा।

मैंने सोचा जब मरना ही है तो हर कोशिश करूँगी यहाँ से निकलने की। ख़ुद को इस झुण्ड के सामने ऐसे ही नहीं छोड़ दूँगी कि जैसे चाहें मुझे वैसे आराम से मारें काटें फेंकें। आख़िर मैंने दरवाज़े को जब दो-तीन बार खटखटाया तो वह कमीना अपनी एक भैंस सी डरावनी बहन के साथ आया।

आते ही मुझे माँ-बहन की कई गालियाँ देते हुए कहा, “सुन तुझको अब यहीं रहना है, अगर ज़रा सी भी कोई गड़बड़ की तो तेरी बोटी-बोटी काट कर यही गाड़ देंगे।”

मैंने कहा, “ठीक है, तुम लोग जो कहोगे वह करूँगी, मुझे मेरे कपड़े दे दो।”

तभी उसकी दूसरी बहन आ गई। उसके हाथ में एक मैला-कुचैला सलवार कुर्ता था बस। अंदुरूनी कपड़ा एक भी नहीं था। उस जानवर ने भी गाली देते हुए मेरे मुँह पर कपड़ा मार कर कहा, “ले पहन।”

वो मेरे कपड़े नहीं थे, तो उससे मैंने कहा कि “मेरे कपड़े दे दीजिए।”

तो वह जंगली सूअर सी मुझ पर झपटी। गंदी-गंदी गालियाँ देती हुई तीन-चार थप्पड़ मार कर बोली, “यही हैं तेरे कपड़े। पहनना है तो पहन, नहीं तो ऐसे ही मर करम जली काफ़िर कहीं की।”

जब-तक मैं कुछ समझी तब-तक उस कमीने ने भी मुझे दो-तीन थप्पड़ और लात मारी। मैं फिर ज़मीन पर एक तरफ़ लुढ़क गई।

आख़िर मैंने वही कपड़े जल्दी से पहन लिए। वह सब अब भी सिर पर सवार थे। मैंने बाथरूम जाने की बात कही तो दोनों भैंसें मुझे बड़ी गंदी-गंदी बातें कहती हुई बाथरूम के नाम पर नरक-सी एक जगह ले गईं, जिसमें दरवाज़ा भी नहीं था। एक गंदे मोटे चीथड़े से बोरे का पर्दा पड़ा था।

मैंने सोचा कि दोनों वहाँ से हट जाएँगी, लेकिन दोनों वहीं पर प्रेतनी सी खड़ी रहीं, निर्लज्ज कहने पर भी नहीं हटीं। निकल कर जब मैंने हाथ-मुँह धोने के लिए पानी चाहा, तो बग़ल में एक छोटी सी जगह में पहुँचा दिया। जहाँ एक ड्रम में गंदा बदबूदार पानी भरा था। मुझे वही यूज़ करने के लिए विवश किया।

मुझे बहुत तेज़ प्यास भी लगी थी। मैंने पीने का पानी माँगा तो उन्हीं में से एक भैंस बोली, “इतना पानी सामने है, दिख नहीं रहा, पीना है तो पी, नहीं तो मर।”

इतनी चोटों के बावजूद ग़ुस्से से मेरा ख़ून खौल रहा था। मैंने मना करते हुए कहा, “यह बाथरूम का गंदा पानी है, मुझे पीने वाला साफ़ पानी दीजिए, बहुत प्यास लगी है।”

वहीं पास में ज़मीन पर पसरी बैठी उसकी अम्मीं जानवरों की तरह डकारती हुई चिल्लाई, ‘वहीं ले जाकर बंद कर दे, साफ़ पानी भी मिल जाएगा, सारी प्यास भी ख़त्म हो जाएगी।’ साथ ही कई घिनी-घिनी गालियाँ दीं। लड़कियों, औरतों के मुँह से वैसी गंदी गालियाँ मैं पहली बार उन्हीं सब से सुन रही थी।

“उसकी बातें सुनते ही दोनों भैंसों ने मुझे बालों से पकड़ कर खींचते हुए ले जाकर उसी कमरे में बंद कर दिया। मैं पानी माँगती रह गई, लेकिन बदले में गालियाँ और मार मिली।”

“ओफ़्फ़, बहुत ही कमीने लोग थे, फिर क्या हुआ?”

“फिर मुझे दो दिन तक खाना-पानी कुछ नहीं दिया गया। पिटाई और भूख-प्यास से मैं एकदम मरणासन्न हो गई। इन दो दिनों में मार गालियों के अलावा एक और नारकीय काम भी मेरे साथ बराबर होता रहा।

वह पाँचों नारकीय जानवर भाई मेरा शारीरिक शोषण करते रहे। जिसे जब मर्ज़ी होती थी, दरवाज़ा खोलता था, जानवरों की तरह मुझ पर टूट पड़ता था। इस दौरान यातना से जब मेरी चीख निकलती तो उन निर्लज्ज भैंसों, पूरे कुनबे की हँसी सुनाई देती।

कुनबे की नीचता तो यह थी कि दरवाज़े को खोल-खोल कर झाँकते भी थे। मैं तड़प उठती थी कि कुछ तो ऐसा हो कि मैं इनकी बोटी-बोटी कर सकूँ।”

यह सुनकर अचंभित होते हुए मैंने कहा, “सच में नीचता की हद पार दी उन सबने। ये लव-जेहादी नीचता के दल-दल में कितने नीचे जा सकते हैं, इसकी कोई सीमा ही नहीं दिखती। इनसे किसी मानवतावादी काम की आशा रखना ही पागलपन है। क्योंकि घुट्टी तो इनको यही पिलाई जाती है कि काफ़िरों को जितना यातना दोगे, मारोगे, उतना ही ज़्यादा सवाब मिलेगा, जन्नत में बहत्तर हूरें मिलेंगी।

“सदियों से ये काफ़िरों या किसी भी ग़ैर मुस्लिम की हत्या करके बड़े शान से गाज़ी की उपाधि धारण करते आ रहे हैं। आज भी इनकी गाड़ियों पर जो शान से गाज़ी लिखा देखती हैं, वह इनकी इसी कट्टर मज़हबी सोच का प्रतीक है। मैं बड़े अचम्भे में हूँ कि इतनी गंदी, क्रूर यातना इन कट्टर मज़हबी जेहादियों के कारण आपको झेलनी पड़ी।”

“इनकी दरिंदगी की हद इतनी ही नहीं है, अभी और सुनिए, हद की सीमा भी तब पार कर गई जब उसका लंगड़ा अब्बा भी आया। कमीना डंडा लेकर खड़ा हो पाता था। देख कर लगता जैसे इसकी अभी जान ही निकल जाएगी।

आकर जानवरों की तरह टूट पड़ा। ख़ुद को सँभाल नहीं पा रहा था। बार-बार मुझ पर ही गिर जा रहा था। जब कुछ न बन पड़ा तो उस लंगड़े सूअर ने अपने डंडे से मुझे कई डंडे मारे और फिर हाँफता-काँपता, घिसटता हुआ चला गया।

इन सबके चलते हफ़्ते भर में ही मैं इतनी कमज़ोर हो गई थी कि ठीक से खड़ी भी नहीं हो पाती थी। सब इतने शातिर, होशियार थे कि मैं किसी भी तरह, कहीं से निकल कर भाग न सकूँ, इसके लिए मुझे बिना कपड़ों के ही कमरे में बंद रखते थे।

आठ-दस दिन बाद ही एक दिन एक मुल्ले को बुलाया और मेरी गर्दन पर चाकू रखकर, मेरा धर्मांतरण कर दिया। मैं पक्की मुसलमान बनी रहूँ हमेशा, इसके लिए उसी दिन मेरा खतना करने की तैयारी थी . . .

“आपका खतना! . . .”

“हाँ मेरा . . . “

“लेकिन यह तो जेंट्स का होता है, उनके प्राइवेट पार्ट के कुछ हिस्से काट कर निकाल देते हैं। लेडीज़ में क्या . . .”

“लेडीज़ में भी होता है। उनके प्राइवेट पार्ट के क्लिटोरिस हुड और लैबिया माइनोरा के भीतरी हिस्से को काटकर निकाल दिया जाता है। कई बार तो इससे भी आगे जाकर एक्सटर्नल जेनेटाइल को निकाल कर यूरिन, पीरियड हो पाए बस इतनी जगह छोड़ कर हमेशा के लिए स्टिचिंग कर दी जाती है। दाउदी मुस्लिमों में तो क़रीब अस्सी परसेंट औरतों का खतना होता है . . .”

“हे भगवान, इसके बाद तो उनके जीवन में बचता ही क्या है। वो तो एक संवेदनहीन रोबोट बन कर रह गईं।”

“औरतों के सेक्सुअल प्लेज़र को नष्ट करना ही तो उनका उद्देश्य है। और यह सब शेविंग करने वाले मामूली ब्लेड से ही कोई बुज़ुर्ग औरत, कई बार तो मर्द ही कर देते हैं। कोई डॉक्टर वग़ैरह नहीं।”

“तो आप कैसे बचीं?”

“बस संयोग कह सकते हैं। क़ानूनी शिकंजे से बचने के फेर में वो कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते थे, उसी के चलते पहले मेरा निकाह पढ़वाना ज़रूरी समझा गया। और फिर उसी समय गिरगिट हारून से मेरा निकाह भी पढ़वा दिया।

“यह सब होता रहा लेकिन मुझ में इतनी शक्ति नहीं थी कि मैं सब-कुछ ठीक से समझ पाती और कुछ विरोध करती। कमीनों ने सुहागरात की नौटंकी भी सजाई और हारून की जगह उसका बड़ा भाई मेरा जानवरों की तरह शोषण करके चला गया।

“उन पाँचों में से चार का निकाह हो चुका था। घर में छोटे-बड़े कुल मिलाकर क़रीब डेढ़ दर्जन बच्चे थे। हारून भी शादी-शुदा था। उसके भी तीन बच्चे थे। वह काम-धाम कुछ नहीं करता था। बस चोरी-चमारी, दलाली के सहारे चल रहा था। घर के सारे आदमियों का यही हाल था।

“मुझे इस तरह से फँसा कर, मेरा धर्मांतरण करा कर, उस झुण्ड ने बड़े सवाब का काम किया था। एक काफ़िर को इस्लाम क़ुबूल करवाया था, पुरस्कार-स्वरूप जन्नत में बहत्तर हूरें इंतज़ार कर रही हैं, पूरा कुनबा इसी ख़ुशी में फूला नहीं समा रहा था।”

“ओह, लेकिन मेहनत तो औरतों ने भी की थी, उन्हें क्या मिलेगा?”

“हं . . .अ . . . अ . . . इतने दिनों में इनकी तमाम बातें सुनी जानीं। औरतों के हिस्से में केवल इतना आता है कि वो दोयम दर्जे की प्राणी हैं, मर्दों की खेती हैं, वो जिधर से चाहें उधर से उसमें प्रवेश करें।”

“क्या! क्या उनके यहाँ औरतों की ऐसी ख़राब हालत है।”

“जितना सोच सकते हैं आप, उससे भी ज़्यादा। जब उनके यहाँ औरत को दोयम दर्जे का और मर्दों की खेती माना जाता है तो उनकी दयनीय हालत का अंदाज़ा लगाना कोई कठिन काम नहीं है।”

“हाँ, सही कह रही हैं। फिर आगे क्या हुआ?”

“कुनबे की हालत देख-देख कर मेरे मन में बार-बार यह बात आती कि यह महँगी मोटर-साइकिल, मोबाइल और जो पैसे रोज़ ख़र्च करता है अन्य धर्म की लड़कियों, औरतों को फँसाने के लिए, वह कहाँ से ले आता है? उन सब की योजना यह थी कि जल्दी से जल्दी मुझे बच्चे हो जाएँ, तो उनके बोझ तले दबी मैं उनके तलवों में पड़ी रहूँ, वहाँ से निकलने की सोच भी न सकूँ। मैं कहीं की भी न रह जाऊँ।

“इस बीच घर में आने वाले कुछ मुल्लों की बातचीत से मुझे पता चल गया कि इन सबको इनके तमाम संगठनों द्वारा बक़ायदा हर महीने पैसे दिए जाते हैं। मोटर-साइकिल और मोबाइल दी जाती है कि ज़्यादा से ज़्यादा हिंदू, अन्य धर्मों की औरतों को लड़कियों को फँसाओ, उनका धर्माँतरण करो, ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे पैदा करो और फिर उन्हें तलाक़ देकर छोड़ दो, अगली को ले आओ। इससे तुम्हें सवाब मिलेगा। अल्लाह त’आला तुम्हें जन्नत बख़्शेगा। वहाँ बहत्तर हूरें तुम्हारे लिए हमेशा तैयार रहेंगी। अगर कोई विवाद होता है तो, पूरा समुदाय इन लव जिहादियों की हर सम्भव मदद करता है।

“इन सारी बातों को जानने के बाद मेरी समझ में आया कि यह सब बिना काम-धाम के कैसे इतना बड़ा कुनबा चला रहे हैं। पूरा का पूरा परिवार इस जिहाद में एक दूसरे को मदद कर रहा था।

“उन कमीनों की इसी नीचता भरी सोच का मैं शिकार बनी थी। जिस दिन मुझे यह सारी बातें पता चलीं, मैंने उसी समय तय कर लिया कि जो भी हो एक न एक दिन तो अवसर मिलेगा ही और तब मैं यहाँ से निकल कर इन सबको इनके कुकर्मों की सज़ा दिलाकर ही रहूँगी।

“इस बीच यदि प्रेग्नेंट हुई तो जैसे भी हो मैं अबॉर्ट करवा दूँगी। बच्चा हो भी गया तो उस गिरगिट की औलाद को मैं छुऊँगी भी नहीं। क्योंकि गिरगिट की औलाद गिरगिट ही होगी, वह भी इसी की तरह कुकर्मी होगा। जैसे मैं इस कुकर्मी का शिकार हुई, वैसे कोई और नहीं हो।”

यह कहते-कहते ग़ुस्से से उसका चेहरा लाल हो उठा। मैंने कहा, “आपका ग़ुस्सा, घृणा स्वाभाविक और न्यायोचित है। उस नर्क से बाहर कैसे निकलीं? अवसर कैसे मिल गया।”

फिर कुछ याद करती हुई वह बोली, “मैं हर क्षण अवसर ढूँढ़ ही रही थी। क़रीब तीन महीने हुए होंगे कि एक दिन मुझे लगा कि शायद मैं प्रेग्नेंट हो गई हूँ। मेरा ख़ून खौल उठा। मैंने सोचा चाहे जो भी हो जाए, मुझे यदि इस नारकीय कोठरी की दीवारों पर सिर पटक-पटक कर जान देनी पड़ी तो भी दे दूँगी, लेकिन एक गिरगिट की औलाद को नौ महीने पेट में नहीं रखूँगी।

“हैरान-परेशान मैं रात-दिन सोचती रही, अवसर ढूँढ़ती रही, मगर लकड़बग्घों, सियारों के उस झुण्ड के आधे से अधिक सदस्य सिर पर ही सवार रहते थे, अवसर मिलने की कोई सम्भावना दिख ही नहीं रही थी। देखते-देखते उस नर्क में चार महीने बीत गए।

“मैं अपना पेट देखती तो घबरा उठती, क्योंकि बदलाव दिखने लगा था। मैं रात-दिन रोती। एक दिन मैंने सोचा कि डॉक्टर को दिखाने के बहाने यहाँ से किसी तरह एक बार निकलने का मौक़ा मिल सकता है। डॉक्टर के सामने ही पुलिस बुलवाऊँगी, यहाँ से मुक्ति मिल जाएगी।

“यह सोच कर मैंने हारून से कहा, ‘जो होना था, हो गया। तुम बाप बनने वाले हो अपने बच्चे की ख़ातिर मुझे डॉक्टर को दिखा दो।’ तो वह गालियाँ देता हुआ बोला, ‘साली कैसे बोल दिया मेरा है। बाक़ी भाई जान क्या तेरी . . .’ सूअर ने ऐसी गंदी बात कही कि ज़बान पर नहीं ला सकती।

“सच तो यही था कि उन पाँचों में से किस सूअर का ख़ून था, यह कहाँ पता था? लेकिन मेरा उद्देश्य तो जैसे भी हो वहाँ से निकलना, और पेट में पल रहे सूअरों के ख़ून से मुक्ति पाना था, तो उसकी माँ-बहन, भाभियों सबसे कहा लेकिन सब खिल्ली उड़ाते।

“उन सब का एक ही इरादा था कि जो होगा अपने आप घर में हो जाएगा। बच जाएगी तो ठीक है। नहीं मरती है तो मर जाए। खाना-पानी अब भी मुझको जीने भर का ही मिलता था।”

“वाक़ई सब बहुत क्रूर और जाहिल थे। इतने दिनों के बाद भी आप से कोई ठीक से बात नहीं करता था?”

“मैं कोई उनके परिवार का सदस्य नहीं थी, जो वो मुझसे बात करते। वो तो एक काफ़िर को ग़ुलाम बना कर सवाब कमा रहे थे। तो मुझसे सुबह उठने से लेकर सोने तक जानवरों की तरह काम करवाते थे, टॉयलेट साफ़ कराने से लेकर कुनबे भर के कपड़े धुलवाने तक। जब सब खा लेते थे तब मुझे जूठन मिलता था।”

“हे ईश्वर आप किस नर्क में फँस गई थीं?”

“वास्तव में वह पूरा मोहल्ला ही जिहादियों का मोहल्ला बन चुका है। जो आपस में भी लड़ते-झगड़ते मरते रहते हैं। मुझे आए दिन लड़ाई-झगड़े की आवाज़ें सुनाई देतीं थीं। ऐसे ही एक दिन उसके घर के आस-पास ही झगड़ा हो रहा था।

“बड़ी देर तक लोगों की गाली-गलौज, चीखना-चिल्लाना सुनाई देता रहा। फिर उस चोर-उचक्के के घर के दरवाज़े पर होने लगा। लगा जैसे लोग लड़ते-झगड़ते हुए उसके घर के सामने आ गए।

“फिर कुछ ही देर में पुलिस की गाड़ी का सायरन भी सुनाई दिया। तभी मेरे दिमाग़ में एक आइडिया आया उस नर्क से बच निकलने का। मुझे लगा इससे अच्छा अवसर जल्दी मिलने वाला नहीं।

“मैंने सबसे पहले कोठरी की कुंडी अंदर से बंद कर ली। उसके बाद मैं पूरी ताक़त से बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगी। मेरा चिल्लाना था कि झुण्ड के कई सदस्य मेरी कोठरी के दरवाज़े पर लपकीं। उन्होंने खोलना चाहा तो अंदर से बंद मिला। सब घुटी-घुटी आवाज़ में एक के बाद एक गालियाँ देती हुई तुरंत दरवाज़ा खोलने को कहने लगीं, धमकियाँ देने लगीं—खोल दे, नहीं तो आग लगा दूँगी। अंदर ही ख़ाक हो जाएगी।

“अब-तक मैं समझ गई थी कि सारे मर्दों सहित ज़्यादातर सदस्य बाहर हैं। जो मुझे ख़ाक करने को कह रही हैं वो सब बुरी तरह डरी, घबराई हुई हैं। इस समय ये सब कुछ नहीं कर सकतीं, दरवाज़े पर पुलिस खड़ी है। यह सिर्फ़ मेरा मुँह बंद कराने के लिए धमकी दे रही हैं, इसलिए मैंने उन सब की बातों पर ध्यान दिए बिना बचाओ-बचाओ चिल्लाना जारी रखा।

“मेरे खाने-पीने के जो बरतन थे, उनको भी ख़ूब तेज-तेज़ पीटने लगी। सब दरवाज़े को बिल्कुल तोड़ने पर आमादा हो गईं, लेकिन मैं ज़रा सी भी टस से मस नहीं हुई। मुश्किल से दो-तीन मिनट ही बीता होगा कि मुझे मुख्य दरवाज़ा बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ खुलता हुआ लगा। मैं और तेज़ चीखने-चिल्लाने लगी।

“इसके साथ ही मैंने तमाम क़दमों की आवाज़ को अपनी तरफ़ बढ़ते सुना। अचानक मुझे एक भारी-भरकम आवाज़ सुनाई दी, “कौन है अंदर?”

“मैंने दरवाज़े की झिरी से देखा पुलिस ही है तो मैं ख़ूब तेज चीखी, ‘मुझे बचाइए, मुझे बचाइए, ये सब मुझे मार डालेंगे।’ यह सुनते ही इंस्पेक्टर चीखा, ‘खोलो दरवाज़ा।’

“मैं फिर चीखी, ‘यह सब मुझे मार डालेंगे।’

तो वह गरजा, “तुम दरवाज़ा खोलो, पुलिस है, कोई तुम्हें कुछ नहीं कर सकता।”

मैंने कहा, “मुझे मेरे कपड़े दिलवा दीजिए, मेरे तन पर कोई कपड़ा नहीं है। इन सबने छीन लिया है।”

“यह सुनते ही वह उन सब पर दहाड़ा, ‘इसके कपड़े लाओ।’ और उन्हें पुलिसिया अंदाज़ में कई गालियाँ दीं।

“कपड़े आते ही उसने कहा, ‘अब खोलो दरवाज़ा।’

“मैंने दरवाज़ा खोल कर एक हाथ बाहर निकाल कर कपड़े लिए। पहन कर बाहर आई, उन्हें सारी बात बताई तो पुलिस मुझे और उन सबको थाने ले गई। मैंने पूरे परिवार के ख़िलाफ़ नाम-ज़द रिपोर्ट लिखाते हुए सब बताया कि किसने क्या किया।

“धोखाधड़ी, अपहरण, जबरन धर्माँतरण, बलात्कार, धमकी, हत्या करने की कोशिश, मारने-पीटने के आरोप में पूरे झुण्ड को गिरफ़्तार कर लिया गया। मेरी हालत इतनी ख़राब थी कि थोड़ी देर में मैं थाने में ही बेहोश हो गई।

“जब होश आया तो मैं एक हॉस्पिटल में थी। मेरे हाथ में वीगो लगा हुआ था, दवाएँ चल रही थीं। होश आते ही पुलिस वाले आ गए और मेरा पूरा बयान दर्ज किया। मैंने उन्हें विस्तार से बता दिया कि कैसे मुझे धोखे से फँसाया गया, धर्माँतरित किया गया, बंधक बनाकर परिवार के हर पुरुष ने महीनों से मेरे साथ बलात्कार किया।

हॉस्पिटल में जाँच के दौरान मेरी प्रेगनेंसी भी कंफ़र्म हो गई, क़रीब तीन महीने की होने वाली थी। मैंने डॉक्टर से तुरंत एबॉर्शन के लिए कहा। डॉक्टर ने कहा, ‘कुछ क़ानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही मैं कुछ कह सकती हूँ।’

“मैंने कहा, ‘जो भी हो, जैसे भी हो, आप करिए, मैं एक क्षण को भी जानवरों के अंश को अपने भीतर बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूँ।’

“आख़िर क़ानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करते-करते क़रीब पंद्रह दिन निकल गए, उसके बाद मुझे एबॉर्शन की परमिशन मिल गई। अबॉर्शन के बाद मुझे लगा कि जैसे मैं गंदगी से बाहर आ गई। इस बीच मेरे घर वालों को ख़बर कर दी गई थी, मेरे फ़ादर आ कर मुझे घर ले गए थे।

“इसके बाद से मुक़दमा चलता चला आ रहा है, एक-एक करके छह साल से ज़्यादा निकल गए हैं। कुछ साल बाद ही मुझे महसूस हुआ कि घर पर मेरी वजह से मेरे बाक़ी भाई बहनों की पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ रहा है, रिश्तेदारों, मोहल्ले के लोगों ने हमें एकदम अलग-थलग कर दिया है। मुझे बड़ा दुःख हुआ कि जिहादियों को उनका पूरा समुदाय सिर आँखों पर बैठाता है, और हम-लोग . . .

“नर्क से निकलने के बाद मैंने पूरा ध्यान पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ नौकरी ढूँढ़ने पर दिया, जिससे मैं अपने घर की मदद कर सकूँ। मेरी मेहनत कहें या संयोग मुझे यहाँ इस शहर में नौकरी मिल गई और मैं यहाँ चली आई।

“परिवार के बाक़ी सदस्य देवबंद में ही रहते हैं। मैं घर अब कभी-कभार ही जाती हूँ। पैसा ज़रूर भेजती रहती हूँ। घर से मन इसलिए टूट गया है, क्यों कि कई साल बीत जाने के बाद भी माँ से लेकर बाक़ी सारे सदस्यों का मेरे साथ व्यवहार घटना से पहले जैसा नहीं हो रहा था।

“सब के व्यवहार में एक खिंचाव सा दिखता था। मैं जैसे परिवार पर बहुत बड़ा बोझ बनी हुई थी। इसलिए मैंने सोचा कि दूर रहकर सभी को आराम से रहने दूँ। मगर समस्या यह भी आने लगी कि जब मैं पैसा भेज देती तो मेरे पास कम पड़ने लगे।

“तो मैंने कई और काम भी करने शुरू कर दिए। अपनी इनकम बढ़ाती चली गई। इस बीच मुक़द्दमे की पेशी पर कई बार जाना पड़ता था। लेकिन क्योंकि अब-तक मेरे बयान कोर्ट में भी हो चुके हैं। इसलिए वकील देखते रहते हैं। उन्हें फ़ीस मैं ऑन-लाइन भेजती रहती थी।

“लेकिन कोर्ट में कल जो कुछ हुआ, उससे मैं इतना ज़्यादा परेशान हो गई थी कि बार में कितनी पी रही हूँ, इसका भी ध्यान नहीं था। इसका भी कि अकेली हूँ, ज़्यादा नशा हो गया तो मेरे साथ कोई घटना फिर हो सकती है। यह तो मेरा सौभाग्य था कि आप मिल गए, नहीं तो कल भी पता नहीं क्या होता।”

उसकी बातों ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मैंने उससे कहा, “देखिए अदरवाइज़ नहीं लीजिएगा, यह पूछना चाहता हूँ कि आपने ड्रिंक करना कब से शुरू कर दिया।”

यह सुनते ही उसने एक गहरी साँस लेने के बाद कहा, “शुरू नहीं कर दिया, यह भी मेरी बेवक़ूफ़ी का परिणाम है। ऑफ़िस में ज्वाइन किए हुए अभी दो-तीन महीने ही हुए थे कि वहीं काम करने वाली एक लड़की का एक दिन जन्म-दिन था। उसने कहा, ‘घर पर पार्टी है, तुम्हें भी ज़रूर चलना है।’

“मैं कहीं भी जाती-आती नहीं थी, न ही किसी से ज़्यादा बात करती थी। लेकिन वह इतनी हँसमुख इतनी मिलनसार है कि मुझे चुप रहने ही नहीं देती। उसके इस व्यवहार ने मेरे चेहरे पर हर समय तैरती उदासी ख़त्म कर दी थी। उसके घर पर पार्टी में सात-आठ लड़कियाँ थीं। सभी बहुत ही बोल्ड और बिंदास थीं।

“खाने-पीने की चीज़ें होटल से आई थीं। उन सबने कोल्ड-ड्रिंक में पहले से ही शराब मिला रखी थी। मुझे अजीब लगी, लेकिन जब-तक मैं समझी तब-तक काफ़ी पी चुकी थी। और फिर सबने यह कहकर मुझे दो पैग और पिला दी कि जब टेस्ट कर ही लिया है तो आज एंजॉय करो।

“उस दिन मैं रात में बहुत आराम से सो सकी। बाक़ी दिन तो करवटें बदलते ही रात बीतती थी। इसके बाद उस लड़की ने मुझे कई बार घर बुलाया और हर बार पिलाया। जिस दिन पीती, उस दिन मैं बहुत आराम से सोती। बस इसी आराम की ललक ने पीने की आदत डाल दी। पहले दुकान से ख़रीद कर लाती और रात में पी कर सो जाती थी।

“एक दिन उसी लड़की ने अपनी चार-पाँच और सहेलियों के साथ एक बार में पार्टी दी। बार में पीने का मुझे बहुत मज़ा आया। बस उसके बाद महीने में दो-तीन बार पीने के लिए बार जाने लगी। फिर जल्दी ही अकेले ही जाने लगी। रात आराम से बीते इस ललक में पीने की आदत बढ़ती ही चली गई। अब तो बिना इसके लगता है रात ही नहीं होगी।”

“लेकिन डेली पीना, आपको नहीं लगता कि कुछ ज़्यादा हो गया . . .”

“ज़्यादा हो रही है या कम इस तरफ़ कभी ध्यान ही नहीं गया, क्योंकि तकलीफ़ों की हज़ार फाँसें मुझे हमेशा चुभती रहती हैं, आप भी तो . . . क्योंकि आपके चेहरे पर भी मैं बहुत कुछ ऐसा ही लिखा हुआ देखती हूँ।”

उसकी इस बात पर मैं कुछ देर तक उसे देखता ही रह गया। उसने बहुत ही सटीकता से मेरी स्थिति का अंदाज़ा लगा लिया था। मैं उसे देखता हुआ चुप रहा, इसे क्या जवाब दूँ, सच बोलूँ या झूठ। सच बोलता हूँ तो यह मुझे औरतों का भूखा औरतख़ोर समझेगी।

और अभी तक जो इस बात पर विश्वास करके निश्चिंत है कि मैंने इसके कपड़े चेंज करते समय कोई भी अनुचित हरकत नहीं की होगी, इसका वह विश्वास तुरंत चकनाचूर हो जाएगा। मुझे पसोपेश में पड़ा देखकर उसने तुरंत ही कहा, “यदि नहीं बताना चाहते हैं, तो कोई बात नहीं। मैं आप पर कोई दबाव नहीं डालूँगी।”

मैंने सोचा सच ही बोल देता हूँ, इसके लिए मुझे जो करना था वो मैंने कर दिया। बाक़ी निर्णय इस पर छोड़ता हूँ। इसे मेरे बारे में जो भी राय बनानी हो बनाए। मैं जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, बस हूँ। जब मैंने पत्नी से कुछ नहीं छुपाया तो दुनिया से क्या छुपाना।

अंततः मैंने उसे सच-सच बता दिया कि मैं क्यों रोज़ पीता हूँ। सुन कर वह बड़ी देर तक चुप रही। शायद वह भी मेरी तरह नहीं समझ पा रही थी कि क्या बोले?

उसे शांत देख कर मैंने कहा, “देखिए बातें कैसे विचारों, स्थितियों को क्षण में बदल देती हैं। जब-तक मैंने अपने बारे में आपको नहीं बताया, तब-तक आपकी दृष्टि में मेरी दूसरी तस्वीर थी, बातों को जानते ही वह तस्वीर बदल गई। अब मेरी जो तस्वीर आपके सामने है, वह आपको अच्छी नहीं लग रही है।

“आप निश्चित ही मन ही मन यह सोच रही हैं कि जब औरतों के प्रति मैं इतना कमज़ोर हूँ, कई-कई औरतों से सम्बन्ध रखना मेरी आदत है, तो ऐसे कमज़ोर व्यक्ति ने आपकी बेहोशी की स्थिति का न जाने कैसे-कैसे फ़ायदा उठाया होगा।”

यह सुन कर भी वह चुप रही, तो मुझे लगा कि अब यहाँ से तुरंत चल देना चाहिए। हमेशा सच भी नहीं बोलना चाहिए। यह भी कई बार नुक़्सान पहुँचाता है। मैंने अपना मोबाइल उठाकर जेब में रखते हुए कहा, “आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने आपके साथ कहने को भी कोई अनुचित हरकत नहीं की। मेरी बात पर विश्वास करेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा। अब मैं चलता हूँ। जब आपका फोन आएगा तो मैं यह मान लूँगा कि आपको मेरी बात पर विश्वास है।”

यह कहकर मैं उठने लगा तो उसने रोकते हुए कहा, “बैठिए। कई औरतों में इंट्रेस्ट लेना और सभी औरतों के प्रति गंदी सोच रखना, दोनों को मैं अलग मानती हूँ। कई औरतों में आप इंट्रेस्ट लेते हैं, यह कुछ लोगों की नज़र में ग़लत हो सकता है, जैसे कि आपकी मिसेज़ की नज़र में। लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचती। क्योंकि बीते दिनों में आपसे जितनी बातें हुईं, इसके अलावा बीती रात आपने जो कुछ मेरे साथ किया, उसे देखते हुए मैं पूरे विश्वास के साथ कहती हूँ कि औरतों के प्रति आपकी नज़र गंदी नहीं है। इसलिए मैं आपको ग़लत नहीं मानती।

“मेरी जो हालत थी, उसमें आप जो चाहते आराम से कर सकते थे। मेरा पूरा घर भी खुला हुआ था। लेकिन मैंने देखा सब कुछ जैसे का तैसा सुरक्षित है। मैंने ख़ुद को भी चेक किया। मेरे हृदय में जो तस्वीर आपकी पहले थी, बीती रात के आपके कामों से वह बहुत सुंदर बन गई है। इसलिए आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।”

यह सुनकर मुझे ख़ुशी हुई, कि चलो कोई तो इतना ब्रॉड माइंडेड मिला। काश मिसेज भी कुछ ऐसे ही सोचती तो मैं ख़ुद को बार के हवाले नहीं करता, शराब में इस तरह पैसे और ख़ुद को बर्बाद नहीं करता।

उसने मुझसे कहा, “आप तैयार होइए मैं कुछ नाश्ता तैयार करती हूँ।” हमारी बातें चलती रहीं, मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि आख़िर इसने मुझे क्यों रोक लिया?

यह जीवन में इतना बड़ा धोखा खा चुकी है, इसके बावजूद इसने मुझ पर पर इतना विश्वास क्यों कर लिया। यह मुझसे क्या चाहती है।

मैं तैयार भी हो गया। नहाने के बाद काफ़ी फ़्रेश महसूस कर रहा था। तौलिया वग़ैरह सब उसी का यूज़ किया। कॉफ़ी वग़ैरह लेने के बाद हैंगओवर परेशान नहीं कर रहा था। नाश्ता ख़त्म होने के बाद भी हमारी बातें चलती रहीं।

अधिकांश बातें इसी बिंदु पर केंद्रित रहीं कि जिन लोगों ने लव-जिहाद के नाम पर उसकी और उसके परिवार की ज़िन्दगी बर्बाद की है, उन लोगों को चाहे मुक़दमा हाई-कोर्ट क्या सुप्रीम कोर्ट तक जाए, वहाँ तक लड़कर उन्हें ऐसा कठोर दंड दिलवाना है, कि बाक़ी जिहादियों को भी समझ में आ जाए कि ऊपर बहत्तर हूरें तो बाद में मिलेंगी, मिलेंगी भी कि नहीं, पता नहीं, लेकिन उसके पहले डंडे और सलाखें अनगिनत मिलेंगी, यहीं मिलेंगी।

इस पूरे संघर्ष में वह मेरा सहयोग चाहती है। इतना ही नहीं उसकी योजना यह भी है कि अपने जैसे और लोगों को इकट्ठा करके उसके साथ ऐसा संगठन तैयार करूँ, जो समाज में लोगों को लव-जिहादियों को पहचानने, उनसे दूर रहने, शिकार हुए लोगों को क़ानूनी मदद दिलाने, यहाँ तक की समाज के लोगों से मिलकर, यदि उनको आर्थिक मदद की ज़रूरत हो, तो वह भी दिलाई जाए। इस मिशन में बिना देर किए जुटा जाए।

उसने कहा कि “हमें अब एक उद्देश्य-परक जीवन जीना चाहिए। शराब में ख़ुद को तबाह करने से कोई फ़ायदा नहीं, यह मूर्खता से भी बड़ी मूर्खता है।”

मुझे लगा कि यह सही कह रही है। तो मैंने कहा कि “ठीक है, मैं तैयार हूँ इसके लिए।”

फिर कुछ सोच कर वह बोली, “इसके लिए हम-दोनों कितनी गंभीरता से तैयार हैं, इसकी परीक्षा भी इसी समय कर ली जाए।”

यह सुनकर मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, लेकिन कैसे होगी यह परीक्षा?”

तो वह अंदर पूजा की अलमारी से गंगा-जल उठा लाई और कहा, “हम-दोनों यह पवित्र गंगा-जल हाथ में लेकर यह सौगंध लें कि अपने मिशन को कामयाब बनाने के लिए, अपने-अपने परिवार, समाज के जीवन को बेहतर बनाने के लिए, अब कभी भी जीवन में शराब को हाथ नहीं लगाएँगे।”

मैंने उससे पूछा, “क्या वाक़ई आप बिना शराब के रह पाएँगी?”

उसने कहा, आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं। माना मैं लम्बे समय से पी रही हूँ, लेकिन मुझे अपनी इच्छा शक्ति पर दृढ़ विश्वास है। मैं लव-जिहादियों को कठोर सज़ा दिलवाने का अपना मिशन हर हाल में पूरा करना चाहती हूँ, लेकिन अकेले पूरा कर पाने में मुझे संदेह है, इसलिए यदि आप साथ देने को तैयार हैं, तो मैं हमेशा के लिए छोड़ने को तैयार हूँ। सब-कुछ आपके ऊपर निर्भर करता है, आप बताइए, आप छोड़ने को तैयार हैं।”

मैंने कहा, “आप ठीक कर रही हैं, जब अनेक साथ चलेंगे तो ज़रूर सफल होंगे, इसलिए मैं पूरी तरह तैयार हूँ। सभ्य-समाज के दुश्मन लव-जिहादियों को सबक़ सिखाने के लिए अब सबक़ो साथ आने का समय आ गया है। सब मिलकर, समाज को गंदा कर रहे, इस गंदे कचरे को समाप्त करने का प्रयास करेंगे, तभी यह ख़त्म होगा।”

फिर हम-दोनों ने अंजुरी में गंगा-जल लेकर अपने लक्ष्य को पाने के उद्देश्य से शराब को हमेशा के लिए त्याग देने का संकल्प लिया, एक-दूसरे को वचन दिया।

यह संकल्प लेने के बाद उसने मुझसे कहा, “आपसे एक और काम के लिए परमिशन चाहती हूँ।”

मैंने कहा, “अरे परमिशन की क्या बात है, बताइए क्या काम है?”

उसने बड़ी भाव-पूर्ण नज़रों से मुझे देखते हुए कहा, “आप यदि अन्यथा नहीं लें, तो मुझे अपनी पत्नी का नंबर दे दीजिए, मैं सही समय पर उनसे संपर्क करके मिलूँगी, और उन्हें समझाऊँगी कि वह आपके पास अपने घर लौट आएँ। अकेले रहकर अपनी और अपने बच्चों के जीवन को, साथ ही आपके जीवन को भी तपती रेत सा कष्ट-दायक न बनाएँ, उसे बर्बाद नहीं करें।

“जीवन में हार्ड-कोर बनने की बजाय थोड़ा सा फ़्लैक्सिबल बनें, जिससे परिवार चलता रह सके, वह टूटे नहीं। और आपसे भी यह रिक्वेस्ट करूँगी कि जब पत्नी है तो उसके साथ ही ख़ुश रहने की कोशिश कीजिए। दूसरों के पास कुछ क्षण का जो रोमांच आप एन्जॉय करते हैं, वह रोमांच एक आग है जो अंततः परिवार को नष्ट करती है। परिणाम आपके सामने है, आपको ज़्यादा कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है।

“और यह भी बहुत ध्यान से सुनिए कि अकेली रहने वाली औरतें लव जिहादियों का सबसे आसान शिकार हैं, ये उन्हें खोजते रहते हैं, उनके हितैषी बनकर छद्म रूप में उनके पास पहुँचते हैं, और फिर उन्हें तबाह करके, उनके टुकड़े करके अपने लिए बहत्तर हूरों का इंतज़ाम करते हैं।

“स्थिति की गंभीरता को समझिए। मैं एक भुक्त-भोगी हूँ, कड़वा सच आपके सामने रख रही हूँ। लव-जिहादी लद्दाख से लेकर केरल तक, ब्रिटेन से लेकर अमेरिका, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा तक पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इसलिए बिना देर किए अपने घर को फिर से घर बना दीजिए। पत्नी, बच्चों को ले आइए। मैं आपसे रिक्वेस्ट करती हूँ, हाथ जोड़ती हूँ।”

यह कहती हुई वह बहुत भावुक हो गई उसने मेरे हाथ जोड़ लिए, तो मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ते हुए कहा, “आप बिल्कुल सही कह रही हैं। यह शुभ काम आज ही करूँगा।”

इसके बाद उसने एक सामाजिक कार्यकर्ता बनकर पत्नी से बातचीत की, मिलने का समय लिया। उसे बताया कि उसकी संस्था परिवार के विवादों को समाप्त करा कर, उन्हें एक करने का काम करती है। पत्नी ने बहुत ही ना-नुकुर के बाद, शाम को ऑफ़िस के बाहर ही थोड़ी देर मिलने का टाइम दिया। उसने उससे घर पर मिलने से मना कर दिया।

लेकिन बातचीत करने की उसकी शैली से मुझे लगा कि पत्नी भी इंट्रेस्टेड है कि परिवार तपती रेत पर चलने के बजाय सुंदर शीतल स्वच्छ उपवन में सैर करे।

अभी पूरा दिन पड़ा था। सत्या ने घूमने का प्लान बनाया, और मैं उसे गाड़ी में लेकर घूमने निकल गया। उसका नाम सत्या ही है। वास्तव में हम सिर्फ़ घूमने नहीं, बल्कि अपने मिशन की ओर पहला क़दम बढ़ाया, हमने . . .

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