फ़ाइनल डिसीज़न

01-06-2023

फ़ाइनल डिसीज़न

प्रदीप श्रीवास्तव (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 . . .। उन्हें इस बात की पूरी आशंका है कि वह उनपर पर हमला भी करवा सकती है, क्योंकि वह अनेक जेहादी संगठनों से जुड़ी हुई है, उनके लिए फ़ंड की व्यवस्था में भी जुटी रहती है। 

 

आज वह फिर नस्लवादी कॉमेंट की बर्छियों से घायल होकर घर लौटी है। वह रास्ते भर कार ड्राइव करती हुई सोचती रही कि आख़िर ऐसे कॅरियर पैसे का क्या फ़ायदा जो सम्मान सुख-चैन छीन ले। क्या मैं गायनेकोलॉजिस्ट इसीलिए बनी, इसीलिए अपना देश भारत छोड़कर यहाँ ब्रिटेन आयी कि यहाँ नस्लवादियों, जेहादियों की नस्ली भेद-भाव पूर्ण अपमानजनक बातें, व्यवहार सुनूँ, बर्दाश्त करूँ, इनके हमलों का शिकार बनूँ। 

देश में सुनती थी यह बातें तो विश्वास नहीं कर पाती थी। सोमेश्वर भी कहते थे, ‘छोटी-मोटी घटनाएँ हो जाती होंगीं, वह एक डेवलेप्ड कंट्री है, वेलकल्चर्ड लोग हैं। यह एक प्रोपेगंडा के सिवा और कुछ नहीं है।’ सचाई मालूम होती कि यहाँ वास्तविक स्थिति यह है तो अपना देश भारत, ससुराल, बेटी और माँ को छोड़कर कभी भी नहीं आती। सपने में भी नहीं सोचा था कि यहाँ आकर हस्बेंड से भी . . .। हस्बैंड का ध्यान आते ही उसके हृदय में एक सूई सी चुभ गई। 

उसने रास्ते में किचन का कुछ सामान ख़रीदा। डिपार्टमेंटल स्टोर में हस्बेंड, बाक़ी बातें नेपथ्य में चली गईं। वह सामान लेती हुई सोचने लगी कि ‘यह रिकॉर्डतोड़ महँगाई सारी इनकम खींच ले रही है, मार्किट से सामान अलग ग़ायब हैं। ये गवर्नमेंट पता नहीं कब-तक यूक्रेन युद्ध की आड़ में अपना फैल्योर छिपाती रहेगी।’ उसकी ख़रीदारी पूरी भी नहीं हो पायी थी कि डॉक्टर मेघना शाह का फोन आ गया। 

कुछ देर बात करने के बाद उसने कहा, “यह प्रॉब्लम तुम्हारे साथ ही नहीं, मेरे साथ भी है। बल्कि मुझे तो अब पूरा विश्वास हो गया है कि यह प्रॉब्लम यहाँ रह रहे सभी हिन्दुओं के साथ है। आज भी लंच हॉवर में मेरे साथ फिर ऐसा ही हुआ है। एनीवे मैं घर पहुँच कर बात करती हूँ।”

घर पहुँच कर उसने कॉफ़ी बनाई, कुछ भुने हुए काजू लिए और ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठ कर पीने लगी। उसने ग्लव्स उतार दिए थे। कॉफ़ी के मग को दोनों हाथों के बीच पकड़ा हुआ था, जिससे उन्हें कुछ गर्मी मिल सके। जनवरी महीने का दूसरा सप्ताह चल रहा था, लंदनवासी कड़ाके की ठंड झेल रहे थे। टेंपरेचर दो-तीन डिग्री हो रहा था। लेकिन उसे कड़ाके की ठंड से नहीं नस्लवादियों, जिहादियों की बातों, व्यवहार से तकलीफ़ हो रही थी। उसके दिमाग़ को अब भी डॉक्टर लिज़, डॉक्टर स्मिथ की उसके स्किन कलर, फ़िगर को लेकर किए गए अपमानजनक कॉमेंट पिघले शीशे की तरह झुलसा रहे थे। 

वह सोच रही थी कि ‘क्या मैं इतनी गंदी भद्दी और बेडौल हूँ कि गोरी चमड़ी वाले या कोई भी मुझसे घृणा करे, अपमानजनक कॉमेंट करे। हमारे धर्म-संस्कृति की खिल्ली उड़ाए।’ कपड़े चेंज करते समय शीशे में उसने अपने पूरे बदन पर कई-कई बार दृष्टि डाली, दाएँ-बाएँ घूम-घूम कर हर एंगिल से जितना देख सकती थी, उसे ध्यान से देखा और मन ही मन कहा, ‘लिज़ ईर्ष्या के चलते तुम कितना भी झूठ बोलो, लेकिन यह मिरर मुझे हर बार सच दिखाता और बताता है। कहता है कि जो बातें तुम मुझे कहती हो एक्चुअली कम्प्लीटली तुम पर फ़िट होती हैं। 

‘बेडौल थुलथुल फ़िगर तो तुम्हारा है। मैं न तो बेडौल हूँ, न ही थुलथुल। मेरे देश में मेरे जैसे रंग को दूधिया गोरापन कहते हैं। सुपर व्हाइट पेंट जैसा तुम्हारा गोरापन लोगों की आँखों में चुभता है। मेरी ननद मुझे आज भी पूर्व फ़िल्म एक्ट्रेस स्मिता पाटिल जैसी बताती है। और डॉक्टर स्मिथ तुम्हें क्या कहूँ, तुम तो लिज़ से भी ज़्यादा ओवरवेट, थुलथुल हो। 

‘हैम बर्गर की तरह फूले हुए हो। तुम्हारा पेट लिज़ से भी इतना ज़्यादा बाहर निकला हुआ है कि चलते हो तो लगता है जैसे कि वह तुमसे पहले ही बहुत आगे निकल जाने के लिए फुदक रहा है।’ कपड़े पहन कर उसने डॉक्टर मेघना को फोन किया। वह उसकी ही कॉल का वेट कर रही थीं। उसने मेघना से कहा, “सॉरी उस समय तुमसे पूरी बात नहीं कर सकी, अब कहो तुम्हारे साथ क्या हुआ?” 

मेघना ने क्रोधित स्वर में कहा, “मेरे साथ वही हुआ जो डेली होता है, जिसे डेली तुम भी फ़ेस कर रही हो। लेकिन आज मेरे दोनों ही बच्चों के साथ तो बदतमीज़ी गंदे व्यवहार की हद हो गई। बेटी प्रियांशी के साथ उसकी ही क्लॉस के जैद और नेल्सन ने बहुत बदतमीज़ी की। दोनों ने पहले की ही तरह उससे कहा, ‘तुम्हारे इतने ढेर सारे गॉड हैं, सब फ़ेक हैं। तुम लोग बेवुक़ूफ़ गँवार हो, गॉड तो एक ही होता है, और वह अल्लाह है’।

“प्रियांशी भी चुप नहीं रही, उसने भी कह दिया, ‘मेरे बहुत से नहीं एक ही गॉड है। पेरेंट्स ने हमें बताया है कि उन्हें जो जिस रूप में देखना चाहे वो उस रूप में देखे। हमारे यहाँ सभी को अपने हिसाब से पूजा-पाठ करने की पूरी छूट है। हम लोग अंध कट्टरता में विश्वास नहीं करते। और हमारा सनातन धर्म बीसों हज़ार साल पहले तब से है जब दुनिया के बाक़ी लोग सिविलाइज़्ड भी नहीं हुए थे।’ उसने वही बातें बोल दीं जो हम बच्चों को बताते रहते हैं। उसकी बात पर वह दोनों उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। 

“हमारे देवी-देवताओं पर भद्दे-भद्दे कॉमेंट करने लगे, शिवलिंग, देवी काली माता के बारे में बड़ी वल्गर बातें कहने लगे। प्रियांशी ग़ुस्सा हुई तो वह दोनों मार-पीट पर उतारू हो गए। तभी टीचर ज़ेनिफ़र आ गईं, प्रियांशी ने उनसे शिकायत की तो उन्होंने उन दोनों को मना करने की बजाय प्रियांशी को ही डाँट कर बैठा दिया। उसे ही झगड़ालू लड़की कहकर अपमानित किया। 

“इससे उन दोनों लड़कों की हिम्मत इतनी बढ़ गई कि क्लॉस ख़त्म होने के बाद लंच टाइम में प्रियांशी के साथ मार-पीट की। उसके कपड़ों के अंदर हाथ डालने, ज़बरदस्ती किस करने की कोशिश की। जैद ने बीफ़ से बने अपने लंच का एक टुकड़ा प्रियांशी के मुँह में ज़बरदस्ती डालने की भी कोशिश की। प्रियांशी उनसे बचकर अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों के साथ, बीफ़ का टुकड़ा लेकर भागी हुई प्रिंसिपल के पास गई। 

“लेकिन प्रिंसिपल डायना ने भी उसे चुप रहने, झगड़ा नहीं करने की बात कह कर वापस भेज दिया। मेरी समझ में नहीं आ रहा है क्या करूँ? अब यह रोज़ की बात हो गई है। पहले भी मैं दो बार प्रिंसिपल से मिल चुकी हूँ लेकिन वो हर बार सफ़ेद झूठ बोलती हैं कि ‘नहीं, यहाँ ऐसी कोई बात नहीं होती।’ कुछ ज़्यादा बोलो तो उल्टा प्रियांशी को ही झगड़ालू लड़की कह कर मुझे चुप कराने की कोशिश करती हैं। 

“नेल्सन और जैद जैसे स्टुडेंट्स ने पूरे क्लॉस क्या पूरे स्कूल में अपने ग्रुप्स बना लिए हैं। सभी ने सनातनी हिंदू स्टुडेंट्स को अलग-थलग किया हुआ है। सब मिलकर समय-समय पर उन्हें अपमानित करते हैं। पहले की तरह ही जैद ने आज फिर कहा, ‘तुम लोग बंदरों, पेड़ों, पत्थरों की पूजा करते हो, तुम लोग नर्क में जाओगे नर्क में। नर्क में जाने से बचना चाहती हो तो इस्लाम क़ुबूल कर लो, अल्लाह सारी ग़लतियों को माफ़ कर देगा।’

“वह बार-बार भारत से भागे एक भगोड़े जिहादी का वीडियो देखने के लिए कहता है। मना करने पर भी उसके व्हाट्सएप पर भेज देता था। उसका नंबर ब्लॉक कर दिया तो उसके लिए भी झगड़ा किया। वह उसी भगोड़े के वीडियो को ख़ूब देखता है, उसी की सारी बातें याद कर ली हैं। वही सब सारे हिंदुओं से भी कहता है। वह स्टुडेंट कम एक कट्टर जिहादी बन गया है। क्लास में उसकी एक बहन ज़िया भी है, वह भी बिलकुल उसी के जैसी है। 

“वह हिंदू, सिक्ख और ईसाई लड़कियों के सेक्सुअल हैरेसमेंट की कोई भी कोशिश नहीं छोड़ता। प्रियांशी पर भी कई अटैम्प्ट किए हैं। वह तो मैंने ऐसे संस्कार दिए हैं कि ऐसे जिहादियों, मिशनरीज बॉयज़ की छल-कपट भरी बातों को तुरंत समझ लेती है, अपने को बचाए रहती है। लेकिन अब वह सब लिमिट से भी आगे निकल गए हैं, इसलिए हमें भी इनको जवाब देना ही चाहिए। यह बेहद ज़रूरी हो गया है।”

“लेकिन कैसे? किस तरह उन्हें जवाब दिया जा सकता है।” 

“जैसे यह सभी बात बिना बात इकट्ठा होकर चाहे स्कूल हो या फिर कंट्री की एंबेसी या कोई भी जगह वहाँ इकट्ठा होकर प्रोटेस्ट के नाम पर बवाल करते हैं, लोगों में डर पैदा करते हैं। हम लोगों को भी अब प्रोटेस्ट करना चाहिए। उन लोगों की तरह किसी कांस्पीरेसी के तहत नहीं बल्कि स्वयं पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध। हम उनकी तरह तोड़-फोड़, आगजनी, हिंसा नहीं करेंगे। 

“जिस देश में रहते हैं वह हमारा भी है, इसलिए उस देश को नुक़्सान नहीं पहुँचाएँगे, लेकिन हमारा भी मान-सम्मान, धर्म-संस्कृति, अधिकार, जीवन सुरक्षित रहे, इसके लिए आवाज़ तो अब उठानी ही पड़ेगी। हम लोगों को इस संडे को इकट्ठा होकर किसी एक प्लान को फ़ाइनल करना चाहिए। बोलो तुम क्या कहती हो, क्या मेरी बात से एग्री करती हो।”

इन समस्याओं से ख़ुद भी जूझ रही डॉक्टर गार्गी ने तुरंत हाँ कर दी। इसके बाद भी मेघना उससे काफ़ी देर तक बातें करती रही, आवेश में आकर उसने यह भी कहा कि “गार्गी सोचो कितनी ग़लत बात है कि पूरे ब्रिटेन की मेडिकल सर्विस हम भारतीय डॉक्टर्स पर डिपेंड करती है, और हम पर ही चहुंतरफ़ा हमले हो रहे हैं।” 

उसके हस्बेंड, कुछ अन्य फ़्रेंड कैसे ऐसे हमलों के शिकार होते आ रहे हैं, बताती रही, मगर गार्गी का मन भारत में अपनी माँ और बेटी से जुड़ चुका था। वह बातों का सिलसिला जल्दी ख़त्म करना चाहती थी लेकिन मेघना ने आधे घंटे बात की। 

गार्गी ने किचन में अपने लिए नाश्ता तैयार करते हुए माँ को फोन किया तो वह बहुत तनाव में उसी की कॉल की प्रतीक्षा करती हुई मिलीं। बात शुरू होते ही उन्होंने कहा, “गार्गी, तुम्हारी बेटी के प्रश्नों के जवाब दे पाना अब मेरे वश में नहीं रहा। अभी वह अठारह-उन्नीस की हो रही है। लेकिन मेरी हर बात को ग़लत कहना उसकी आदत बन गई है। तीस साल कॉलेज में बच्चों को पढ़ाया, लेकिन नातिन को बताने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। 

“मैं जब भी उससे पढ़ाई-लिखाई, टाइम से घर आने, हेल्थ का ध्यान रखने के लिए कहती हूँ, वह मुझसे ही बहस करने लगती है। शाम पाँच बजे से सो रही है। आठ बजने वाले हैं, दो बार जगाने की कोशिश की तो कहती है, ‘क्या नानी आप मुझे सोने भी नहीं देतीं।’ कह कर फिर सो गई। दस बजे उठेगी फिर रात-भर लैपटॉप, मोबाइल पर लगी रहेगी। कभी-कभी तो तीन-चार बजे सुबह जब जागने का समय होगा तब सोएगी। इसके चलते कई बार कॉलेज जाने के टाइम उठ नहीं पाती और कॉलेज छूट जाता है। 

“यह सब सुनकर तुम वहाँ परेशान होगी इसलिए तुम्हें नहीं बताती थी, लेकिन जब इसके कॅरियर, हेल्थ दोनों पर ही इफ़ेक्ट पड़ता दीखने लगा तो विवश होकर तुमसे बताना ज़रूरी समझा। क्योंकि मेरी तो कोई बात ही नहीं सुनती। इसके पीरियड्स को भी लेकर कुछ प्रॉब्लम है। पूछती हूँ तो कुछ बताती नहीं। जब भी कहती हूँ बेटा कपड़े ठीक से पहना करो, इतने छोटे, खुले कपड़े अच्छे नहीं लगते, अब तुम बड़ी हो गई हो। 

“बहुत ज़्यादा टाइट कपड़े भी नुक़्सान करेंगे तो बोलती है, ‘नानी तुम नहीं समझोगी। आख़िर फ़ैशन भी कोई चीज़ होती है, लाइफ़ में उसकी भी एक इम्पॉर्टेंस है। उसके बिना लाइफ़ एंजॉय नहीं की जा सकती। और वह लाइफ़ ही क्या जिसमें कोई एंजॉयमेंट न हो।’

“जब मन होता है स्कूटर लेकर निकल देती है, मैं पूछती ही रह जाती हूँ बेटा कहाँ जा रही हो, कितनी देर में आओगी? बाद में जब भी फोन करती हूँ तो बोलती है, ‘नानी क्यों परेशान होती हो, मैं बस थोड़ी देर में आ जाऊँगी।’ उसके थोड़ी देर का मतलब कम से कम दो से ढाई घंटा होता है। मेरी समझ में ही नहीं आ रहा है क्या करूँ। उसे कैसे समझाऊँ? 

“इस तरह उसके फ़्यूचर, हेल्थ को ख़राब होते देखा नहीं जा रहा, मुझे अब चलने-फिरने में भी समस्या होती है, इसलिए और मुश्किल हो रही है। लगता है कि अब तुम्हारे आए बिना काम नहीं चल पाएगा। या तो तुम वापस आ जाओ या फिर यदि हो सके तो इसे भी अपने ही पास बुला लो, क्योंकि ऐसे तो यह अपनी हेल्थ ही नहीं अपना कॅरियर भी नष्ट कर लेगी। मुझे बहुत चिंता हो रही है, बताओ मैं क्या करूँ।”

माँ की बातों से गार्गी समझ गई कि बेटी या तो ग़लत रास्ते पर जा रही है, या फिर जेनरेशन गैप की प्रॉब्लम है। नानी नातिन को नहीं समझ पा रही है और नातिन नानी को भी कुछ समझाना है, यह नहीं समझ पा रही है। विदुषी से भी बात करूँ तभी एक्चुअल प्रॉब्लम क्या है, मालूम होगी। उसकी पीरियड प्रॉब्लम भी समझनी होगी। बेवुक़ूफ़ लड़की ने मुझसे कभी कुछ नहीं बताया। 

उसने माँ से कहा, “अम्मा आप परेशान नहीं हों। जब विदुषी उठे तो उससे कहना मुझसे बात करे। मैं उसे समझाऊँगी कि अपनी हेल्थ, कॅरियर का ही नहीं बल्कि तुम्हारा भी ध्यान रखे। बेवजह बाहर ज़्यादा समय नहीं बिताए। उसकी पीरियड की प्रॉब्लम क्या है, वह भी पूछूँगी।”

“वह तो ठीक है गार्गी, लेकिन मैं सोच रही हूँ कि अब विदुषी को पेरेंट्स के साथ की ज़्यादा ज़रूरत है। इसीलिए कह रही हूँ या तो तुम भारत वापस आ जाओ या फिर उसे अपने पास ही रखो। उसके अच्छे फ़्यूचर के लिए यह बहुत ज़्यादा ज़रूरी हो गया है। देखो तुम मेरी बातों का यह मतलब बिल्कुल नहीं निकालना कि मैं उसे रखना नहीं चाहती, परेशान हो गई हूँ, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। 

“वह साथ है तो लगता है जैसे जीवन का कोई उद्देश्य है। जीवन जीने का कोई कारण भी है। लेकिन मैं अपने लिए अपनी नातिन के भविष्य की तरफ़ से मुँह नहीं मोड़ सकती। बेटा अब तुम तीनों के सिवा मेरे जीवन में है ही कौन। तुम सब जैसे भी हो ख़ुश रहो, मेरे लिए इससे बढ़कर और कुछ नहीं है।”

यह कहते-कहते वह बहुत भावुक हो गईं तो गार्गी ने उन्हें समझाते हुए कहा, “अम्मा तुम परेशान नहीं हो, बस दो साल की बात और है। फिर हम वापस आ जाएँगे। सभी साथ ही रहेंगे। मैं विदुषी को समझाऊँगी कि वह हर बात का ध्यान रखे, अब बड़ी हो गई है। मुझे उस पर विश्वास है, वह मान जाएगी।”

गार्गी ने सोचा माँ को बताए कि दुनिया को मानवाधिकार, नस्लवाद, रंग-भेद के विरुद्ध ज्ञान देने वाले दरोगा के ख़ुद अपने देश ब्रिटेन में स्थितियाँ कितनी बुरी और शर्मनाक हैं। यहाँ हिंदू ही नहीं सिक्ख, ईसाई, यहूदी लड़कियाँ महिलाएँ भी सुरक्षित नहीं हैं। हिंदू लड़कियाँ तो सबसे ज़्यादा जिहादियों के टारगेट पर रहती हैं। यहाँ ज़्यादातर पेरेंट्स नौकरी, अपने काम-धाम में व्यस्त रहते हैं, जिससे बच्चे-बच्चियाँ काफ़ी समय अकेले ही रहते हैं। और यह जिहादी इसी स्थिति का फ़ायदा उठाकर लड़कियों को धोखे से अपने जाल में फँसा कर उनका शारीरिक शोषण करते हैं। 

उनका ब्रेन वाश कर उन्हें कन्वर्ट करते हैं, अपने देश की तरह यहाँ भी लव-जिहाद पूरे ज़ोर-शोर से चल रहा है। रंग, नस्ल, धार्मिक भेदभाव से वृद्धाश्रम तक अछूते नहीं हैं, शिकायत करने वाले वृद्ध को आश्रम से बाहर कर दिया जाता है। ऐसे दुर्भाग्यशाली वृद्ध हर तरफ़ से बेसहारा हो जीवन से मुक्त हो जाते हैं। 

बारह-बारह, चौदह-चौदह साल की लड़कियाँ प्रेगनेंसी, एबाॅर्शन, इल्लीगल चाइल्ड की प्रॉब्लम फ़ेस कर रही हैं। इनका फ़्यूचर, कॅरियर, हेल्थ, परिवार का सम्मान सब नष्ट हो रहा है। मैं यहाँ बारह-चौदह घंटे घर से बाहर हॉस्पिटल में रहती हूँ। इतने लम्बे समय तक विदुषी अकेली रहेगी। यहाँ उसके लिए ख़तरा बहुत ज़्यादा है। यह समस्या इतनी ज़्यादा बढ़ चुकी है कि अब गवर्नमेंट कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है। यह कोशिश भी तब शुरू हुई जब बड़ी संख्या में ईसाई लड़कियाँ, औरतें भी शिकार बनने लगी हैं। 

लेकिन इन कोशिशों का कोई ख़ास रिज़ल्ट निकलता मुझे नहीं दिखता क्योंकि अपने भारत देश की तरह मुस्लिम तुष्टिकरण का रोग यहाँ की राजनीति को भी गहरे लग गया है। जो इस देश, देशवासियों को उसी तरह खोखला करता जा रहा है, जैसे अपने देश को कर रहा है। यहाँ की भी राजनीतिक पार्टियाँ कुछ भी करने से पहले मुस्लिम वोट बैंक की तरफ़ देखती हैं कि वो नाराज़ हो कर दूसरी तरफ़ तो वोट नहीं कर देंगे। 

ऐसा इसलिए होने लगा क्योंकि जेहादियों ने यहाँ भी अपनी पॉपुलेशन ख़ूब बढ़ा ली है। अपनी लीगल-इल्लीगल हर डिमांड पूरी कराने के लिए ये बहुत ही रणनीतिक ढंग से जिधर जाने से इन्हें अपनी डिमांड पूरी होती दिखती है, उधर ही पूरा झुण्ड मूव कर जाता है। 

लेकिन फिर गार्गी यह सोच कर चुप रही कि इससे माँ की टेंशन दुगनी हो जाएगी। विदुषी के साथ-साथ वह उसकी चिंता में भी परेशान होने लगेंगी। माँ से बात करने के बाद उसने थोड़ी देर आराम किया, उसके बाद किचन में खाना बनाने लगी। बाहर की कोई भी चीज़ उसे पसंद नहीं आती। ब्रिटेन में भी वह शुद्ध शाकाहारी बनी हुई है। रात के खाने में वह बहुत सादी सी कम से कम दो हरी सब्ज़ियाँ और एक या दो रोटी ही खाती है। 

काम करते हुए भी उसका पढ़ना-लिखना चलता रहता है। लेकिन इस समय वह पति और बेटी दोनों के कारण पढ़ाई में अपना ध्यान ठीक से लगा नहीं पा रही थी। ध्यान बेटी की आने वाली कॉल पर लगा हुआ था। जब दो घंटे से भी ज़्यादा समय बीत गया, उसने अपना डिनर भी ख़त्म कर लिया, बेटी की कॉल नहीं आयी तो उसने उसके ही नंबर पर कॉल किया। दूसरी बार कॉल करने पर उसने रिसीव किया। 

गार्गी ने पूछा, “बेटा कैसी हो?” 

वह अलसाई हुई बोली, “मम्मी मैं ठीक हूँ, आप कैसी हैं।”

“मैं भी ठीक हूँ बेटा, क्या कर रही थी?”

“सो रही थी, आपकी कॉल आई तो उठी हूँ।”

“लेकिन बेटा शाम को क्यों सोती हो? यह कोई सोने का टाइम नहीं है।”

“मम्मी जब नींद आएगी, तभी तो सोऊँगी न।”

“लेकिन बेटा रात-भर जागना, दिन भर सोना यह तुम्हारी हेल्थ, स्टडी, और कॅरियर सभी के लिए ही बहुत ख़राब है।”

“मम्मी, लगता है नानी से आपकी लम्बी बात-चीत हो गई है।”

“ऐसा नहीं बोलते बेटा, वह तुम्हारे अच्छे के लिए ही तो बोलती हैं। अच्छा बताओ तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?” 

“जी ठीक चल रही है।”

“और तुम्हारी हेल्थ? मुझे ठीक नहीं लग रही है। पीरियड को लेकर क्या प्रॉब्लम है?” 

बेटी ने बताने में आनाकानी की तो गार्गी ने कहा, “बेटा प्रॉब्लम को छुपाने, टाइम से ट्रीटमेंट नहीं लेने से प्रॉब्लम बहुत बढ़ जाती है। इसलिए किसी भी बीमारी को इग्नोर नहीं करना चाहिए। बताने में कोई संकोच भी नहीं करना चाहिए।”

गार्गी के ज़्यादा ज़ोर देने पर विदुषी बोली, “मम्मी पीरियड तो हर दो तीन महीने बाद कम से कम एक हफ़्ते लेट हो जाता है। दो तीन दिन काफ़ी पेन होता है। बाक़ी ठीक है। ज़्यादा प्रॉब्लम ब्रेस्ट में है। अक़्सर पेन होता रहता है। इस समय भी हल्का-हल्का हो रहा है।” 

ब्रेस्ट में पेन की बात सुनकर गार्गी काफ़ी चिंतित हो उठी। उसने बेटी से काफ़ी विस्तार से एक-एक बात पूछनी शुरू कर दी। बेटी ने भी शुरूआती संकोच के बाद सारी बातें बता दीं। गार्गी ने वीडियो कॉल के ज़रिए भी जितना पाॅसिबल हो सका उसे देखकर समझने की कोशिश की। जो देखा उससे उसकी चिंता ख़त्म हो गई। 

उसने कहा, “बेटा तुम्हारी प्रॉब्लम वो नहीं है, जो तुम समझ रही हो। तुम्हारी प्रॉब्लम तुम्हारी लाइफ़ स्टाइल, फ़ास्ट फ़ूड, अपने शरीर के बारे में कोई भी जानकारी नहीं रखना है। सच में बेटा मैं बहुत शाॅक्ड हूँ कि तुम्हें अपनी बॉडी की बेसिक नॉलेज भी नहीं है। तुम्हारी बातें सुनकर लोग हँसेंगे कि एक डॉक्टर वह भी एक गायनेकोलॉजिस्ट की बेटी को ख़ुद अपने शरीर के बारे में ही कुछ पता नहीं है। उसे यह भी नहीं मालूम है कि कौन से कपड़े उसे पहनने हैं और कौन से नहीं पहनने हैं।” 

“क्या मम्मी, आप भी कैसी बातें करती हैं? मैं इस टॉपिक पर किसी से बात करने जा रही हूँ क्या, जो किसी को कुछ मालूम होगा और वह मुझ पर हँसेगा।” 

“लेकिन मुझे तो फ़ील हो रहा है न, देखो जैसे तुम स्कूटी चलाती हो, अगर उसकी टेक्नॉलोजी के बारे में बेसिक नॉलेज रखोगी, तो तुम समय से समझ सकोगी कि उसमें क्या प्रॉब्लम हो रही है, कब उसे लेकर मैकेनिक के पास जाना है, कब सर्विस करानी है। हमारी बॉडी भी ऐसी ही है। अगर उसको ठीक से समझ लें, तो हम बहुत सी बड़ी प्रॉब्लम से भी बचे रह सकते हैं। इसलिए इसे बहुत अच्छे से जानना बहुत ज़रूरी है। तुम जान लोगी तो तुम्हें कोई प्रॉब्लम हो रही है, तुम्हें कब डॉक्टर के पास जाना है, इसको तुम टाइम से समझ सकती हो।”

“मम्मी अभी मैं मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर रही हूँ कि एनाटॉमी के बारे में जान जाऊँ। और मेडिकल्स की इतनी मोटी-मोटी बुक्स पढ़ने के लिए मैं बिल्कुल तैयार भी नहीं हूँ।”

“बेटा मैं तुमसे बुक्स पढ़ने के लिए नहीं कह रही हूँ। मैंने पहले भी तुम्हें टाइम-टू-टाइम बहुत सी बातें बताई हैं, लेकिन तुमने किसी पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। जिसके कारण बात कुछ है ही नहीं और तुम कुछ और समझ कर मुझसे या किसी भी अन्य डॉक्टर से जाने-समझे बिना ग़लत दवाएँ ले रही हो। यह भी ध्यान नहीं दे रही हो कि इन दवाओं के बहुत साइड इफ़ेक्ट्स होते हैं। तुमने बहुत ग़लत किया है। कोई भी दवा कभी अपने ही मन से नहीं लेनी चाहिए।”

“ओके मम्मी, आगे से नहीं लूँगी।”

“ठीक है बेटा। साथ ही तुम्हें यह भी करना है कि सबसे पहले तुम पैडेड टाइट और अंडर वायर ब्रॉ पहनना तुरंत बंद कर दो। जब तक घर में हो ब्रॉ नहीं पहनो, देखना कल शाम तक तुम्हारा दर्द बिल्कुल ख़त्म हो जाएगा, अगर नहीं होता है तो बताना। इसके अलावा कल ही तुम सही साइज़ की कॉटन ब्रॉ ले आओ, तुम्हें जो साइज़ लेना चाहिए तुम उससे छोटा साइज़ पहन रही हो। 

“यह भी ध्यान रखो कि ब्रॉ तीन या चार महीने के बाद चेंज कर देनी है। नहाते समय तुम्हें निपल्स पर साबुन नहीं लगाना है, तुम्हारे निपल्स से लग रहा है कि तुम वहाँ ज़्यादा साबुन यूज़ कर रही हो। इससे नुक़्सान होता है, क्योंकि उसकी ड्राइनेस बढ़ जाएगी, उससे क्रैक्स भी पड़ सकते हैं। इसलिए पूरे ब्रेस्ट को रेगुलरली मॉइश्चराइज करती रहा करो। डेली छह-सात मिनट मसाज भी करो। ऐसी चीज़ों को ज़रूर खाओ जिनसे विटामिन डी मिल सके। साथ ही थोड़ा समय धूप में भी रहो। 

“देखो मैंने तुम्हें पहले भी बताया है कि ईश्वर ने हमारी बॉडी में एक छोटा सा ऐसा पार्ट भी बनाया है जो हमें हेल्थ रिलेटेड प्रॉब्लम के शुरू होते ही इंडिकेट करने लगता है। जैसे तुम्हारी स्कूटी की सर्विस कराने का टाइम क़रीब आता है तो उसकी इंजन की आवाज़ चेंज होने लगती है, ब्रेक्स वग़ैरह ठीक नहीं लगते, यानी हमें इंडिकेशन मिलने लगता है कि हमें गाड़ी की सर्विस करा लेनी चाहिए। 

“इसी तरह हम यदि अपने शरीर के उस छोटे से पार्ट की लैंग्वेज को रीड करना जान जाएँ तो कौन सी प्रॉब्लम है, या आगे हो सकती है, इसका एक क्लियर इंडिकेशन हमें मिल जाएगा और हम उसी के हिसाब से डिसाइड कर सकते हैं कि हमें डॉक्टर के पास जाना है या नहीं जाना है।”

बड़ी देर से सुन रही विदुषी ने बड़ी उत्सुकता से पूछ लिया, “ऐसा कौन सा पार्ट है मम्मी। जो प्रॉब्लम के बारे में इंडिकेट करने लगता है।”

गार्गी चाहती भी यही थी कि वो अपने बारे में ढेर सारे प्रश्न करे, जिससे वो उसे शरीर के बारे में बहुत सी जानकारी दे सके। उसने बहुत प्यार से उसे समझाते हुए कहा, “बेटा वह इम्पॉर्टेंट पार्ट्स हैं हमारे निपल्स।”

“क्या मम्मी, आप भी क्या बोल रही हैं। इतने छोटे से पार्ट में कैसे कोई इंडिकेशन मिल जाएगा।” 

“पहले पूरी बात तो सुन लो बेटा। निपल और उसके बाद जो सर्किल होता है यानी 'अरेओला' यह हमारी बॉडी का वह पार्ट है जो हमें बहुत क्लियरली मैसेज देता है। जैसे सभी के फिंगर प्रिंट्स डिफरेंट होते हैं, उसी तरह सभी के निपल भी डिफरेंट होते हैं। कलर्स, शेप, साइज़ एक जैसे नहीं होते। 

“जैसे किसी का कलर गहरा भूरा होता है, यह कई बार तो इतना डार्क हो जाता है कि ब्लैक लगने लगता है। किसी का हलका भूरा होता है। किसी का तुम्हारी तरह गुलाबी भी होता है। शेप के हिसाब से इनके नाम अलग-अलग होते हैं, जैसे तुम्हारे निपल को इरेक्ट कहते हैं। क्योंकि यह बाहर की ओर निकले हुए हैं। यही यदि अंदर की तरफ़ दबे होते तो इनवर्टेड कहे जाते। 

“इसी तरह प्रोट्रूडिंग, ओपन, सुपरन्यूमेरेरी, हेयरी निपल्स भी होते हैं। जब बॉडी में कोई चेंज होने लगता है या कोई प्रॉब्लम शुरू होती है तो इनका कलर चेंज होने लगता है, कई बार रेसेस पड़ जाते हैं, मिल्की या ब्लड डिस्चार्ज होने लगता है। ब्लड डिस्चार्ज कैंसर होने का संकेत है, ऐसी स्थिति में तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए। 

“इनका कलर पीरियड के समय भी चेंज होता है। जब तुम्हारे पीरियड का टाइम आए तो इस बार ध्यान रखना, निपल्स के कलर को देखना, तुम्हें उसमें चेंज दिखाई देगा। तुम्हारे लिए अभी इतना और जान लेना ज़रूरी है कि ओव्यूलेशन के समय, हार्मोनल डिस्टरबेंस के कारण, एस्ट्रोजन लेवल बढ़ने पर निपल्स टाइट होकर बड़े हो जाते हैं। 

“बेटा तुम्हें अब इन सारी चीज़ों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए। तुम अपनी बॉडी के बारे में जितना डीपली जानोगी समझोगी तुम्हारी हेल्थ उतनी ही ज़्यादा अच्छी रहेगी, क्योंकि जानकारी रहेगी तो तुम उसी हिसाब से अपनी हेल्थ की केयर करती रहोगी।”

“मम्मी क्या इतना सब कुछ करना बहुत ज़रूरी है?” 

“बेटा हमेशा हेल्दी बनी रहना चाहती हो तो यह सब करना ही चाहिए।”

“क्या आप यह सब करती रहती हैं?” 

“बेटा तुम भी कैसी छोटी बच्चियों जैसी बातें करती रहती हो, अब बड़ी हो गई हो। यह सब करना कोई बड़ी बात नहीं है। हर लेडी को करना ही चाहिए। इससे हम तमाम बीमारियों से बचे रह सकते हैं। अभी तो इसके बारे में और भी बहुत सी बातें हैं जो तुम्हें जान ही लेनी चाहिए। मैं इससे रिलेटेड लिटरेचर तुम्हें मेल करती रहूँगी। कोर्स की पढ़ाई के बाद जब भी तुम्हें टाइम मिले तो उन्हें पढ़ लेना।”

“लेकिन मम्मी आपने मेरे क्वेश्चन का जवाब नहीं दिया, क्या आप यह सब करती रहती हैं?” 

“हाँ, करती हूँ। अपनी हेल्थ सही रखनी है तो हमें अपनी केयर करनी ही होगी।”

“मम्मी मैंने केवल इसलिए पूछा क्योंकि आप और पापा वहाँ पर अकेले हैं और बहुत बिज़ी भी। आप लोग अपनी केयर के लिए टाइम नहीं निकाल पाते, मुझे कई बार आपको लेकर टेंशन होने लगती है, क्योंकि मुझे यह पता चल चुका है कि दादी जी की डेथ ब्रेस्ट कैंसर से हुई थी और बड़ी वाली मौसी की भी। 

“मतलब की मदर और फ़ादर दोनों ही साइड में यह बीमारी थी। मैंने किसी मैग्ज़ीन में एक बार पढ़ा था कि फ़ैमिली में अगर किसी को होता है तो नेक्स्ट जेनरेशन में होने के चांसेज भी ज़्यादा होते हैं। इसलिए आप भी बहुत ज़्यादा ध्यान रखिए।”

“अरे बेटा तुम तो बहुत कुछ जानने लगी हो, मैं तो समझ रही थी कि तुम्हें इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।”

“मम्मी हेल्थ रिलेटेड लिटरेचर पढ़ती रहती हूँ, आपने जो कुछ मुझे बताया उसके बारे में मैं पहले से जानती हूँ, लेकिन कभी ध्यान नहीं दिया।”

“अरे तो फिर मुझे पहले क्यों नहीं बताया, मैं इतनी देर से तुम्हें यह सोचकर लेक्चर दिए जा रही थी कि तुम इनोसेंट हो, तुम्हें कुछ पता ही नहीं है।”

यह सुनते ही विदुषी खिलखिला कर हँसती हुई बोली, “मम्मी मैं तो यह चेक कर रही थी कि जैसे मेरी फ्रेंड्स की मदर अपनी बेटियों से ऐसी बातें करने में संकोच करती हैं, क्या आप भी उसी तरह से हैं।”

“अच्छा, तो तुम मेरा टेस्ट ले रही थी, नटखट बताओ मैं तुम्हारे टेस्ट में पास हुई कि नहीं।”

विदुषी बच्चों की तरह खिलखिलाती हुई बोली, “आप हंड्रेड पर्सेंट मार्क्स के साथ पास हुई हैं।”

“चलो ठीक है बेटा। अपनी लाइफ़-स्टाइल को थोड़ा सही कर लो, अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान दो और नानी का ख़ूब ध्यान रखो, वह तुम को लेकर बहुत चिंतित रहती हैं।”

“ठीक है मम्मी, आप भी अपना ध्यान रखिएगा। गुड नाइट मम्मी।”

“गुड नाइट बेटा।”

गार्गी खाने-पीने के बाद एक भारतीय न्यूज़ चैनल पर समाचार देख रही थी। यह उसका रोज़ का नियम था। इसके ज़रिए वह स्वयं को अपने देश से जुड़ा हुआ महसूस करती है। वहाँ की स्थितियों से अपडेट होती। इसके बाद वह थोड़ी देर अपने प्रोफ़ेशन से रिलेटेड बुक्स पढ़ती रहती है और कभी-कभी पढ़ते-पढ़ते ही सो जाती है। 

लेकिन जिस दिन दिमाग़ में हस्बैंड की एंट्री हो जाती है, उस दिन उसकी रात आँखों में ही बीत जाती है। और आज तो हस्बैंड की एंट्री दिन में ही हो गई थी। उसकी नज़र टीवी पर थी लेकिन ध्यान नहीं। 

इसी समय मेघना की कॉल फिर से आ गई। उसने फिर मीटिंग के बारे में और बहुत-सी बातें बता कर संडे को घर बुलाया। कहा, “और भी कई लोगों को बुलाया है। हम हिंदुओं के साथ यहाँ पर भेद-भाव हो रहा है, हम पर हमले हो रहे हैं और पहले की गवर्नमेंट की तरह यह गवर्नमेंट भी इस तरफ़ पूरा ध्यान नहीं दे रही है, कहने को अपने पी.एम.भारतवंशी हैं, गौ-माता की पूजा करते हैं। 

“इसलिए हम लोग अपना एक डेलिगेशन लेकर पीएम से मिलेंगे, उनसे अपनी प्रॉब्लम बताएँगे। कहेंगे कि हम पर हो रहे अत्याचारों को यदि आप भी नहीं रोकेंगे तो फिर कौन रोकेगा? हम लोग आख़िर कब-तक सहते रहेंगे? ऐसे तो क्रिया-प्रतिक्रिया का माहौल बन जाएगा और देश की व्यवस्था बिगड़ सकती है।” 

गार्गी बहुत असमंजस में पड़ गई कि वह क्या कहे? कहीं कोई बात बढ़ गई तो नौकरी भी जा सकती है। लेकिन जब उसे रोज़-रोज़ अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार की याद आई तो उसने सोचा मेघना जो कर रही है, ठीक कर रही है। यह तो बहुत ही पहले होना चाहिए था। 

आख़िर कब-तक ऐसे चुप बैठा रहा जाएगा, एक न एक दिन तो बोलना ही पड़ेगा। मुझे भले ही यहाँ से दो सालों के बाद वापस अपने देश चले जाना है, लेकिन डॉक्टर मेघना को तो यहीं रहना है। उसने कह दिया, “ठीक है मेघना मैं सही समय पर पहुँच जाऊँगी।” 

मेघना से डिस्कनेक्ट होते ही वह फिर हसबैंड से कनेक्ट हो गई। हस्बैंड के साथ पिछले कुछ महीनों में चार बार हुई मुलाक़ातों के समय की बातें उसके दिमाग़ में चल रही हैं। हस्बैंड की यह बात उसे झकझोर रही है कि ‘अब मैं विदुषी और अपने परिवार से यह बात ज़्यादा समय तक छुपाकर नहीं रह सकता कि ब्रिटेन में आने के एक साल बाद से ही हम दोनों अलग रह रहे हैं और डायवोर्स लेने की सोच रहे हैं। 

‘मैं फोन पर बेटी को अब और ज़्यादा धोखा नहीं दे सकता। अगर तुम मेरे साथ नहीं रह सकती, नॉर्मल लाइफ़ नहीं जी सकती तो अच्छा यही होगा कि जो भी करना है उसे कर लिया जाए। मैं अपने वैवाहिक जीवन को इस तरह अधर में रखकर और आगे नहीं चलना चाहता। तुम्हें अपना डिसीज़न बताना ही होगा कि साथ आना चाहती हो या डायवोर्स लेना चाहती हो।’ 

गार्गी उनकी इस बात को लेकर स्वयं पर बहुत दबाव महसूस कर रही है कि इसी संडे को उसे अपना डिसीज़न बताना है। वह निर्णय नहीं ले पा रही है कि हस्बैंड की बात मान ले और फिर से एक साथ रहे, नॉर्मल लाइफ़ जिए। इतने दिनों में ही अलग रहते हुए उसे ज़िन्दगी वीरान उजाड़ काँटों भरी लगने लगी है। 

वह बार-बार महसूस कर रही है कि एकांकी जीवन, ज़िन्दगी के सारे रंग-रस ख़ुशियाँ समाप्त कर देता है। और ऐसा जीवन उस पेड़- सा हो जाता है जिसकी जड़ें कट गई हों और वह तेज़ी से सूखते हुए ख़त्म होने की ओर बढ़ रहा हो। उसे याद आ रहा है कि जब से अलग हुई है। उसके बाद से एक भी रात वह सुख-चैन की पूरी नींद नहीं सो पायी है। 

हर सप्ताह कम से कम दो रातें तो तकिए को भींचते, करवटें बदलते ही बीत जाती हैं। उसे कभी भी बी पी डायबिटीज़ आदि की कोई शिकायत नहीं रही लेकिन इधर दो महीनों से कई बार ब्लड प्रेशर हाई हो जा रहा है। यदि लाइफ़ ऐसी ही बनी रही तो वह दिन दूर नहीं जब वह ऐसी सारी बीमारियों से घिर जाएगी। इतना ही नहीं बेटी का जीवन भी डिस्टर्ब होगा, अभी तो वह यही जान रही है कि हम दोनों साथ हैं। 

वह कितनी बार पूछ चुकी है कि ‘मम्मी आप और पापा फोन पर एक साथ क्यों नहीं मिलते, वीडियो कॉल पर आप दोनों एक बार भी तो साथ में नहीं आए।’ कब-तक उससे, माँ से झूठ बोलूँगी। लेकिन उस डॉक्टर आयशा को कैसे बर्दाश्त कर लूँ? इनकी इस बात पर कैसे विश्वास कर लूँ कि अब यह उसके साथ नहीं रहते, क्योंकि वह अपने मज़हब की प्रशंसा के क़सीदे पहले तो थोड़ा बहुत पढ़ती थी, लेकिन जैसे ही साथ रहने लगी तो हर साँस में मज़हब, मज़हब सिर्फ़ मज़हब। 

वह उसके मोह में पहले तो यह बर्दाश्त करते रहे, लेकिन उन्हें एक रात उस समय यह लगा कि यह तो लिमिट क्रॉस कर चुकी है, जब वह शारीरिक संबंधों का एक भरपूर समय जी लेने के बाद वॉश रूम गई और लौटकर अपना गाउन पहनती हुई बड़े रोब के साथ बोली, “सोमेश्वर कल जुम्मा है, मैं छुट्टी ले रही हूँ, तुम भी ले लो। कल लंदन से बाहर कहीं और घूमने चलते हैं। तुम्हें कुछ ख़ास लोगों से भी मिलवाऊँगी। बहुत लंबा समय बीत गया है एक जगह रहते-रहते। बड़ी मोनोटोनस हो रही है लाइफ़। और हाँ, कल मैं तुम्हें बताऊँगी कि नमाज़ कैसे पढ़ी जाती है। हम दोनों एक साथ नमाज़ पढ़ेंगे।” 

उसने इतने कॉन्फ़िडेंस के साथ यह बात कही थी जैसे कि वह न जाने कितने समय से नमाज़ पढ़ने के लिए लालायित हैं और उससे चिरौरी कर रहे हैं। उन्होंने जब मना कर दिया तो वह नाराज़ हो गई और बहस करने लगी। सनातन धर्म को झूठा, पाखंड से भरा बताने लगी। इस पर वह भी नाराज़ हो गए और बात इतनी बढ़ गई कि वह डॉ. आयशा को उसी समय छोड़कर घर से बाहर निकल लिए। पूरी रात उन्होंने गाड़ी में बिताई। उसके बाद से वह आयशा की तरफ़ देखते भी नहीं। 

हॉस्पिटल में मिलती है तो उसकी तरफ़ एक घृणास्पद दृष्टि फेंक कर मुँह दूसरी तरफ़ घुमा लेते हैं। इसके बाद से वह कई बार उन्हें धमकी ज़रूर दे चुकी है कि “तुमने मुझे चीट किया है, इसका अंजाम तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा।” उन्हें इस बात की पूरी आशंका है कि वह उनपर पर हमला भी करवा सकती है, क्योंकि वह अनेक जेहादी संगठनों से जुड़ी हुई है, उनके लिए फ़ंड की व्यवस्था में भी जुटी रहती है। इसकी जानकारी उन्हें उससे अलग होने के बाद हुई। 

क्या मुझे उनकी इस बात पर विश्वास कर लेना चाहिए कि अब उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हो गया है। वह उसके बहकावे में आ गए थे। उसने एक षड्यंत्र के तहत उन्हें अपने जाल में फँसाया था। 

गार्गी ने महसूस किया कि उसका मन बार-बार कह रहा है कि हस्बैंड की बात पर पूरा विश्वास कर लो। उसने ग़लती ज़रूर की है, लेकिन अब सच बोल रहा है, उसे अपनी ग़लती का एहसास है, और अब वह अपने घर अपने परिवार, तुम्हारे पास लौटना चाहता है। सुबह का भूला शाम को लौट कर घर आ रहा है, यदि तुमने अभी उसे एक्सेप्ट नहीं किया तो वह फिर भटक सकता है। निराश होकर उसी आयशा के पास जा सकता, फिर वह उसे कलमा पढ़ाएगी, नमाज़ पढ़ाएगी, अपने जैसा कट्टर जेहादी बना देगी या फिर उसकी जैसी किसी और आयशा के चंगुल में फँस कर नष्ट हो जाएगा। गार्गी को सोमेश्वर की जान ख़तरे में दिखने लगी। 

संडे को डॉक्टर मेघना के घर उसे अनुमान से भी कहीं बहुत ज़्यादा लोग मिले। सभी की समस्या एक ही थी कि सभी के बच्चे स्कूल में एक जैसे भेद-भाव, हमलों, शोषण का शिकार हो रहे हैं। पेरेंट्स भी ऑफ़िस, होटल, पार्क, कालोनी हर जगह इसी स्थिति से गुज़र रहे हैं। 

सब ने मिलकर एक ज्ञापन तैयार किया, उस पर हस्ताक्षर किए और यह तय हुआ कि प्राइम मिनिस्टर से मिलने का टाइम लेकर, उन्हें यह ज्ञापन सौंपेंगे, प्रॉब्लम बताएँगे, उनसे कहेंगे अगर इस प्रॉब्लम को सॉल्व नहीं किया गया तो आगे चल कर यह ख़ुद ब्रिटेन के अस्तित्व के लिए एक बड़ा प्रश्न चिह्न बन जाएगी। 

मीटिंग से निकल कर गार्गी लंदन के पॉपुलर और सोमेश्वर के फेवरेट रेस्ट्राँ ‘वीरास्वामी’ रीजेंट स्ट्रीट पहुँची, जहाँ उसे सोमेश्वर ने उसका फ़ाइनल डिसीज़न जानने के लिए बुलाया था। वहाँ दोनों ने एक साथ लंबा समय बिताया। अपनी-अपनी बातें कहीं। गार्गी रेस्ट्राँ से सोमेश्वर के साथ बाहर निकली तो उसने घर वापस चलने के लिए टैक्सी नहीं मँगाई। घर से वह अपनी कार नहीं टैक्सी में ही आई थी। 

शायद उसे विश्वास था कि वापस घर वह सोमेश्वर को लेकर उसकी ही गाड़ी में आएगी। दोनों जब स्वामीनारायण मंदिर में पूजा कर, सेलिब्रेशन का ढेर सारा सामान लेकर घर पहुँचे तो रात हो चली थी। ड्रॉइंग रूम में पहुँचकर सबसे पहले उन्होंने बेटी को फोन किया, वीडियो कॉल, और बहुत देर तक बातें करते रहे। गार्गी ने विदुषी से कहा, “देखो बेटा, आज हम दोनों साथ में हैं।”

2 टिप्पणियाँ

  • सोचने को मजबूर करती कहानी. ....

  • 21 May, 2023 06:55 PM

    इस्लामी जेहाद की वैश्विक समस्या बताती बहुत सी अन्य जानकारी देती, रोचक कहानी। धन्यवाद प्रदीप जी

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