ज़मीन की भाषा
विजय नगरकर
एक दिन राजभाषा निरीक्षण हेतु एक तहसील स्थित हमारे उपमंडल कार्यालय गया था।
वहाँ एक छोटे क़स्बे से पाटिल (मुखिया) आए थे। वे कार्यालय के सहायक से ऊँची आवाज़ में बोल रहे थे। शायद बहुत ग़ुस्से में कार्यालय का पत्र दिखाकर उसका अर्थ जानना चाहते थे।
मैंने हस्तक्षेप करते हुए पाटिल को शांत करने का प्रयास करते हुए पूछा, “क्या हुआ पाटिल, क्या काम है?”
मुझे उन्होंने पत्र सौंपकर पढ़ने का अनुरोध किया।
मैंने पढ़ा:
Please submit the following documents within 3 days otherwise your case will not be considered and the matter will be closed. No further correspondence will be entertained in this matter.
“पाटिल आपको कार्यालय को कुछ वांछित काग़ज़ात 3 दिनों के अंदर भेजना था। अब यह मामला रद्द किया जाता है|”
पाटिल ने कहा, “आप यह पत्र मुझे हिंदी अथवा मराठी में भेज सकते थे। व्यवसाय आपको करना है, दूरभाष केंद्र मेरी ज़मीन पर खड़ा करना है। फिर हमारी ज़मीन की भाषा में प्रस्ताव रखा था, बात हुई थी। मैं अंग्रेज़ी नहीं जानता लेकिन मेरे पास गाँव में ज़मीन, खेती, पैसा सब कुछ है। क्या आपके पास हमारी भाषा नहीं है?”
इस तर्क को काटना असंभव था।
हमने उच्च अधिकारी से बात करके काग़ज़ात मँगवाने का समय सीमा बढ़ा दी। पाटिल को पत्र हिंदी मराठी दोनों भाषाओं में दिया गया। पाटिल ख़ुश हुए, बाद में दूरभाष केंद्र भी उनकी ज़मीन पर खड़ा हुआ।