घर वापसी

15-01-2024

घर वापसी

विजय नगरकर (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

कार्यालय के मित्र ने कहा, “हम चाय लेने बाद में जायेंगे।”

“क्यों?” 

“अभी राजेश मिठाई बाँटने आ रहा है।”

“अरे, वही घर वापसी? 

हम दोनों हँस पड़े। 

बात यह थी कि राजेश एक कवि और चित्रकार था। हमेशा अपनी साइकिल उठाकर शहर से दूर जंगल जाता था। वहाँ से अनेक पंछियों के स्केचेस बनाकर हमें दिखाता था। साथ में पंछियों पर कोई ख़ास कविता भी सुनाता था। 

आर्थिक स्थिति बिल्कुल ख़राब रहती थी। हमेशा हर मामले में घाटे में रहता था। पत्नी बहुत नाराज़ रहती थी। कभी घर में घनघोर लड़ाई-झगड़ा होते ही घर से भाग जाता था। बिलकुल पंछी की तरह सैर करने निकल जाता था। उसका पता ढूँढ़ते हुए पत्नी बहुत परेशान रहती। लेकिन दो-चार दिनों में राजेश घर लौटता था। इस घर वापसी पर मित्रों में मिठाई बाँटता था। 

हम पूछते, “राजेश, यह क्या नौटंकी है? 

राजेश ने कहता, “भाई बहुत सारे अलग-अलग पंछी देखे और कविताएँ लिखी गईं, बस इसी ख़ुशी में मुँह मीठा कर लो।

“मुझे स्थलांतर करने वाले पंछी बहुत पसंद हैं। कैसे वे अपना घर, देश छोड़कर विदेश चले जाते हैं। कुछ समय के बाद अपने घर लौटते हैं। उनकी यात्रा, उनका संघर्ष मेरी कविताओं का विषय है। 

“जीवन से भागना नहीं, भागकर जीवन जीना चाहिए!!!” 

इस बात पर सभी मित्र हँस देते थे। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

स्मृति लेख
आप-बीती
पुस्तक चर्चा
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
काम की बात
पुस्तक समीक्षा
कविता
अनूदित कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
सांस्कृतिक आलेख
रचना समीक्षा
अनूदित आलेख
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
ऑडियो