शाहीर योगेश-मराठी और हिंदी शाहिरी कला का एक अमूल्य नायक
विजय नगरकर
देश धरम पर मिटने वाला।
शेर शिवा का छावा था॥
महापराक्रमी परम प्रतापी।
एक ही शंभू राजा था॥
छत्रपति संभाजी महाराज पर ऊपरलिखित गीत के पंक्ति लिखनेवाले मराठी और हिंदी के चर्चित शाहीर योगेश का नाम वीर रसपूर्ण गीतकार के रूप में सुप्रसिद्ध है।
मराठी संस्कृति का भव्य आकाश अनेक प्रतिभाओं से भरा हुआ है, लेकिन कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनकी चमक शताब्दियों तक धुँधली नहीं होती। दिवाकर नारायण भिष्णूरकर, जिन्हें विश्व शाहीर योगेश और प्रेम से “अण्णा” कहा जाता है, मराठी शाहिरी कला के इस नीले आकाश के ध्रुवतारा हैं। 21 अक्टूबर 1928 को अमरावती ज़िले के अंजनगाव सुर्जी में जन्मे योगेश जी का प्रारंभिक जीवन तो मामूली सा प्रतीत होता था, लेकिन बचपन से उनके भीतर छिपी प्रचंड प्रतिभा ने भविष्य के लिए इशारा कर दिया था।
संत तुकडोजी महाराज के सान्निध्य में 9 साल की उम्र में शाहिरी की ओर उनका झुकाव हुआ। यह सिर्फ़ शुरूआत थी; उनके लिए यह कला एक साधना बन गई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रिय भागीदारी, गोवा मुक्ति संग्राम में साहसी गीतों के माध्यम से प्रेरणा देने की क्षमता, और संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के वीररस से भरे योगदान ने उन्हें अमर कर दिया।
शाहीर योगेश ने पोवाड़ों के माध्यम से छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की वीरगाथाओं को जनमानस में स्थापित कर दिया। उनकी कविता “देश धर्म पर मिटने वाला शेर शिवा का छावा था . . . ” जैसे शब्दों में केवल भावनाएँ नहीं थीं, बल्कि इतिहास की आत्मा जीवंत होती थी। उनके गीत न केवल स्वर, बल्कि पूरे महाराष्ट्र के दिल की धड़कन थे।
शाहीर योगेश ने महाराष्ट्र शाहिरी परिषद के माध्यम से राज्य भर में बिखरे हुए शाहिरों को एक मंच प्रदान किया, जहाँ वे अपनी कला को प्रदर्शित कर सकें। यह पहल शाहिरी कला के संरक्षण और प्रसार के लिए महत्त्वपूर्ण थी। उन्होंने सिंधखेड राजा से रायगढ़ तक जिजाऊ (शिवाजी महाराज की माता) की पालकी यात्रा शुरू करने में भी अग्रणी भूमिका निभाई, जो मराठी संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण परंपरा है।
उन्होंने बच्चों को शिवाजी महाराज के जीवन को समझाने के लिए “शिवशक 333” नामक एक प्रश्नावली रूपी पुस्तक लिखी, जो बच्चों के लिए शिवचरित्र को सरल बनाने का प्रयास था। यह पुस्तक उनकी शिक्षा और प्रसार की दृष्टि को दर्शाती है।
हालाँकि उन्हें सरकारी पुरस्कार नहीं मिले, लेकिन समाज ने उनके कृतित्व का वह सम्मान दिया, जो किसी भी पुरस्कार से ऊपर था। उनकी विरासत को उनकी बेटी वृषाली कुलकर्णी ने सजीव और प्रासंगिक बनाए रखा, यह प्रमाणित करते हुए कि एक सच्चा कलाकार कभी समय की सीमाओं से बँधा नहीं रहता।
शाहीर योगेश केवल एक व्यक्तित्व नहीं थे; वे एक परंपरा, एक विचारधारा और मराठी संस्कृति के अमूल्य प्रहरी थे। उनकी साधना और योगदान ने शाहिरी कला को वह ऊँचाई दी, जो महाराष्ट्र के सांस्कृतिक इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है। उनकी ललकारी “छत्रपती शिवरायांचा त्रिवार जयजयकार” आज भी मराठी आत्मा को गुंजित करती है, और उनके योगदान का हर पल सम्मान किया जाता है। उनकी जीवनी उस संतुलन को दर्शाती है, जहाँ कलाकार अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और संस्कृति के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है।
छत्रपति संभाजी महाराज पर लिखा हुआ निम्नलिखित हिंदी गीत (पोवाडा) देशभर बहुत चर्चित और लोकप्रिय हुआ।
इसी गीत को हिंदी फ़िल्म “छावा” में चित्रित किया गया है।
देश धरम पर मिटने वाला।
शेर शिवा का छावा था॥
महापराक्रमी परम प्रतापी।
एक ही शंभू राजा था॥
तेज:पुंज तेजस्वी आँखें।
निकल गयीं पर झुका नहीं॥
दृष्टि गयी पण राष्ट्रोन्नति का।
दिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं॥
दोनों पैर कटे शंभू के।
ध्येय मार्ग से हटा नहीं॥
हाथ कटे तो क्या हुआ?
सत्कर्म कभी छुटा नहीं॥
जिह्वा कटी, ख़ून बहाया।
धरम का सौदा किया नहीं॥
शिवाजी का बेटा था वह।
ग़लत राह पर चला नहीं॥
वर्ष तीन सौ बीत गये अब।
शंभू के बलिदान को॥
कौन जीता, कौन हारा।
पूछ लो संसार को॥
कोटि कोटि कंठों में तेरा।
आज जयजयकार है॥
अमर शंभू तू अमर हो गया।
तेरी जयजयकार है॥
मातृभूमि के चरण कमलपर।
जीवन पुष्प चढ़ाया था॥
है दूजा दुनिया में कोई।
जैसा शंभू राजा था॥
—शाहीर योगेश
उनके हिंदी गीतों को उनके परिवार द्वारा संकलित किया जा रहा है। मराठी और हिंदी पर समान अधिकार रखनेवाले शाहीर योगेश को सादर वंदन।