मातृभाषा
विजय नगरकर
इनकी-उनकी भाषा
नौकर-मालिक की भाषा
ग्राहक-दुकानदार की भाषा
पत्र-ईमेल की भाषा
जनता-सरकार की भाषा
इसकी-उसकी भाषा
इनकी-उनकी भाषा
नौकर-मालिक की भाषा
ग्राहक-दुकानदार की भाषा
पत्र-ईमेल की भाषा
जनता-सरकार की भाषा
गाँव-शहर की भाषा
इन भाषाओं के कोलाहल में
मेरी मातृभाषा मौन है,
माँ मैं भूल गया हूँ तेरी पावन भाषा
तेरे संस्कार, प्रेम, स्नेह की भाषा
जन्म से पहले, तेरे गर्भ में
अन्न पानी ग्रहण करते हुए
चुपचाप सुनता था
तेरी मधुर गीत भाषा,
माँ मुझे फिर अपने गर्भ में धारण कर
तेरी भाषा प्रदान करेगी जीवनरस
कर मुझसे प्रतिपल संवाद,
मैं बोलना चाहता हूँ
तेरे साथ तेरी भाषा का वह पहला शब्द,
तेरे गर्भ घर की पवित्र भाषा
जो करेगी मुझे आलोकित
अचल रहूँगा समय के चक्रवात में
मेरा जीवनमार्ग रहेगा प्रकाशित।
गाँव-शहर की भाषा
इन भाषाओं के कोलाहल में
मेरी भाषा मौन है,
माँ मैं भूल गया हूँ तेरी पावन भाषा
तेरे संस्कार, प्रेम स्नेह की भाषा
जन्म से पहले, तेरे उदर में
अन्न पाणी ग्रहण करते हुए
चुपचाप सुनता था
तेरी मधुर गीत भाषा,
माँ मुझे फिर अपने गर्भ में धारण कर
मातृ भाषा के साथ मुझसे संवाद कर
मैं बोलना चाहता हूँ
तेरे साथ तेरी भाषा का वह पहला शब्द
तेरे उदर घर की मातृ भाषा
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- साहित्यिक आलेख
- काम की बात
-
- गूगल लैब का नया कृत्रिम बुद्धि आधारित डिजिटल नोटबुक
- चैटबॉट में हिंदी का प्रयोग
- डिजिटल मीडिया में हिंदी भाषा
- मंगल फ़ॉन्ट से हुआ भारतीय भाषाओं का मंगल
- राजभाषा हिंदी प्रचार प्रसार में एण्ड्राइड मोबाइल की भूमिका
- शुषा फ़ॉन्ट: ऑनलाइन हिंदी साहित्य की डिजिटल उड़ान का अनसुना इंजन!
- हिंदी के विकास में कृत्रिम बुद्धि का योगदान
- सांस्कृतिक आलेख
- रचना समीक्षा
- ऐतिहासिक
- शायरी
- सामाजिक आलेख
- पुस्तक समीक्षा
- स्मृति लेख
- आप-बीती
- पुस्तक चर्चा
- लघुकथा
- कविता
- अनूदित कविता
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- अनूदित आलेख
- हास्य-व्यंग्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-