मज़दूर का लंच बॉक्स
विजय नगरकरपहले डिब्बे में
मालिक की दहशत,
दूसरे डिब्बे में
भाषा, जाति,
धर्म की अस्मिता,
और अंतिम तीसरे डिब्बे में
रूखा सूखा रोटी का टुकड़ा
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