भाषा आक्रमण: आपत्ति की इष्टापत्ति

15-05-2024

भाषा आक्रमण: आपत्ति की इष्टापत्ति

विजय नगरकर (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

आज किराना दुकान गया था। वहाँ एक पाँच साल का आकर्षक, चुलबुला बच्चा दुकानदार से पतंग माँग रहा था। 

“मुझे पतंग चाहिए।”

“जा दादा जी के साथ जाकर ख़रीद लेना।”

मैंने दुकानदार से मराठी में पूछा, “क्या यह आपका बेटा है? 

“जी, इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहा है।”

मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने उस बच्चे को अपने पिताजी और दादाजी के साथ हिंदी में बातचीत करते हुए देखा। 

“क्या आपका बेटा मराठी में बात नहीं करता?” 

“कभी-कभी करता है, लेकिन स्कूल के मित्रों के साथ हिंदी में बात करता है, उसे अब हिंदी की आदत हो गई है।”

मैंने मराठी परिवार के अनेक बच्चों को देखा है जो आमतौर पर हिंदी में बात करते हैं। पुणे स्थित मेरे एक रिश्तेदार के तेलुगु परिवार में सभी बच्चे तेलुगु की बजाय हिंदी में बात करते हैं। 

मेरा यह अनुभव है कि अंग्रेज़ी माध्यम के छात्र हिंदी बोलने में ज़्यादा रुचि लेते हैं। हम भले अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा पर कटाक्ष करें। लेकिन अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में विभिन्न भाषिक परिवार के बच्चे अंग्रेज़ी से ज़्यादा हिंदी में बात करना अधिक सुविधाजनक पाते हैं। 

भारत में भाषा का मामला अधिक संवेदनशील है। हर एक भाषा वर्ग की अपनी अस्मिता है। 

मातृभाषा पर हिंदी के आक्रमण को लेकर सबसे ज़्यादा राजनीति की जाती है। हिंदी विरोधी लोगों के परिवार के बच्चे हिंदी का सबसे ज़्यादा प्रयोग करते हैं। नौकरी के लिए अंग्रेज़ी माध्यम को चुनते हैं। अंग्रेज़ी प्रमाणपत्रों से उनकी झोली भरी रहती है। संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग पग पग पर करते हैं लेकिन जब भाषिक अस्मिता की बात आती है तो हिंदी पर दोषारोपण किया जाता है। 

क्या हिंदी किसी एक विशेष क्षेत्र की भाषा है? बिलकुल नहीं, हिंदी का राष्ट्रीय स्वरूप स्थापित करने में जितना हिंदी भाषिक लोगों का योगदान है, उससे ज़्यादा हिंदीतर लोगों ने हिंदी को विकसित किया है। 

भारत का संविधान भी कहता है कि:

भारतीय संविधान अनुच्छेद 351

हिन्दी भाषा के विकास के लिए निदेश

‘संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्‍यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।’

हिंदीतर परिवार की नई पीढ़ी हिंदी को अपना रही है, भले उनका कार्यक्षेत्र, पढ़ाई अंग्रेज़ी है। 

क्या यह मातृभाषा के लिए संकट की निशानी है? क्या मातृभाषा के विकास का हमारा दृष्टिकोण इतना संकुचित हुआ है कि मातृभाषा बचाव के नारे अंग्रेज़ी में लिखे जाएँगे और हिंदी विरोधी बातें होंगी। 

यह हमारा राजनीतिक, भाषिक ढोंग होगा। 

हिंदी का सबसे ज़्यादा समर्थन अल्पसंख्यक, आदिवासी, काम-काजी ग़रीब लोगों ने किया है। 

देश के अनेक प्रांतों के मुसलमानों की भाषा देखिए। ना उन्हें अच्छी उर्दू, अरबी, फ़ारसी आती है। लेकिन इन लोगों ने “हिंदुस्तानी” शैली को अपनाकर वहाँ के प्रांतीय भाषाओं के साथ एक अलग हिंदी प्रचारित की है। 

दक्षिण, पूर्वोत्तर राज्य, असम, बंगाल क्षेत्र के मुस्लिम लोगों की समिश्र उर्दू, हिंदुस्तानी भाषा को “गहाती” कहा जाता है। गहाती भाषा में उर्दू, हिंदी, बांग्ला, असमिया और फारसी भाषाओं के शब्दों का मिश्रण होता है। यह भाषा मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय द्वारा बोली जाती है, लेकिन कुछ हिंदू भी इसे बोलते हैं। गहाती भाषा का लिखित रूप न तो उर्दू लिपि का अनुसरण करता है और न ही हिंदी लिपि का। यह मुख्य रूप से बांग्ला लिपि का उपयोग करता है, जिसमें कुछ अतिरिक्त अक्षरों को शामिल किया गया है। गहाती भाषा असम और बंगाल की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह भाषा सदियों से विभिन्न समुदायों के लोगों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

दक्षिण भारत में मुसलमानों की प्रमुख भाषा “दख्खनी”/दक्खिनी रही है। 

15वीं–16वीं सदी में फ़ौज, फ़कीरों तथा दरवेशों के साथ यह भाषा दक्षिण भारत में पहुँची और वहाँ प्रमुखत: मुसलमानों में, तथा कुछ हिन्दुओं में जो उत्तर भारत के थे, प्रचलित हो गई। 

कहते हैं कि कभी कभी आपत्ति भी इष्टापत्ति साबित होती है। आम धारणा है कि विदेशी भाषाओं के आक्रमण से मातृभाषा कमज़ोर होती है, नष्ट हो जाती है। लेकिन भाषा विज्ञान के अनुसार विदेशी भाषा के संक्रमण से भारतीय भाषाओं में कई विदेशी भाषाओं के शब्द समाहित हो चुके हैं। किसी भी भाषा को उत्कृष्ट तब ही माना जाएगा जब वह कई भाषाई आक्रमणों से नष्ट न हो कर उलट वह नया रूप, नया अवतार, नया वेग लेकर आगे बढ़ती रहे। 

भाषा अस्पृश्य नहीं होती। भाषा यह एक मानवीय घटना है जो भाषिक संक्रमण के फलस्वरूप तेज़ी से आगे बढ़ती है। भाषा का अस्तित्व किसी भी आक्रमण या विदेशी भाषा के कारण संकट में नहीं आता। यदि भाषा का उपयोग करने वाली समाज रचना सजग रहेगी तो भाषा का विकास निश्चित रूप से होता है। 

मराठी भाषी श्रीमती राज्येश्री जयराम ने धारावी झोपड़पट्टी स्थित बहुभाषिक समुदाय की संपर्क भाषा हिंदी का सर्वे किया था। केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर ने प्रकाशित किया है। 

(An Ethno-linguistic survey of Dharavi 1986 published by CIIL Mysore) 

भाषा आक्रमण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक भाषा को दूसरी भाषा से प्रभावित किया जाता है। यह प्रभाव किसी भी रूप में हो सकता है, जैसे कि शब्दों और वाक्यांशों का उधार लेना, भाषा की संरचना या शैली में बदलाव करना, या भाषा की उपयोगिता या अर्थ में बदलाव करना। 

भाषा आक्रमण के सकारात्मक परिणाम कई तरह से हो सकते हैं। सबसे पहले, यह भाषाओं के बीच बातचीत और समझ को बढ़ावा दे सकता है। जब एक भाषा दूसरी भाषा से प्रभावित होती है, तो यह दोनों भाषाओं के वक्ताओं को एक-दूसरे की भाषा को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है। 

दूसरे, भाषा आक्रमण भाषाओं की विविधता को बढ़ावा दे सकता है। जब एक भाषा दूसरी भाषा से प्रभावित होती है, तो यह नई शब्दावली, वाक्यांश, और वाक्य रचना का परिचय दे सकती है। यह भाषा को अधिक जीवंत और आकर्षक बना सकता है। 

तीसरे, भाषा आक्रमण भाषाओं के विकास को बढ़ावा दे सकता है। जब एक भाषा दूसरी भाषा से प्रभावित होती है, तो यह भाषा में नए रूपों और कार्यों का विकास कर सकती है। यह भाषा को अधिक कुशल और प्रभावी बना सकता है। 

कुछ विशिष्ट उदाहरणों में शामिल हैं:

  • अंग्रेज़ी भाषा पर लैटिन और फ़्रैंच भाषाओं का प्रभाव। अंग्रेज़ी भाषा में लैटिन और फ़्रैंच से कई शब्द और वाक्यांश उधार लिए गए हैं, और इन भाषाओं ने अंग्रेज़ी की संरचना और शैली को भी प्रभावित किया है। 

  • हिंदी भाषा पर उर्दू भाषा का प्रभाव। हिंदी भाषा में उर्दू से कई शब्द और वाक्यांश उधार लिए गए हैं, और इन भाषाओं ने हिंदी की संरचना और शैली को भी प्रभावित किया है। 

  • चीनी भाषा पर जापानी भाषा का प्रभाव। चीनी भाषा में जापानी से कई शब्द और वाक्यांश उधार लिए गए हैं, और इन भाषाओं ने चीनी की संरचना और शैली को भी प्रभावित किया है। 

  • बेशक, भाषा आक्रमण के नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भाषा आक्रमण एक भाषा के मूल रूप को बदल सकता है, या यह एक भाषा के विलुप्त होने का कारण बन सकता है। हालाँकि, कुल मिलाकर, भाषा आक्रमण एक शक्तिशाली प्रक्रिया है जो भाषाओं के विकास और विविधता को बढ़ावा दे सकती है। 

विदेशी सत्ता के कारण भारतीय भाषाओं पर विदेशी भाषाओं का प्रभाव रहा है। भारत की लंबी और समृद्ध इतिहास और संस्कृति रही है। इस दौरान, भारत पर कई विदेशी शक्तियों का शासन रहा है। इन शक्तियों ने अपनी संस्कृति और भाषा को भारत में पेश किया। इससे भारतीय भाषाओं पर उनके प्रभाव पड़ा। 

विदेशी सत्ता के कारण भारतीय भाषाओं पर विदेशी भाषाओं का प्रभाव रहा है, यह एक दोहरी बात है। इससे एक ओर भारतीय भाषाओं की समृद्धि और विविधता बढ़ी, दूसरी ओर उनकी अस्वीकृति और अपमान भी हुआ। इसलिए, हमें अपनी भाषाओं का सम्मान करना और उन्हें संरक्षित रखना चाहिए। 

भाषा आक्रमण के जटिल परिणाम होते हैं, जिनमें कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक परिणाम शामिल होते हैं। यह महत्त्वपूर्ण है कि हम सभी परिणामों पर विचार करें और भाषा नीतियाँ बनाते समय सावधानी बरतें जो सभी समूहों के लिए न्यायसंगत और लाभकारी हों। 

भाषा आक्रमण, हिंदी भाषा के लिए एक चुनौती और अवसर दोनों हो सकता है। यदि इसका बुद्धिमानी से उपयोग किया जाए, तो यह भाषा को समृद्ध और विकसित करने में मदद कर सकता है। 

यह महत्त्वपूर्ण है कि हम अपनी भाषा की रक्षा करते हुए, वैश्वीकरण के इस दौर में भाषा के विकास के लिए इसका उपयोग भी करें। 

भाषा आक्रमण के कई रूप हो सकते हैं, और यह विभिन्न समुदायों को अलग-अलग तरीक़ों से प्रभावित कर सकता है। 

यह याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि सभी भाषाएँ मूल्यवान हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। 

2 टिप्पणियाँ

  • बहुत उपयोगी और प्रभावी आलेख। मेरा सदा से यही विचार रहता है कि व्याकरण दूषित न होने पाए शब्द बढ़ते चले जाएं तभी भाषा समृद्ध होगी।

  • 6 May, 2024 09:14 PM

    आपने ख़ुद के अनुभवों और साक्ष्यों दोनों को मिली कर अच्छा आलेख लिखा है। बधाई।

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