लालच की भूख
विजय नगरकरकथा उस समय की है जब मोबाइल आने से पहले लैंडलाइन कनेक्शन हेतु आम जनता पंजीकरण करके 5 से 10 साल तक कनेक्शन की प्रतीक्षा करती थी।
शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी ने सभी काग़ज़ात टेलीफोन कार्यालय में जमा किए। काउंटर के क्लर्क के पास एक पैकेट भी सरका दिया। क्लर्क ने पैकेट खोल के देखा अंदर 5 हज़ार की राशि थी। उसने व्यापारी को लौटा दी। व्यापारी ने पूछा, "क्या रक़म बढ़ा दूँ? मेहरबानी करके कनेक्शन का काम जल्दी करें।"
तब क्लर्क ने कहा, "क्या आप 20 साल पुरानी बात भूल गए हो?
"मैं नगर पालिका के प्राथमिक विद्यालय का छात्र था। तब हमारे शिक्षक ने अपने बेटे के साथ मुझे मिठाई की दुकान भेजा था। मेरे पास पैसे नहीं थे। मैं दुकान के बाहर बेंच पर बैठा रहा था। दुकान के अंदर शिक्षक का बेटा कचौड़ी और जलेबी खा रहा था। तब आपने काउंटर पर दुकानदार को पैसे देकर मुझे कचौरी और जलेबी देने को कहा था।
"मैंने दुकानदार से कहा था कि मुझे भूख नहीं है। दुकानदार ने आपको पैसे लौटा दिए थे।
"मैं वही लड़का हूँ।
"आज भी मुझे लालच की भूख नहीं है। मुफ़्त दान लेता रहता तो आज किसी मंदिर के सामने अपने को खड़ा पाता।"
व्यापारी ने क्लर्क की ओर आदरपूर्वक देखते हुए पैसे का पैकेट उठाकर अपनी जेब में रख लिया।
2 टिप्पणियाँ
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अत्यंत सुंदर...
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बहुत सुंदर प्रेरक प्रसंग