सुसाइड नोट

15-01-2024

सुसाइड नोट

विभांशु दिव्याल (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

उसने अपने सुसाइड नोट यानी आत्महत्या-पूर्व-पत्र में लिखा, “मैं अपनी ज़िन्दगी समाप्त कर रहा हूँ। मैं इस ज़िन्दगी से ऊब चुका हूँ। इस ज़िन्दगी से मुझे परेशानियों और दुखों के सिवाय कुछ नहीं मिला। किसी से हमदर्दी नहीं मिली, प्यार नहीं मिला। मैं ऐसी ज़िन्दगी जीना नहीं चाहता जिसमें मेरे लिए कुछ नहीं है। मेरी मौत के लिए किसी को ज़िम्मेदार न माना जाए।”

नोट पूरा करके अपने पलंग के सिरहाने रखे तकिये के नीचे रख दिया, फिर एक थैली में से नींद की वे गोलियाँ, जो उसने कई दिनों में दो-दो करके जुटायी थीं, अपनी हथेली पर उड़ेल लीं। इतनी गोलियाँ उसे मनचाही नींद सुलाने के लिए काफ़ी थीं। 

उसने पानी का गिलास उठा लिया और जैसे ही गोलियों की मुट्ठी मुँह के पास लाया कि एक उचटता-सा ख़्याल ज़ेहन में आ अटका। सुसाइड नोट को वह तकिये के नीचे क्यों रखे, इसे अपनी मुट्ठी में ही क्यों न रखे! उसने काग़ज़ का वह टुकड़ा तकिये के नीचे से उसी हाथ से निकाला जिसमें गोलियाँ भरी हुई थीं। काग़ज़ को एक बार फिर पढ़ने की इच्छा हो आयी। उसने पानी का गिलास मेज़ पर रखा और सुसाइड नोट को हाथ में भरी गोलियों के ऊपर फैला लिया। पढ़ना शुरू किया तो “मेरी मौत के लिए किसी को ज़िम्मेदार न माना जाए” वाले अंश पर आकर अटक गया। 

क्या यह सही लिखा है? अगर कोई ज़िम्मेदार नहीं है तो वह आत्महत्या ही क्यों कर रहा है? जब वह दुनिया से विदा ले ही रहा है तो आख़िरी वक़्त में यह झूठ क्यों? ज़िन्दगी की समाप्ति की बेला में तो उसे सच का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। इस सोच के साथ ही अनेक चेहरे उसके जे़हन में डूबने-उतराने लगे-उसकी प्रेमिका का चेहरा, उसके मित्रों के चेहरे, बाप का चेहरा, दफ़्तर के अपने बॉस का चेहरा . . . इन सब को लेकर उसके मन में गहरी शिकायतें भरी हुई थीं। तो क्या अपने सुसाइड नोट में इन सबके नामों का उल्लेख कर दे? लिख दे कि इन लोगों की वजह से ही उसकी ज़िन्दगी जीने लायक़ नहीं रह गयी है? 

इस ख़्याल के साथ ही एक दूसरा ख़्याल उसके दिमाग़ में एक झटके के साथ आ घुसा। इनके नामों का उल्लेख नहीं कर सकता तो कम-से-कम इन सब को यह तो बता ही सकता है कि वह उनकी वजह से ही आत्महत्या कर रहा है। उनसे एक बार यह तो पूछ ही सकता है कि वे सब उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते रहे हैं कि उसकी जीने की इच्छा ही मर गयी है। वह आत्महत्या करने को विवश हो गया है। पूछने का यह ख़्याल उसके दिमाग़ पर हावी होने लगा। वह ज़्यादा से ज़्यादा दो दिन में इन सबसे निपट लेगा। गोलियाँ दो दिन बाद भी खायी जा सकती हैं। उसने गोलियाँ वापस काग़ज़ की थैली में उड़ेल दीं और सुसाइड नोट अपनी पैंट की जेब में रख लिया। 

जेब में रखा हुआ सुसाइड नोट उसे भरी हुई पिस्तौल के जेब में रखे होने जैसा अहसास करा रहा था। पहले के विपरीत उसके भीतर एक विचित्र से साहस का संचार हो रहा था। उसने अधिकारी के चेम्बर के बाहर बैठे चपरासी से बात करने की ज़रूरत नहीं समझी। चेम्बर का दरवाज़ा खोला और सीधे अपने बॉस के सामने जाकर खड़ा हो गया, उस बॉस के सामने जिसके सामने पड़ते ही उसकी रूह काँपने-काँपने को हो आती थी। 
बॉस ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में हैरत भरी हुई थी। बॉस ने पूछा, “क्या बात है?” 

वह बिना झिझक बोला, “मुझे अपनी बात का सीधा जवाब चाहिए। आप मेरे साथ कुत्ते जैसा व्यवहार क्यों करते हैं, जैसे मैं इन्सान ही नहीं हूँ। आप बात-बिना बात मेरे ऊपर चीखते-चिल्लाते हैं। हर वक़्त नौकरी से बाहर कर देने की धमकी देते हैं। मैं जानना चाहता हूँ कि आप मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं?” 

बॉस ने उसे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और बोला, “सुनो, तुम्हें यह कैसे लगा कि मैं तुम्हारे साथ कुत्ते जैसा व्यवहार करता हूँ? मैं जानता हूँ कि तुम काम करते हो। लेकिन मैं जहाँ बैठा हूँ वहाँ बैठकर मुझे अपने ऑफ़िस की सारी वर्क फ़ोर्स को काम पर लगाए रखना पड़ता है। जैसा मैं करता हूँ वैसा न करूँ तो तुम्हें क्या लगता है कि कितने ऐसे लोग हैं जो अपने आप काम करते रहेंगे? हो सकता है कभी-कभी मैं ज़्यादा ज़ोर से बोल दूँ या किसी को थोड़ा ज़्यादा डाँट दूँ पर ऐसा मैं केवल तुम्हारे साथ ही नहीं करता . . . और अब मैं तुम्हें एक बात बताता हूँ, अगर तुम अपनी नौकरी में ख़ुद को बचाकर रखना चाहते हो तो अपने बॉस की बात या उसके व्यवहार को लेकर कभी भी ऐसी बचकानी प्रतिक्रिया मत देना।”

“पर मुझे अभी तक कोई प्रमोशन नहीं मिला। वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई,” उसने उसी रौ में कहा। 

बॉस ने उसकी तरफ़ तीखी नज़र से देखा और बोला, “तो तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी एक प्रमोशन और एक बढ़ोतरी पर टिकी हुई है? चलो अब मेरे कमरे से बाहर निकलो और अपने काम पर लगो।”

वह उठा और कमरे से बाहर निकल आया। बॉस ने उसे लगभग डाँटते हुए कमरे से बाहर निकाला था, फिर भी शायद जेब में रखे सुसाइड नोट का प्रताप था कि उसे बॉस का चेहरा पहले जैसा डरावना और आतंकित करता-सा नहीं लगा। 

अब उसके दिमाग़ में अपने दोस्तों के प्रति धुँधली-सी बिना आकृतियों वाली शिकायतें उभर रही थीं। ये लोग उसके मित्र थे और इनके साथ को वह अपने लिए ज़रूरी मानता था। लेकिन ये लोग अक़्सर उसके साथ सहानुभूति रहित व्यवहार करते थे। उसकी भावनाओं का ध्यान नहीं रखते थे और उसका मज़ाक उड़ाने का कोई भी मौक़ा नहीं चूकना चाहते थे। उसे लगता था जैसे उसे ही उनकी ज़रूरत है, उन्हें उसकी नहीं। 

उसकी जेब में रखा सुसाइड नोट उसमें हिम्मत जगा रहा था और जब उसने अपने दोस्तों के आगे अपना खुरदरा सवाल उछाला तो उसे कोई संकोच नहीं हुआ, “अगर तुम लोग मेरा साथ पसंद नहीं करते, मुझे पसंद नहीं करते, मेरा सम्मान नहीं कर सकते, मैं तुम लोगों की दोस्ती के क़ाबिल नहीं हूँ तो मुझसे सीधे-सीधे बोल क्यों नहीं देते कि मैं अपना अलग रास्ता देखूँ!”

उसके दोस्तों की आँखों में हैरानी थी। 

उनमें से एक बोला, “तू पागल हो गया है, कैसी बातें कर रहा है! कौन तुझे पसंद नहीं करता? किसने कहा हमें तेरा साथ पसंद नहीं है? हम तेरा मज़ाक नहीं उड़ाते, तेरे साथ मज़ाक़ करते हैं। और तुझे किसने रोका है कि तू हमारे साथ मज़ाक मत कर? दोस्त दोस्त होते हैं। और दोस्तों के बीच नाप-तौल कर बात नहीं होती कि यह कहोगे तो अच्छा लगेगा, वह कहोगे तो बुरा लगेगा। तेरे दिमाग़ में ये बेवुक़ूफ़ी भरी बातें आ कहाँ से रही हैं? और हाँ, अगर तुझे हमारा साथ पसंद नहीं है तो तू जाने के लिए पूरी तरह आज़ाद है, कोई तुझे ज़बरदस्ती बाँधकर नहीं रखेगा।”

एक दूसरे दोस्त ने उसका हाथ पकड़ा और खींच कर उसे अपने पास बैठा लिया। फिर अन्य दोस्तों से बोला, “आज इसका मूड ठीक नहीं है, आज इसके साथ कोई मज़ाक़ नहीं करेगा।” दोस्तों ने उसके साथ कोई हमदर्दी नहीं दिखायी। उन्होंने साफ़-साफ़ कह भी दिया कि अगर वह चाहे तो उन्हें छोड़कर जा भी सकता है। फिर भी वह दोस्तों को वहीं छोड़ कर उठ नहीं सका। 

उसका सुसाइड नोट उसकी जेब में सुरक्षित था और उसका ग़ुस्सा अब अपने बाप की ओर मुड़ रहा था। वह अपने बाप के पास पहुँचा और बोला, “आप मुझसे नफ़रत क्यों करते हैं?” 

“क्या! क्या कहा तूने!” बाप की आँखें अविश्वास और आश्चर्य से चौड़ी हो गयीं। 

“आप हमेशा मेरे पीछे पड़े रहते हैं। हर किसी के सामने जो मन में आता है कह देते हैं। कभी मुझे चैन से नहीं रहने देते। आप क्या चाहते हैं, कि मैं घर छोड़ दूँ या दुनिया छोड़ दूँ?” वह बिना नज़र झुकाए, पलकें झपकाए बोला। 

“तू पागल हो गया है,” बाप उस पर चिल्लाया, “तू कैसी बेहूदी बातें कर रहा है!” 

“नहीं, मैं सच कह रहा हूँ। मैं बस जानना चाहता हूँ कि आख़िर आप मुझसे चाहते क्या हैं? अगर मैं आपके ऊपर बोझ हूँ तो साफ़-साफ़ कह क्यों नहीं देते ताकि मैं अपने बारे में ख़ुद कोई फ़ैसला कर लूँ,” उसने सीधे बाप की आँखों में झाँकते हुए कहा। 

“तुम्हें रास्ते पर रखने के लिए एक-दो बात कह देता हूँ तो तुम्हें बुरा लगता है। तुम्हें लगता है हम तुम्हें बोझ समझते हैं।” बाप का गला भर्रा गया, “मैं तेरा बाप हूँ। हर बाप अपने बेटे को सफल देखना चाहता है, आगे बढ़ता हुआ देखना चाहता है। उसे आगा-पीछा समझाना चाहता है। ज़िन्दगी में बहुत कम अवसर ऐसे मिलते हैं जब आप ज़िन्दगी पर अपनी पकड़ बना सकते हैं। एक बार ये अवसर हाथ से निकल जाए तो ज़िन्दगी भर पछताना पड़ता है। मैंने ऐसे अवसर गँवाए हैं। मैं नहीं चाहता कि तू भी गँवाए। इसलिए जब मैं तुझे फ़ालतू में समय गँवाते देखता हूँ, तेरी लापरवाहियाँ देखता हूँ, तो कुछ कह-सुन देता हूँ। पर ये बातें आज तेरी समझ में नहीं आएँगी . . . जब ख़ुद बाप बनेगा तब समझेगा।” बाप हाँफने लगता है। 

दो पल रुककर बाप फिर बोला, “अगर तुझे लगता है कि हम तुझे परेशान कर रहे हैं तो तू फ़ैसला कर ले। अलग हो जा और जैसे रहना चाहता है वैसे रह।” 

वह समझ नहीं पाया कि बाप ने उसे राहत दी है या फिर से डाँटा है। बाप ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि वह घर छोड़कर जा सकता है। फिर भी उसे अपने बाप का चेहरा कुछ अलग लग रहा था। 

सुसाइड नोट अब भी उसकी जेब में था। 

अब उसकी सारी भीतरी घुमड़ उस लड़की की ओर मुड़ गयी थी जिससे वह अपना दिल हार चुका था, लेकिन लड़की उसे समझ नहीं रही थी। उसे लग रहा था कि सुसाइड नोट में उस लड़की का ही नाम होना चाहिए। वह उस लड़की को लेकर ही सबसे ज़्यादा निराश और दुखी होता रहा है। 

वह उस लड़की के सामने जा खड़ा हुआ जो उसकी प्रेमिका थी। 

लड़की ने उसे देखा और बोली, “हे, क्या बात है, तुम ठीक तो हो?” ̜ 

“नहीं, मैं ठीक नहीं हूँ,” उसने सपाट कहा, “मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ।” 

“क्या पूछना चाहते हो?” लड़की के चेहरे पर आश्चर्य की रंगत उतर आयी थी। वह प्रश्नाकुल दृष्टि से उसे ताकने लगी। 

“मुझे साफ़-साफ़ बताओ, क्या तुम्हें सचमुच नहीं मालूम कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ?” उसने बेलाग कहा। इस तरह से कहने की हिम्मत वह पहले कभी नहीं जुटा पाया था। 

“तुम संजीदगी से यह बात कह रहे हो?” लड़की कुछ भ्रमित-सी लगी। 

उसने बेझिझक कहा, “तुम्हें कब लगा कि मैं संजीदा नहीं हूँ?” 

“ओह!” लड़की थोड़ी सावधान हुई, “मैं सोचती थी कि तुम भी वैसे ही बात करते हो जैसे हर दूसरा-तीसरा लड़का हल्के-फुल्के तरीक़े से करता रहता है। मैं यह भी सोचती थी कि तुम्हें मेरे बारे में कुछ पता होगा। पर नहीं, आज मैं तुम्हें साफ़-साफ़ बता रही हूँ। मैं एक लड़के से पिछले कई वर्षों से प्यार करती आ रही हूँ। अब हम जल्दी ही शादी करने वाले हैं। एक लड़की के लिए यह कठिन चुनाव होता है, पर मैं यह चुनाव कर चुकी हूँ। लेकिन ऐसा नहीं कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करती या तुम मुझे अच्छे नहीं लगते। मैं तुम्हें अपना एक अच्छा दोस्त मानती रही हूँ . . . इससे ज़्यादा कुछ नहीं।” 

उसने लड़की के चेहरे पर उसकी साफ़गोई की चमक महसूस की। 

लड़की बोली, “अगर मैं तुम्हें प्यार नहीं करती तो उसका यह अर्थ नहीं कि तुम्हारी प्यार की दुनिया ही ख़त्म हो गयी। तुम देखना, तुम्हें जल्दी ही कोई दूसरी लड़की मिल जाएगी . . . तुम्हारे साथ यह कोई नयी बात नहीं हो रही है। हर दूसरे-तीसरे लड़के-लड़की के साथ ऐसा होता है। कोई आपको प्यार करता है, आप किसी और को प्यार करते हैं। मुझे नहीं लगता कि किसी लड़के-लड़की को इसे इतनी संजीदगी से लेना चाहिए कि उसे अपनी ज़िन्दगी ही बेमानी लगने लगे।”

उसने लड़की की आँखों में देखा। उसे वहाँ अपने लिए कुछ भी वैसा नहीं दिखा जैसा वह देखना चाहता था। आगे वह क्या बोले, उसे नहीं सूझा। 

लड़की बोली, “सॉरी, मुझे अभी निकलना है। तुमसे फिर मिलती हूँ।” लड़की चली गयी। शायद हमेशा के लिए। 

सुसाइड नोट उसकी जेब में था। उसने अपनी जेब में हाथ डाला और नोट को उँगलियों में फँसाकर बाहर निकाल लिया। एक बार फिर उसने नोट के सारे अक्षरों पर नज़र डाली, और फिर उसे कई टुकड़ों में फाड़कर पास के कूड़ेदान में फेंक दिया। 

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