समय

डॉ. सुनीता जाजोदिया (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

निर्बलों को भयभीत कर सताता
सबलों को मित्रवत राह दिखाता। 
 
नित नवीन रूप में प्रकट होता
तिथि के पन्नों में रम जाता। 
 
महारथियों को भी धूल चटाता
जीवन में हरदम हलचल मचाता। 
 
शातिर चालें हर क़दम ख़ूब चलता 
किसी आँगन दो घड़ी ना ठहरता। 
 
हँसती रोती यादों के नैनों से झाँकता
कहानी का ग़ज़ब किरदार बन जाता। 
 
साढ़ेसाती में ज़ख़्म गहरे दे जाता
मलहम लगा फिर रंग बदल लेता। 
 
अनुभवों की नित सौग़ात दे जाता 
जीवन का अनमोल पाठ पढ़ाता। 
 
परिवर्तन चक्र का सारथी बनकर 
महाप्रतापी जगदगुरु कहलाता॥

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