मोहब्बत का दर
डॉ. सुनीता जाजोदियाहोकर इस गली से गुज़रना होगा
पता इसका तुम्हें पाना ही होगा
नफ़रत पसीजे द्वेष जल जाए
मोहब्बत का ऐसा दर है ये।
चौखट जैसे मज़बूती से जुड़े
गले मिल इक दूजे संग रहते
शब्द न बनते दीवारें यहाँ
भाव बहते खुले खुले
दमन और आतंक से परे
सद्भाव में हरियाए जीते।
मोहब्बत का ऐसा दर है ये...
विश्वास ना हो तो दस्तक दे देख लो
आज़माना हो तो पुकार कर देख लो
रुको ना सहम दर पर इसके
बेधड़क क़दम बढ़ा कर देख लो
माफ़ी की भीनी शीतल बयार से
दूर-दूर तक सुवासित है ये आँगन
इस की छाँव में ज़रा ठहर कर तो देख लो॥
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