सासू माँ
डॉ. सुनीता जाजोदियारंगोली सजा अक्षत बिखेर कर
आरती उतार बलैया लेकर
बधावे गा कर शगुन मनाकर
मिठाइयाँ बाँट, प्रेम बरसा कर
नवेली बहू का करती स्वागत ज़ोर-शोर से सासू माँ।
नेह भरी थैली मुँह दिखाई में देकर
झोली भर देती बहू की पावन प्यार से
बेटे के सपने बहू के दामन से बाँध
चाभी का गुच्छा थमा गंगा नहाती चैन से सासू माँ।
सृजन बेल को पनपते देख
मातृत्व के आशीषों को फलते देख
मोद से गदगद हो झूम उठती
गोद में खिला पोते पोतियों को
फिर से हरी हो जाती है बनकर दादी सासू माँ।
माँ से दादी और पर-सर दादी बनने की अभिलाषा में
मातृरूप फिर-फिर दोहराने की है अदम्य कामना
चिर 'मातृविषा' नारी की अपरम् शक्ति
हर सासू माँ हो जाती जिससे शाश्वत धरती माँ॥
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